ठंडी रात थी। कोलकाता की सड़कों पर धुंध लिपटी हुई थी, जैसे कोई अपने दर्द को चुपचाप छुपा रहा हो। सायरा खान बस अड्डे के कोने में एक बेंच पर बैठी थी, एक छोटा बैग गोद में रखे, आंखों में डर और दिल में अनजाना सा बोझ लिए।
उसके सामने चमचमाती कारें थीं, पर उसके पैरों में बस चप्पलें और भविष्य अनजान था।
"ये शहर मेरी मंज़िल नहीं, मेरी मज़बूरी है," उसने खुद से कहा।
अचानक, तेज़ ब्रेक की आवाज़ हुई। एक काली SUV उसके सामने आकर रुकी। दरवाज़ा खुला और एक लंबा, सख्त चेहरा बाहर निकला।
"तुम सायरा हो?" आवाज़ सख्त थी, लेकिन आंखें कुछ और कहती थीं।
"जी… आप?" सायरा हड़बड़ाई।
"रेहान मलिक। तुम्हें लेने आया हूँ। चलो, वक्त बर्बाद मत करो।"
सायरा सकपका गई। उसे इतना तो पता था कि वो जिस नौकरी के लिए आई है, वो आसान नहीं होगी… लेकिन कोई माफिया खुद उसे लेने आएगा, ये उसने सोचा नहीं था।
---
💥 शहर की पहली दस्तक
गाड़ी चलती रही… सायरा चुप रही। शहर की रौशनी अब पीछे छूटती जा रही थी।
"तुम्हें किसी ने बताया नहीं, जहां तुम काम करने आ रही हो, वहां सवाल नहीं पूछे जाते?" रेहान ने निगाहों से उसे काटा।
"माफ़ कीजिए… मैं बस नर्सिंग का काम करने आई हूं।"
"काम वही होगा, जो मैं कहूं।"
सायरा चौंकी… ये तो वैसा नहीं था जैसा उसे बताया गया था।
SUV एक विशाल हवेली के सामने रुकी। चारों ओर सन्नाटा था, और गेट पर दो भारी भरकम बॉडीगार्ड।
सायरा को एक नौकरानी ने अंदर ले जाकर उसका कमरा दिखाया। कमरा सजा हुआ था, लेकिन वो अपने दिल की घबराहट छुपा नहीं सकी।
उसने खिड़की से बाहर देखा—कहीं कोई रास्ता नहीं था, और दरवाज़ा… अंदर से बंद।
"मैं कहां आ गई?" उसने धीमी आवाज़ में कहा।
---
🌑 आधी रात की दस्तक
आधी रात को दरवाज़े पर दस्तक हुई। वो डर गई।
दरवाज़ा खुला, और सामने फिर वही चेहरा—रेहान।
"तुम्हें कुछ याद है अपने अतीत का?" उसने पूछा।
"क्या मतलब?" सायरा हकलाई।
"छह साल पहले एक हादसा हुआ था… मेरी मंगेतर की मौत हुई थी। और तब से मैं उस हादसे की वजह ढूंढ़ रहा हूं।"
सायरा की सांसें थम गईं। उसके होंठ काँपे… पर कुछ कहा नहीं।
"मुझे शक है कि तुम उस हादसे से जुड़ी हो… और यही वजह है कि तुम आज यहां हो।"
सायरा अब अकेली नहीं थी, लेकिन फिर भी खुद को सबसे ज़्यादा अकेला महसूस कर रही थी। दीवार पर लगी घड़ी की टिक-टिक उसके डर को और गहरा कर रही थी।
उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो रेहान की हवेली में क्यों है, और सबसे बड़ा सवाल — वो कौन सी पुरानी गलती है जिसके लिए अब उसे सज़ा मिल रही है?
उस रात उसे नींद नहीं आई। तकिए भीगते रहे, दिल कांपता रहा।
सुबह दरवाज़ा खुला। एक नौकरानी आई और बिना कुछ बोले नाश्ता रख गई।
उसने धीरे से पूछा, “ये जगह कौन सी है?”
नौकरानी ने कहा, “ये मलिक साहब की हवेली है… यहां सवाल नहीं किए जाते, सिर्फ हुक्म माने जाते हैं।”
सायरा की आंखें फटी रह गईं। वो किस दुनिया में आ गई थी?
---
❄️ अंत... या शुरुआत?
दोपहर को रेहान फिर आया। इस बार उसका लहजा थोड़ा नरम था।
"तुम्हें यहां क्यों लाया गया, ये समय बताएगा। लेकिन मैं तुम्हें सिर्फ तकलीफ देने के लिए नहीं लाया… तुम्हारे पास कुछ ऐसे जवाब हैं, जो सिर्फ तुम दे सकती हो।"
"मैं सिर्फ नर्स हूं… मुझसे क्या चाहते हैं आप?" सायरा लगभग चीख पड़ी।
"कभी-कभी इंसान वो होता है, जो उसे खुद नहीं पता होता…" रेहान ने बस इतना कहा और चला गया।
सायरा बिस्तर पर बैठी सोचती रही —
क्या ये कैद है या किस्मत?
या शायद… एक मोहब्बत, जो डर के साथ शुरू हो रही थी।