Sikko ka Rahashy - 1 in Hindi Crime Stories by Arsh Saifi books and stories PDF | सिक्कों का रहस्य - 1

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सिक्कों का रहस्य - 1

बारिश की बूँदें दिल्ली के कनॉट प्लेस की सड़कों पर बेरहमी से गिर रही थीं। रात के १२:१५ बज रहे थे, और सर्द हवा में एक अजीब-सी खामोशी पसरी थी। शहर की चमकदार लाइट्स बारिश के पानी में डूब रही थीं, और कनॉट प्लेस का आउटर सर्कल, जो दिन में चहल-पहल से भरा रहता था, अब अंधेरे में डूबा हुआ था। एक बंद दुकान के सामने, एक गंदा सा प्लास्टिक का थैला बारिश के पानी में तैर रहा था। थैला हल्का-सा हिल रहा था, जैसे उसमें कोई साँस ले रहा हो। लेकिन वहाँ साँसें नहीं थीं। वहाँ सिर्फ़ मौत थी।
सीबीआई के सीनियर इंस्पेक्टर विक्रम राठौर अपनी काली जीप से उतरे। उनका चेहरा सख्त था, आँखों में एक ऐसी चमक जो सालों की इंवेस्टिगेशन और अनसॉल्व्ड केसेज़ की थकान को छुपा रही थी। ३८ साल की उम्र में, विक्रम ने कई ऐसे केस देखे थे जो रातों की नींद उड़ा देते थे। लेकिन ये केस, ये ‘सिक्का किलर’ का केस, कुछ और ही था। दिल्ली पुलिस इसे छह महीने से सॉल्व नहीं कर पाई थी, और अब ये केस सीबीआई के हवाले कर दिया गया था। विक्रम को।
उनके साथ उनका जूनियर, कॉन्स्टेबल रवि शर्मा, एक छाता लिए खड़ा था। रवि की उम्र २६ साल थी, और वो अभी भी क्राइम सीन की खौफनाक दुनिया में नया था। उसका चेहरा बारिश से गीला था, या शायद डर से, ये कहना मुश्किल था।
“सर, ये... ये वही केस है, ना?” रवि ने हकलाते हुए पूछा, उसकी आवाज़ बारिश के शोर में दब रही थी। “जो दिल्ली पुलिस सॉल्व नहीं कर पाई?”
विक्रम ने अपनी सिगरेट जलाई और एक गहरा कश लिया। “हाँ, रवि। वही ‘सिक्का किलर’। छह महीने, चार शहर, चार लाशें। हर बार एक ‘एम’, और हर बार १५ सिक्के। दिल्ली पुलिस ने इसे बोटलनेक कर दिया, और अब ये हमारी ज़िम्मेदारी है।”
विक्रम ने गली की तरफ देखा। फॉरेंसिक की टीम पहले ही वहाँ थी, नीले और सफेद प्लास्टिक के टेंट के नीचे काम कर रही थी। एक स्पॉटलाइट सड़क पर रोशनी डाल रहा था, और उस रोशनी के बीच में एक लाश पड़ी थी। एक औरत, शायद ३२-३५ साल की, उसका चेहरा मृत्यु की ठंडक से सफेद पड़ गया था। उसकी आँखें खुली थीं, और उनमें एक जमा हुआ डर था, जैसे उसने अपनी आखिरी साँस में कुछ ऐसा देखा हो जो कोई नहीं देखना चाहेगा।
विक्रम टेंट के पास पहुँचे। फॉरेंसिक की हेड, डॉ. अंजलि मेहरा, ने उनकी तरफ देखा। उसका चेहरा थका हुआ था, लेकिन आँखों में एक अजीब-सी चमक थी। “सीबीआई को बुलाना पड़ा आखिरकार,” उसने कहा, अपने ग्लव्स उतारते हुए। “दिल्ली पुलिस ने हार मान ली, हाँ?”
“कुछ केस पुलिस के बस के बाहर होते हैं, अंजलि,” विक्रम ने जवाब दिया, अपनी सिगरेट को बारिश में फेंकते हुए। “क्या मिला?”
अंजलि ने एक प्लास्टिक का एविडेंस बैग उठाया। उसमें एक छोटी-सी शीशे की बोतल थी, जिसमें १५ एक रुपये के सिक्के चमक रहे थे। “ये,” उसने कहा, “और ये।” उसने अपना टॉर्च फुटपाथ पर डाला। वहाँ, बारिश के पानी में, खून से लिखा हुआ एक ‘एम’ साफ दिख रहा था। बारिश ने उसे धोने की कोशिश की थी, लेकिन वो ज़िद्दी था, जैसे किलर का मैसेज।
विक्रम का दिल ज़ोर से धड़का। “फिर वही,” उसने धीरे से कहा। “छह महीने पहले मुंबई, फिर कोलकाता, फिर जयपुर, और अब दिल्ली। ये किलर हमें चिढ़ा रहा है।”
“चिढ़ा रहा है, या कुछ बता रहा है,” अंजलि ने कहा। “ये कोई रैंडम किलर नहीं है, विक्रम। ये एक पैटर्न है। एक कहानी। और हमें अभी तक इसकी शुरुआत भी नहीं समझ आई।
विक्रम का दिमाग छह महीने पीछे चला गया। पहली लाश मुंबई में मिली थी, मरीन ड्राइव के पास एक सुनसान बेंच पर। दूसरी कोलकाता में, हावड़ा ब्रिज के नीचे। तीसरी जयपुर में, हवा महल के पास। और अब ये, दिल्ली में। हर बार एक औरत, ३० से ३५ साल की, हर बार वही ‘एम’, वही १५ सिक्के। दिल्ली पुलिस ने हर बार कोशिश की थी, लेकिन कोई ट्रेस नहीं। कोई फिंगरप्रिंट, कोई डीएनए, कोई सीसीटीवी फुटेज। मीडिया ने इस किलर को ‘सिक्का किलर’ नाम दे दिया था, और हर न्यूज़ चैनल इसकी कहानी को सनसनी बना रहा था। लेकिन कोई जवाब नहीं था।
विक्रम ने लाश की तरफ देखा। औरत का चेहरा शांत था, लेकिन उसकी आँखें चीख रही थीं। “विक्टिम का नाम?” उसने अंजलि से पूछा।
“शालिनी गुप्ता,” अंजलि ने अपने नोट्स देखते हुए कहा। “३३ साल, मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव। यहीं दिल्ली में रहती थी। शादी-शुदा, एक तीन साल का बेटा है। पति लंदन में है, आज रात की फ्लाइट से आने वाला है।”
विक्रम ने एक गहरी साँस ली। “कुछ और? फोन, वॉलेट, कुछ?”
“फोन मिला है,” अंजलि ने कहा। “लेकिन लॉक्ड है। टेक्निकल टीम उसपर काम कर रही है। और हाँ, एक और चीज़।” उसने एक और एविडेंस बैग दिखाया। उसमें एक छोटा-सा कागज़ था, जिसपर सिर्फ़ एक लाइन लिखी थी: “तुम मुझे नहीं रोक सकते।”
विक्रम ने कागज़ को ध्यान से देखा। “ये नया है,” उसने कहा। “पहले तीन केसेज़ में ऐसा कोई नोट नहीं था।”
“हाँ,” अंजलि ने कहा। “लगता है ये किलर अब और बोल्ड हो रहा है। या शायद वो चाहता है कि हम उसका पीछा करें।”
विक्रम ने टेंट के बाहर देखा। बारिश अब धीमी हो रही थी, लेकिन हवा में एक सर्दी थी। “रवि,” उसने अपने जूनियर की तरफ देखते हुए कहा, “विक्टिम के घर चलो। पड़ोसियों से बात करो, सीसीटीवी फुटेज चेक करो। कुछ भी मिले, मुझे तुरंत बताओ।”
रवि ने सिर हिलाया, लेकिन उसकी आँखों में डर साफ दिख रहा था। “सर, आपको नहीं लगता ये... ये कोई साधारण किलर नहीं है? मतलब, इतना परफेक्ट कैसे हो सकता है कोई?”
विक्रम ने उसकी तरफ देखा। “रवि, ये कोई भूत नहीं है। ये एक इंसान है। और इंसान गलतियाँ करता है। हम बस उसकी एक गलती ढूँढेंगे।”
शालिनी गुप्ता का फ्लैट साउथ एक्सटेंशन में था, दिल्ली के एक रईस इलाके में, जहाँ ऊँचे-ऊँचे फ्लैट्स और चमचमाती कारें ही दिखती थीं। विक्रम और रवि रात के २ बजे वहाँ पहुँचे। बारिश रुक चुकी थी, लेकिन हवा में एक अजीब-सी सरसराहट थी, जैसे कोई फुसफुसा रहा हो।
शालिनी का फ्लैट चौथी मंज़िल पर था। दरवाज़ा हल्का-सा खुला था, और अंदर से एक बच्चे की रोने की आवाज़ आ रही थी। विक्रम ने दरवाज़े पर नॉक किया। एक बूढ़ी औरत, शायद शालिनी की सास, ने दरवाज़ा खोला। उसका चेहरा आँसुओं से गीला था, और आँखें लाल थीं।
“आप... पुलिस से हैं?” उसने टूटी हुई आवाज़ में पूछा।
“हाँ, मैम। मैं सीबीआई से इंस्पेक्टर विक्रम राठौर। हम शालिनी जी के बारे में बात करने आए हैं,” विक्रम ने अपना आईडी दिखाते हुए कहा।
बूढ़ी औरत ने उन्हें अंदर बुलाया। लिविंग रूम में एक छोटा-सा लड़का, शालिनी का बेटा, सोफे पर बैठा रो रहा था। एक पड़ोसन उसे चुप कराने की कोशिश कर रही थी, लेकिन उसकी आँखें भी गीली थीं।
“शालिनी कहाँ है?” बूढ़ी औरत ने पूछा, उसकी आवाज़ में उम्मीद और डर दोनों थे।
विक्रम ने एक पल के लिए रुककर साँस ली। “मैम, मुझे बहुत दुख है, लेकिन शालिनी जी अब नहीं रहीं।”
औरत का चेहरा पत्थर की तरह जम गया। फिर अचानक वो ज़मीन पर गिर पड़ी, और उसकी चीख पूरे फ्लैट में गूँज उठी। “नहीं! मेरी बेटी! मेरी शालिनी!” रवि ने उसे संभाला, और विक्रम ने घर के अंदर देखा। सबकुछ परफेक्ट था – साफ-सुथरा लिविंग रूम, महँगा फर्नीचर, और दीवार पर एक बड़ा-सा फोटो फ्रेम, जिसमें शालिनी अपने पति और बेटे के साथ हँस रही थी।
“मैम, क्या आप हमें कुछ बता सकती हैं?” विक्रम ने पूछा, जब औरत थोड़ी शांत हुई। “शालिनी जी कल रात कहाँ थीं? उन्होंने कुछ बताया?”
“वो... वो ऑफिस से देर से आई थी,” औरत ने रोते हुए कहा। “कह रही थी कि किसी क्लाइंट से मिलने जाना है। मैंने मना किया, कहा कि रात हो रही है, लेकिन वो नहीं मानी। बोली, ‘मम्मी, बस एक घंटे की बात है।’”
विक्रम ने अपनी नोटबुक में लिखा। “क्लाइंट का नाम? कुछ डिटेल?”
“उसने कुछ नहीं बताया,” औरत ने सिर हिलाया। “बस इतना कहा कि ये बहुत ज़रूरी है।”
रवि ने विक्रम की तरफ देखा। “सर, फोन रिकॉर्ड्स चेक करें?”
“हाँ,” विक्रम ने कहा। “और इस बिल्डिंग के सीसीटीवी फुटेज भी। कुछ तो मिलेगा।”
सुबह के ४:३० बजे थे जब विक्रम सीबीआई हेडक्वार्टर वापस पहुँचा। उसके हाथ में एक कॉफी का मग था, लेकिन उसका दिमाग उसी ‘एम’ और १५ सिक्कों में उलझा था। हेडक्वार्टर में, उसकी जूनियर, सब-इंस्पेक्टर नेहा वर्मा, एक फाइल लेकर उसके पास आई।
“सर, ये देखिए,” नेहा ने कहा, एक फोल्डर खोलते हुए। “मुंबई, कोलकाता, और जयपुर के केसेज़ की पूरी डिटेल। चारों विक्टिम्स औरतें थीं, ३०-३५ की उम्र, और सभी प्रोफेशनल थीं। शालिनी मार्केटिंग एग्जीक्यूटिव थी, मुंबई वाली एक लॉयर, कोलकाता वाली जर्नलिस्ट, और जयपुर वाली एक कॉरपोरेट ट्रेनर।”
विक्रम ने फाइल्स को ध्यान से देखा। हर केस में वही ‘एम’, वही १५ सिक्के। “ये कोई रैंडम किलर नहीं है,” उसने कहा। “ये एक पैटर्न फॉलो कर रहा है। लेकिन ये ‘एम’ क्या है? और सिक्के?”
नेहा ने एक और पेपर निकाला। “सर, एक चीज़ और। चारों विक्टिम्स के फोन रिकॉर्ड्स में एक कॉमन नंबर मिला है। ये एक प्रीपेड सिम है, जो हर मर्डर से २४ घंटे पहले एक्टिव होता है, और फिर डिसएपियर हो जाता है।”
विक्रम की आँखें सिकुड़ गईं। “लोकेशन?”
“अभी ट्रैक कर रहे हैं,” नेहा ने कहा। “लेकिन ये नंबर कल रात दिल्ली में एक्टिव था। कनॉट प्लेस के पास।”
विक्रम ने अपनी कॉफी मग टेबल पर रखी। “तो ये किलर अभी भी यहीं है। और वो चाहता है कि हम उसे ढूँढें।”
उस रात विक्रम घर नहीं गया। सीबीआई हेडक्वार्टर के एक छोटे-से ऑफिस में, वो फाइल्स और तस्वीरों के बीच बैठा था। उसका दिमाग उस नोट पर अटक गया था – “तुम मुझे नहीं रोक सकते।” ये किलर सिर्फ़ कत्ल नहीं कर रहा था। वो एक गेम खेल रहा था। और विक्रम को उसका अगला खिलाड़ी बनाना चाहता था।
सुबह ६ बजे, उसका फोन बजा। अंजलि थी। “विक्रम, तुम्हें हेडक्वार्टर आना होगा। अभी।”
“क्या हुआ?” विक्रम ने पूछा, उसकी नींद पहले ही उड़ चुकी थी।
“एक और लाश,” अंजलि ने कहा, उसकी आवाज़ में एक अजीब-सी बेचैनी थी। “इस बार आगरा में। ताजमहल के पास। और विक्रम... इस बार भी वही ‘एम’, वही १५ सिक्के।”
विक्रम ने फोन काटा और अपनी जीप की तरफ भागा। आगरा? इतनी जल्दी? ये किलर तेज़ी से मूव कर रहा था, और विक्रम को लग रहा था कि वो हमेशा एक कदम पीछे है। लेकिन एक बात साफ थी – ये किलर रुकने वाला नहीं था। और विक्रम को उसे रोकना था, चाहे जो हो जाए।