"कुछ लोग ज़िंदगी में बहुत कम बोलते हैं, लेकिन उनकी चुप्पी भी बहुत कुछ कह जाती है। कभी वो खामोशी हमें खींचती है, तो कभी वही हमें तोड़ जाती है। मैं बस इतना जानती हूँ - मैंने बातों में कम, पर खामोशी में बहुत कुछ ढूंढा।
बारिश सबको पसंद होती है। मुझे भी बारिश बहुत पसंद है और जब मौसम की पहली बारिश होती है, तो मुझे उसमें भीगना बहुत अच्छा लगता है।
बारिश की हर बूंद में एक जादू सा होता है।
जब बारिश की बूंदे मिट्टी से जाकर मिलती है तो पूरा घर महका देती है। वो महक जो मिट्टी से आती है।
बारिश की बूंदों से एक मधुर संगीत निकलता है। वह संगीत जो मन को सुकून दे जाए।
खिड़की के पास बैठ कर बारिश को देखने में जो खुशी मिलती है वो किसी भीड़ में कहां।
बारिश ही अहसास दिलाती है कि सबकुछ है तुम्हारे पास लोग, रिश्ते, चेहरे, दोस्त, लेकिन वही बारिश याद भी दिलाती है कि यहां तुम्हारा कोई नहीं है।
न रिश्ते,न दोस्त तुम सिर्फ अकेले हो।
बारिश ही तो है जो किसी के न होने का एहसास दिलाती है।
लोग जब तक साथ देते हैं जब तक उन्हें हमारी जरूरत होती है,। वो ये नहीं सोचते कि शायद हमें भी उनकी जरूरत हो।
बारिश की हर बूंद ये बताती है… जिस तरह से पानी की हर बूंद मिट्टी में खो जाती है उसी तरह तुम भी कही खो जाते हो।
किसी की बातों में,तो किसी की याद में,
बस फर्क इतना है कि पानी की बूंदे मिट्टी में खोकर भी अपनी पहचान नहीं छोड़ती।,
उन्हें पता है अगर उनकी पहचान खो गई तो उनका बाजूद कुछ नहीं है।
जब मिट्टी में पानी की बूंदे गिरती है, तो हम ये नहीं कहते की पानी में मिट्टी गिरी है बल्कि हम कहते है… मिट्टी में पानी गिरा है।
और धीरे धीरे वही पानी की बूंदे मिट्टी में मिल जाती है।
यहीं तो बूंदों की खूबसूरती होती है।
बारिश की प्रत्येक बूंद हमसे कुछ कहती, शायद कुछ बताना चाहती है या कुछ सिख देना चाहती है।
पर हम समझते नहीं क्योंकि हम भी तो उन हजारों की भीड़ से ही हैं जो किसी की सुनते नहीं बस अपनी बात दूसरों पर थोप देते हैं।
जब कभी फुरसत मिले या कभी लगे कि तुम अकेले हो तब किसी खिड़की से या आंगन में बैठ कर बारिश को देखना उन बूंदों को देखना जो साथ साथ आसमान से गिरती हैं।
उनमें कितना धैर्य है वो कभी आपस में नहीं झगड़ती, बूंदे कभी ये नहीं कहती कि तुम मुझसे पहले जमीन पर क्यों गिरी।
क्योंकि उन्हें पता है गिरना तो हमें जमीन पर ही है।
तो क्यों आपस में झगड़े,,
बारिश की बूंदे किसी से डरती नहीं हैं… वो कभी तेज हवाओं के डर से बरसना नहीं छोड़ती, हवा चाहे कितनी भी तेज हो बूंदे टकराती ज़मीन से ही हैं।
वे अपना रुख मोड़ सकती हैं अपनी दिशा बदल सकती हैं, लेकिन मंजिल कभी नहीं छोड़ती।
बारिश का पानी जब छत की मुंडेर से गिरता है तो उसमें एक बेचैनी होती है, शायद वो बताना चाहता है कि लोग भी ऐसे ही छोड़ जाते हैं, एक समय के बाद।
यहां तुम्हारा कोई नहीं..
सिर्फ तुम हो खुद के साथ और शायद तुम भी नहीं हो अपने साथ।
मैंने बारिश की हर बूंद को महसूस किया है।
उसके शोर को भी सुना है तो उसकी खामोशी भी पढ़ी है।
बारिश की बूंदों में एक और खूबसूरती है जो अक्सर हम सब देखते हैं,
जब बारिश होती है तो उसकी बूंदे पेड़ के पत्तों और तारों को ऐसे सजा देती है जैसे– किसी ने मोती लगाए हों।
उनकी चमक हमें ये बताती कि चाहे थोड़े समय के लिए ही सही लेकिन वे किसी हीरे से कम नहीं।
उन्हें ये भी पता है जब हवा चलेगी या सूरज की किरणे उन पर पड़ेंगी तो उन्हें तो हटना ही है।
तो क्यों ना थोड़ा खुद को संवारा जाए।
जब जब बारिश होती है वो किसी में खोती नहीं बल्कि सबको अपने रंग में रंग देती है।
यही तो बारिश की खूबसूरती है।
तो क्यों ना बारिश से, उसकी बूंदों से कुछ सिखा जाए?
बारिश की तरह हम भी खुद में खो जाए।
तो क्यों किसी के जाने से दुखी हो?
और क्यों किसी के आने का
इंतजार करें?
जब पता है चलना तो अकेले ही है।
ये बारिश की बूंदे ही तो है जो हमें जीने का एक नजरिया और सीखती हैं।।
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Neha kariyaal✍️