The turtle... lost the race in Hindi Motivational Stories by K Hemant books and stories PDF | कछुआ… हार गया !

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कछुआ… हार गया !

कछुआ… हार गया !

हुआ यूं कि खरगोश को नींद आ गई.. नींद तो आनी ही थी क्योंकि कहानी का क्लाइमेक्स आना अभी बाकी था | नींद ठहर जाने का नाम है , ठहराव का सबसे अच्छा स्वरूप है नींद और नींद से उठ कर भागने का जो मजा है उसकी तो कोई बात ही नहीं. खरगोश भी भागा, बेतहाशा जोर लगाकर, बेसुध होकर मंजिल की ओर… किंतु देर हो चुकी थी और कछुआ जीत चुका था, क्योंकि कछुआ सोया नहीं था चला जा रहा था, निरंतर लगातार लक्ष्य की ओर जिसे उसने हासिल कर लिया था, ऐसा ही तो बताया गया है हमें, निरंतरता में ही जीत है | एकाग्र होकर निरंतर लगातार एक लक्ष्य की ओर बढ़ना नींद को हराकर चलते जाना,जीत का यही तो नियम है | शायद यह नियम कछुआ जानता था इसीलिए तो इस नियम का पालन करते हुए उसने जीत हासिल की |

 

खैर, असली मजा तो रिजल्ट के बाद आता है | हर तरफ दो ही चर्चाएं थी, एक खरगोश के हार की और दूसरी कछुए की किस्मत की | अगर कोई मजबूत प्रत्याशी जिसकी जीत निश्चित है हार जाए तो दुख (खुशी वाला दुख) होता है और अगर कोई कमजोर प्रत्याशी जिसकी जीत की कोई संभावना ना हो और वह जीत जाए तब खुशी (दुख वाली खुशी) होती है | एक तरफ लोग कछुए को बधाइयां (ताने) दे रहे थे दूसरी तरफ खरगोश को सांत्वना (ताने) दे रहे थे | लोग कछुए से कहने लगे कि भाई क्या किस्मत है तेरी ! किस्मत ने अच्छा साथ दिया तेरा जो खरगोश सो गया वरना तू कहां… ! किस्मत से जीता है वरना तेरी क्या मजाल जो तू खरगोश को हरा देता | भाई किस्मत हो तो कछुए जैसी .. इत्यादि इत्यादि ! दूसरी तरफ लोग खरगोश से कहने लगे, अरे उसी वक्त सोना था तुझे? गजब नालायक है रे तू, करा ली ना अपनी बेइज्जती ! खरगोश बिरादरी में तो मातम पसर गया, लोग कहने लगे कि इसने तो हमारी नाक कटवा दी,अब क्या मुंह लेकर घूमेंगे हम इस संसार में इत्यादि इत्यादि …

 

अब सोचने वाली बात यह है कि ना तो कछुए की जीत पूरी लग रही है ना खरगोश की हार, पूर्णता नजर नहीं आ रही, पूर्णता तो होनी ही चाहिए, चाहे वह किसी की जीत हो या फिर किसी की हार | आज कमोबेश सभी का यही हाल है सब कुछ है मगर वह पूर्ण नहीं और जब तक कुछ भी पूर्ण ना हो तब तक सब कुछ अधूरा है और इसी पूर्णता की प्राप्ति के लिए लगे हुए हैं सभी, कछुए वाली नियम का पालन करते हुए एकाग्र होकर निरंतर लगातार लक्ष्य की ओर, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो… जागते रहो ! लक्ष्य जो प्राप्त करना है ! क्योंकि आप कुछ ना करें चलेगा, मगर कुछ करें और वह अधूरा रह जाए तब दिक्कत होती है, और यह अधूरापन जीवन के उन अनदेखे रंगों में से है जिसे आप महसूस तो कर सकते हैं मगर देख नहीं सकते | खैर, कहानी से जो सबक मिलनी थी वह मिल गई|

 

अब आगे बढ़ते हैं !

 

हार से निराश खरगोश आधी रात गए घर पहुंचा, बाल बच्चों वाला था, बीबी मुंह फुलाए बैठी थी, बच्चे रो कर सो गए थे | क्या जरूरत थी रेस लगाने की.. घर आकर नहीं सो सकते थे..बस यही दिन देखना रह गया था.. वगैरह-वगैरह | बीबी को जवाब देने से अच्छा था सो जाएं, हम भी वही करते,खरगोश ने भी वही किया |

 

जीत की खुशी से सराबोर कछुआ आधी रात गए घर पहुंचा, बाल बच्चों वाला था, बीबी पलके बिछाए बैठी थी, बच्चे सोए नहीं थे | खूब आवभगत हुआ,बिरादरी के लोग अब भी जमे हुए थे कछुए के जोश और जज्बे की खूब तारीफें हुई | अंततः कछुआ भी अपने बिस्तर पर आ गया, मगर कोई चीज थी जो चुभ रही थी बराबर, कछुआ और खरगोश दोनों को ..नींद एक को भी ना आती थी |

 

रात बीती नया सवेरा दोनों के जीवन में एक बड़ा बदलाव लेकर आया| लोगों के ताने चुभने लगे, दोनों को | बस अब क्या था, खरगोश कहता मैं हारा नहीं, मैं तो दौड़ा ही नहीं था और कछुआ कहता मैं किस्मत से नहीं अपने मेहनत से जीता हूं अगर मैं ना दौड़ता तो क्या किस्मत मेरा साथ देती ? बात तो सही है, “Slow and Steady Wins the Race” वाली बात को सार्थक कर दिखाया था कछुए ने | मगर धीरे-धीरे बात बहुत आगे बढ़ गई और एक बार फिर कछुआ और खरगोश आमने सामने आ गए ,इसी दिन का तो इंतजार था लोगों को, की हो जाए एक एक हाथ फिर से… पब्लिक को तो चाहिए “एंटरटेनमेंट” | हम भी तो ऐसे ही हैं , सामने वालों को आपस में भीड़ा कर तमाशा देखने में जो मजा है उसकी कोई तुलना नहीं| अब क्या था, खरगोश बोला हिम्मत है तो दोबारा जीत के दिखाओ ,कछुआ बोला हिम्मत है तभी तो जीता था और पब्लिक बोली कि हो जाए!! दौड़ का दिन तय हो गया | लेकिन एक दिक्कत थी कछुआ के लोग नहीं चाहते थे की दौड़ दोबारा हो| कछुए को समझाया गया | बीवी ने समझाया, बच्चों ने समझाया, उसके अपनी बिरादरी वालों ने समझाया मगर कछुआ नहीं माना क्योंकि वह जानता था ” Slow and Steady Wins the Race”

 

आखिर दौड़ शुरू हुई और खत्म भी हो गई |

 

हार से निराश कछुआ आधी रात गए घर पहुंचा,बीबी मुंह फुलाए बैठी थी, बच्चे रो कर सो गए थे | क्या जरूरत थी रेस लगाने की.. मिल गई तसल्ली बेइज्जती करा कर….गलती से जीत क्या गए थे वह भी नहीं देखा गया…बस यही दिन देखना रह गया था.. वगैरह-वगैरह | बीबी को जवाब देने से अच्छा था सो जाएं, हम भी वही करते, कछुए ने भी वही किया |

 

जीत की खुशी से सराबोर खरगोश आधी रात गए घर पहुंचा, बीबी पलके बिछाए बैठी थी, बच्चे सोए नहीं थे | खूब आवभगत हुआ,बिरादरी के लोग अब भी जमे हुए थे खरगोश के जोश और जज्बे की खूब तारीफें हुई | अंततः खरगोश भी अपने बिस्तर पर आ गया |मगर कोई चीज थी जो चुभ रही थी बराबर, कछुआ और खरगोश दोनों को ..नींद एक को भी ना आती थी |

 

मगर इस हार ने कछुए पर अपना असर दिखाया अब कछुए को कुछ-कुछ ज्ञान हो आया था, वह जागा और जोर से बोला पिक्चर अभी बाकी है मेरे दोस्त | दौड़ 1-1 से बराबर रही, फाइनल अभी बाकी है मैं फिर से दौडूंगा |अपनी हार का बदला लूंगा | लोगों को लगा कछुआ बौरा गया है | लोगो ने कछुए को समझाया, पगला गए हो क्या | मगर कछुए के मन में कुछ और ही चल रहा था अब उसे बदला लेना था | अब खरगोश उसे एक प्रतिद्वंदी नहीं दुश्मन दिखाई दे रहा था | प्रतिद्वंदिता अगर दुश्मनी में बदल जाए तब कहना ही क्या | इंटरटेनमेंट का लेवल हाई हो जाता है | बात दुश्मनी की हो तब तो साम, दाम, दंड, भेद हर नीति पर काम करना पड़ता है | रणनीति बनानी पड़ती है | दुश्मन की कमजोरी का पता लगाना पड़ता है| कछुए ने भी युक्ति लगाई | कछुए की रणनीति स्पष्ट थी, फिर क्या था खरगोश को चुनौती दी गई| खरगोश ने हंसते हुए चुनौती स्वीकार की और बोला किस्मत बार-बार साथ नहीं देती बोल कब और कहां लगानी है दौड़ | कछुआ बोला दौड़ मेरे शर्त पर होगी, बात से पीछे तो नहीं हटोगे | खरगोश बोला पूरा जंगल गवाह है जहां बोल वहां हराऊंगा तुझे , बात पक्की हूंई | जंगल के बीचो-बीच महानदी बहती थी |नदी महान होती है और इसी महानता को साक्षी मानकर दो महान किरदार एक दूसरे को चुनौती देने वाले थे |

 

दौड़ का दिन तय हो गया | शर्त यह थी कि जो भी नदी को दौड़ कर पार करेगा और दूसरी तट छूकर वापस आएगा वही जीतेगा | लेकिन क्या दौड़कर नदी को पार किया जा सकता है ? जवाब है, जी हां ! किया जा सकता है क्योंकि कहानी का क्लाइमेक्स आना अभी बाकी था | ना जाने कितनी भीड़ थी तट पर, लोगों की जिज्ञासा हिलोरे मार रही थी, नदी की धार की तरह, नदी भी अपने उफान पर थी| कछुआ निश्चिंत था लेकिन खरगोश के हाथ पैर फूले जा रहे थे |उसने सोचा भी ना था कि कुछ ऐसा होगा |

 

नदी से कुछ दस कदम की दुरी पर रेखा खींच दी गयी | जरुरत थी पहला कदम बढाने की जो कछुए ने बढ़ा दिया | खरगोश ने भी एक लंबी छलांग लगाई, सीधे नदी में पूरी ताकत के साथ क्योंकि वह जानता था चाहे कोई दौड़ हो या फिर जंग पहला प्रहार जोरदार होना चाहिए ! कछुआ भी नदी में पहुंच गया और भागा, सरपट ..दूसरे तट की ओर | देखते ही देखते कछुआ दूसरी तट को छूकर वापस लौट पड़ा, मगर यह क्या ! खरगोश तो समाए जा रहा था नदी में, नदी की विकराल लहरें खींच रही थी अपने अंदर | खरगोश की सांसे उखड़ रही थी,लोग दांतों तले उंगलियां दबाएं यह सब देख रहे थे उन्हें लगा मानो यह खरगोश की आखिरी दौड़ हो और उसकी कहानी बस यहीं पर समाप्त हो जाएगी | दौड़ का रोमांच अब धीरे-धीरे डर में बदलने लगा था | लोग अब डर रहे थे, इसलिए नहीं कि खरगोश डूब कर मर जाएगा परंतु इसलिए की इसकी मौत का जिम्मेदार कहीं ना कहीं वो सब भी है| हमें आदत है अपने क्षण भर की ख़ुशी के लिए दूसरो को कष्ट झेलते हुए देखने की, भले ही वो कष्ट सामने वाले के लिए ज़िन्दगी और मौत का खेल ना बन जाये |बीच मझधार में डूबते हुए खरगोश के पास आकर कछुआ ठहर गया और उसने खरगोश को खींचकर अपने पीठ पर बिठा लिया क्योंकि नदी पर दौड़ लगाना तो अभी बाकी था | कछुए ने बदले की भावना त्याग दी क्योकि बदला लेने के लिए गिरना पड़ता है और अगर गिरकर जीते भी तो क्या जीते | कछुआ दौड़ा, सरपट… नदी पर, खरगोश को पीठ पर बिठाये और आ पंहुचा किनारे,तट पर !! लोगो की डर अब धीरे धीरे जा चुकी थी , सब तालियां बजा रहे थे, देख लिया था सभी ने की दौड़ कर भी नदी पार की जा सकती है | लक्ष्य बस दस कदम की दूरी पर था या फिर यूं कहिए कि एक छलांग की दूरी पर मगर न तो कछुए ने कदम बढ़ाया और ना ही खरगोश ने छलांग लगाई,शायद दोनों जान चुके थे कि जीत और हार से परे भी कोई चीज है जो पूर्ण है | यही पूर्णता तो चाहिए थी दोनों को जो अब उन्हें मिल चुकी थी |

 

आज शाम ढले ही दोनों घर पहुँचे, लोगो की भीड़ न थी, बीबियों ने भी ज्यादा कुछ नहीं कहा मगर खुश बहुत थीं | खैर ये इन दोनों का निजी मामला है ...

बिस्तर पर लेटते ही दोनों को नींद आ गई, एक गहरी नींद !

चाहता तो यह निर्णायक दौड़ कछुआ जीत सकता था किन्तु नहीं....

 

कछुआ… हार गया !

                                                                                                                                                                                                   K. Hemant