पहाड़ों से घिरा हुआ एक खूबसूरत सा कस्बा.....आज पूरे एक महीने की कड़ाके की सर्दी के बाद सूरज ने अपनी आभा का प्रकाश यहां बिखेरा था ...मसलन आज कस्बे के इस हिस्से में भीड़ ज्यादा थी...ये यहां की इकलौती मार्केट थी.... जहां से जरुरत का सारा समान मिल जाता था ...अक्सर यहां ऐसा होता ....पूरा साल यहां सर्दी रहती...और कुछ महीने तो तापमान माइनस में चला जाता ...लोग अपने घरों में सामान का स्टॉक अच्छा खासा रखते थे.... यहां कुछ नहीं पता चलता था कि मौसम कब बदल जाए.... महीने तक चली बर्फबारी आज जाकर थमी थी... इसलिए आज लोग बाहर निकले थे....
" वो कितने का है भाईसाहब "?
एक आदमी ने वहां के लोकल दुकानदार से पूछा.... दुकानदार ने देखा तो वो एक बहुत सुन्दर लैंप था ... जिसके ऊपरी भाग पर बहुत खूबसूरत सी पेंटिग की हुई थी....जो उसमें जल रहे बल्ब की रोशनी में अलग ही महसूस हो रही थी...
" ये ....ये वाला साहब बारह सौ पचास रूपए का है "
दुकानदार ने कहा
" एक पैक कर दीजिए..
उसने कहा
" मानना पड़ेगा ये जगह...ये लोग और यहां की चीजें आज से पहले मैंने कभी नहीं देखी "
उसने कहा
" देखेंगे कैसे साहब... यहां की अधिकतर चीजें यही बनती हैं।।। हां क्योंकि इलाका बहुत ठंडा है...तो यहां फसल तो नहीं होती...पर जितना हो सके यहां बाहर से सामान कम ही आता है "
उस दुकानदार ने कहा....
" बहुत मेहनती हैं आप लोग "
उसने कहा
" मेहनत नहीं करेंगे तो आगे कैसे बढ़ेंगे साहब...एक एक जन मेहनत करेगा तभी तो देश तरक्की करेगा ....
उसने कहा तो वो मुस्कुरा दिया...
वाकई सब अलग था यहां....इतना पॉजिटिव औरा उसने कहीं महसूस नहीं किया था ....
बातों बातों में उस दुकान वाले ने....उसका लैंप पैक कर दिया...
" ये लीजिए साहब "
उसने उसे बैग पकड़ाते हुए कहा.........
उसने भी अपने जेब से पैसे निकाल कर उसे दे दिए
" यहां बढ़िया खाना कहा मिलेगा ....
उसने पूछा
" इस रोड के दूसरी और जाएंगे तो अम्मा की रसोई मिलेगी आपको... बिल्कुल घर का खाना होता है साहब... उंगलियां चाटते रह जाएंगे.. "
उस दुकाना वाले ने मुस्कुराते हुए कहा
" थैंक्यू...
उसने मुस्कुराते हुए कहा और वहां से चला गया
खाना खाकर वो अपने होटल की और बढ़ गया ....सुबह से घूम रहा था ... थोड़ी देर आराम करना चाहता था ..... अभी वो अपने होटल के पास पहुंचा ही था कि किसी से टकरा गया...
" माफ़ कीजियेगा...आपको लगी तो नहीं"
एक धीमी और सौम्य सी आवाज उसके कानों में पड़ी.... उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई...आवाज ही कितनी आकर्षक और गहरी थी उसकी...
" इट्स ऑलराइट....आय एम फाइन "
उसने कहा तो उसके चेहरे पर मुस्कराहट आ गई...
और वो वापस अपने रास्ते चली गई....वो कुछ पल उसे भीड़ में गुम होते देखता रहा ....जब वो उसकी आंखों से ओझल हो गई...तो वो भी होटल के अंदर चला गया
********
और बताओ अमोघ...कैसा रहा रानी हिल....
वो दो दिन बाद वापस लौट आया था ....और फिल्हाल अपने दोस्तों के साथ बैठा था
" आह "!!!!!
उसने लंबी आह भरी और कहा
" रानीहिल.... अपने आप में एक जादू है... वहां का पानी ही नहीं....हवा तक मीठी है.... कुदरत ने ऐसा करिश्मा किया है वहां पर...कि वापस आने का मन ही नहीं करता .... कोई होर्न बजाती गाड़ियों का शोर नहीं.... किसी को कहीं आने-जाने की जल्दी नहीं...सब कुछ बहुत ठहरा हुआ सा है वहां....
अमोघ ने कहा
" जरा पिक्चर्स तो दिखा वहां के "
उसके दोस्त कुशाल ने कहा
" हां रुको ....मैं कैमरा लेकर आता हूं "
वो गया और अलमारी से अपना कैमरा ले आया .... उसने अपने कैमरा दोस्तों को पकड़ाया ही था कि तभी कोई उसे बुलाने के लिए आ गया
" कमांडर अमोघ आपको कैप्टन ने बुलाया है "
एक नेवी यूनिफॉर्म पहने सिपाही ने आकर कहा
" आता हूं "
उसने कहा तो वो सिपाही वहां से चला गया
"तुम लोग फोटो देखो मैं आता हूं "
अमोघ ने कहा और वहां से चला गया....
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रानीहिल...
शहर के थोड़ी सी बाहर सफेद रंग की बड़ी सी इमारत थी व़ो
जिसे ऐसे बनाया गया था कि देखने वाला देखता ही रह जाए
उस इमारत की पहली मंजिल पर बने एक कमरे में बाथरूम का दरवाजा खुला...और वो बाहर आई.... हरे रंग का कुर्ता पायजामा पहने.... लंबे बालों से पानी अभी भी टपक रहा था
उसने झट से गर्म शॉल ओढ़ी और जाकर चिमनी के पास बैठ गई.... तभी दरवाजे पर दस्तक हुई
" आ जाइए "
उसने कहा
दरवाजा खुला और साड़ी के ऊपर गर्म लबादा ओढ़े एक औरत अंदर आई... उसके हाथ में एक बड़ी सी ट्रे थी
" ओहो दीदी.... आपसे कितनी बार कहा है...शाम को समय बाल ना धोया करें...मौसम पहले ही इतना सर्द है...बीमार पड़ने का इरादा है क्या "
उसने कहा और ट्रे को नीचे रखती हुई....उसी के पास बैठ गई
" तुम चिंता मत करो कांचल.... मेरी इम्यूनिटी बहुत स्ट्रांग है ....
उसने मुस्कुराते हुए कहा
" चलिए...खाना खा लिजिए....बातों में तो आपसे कौन जीते "....
कांचल ने कहा
" क्या बना है आज खाने में "
उसने पूछा
" मेथी मटर मलाई "....
कांचल ने कहा
" ओहो...आज तो मजा ही आ जाएगा खाने में "
उसने कहा और कांचल ने खाना डालकर उसे दे दिया
" तुम नहीं खाओगी "
उसने पूछा
" आपको तो पता है....मैं जल्दी खाना खा लेती हूं ... आज बाजार गई थी ना....सारा समान मिल गया "
कांचल ने पूछा
" अमूमन तो सारा ही आ गया... अभी कुछ सामान दिल्ली से भी आना है "
उसने कहा
" सर का फोन आया था ....आपको दिल्ली बुला रहे थे...छोटे की सगाई है "
कांचल ने कहा
' उसमें अभी वक्त है....जिस दिन सगाई होगी उस दिन चली जाउंगी.... फिल्हाल यहां कितना काम है "
उसने कहा
" आपको याद नहीं आती सबकी "
कांचल ने कहा तो वो मुस्कुरा दी
" आती है.... बहुत आती है.... लेकिन जिस मकसद के लिए जिंदगी जी रही हूं....उसे नहीं छोड़ सकती...वो मेरे लिए ज्यादा मुश्किल होगा "
उसने कहा और प्लेट लेकर उठ खड़ी हुई....उसका खाना ख़त्म हो चुका था ....
" इतनी भरा पूरा परिवार होकर भी.... ऐसे अकेले रहना ... इतनी सुविधाए होकर भी सिंपल सी जिंदगी बिताना...आप जैसे लोग पता नहीं इस युग में कैसे पैदा हो गए... लेकिन आप जो कर रही है...वो हर किसी के बस का नहीं है...भगवान आपको जिंदगी की हर खुशी दे दीदी.....और उसे बांटने वाला भी "
कांचल ने मन ही मन कहा
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चार महीने बाद
इन छुट्टियों में भी वो रानी हिल चला आया था ....इन चार महीनों में अक्सर वो यहां के बारे में सोचता....पता नहीं क्यों हर बार मन यही खींच लाता था उसे...या कुदरत कोई खेल फिर से खेल रही थी....एक अलग और अनोखी प्रेम कहानी को बुनने के लिए.....इस बार भी वो उसी होटल में रुका था
अपने हाथ में कैमरा पकड़े वो कोई तस्वीर देख रहा था ....ये पिछले बार की तस्वीरें थी... जिसमें कुछ ऐसा क़ैद हो गया था .... जिसे अपने ज़हन से निकालना उसके लिए मुश्किल था ....ये यहां के इकलौते झरने की तस्वीर थी.... जिसके पास की रेलिंग पर हाथ टिकाए कोई खड़ा था .... तस्वीर में उसकी पीठ दिखाई पड़ रही थी....नीली सूती साड़ी....लंबी सी गूंथी हुई छोटी...और कंधे पर पड़ी वो शाॅल...इसी तस्वीर को निहारते हुए उसके ये चार महीने कटे थे....उसका दिल कहता था ....हो ना हो...ये वही हैं... जिससे चार महीने पहले वो बस यूंही टकरा गया था....इस तस्वीर ने उसे एक अजीब से मोह पाश में बांध दिया था....उन काजल से सनी आंखों में कितनी सादगी... कितनी गहराई थी....ना उसका नाम जानता था ....और ना उसके बारे में कुछ भी.... फिर भी चला आया था ....उसी की तलाश में...शायद वो फिर से मिल जाए.... आज वो इसी झरने पर जाने वाला था ..... उसने कैमरा अपने बैग में डाला और झरने के लिए निकल गया तकरीबन एक घंटे के बाद वह झरने पर था... वह जाकर शांति से एक जगह बैठ गया और बहता पानी को देखने लगा अभी कुछ ही देर हुई थी कि पास से ही उठते शोर शराबे ने उसका मूड खराब सा कर दिया... उसने पलट कर देखा तो लड़कियों का एक ग्रुप था... जो अजीब अजीब से मुंह बनाकर सेल्फी खींच रही थी और फिर खुद अपनी फोटो देखकर ही हंस रही थी... उसने अपना सर झटका दिया आजकल की जनरेशन.... आजकल घूमने फिरने का मतलब सिर्फ फोटोस खींचना और उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करना यही रह गया है बस..जितना ध्यान अपनी फोटो पर आए लाइक्स और कमेंट देखने में बिताते हैं ये लोग ...उसका आधा भी आसपास की खूबसूरती पर नहीं लगाते.... घूमने फिरने का मतलब होता है....कहीं ना कहीं आपके मन का भरना..... रोजाना की भाग दौड़ की जिंदगी को आराम देना जब वापस जाएं तो ऐसा लगे की वाकई मन को आराम मिला है ..शांति मिली है लेकिन आजकल की जनरेशन दिखावे में इतनी डूबी है....कि प्राकृतिक खूबसूरती का कोई मोल नहीं रह गया है ..... उसने अपना सर झटका दिया और वहां से उठकर दूसरी और चला गया ......
वहां आए हुए उसे शाम होने को आई थी.... लेकिन मन अभी तक नहीं भरा था उसका ....अब उसने अपना कैमरा निकाला और फोटोज खींचने लगा.... उसने थोड़ा नीचे जाने का सोचा .... ताकि और करीब से फोटो ले सके.... उसने अभी एक कदम बढ़ाया ही था कि ।।।
" आगे मत जाइए..... सुरक्षित नहीं है "
वहीं मीठी और धीमी सी आवाज उसके कानों में पड़ी
वो वहीं रूक गया... लेकिन पलटा नहीं....इस पल ऐसा लगा जैसे वो किसी दूसरी दुनिया में चला आया है..... जहां सब कुछ खूबसूरत है....वो जानता था ...उसे रोकने वाली आवाज वही है.... उसने गहरी सांस ली और पलट गया .... चेहरे पर फैली मुस्कराहट और बडी हो गई।।
हां वही तो थी...उस दिन की तरह सूती साड़ी और ढीली चोटी में.....
" मुझे लगा नीचे से तस्वीरें और अच्छी आएंगी...
उसने कहा
" जिंदगी ज्यादा जरूरी नहीं है.... यहां पहले भी ऐसे हादसे हो चुके हैं...और पानी का बहाव इतना तेज है...कि बचने की उम्मीद भी नहीं....और वैसे भी तस्वीरें कैद करने के लिए हमेशा ....कैमरा हो ....ये जरूरी तो नहीं "
उसने कहा तो वो उसकी और बढ़ गया
" काफी खूबसूरत जगह है ये....तो रोक नहीं पाया खुद को "
अमोघ ने कहा
" खूबसूरती में भी होश रखा जाना जरूरी है.... वैसे भी कुदरत अगर अनछुई रहे तो ज्यादा बेहतर रहता है "
उसने कहा....
अमोघ ने देखा तो झरने पर इक्का-दुक्का लोग ही थे....
" डर नहीं लगता आपको....सूरज लगभग ढल चुका है...और आप अकेले शहर से बाहर है "
अमोघ ने कहा
" अपने घर में भी अगर डरने लगी.....तो फिर जीना ही छोड़ना पड़ेगा .... वैसे भी लगभग चार से पांच महीने रानी हिल में बर्फ रहती है....तो यहां आना हो ही नहीं पाता "
उसने कहा
" तो सारी खूबसूरती भगवान ने यही डाल दी है "
अमोघ ने कहा तो वो मुस्कुरा दी
" खूबसूरती तो देखने वाले के नजरिए में होती है ... यहां से बाहर भी खूबसूरती है ना ".....
उसने कहा
" मेरी नजरिए से खूबसूरत सादगी में होती है....और यहां से ज्यादा सादगी और कहीं नहीं"
अमोघ ने कहा तो वो मुस्कुरा दी पर कहा कुछ नही
" अगर इजाजत हो तो...एक कप चाय पी सकती है मेरे साथ "
अमोघ ने कहा
" पहली ही मुलाकात में चाय.... कुछ ज्यादा नहीं होगा ये "
उसने कहा
" मैं आपसे दूसरी बार मिल रहा हूं....तो चाय तो पूछ ही सकता हूं....बाकी जेंटलमैन हूं.... कोई गुस्ताख़ी नहीं करुंगा....कुछ ग़लत लगे तो जो चाहे सजा दीजिएगा...घर तो आप ही का है "
अमोघ ने कहा और अपना सर हल्के से झुका दिया....
उसके चेहरे पर मुस्कराहट और गहरी हो गई
" चलिए फिर....आपकी खातिरदारी करने का मौका हमारा...मेहमान जो ठहरे "
उसने कहा और दोनों झरने के दूसरी और चले गए जहां चाय की छोटी सी दुकान थी....
" नमस्ते अंकल "
उसने चाय की दुकान पर मौजूद एक बुजुर्ग को हाथ जोड़ते हुए कहा
" अरे नमस्ते.... कस्तूरी बेटा...कैसी हो "
उन्होंने कहा
" मैं बिल्कुल ठीक हूं...तुम्हारा स्कूल कैसा चल रहा है "
उन्होंने कहा
" सब बढ़िया है अंकल...चाय पिलाएंगे"
कस्तूरी ने कहा
" बिल्कुल....तुम बैठो मै अभी बनाता हूं "
उन्होंने कहा और चाय बनाने लगे
" तो टीचर हैं आप "
अमोघ ने पूछा
" ऐसा ही कुछ समझ लीजिए "
कस्तूरी ने कहा....
"'तो फैमिली के साथ रहती है....या यहां शादी करके आई है "
अमोघ ने पूछा....पर अपनी नजरें दूसरी तरफ कर दी।।।।
क्या पूछ बैठा था वो....कितना ग़लत था यूं...इतना पर्सनल होना....पर फिर भी पूछ बैठा ....तो वहीं कस्तूरी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट थी....
" अगर मैं मैरिड होती....तो एक अजनबी के साथ यूं बैठकर चाय पी रही होती "
कस्तूरी ने भी सवाल के बदले सवाल कर डाला ....पर अमोघ के दिल को ठंडक पड़ गई...
" आई एम सॉरी....पता नहीं आप क्या सोचेंगी....पर मुझे तो आप पहली मुलाकात में भी अजनबी नहीं लगी थी "
अमोघ ने कहा तो कस्तूरी के चेहरे पर संजीदगी आ गई....उसने दो पल उसकी और देखा और फिर नजरें दूसरी और फिरा दी....
तब तक उनकी चाय भी आ गई थी..... दोनों ने खामोशी से चाय खत्म की
चाय के बाद जब वो पैसे देने लगा तो कस्तूरी ने उसे रोक दिया....
" हमारे यहां मेहमानों से चाय के पैसे नहीं लिए जाते....
कस्तूरी ने कहा
" पर पूछा मैंने था आपसे चाय के लिए "
अमोघ ने कहा
' पर आपके साथ आना मेरी मर्जी थी.....
कस्तूरी ने कहा तो वो अपनी जगह जम गया....पता नहीं कैसे अहसास अंदर जाग उठे थे....नई नई जवानी तो नहीं आई थी.. फिर अहसासों का इतना बहाव....कि उसका मन कर रहा था कि आगे बढ़ कर कस्तूरी को गले लगा ले....पर नहीं... उसके हक में नहीं है ये
कस्तूरी ने चाय वाले को पैसे दिए और वापस पलटते हुए कहा
" आपके साथ चाय पीकर अच्छा लगा मिस्टर अजनबी....अब मुझे चलना होगा ...टेक केयर...और हां आपका आईकार्ड मुझे गिरा मिला था झरने के पास "
उसने अपने बैग से उसका आई कार्ड निकाला और उसे दे दिया
" थैंक्यू "
अमोघ ने कहा तो वो वापस जाने के लिए मुड़ गई
" अजनबी का नाम जानना नहीं चाहेंगी "
अमोघ ने पूछा
" नवल ऑफिसर.... अमोघ रघुवंशी....आपको क्या लगता है यू ही चाय पीने आ गई थी आपके साथ "
उसने पलटते हुए कहा.... उसके चेहरे पर मुस्कराहट थी....
वो वापस चल दी तो अमोघ ने कहा
" फिर मिलना होगा "
" कुदरत ने चाहा तो जरूर "
उसने बिना पलटे कहा और अपने रास्ते चली गई.....
" कस्तूरी "
अमोघ ने कहा..... उसने महसूस किया कि उसका दिल बहुत तेजी से धड़कने लगा था....
" ठीक है फिर....हमारा फैसला मैं कुदरत पर छोड़ता हूं "
अमोघ ने कहा और वो भी अपनी दिशा में मुड़ गया
**************
छः महीने बाद
इस बार फिर वो रानी हिल में था.... छः महीने के बाद उसे छुट्टियां मिली थी इस बार ....इन छ महीने में कस्तूरी कि कही वो एक बात नेआपके साथ आना मेरी मर्जी थी...
उसके मन में हलचल मचाई हुई थी....ना जाने कितने अलग अहसास दिल में जगह बना चुके थे....उसको एक निगाह देखने की तलब दिल से जाती ही नहीं थी....
उसने अपना बैग कंधे पर डाला और एक बार फिर बाहर निकल आया था....इस उम्मीद में कि उसे कही वो दिख जाए....
" भाईसाहब एक बोतल पानी देना "
अमोघ ने एक दुकान पर रुकते हुए कहा....
दुकान वाले ने एक बोतल उसकी और बढ़ा दी....वो अपनी जेब में से पैसे निकालने ही लगा था कि उसके कानों में आवाज पड़ी....
ये सारा सामान जल्दी से सितारे में पहुंचा दे ....अमोघ ने देखा तो बहुत सारा राशन का सामान था
" कोई फेमस होटल है क्या ये "
अमोघ ने पूछा
" नहीं....पर है देखने लायक....रानी हिल आने के बाद वहां ना जाना...तो ग़लत हो जाता है "
उस दुकान वाले ने कहा
अभी वो ज्यादा कुछ पूछता .... वहां कुछ ग्राहक आ गए...
" ये सितारे हैं कहां "
उसने इतना पूछा
" कस्बे से बाहर निकलते ही है "
उस दुकान वाले ने कहा ....तो वो वहां से चला गया
ऐसी कौन-सी जगह है....जो दोनों बार में उससे छूट गई....
ये सोचते हुए.... उसने एक कैब रोकी और वहां से चला गया
" पौने घंटे बाद....वो एक बड़ी सी सफेद इमारत के बाहर था... जिसके बाहर दो गार्ड थे....वो उस तरफ बढ़ गया
" विजिटर हो "
एक गार्ड ने पूछा
" जी "
उसने कहा
" अपना आइडी प्रूफ यहां जमा करवाइए....और जाते वक्त ले लीजिएगा "
गार्ड ने कहा तो उसने अपना आईडी निकाल कर उसे दे दिया.... फिर उसके एक जगह साइन वगैरह कराए...
फिर गार्ड ने अंदर किसी को फोन किया ....
' आप रुकिए विजिटर ....को ऐसे अंदर जाना मना है "
गार्ड ने कहा तो उसने अपना सर पकड़ लिया...आखिर इतनी भी क्या सिक्योरिटी....हैं क्या आखिर ये....
अभी वो सोच ही रहा था कि दरवाजा खुला और एक लड़की बाहर आई
" हैलो सर....आप मेरे साथ आइए "
उसने कहा तो वो चुपचाप उसके पीछे चला गया
अंदर आते ही उसकी आंखें बड़ी हो गई....कितना खूबसूरत था अंदर का नजारा ..... चाहे सामने लगा फाउंटेन हो या दीवारों पर बनाई गई अद्भुत कलाकृतियां....और सफाई तो इतनी....एक तिनका तक नजर नहीं आ रहा था ....
" मेरा नाम कांचल है और मैं इस जगह की केयरटेकर है "
उसके आगे चल रही लड़की ने कहा
" हैलो कांचल ....मेरा नाम अमोघ है "
अमोघ ने कहा
" ये हैं क्या "
अमोघ ने पूछा तो कांचल चलते चलते रुक गई
" आप यहां आए हैं....आपको नहीं पता "
उसने पलटते हुए पूछा तो वो झेंप गया... जाहिर है उसे पता होना चाहिए था वो कहां जा रहा है....
" वैल...यू आर राइट... मुझे किसी ने कहा कि यहां आए बिना रानीहिल आना अधूरा है....तब से मैं उलझन में था कि...ऐसी कौन-सी जगह है जो यहां दो बार आकर भी मेरी नज़रों से बच गई.... इसलिए.... "
कहते कहते रुक गया वो....
" ओह .... वैसे ये कोई टूरिस्ट प्लेस नहीं है.... लेकिन फिर भी विजिटर यहां आते हैं....और उसका खास कारण है ....आइए दिखाती हूं "
कांचल ने कहा और उसे लेकर आगे बढ़ गई....वो उसे एक गार्डन के बाहर ले आई.... जहां की बच्चे बैठे पेंटिंग बना रहे थे.....अमोघ वहीं ठिठक गया..... वहां हर उम्र के बच्चे थे... कुछ कैनवास पर ऱग उतार रहे थे तो कुछ....एक दूसरे पर.... लेकिन उनके चेहरे पर जो सबसे अलग था....वो था उनकी मुस्कराहट.... मुस्कराहट...बिना किसी छलावे...की ... बिना किसी मिलावट की....ना कोई डर....ना कोई चिन्ता....और ना ही एक दूसरे से आगे निकलने की होड़...उनके लिए जो था ....इस पल में था .....और एक दूसरे के ऊपर रंग डालते बच्चों को टीचर और चीयर कर रहे थे.....
" वेलकम टू द सितारे सर....
कांचल ने कहा
"'दिज इज अमेजिंग"
अमोघ ने कहा
" अभी तो रूकिए आप ..... मेरे साथ आइए "
कांचल ने कहा तो वो उसके पीछे पीछे चलने लगा....
वो उसे एक दम के बाहर लेकर....गई..... जहां बच्चे ... अपनी ही क्रिएटिविटी में लगे थे.... कुछ पुराने और ना काम आने वाली चीजों के साथ.... सामने टंगे एक मोजेक को देखकर तो वो दंग रह गया...
" ये इन्हीं बच्चों ने बनाया है....
अमोघ ने पूछा तो कांचल ने हां में सर हिला दिया
" दीज किड्स आर डैम टैलेंटिड.....
उसने कहा
" चलिए अब आपको यहां की सबसे इंटरेस्टिंग जगह लेकर चलती हूं"
कांचल ने कहा तो उसने हां में सर हिला दिया
वो उसे दूसरी तरफ ले आई....वो जगह इमारत से थोड़ी ढलान पर थी।।।
" सीढ़ियां ध्यान से उतरिएगा"
कांचल ने कहा....
नीचे उतरते वक्त उसने देखा .... वहां एक नदी बह रही थी....और उससे कुछ दूर छोटे छोटे बच्चे बैठे थे.... किसी के पास खिलौने थे....तो कोई एक दूसरे से खेल रहा था.... तभी उसके कानों में पड़ी एक खिलखिलाहट....और उसके कदम वहीं थम गए..... उसने सामने देखा तो कोई था उन बच्चों से घिरा....पीठ थी उसकी तरफ लेकिन वो उसे पहचानता था .... आखिरकार कुदरत उसे सही जगह पर ले ही आई..
" अरे आप रुक क्यों गए....आइए आपको उस इंसान से मिलवाती हूं....जिसकी वजह से ये सब है "
कांचल ने कहा तो वो चुपचाप उसके पीछे चल दिया...
कांचल अभी कुछ कहने ही वाली थी कि अमोघ ने उसे रोक दिया.....बच्चे ब्लॉक्स से एक बड़ा सा घर बना रहे थे....और
कुछ एक दुसरे पर ब्लाक्स मार रहे थे....इन बच्चों के बीच जो एक और बेशकीमती था ...वो थी वो और उसकी खिलखिलाहट....
अमोघ की आंखें नम हो आईं...एक बार फिर उस तक पहुंच ही गया था वो..... छः महीने उसे याद करते हुए गुजरे थे.... उसके ....पास नहीं थी फिर भी साथ ही तो रही थी हमेशा उसके.... पहली नजर में उत्सुकता थी.....उसे लेकर....ऐसी सादगी जो कहीं नहीं देखी थी....
लेकिन उत्सुकता कस भावनाओं में बदल गई उसे पता ही नहीं चला....प्यार था या कुछ और.... लेकिन उसके साथ रहने का मन करता था उसका.....
इसी बीच उसकी नजर अमोघ पर पड़ी.... कुछ पल नजरें मिली.....तो वो मुस्कुरा दी वो....
" आप "
उसने उठते हुए कहा....हमेशा की तरह ....आज भी सूती साड़ी में ही थी वो....अमोघ ने अपना सर झुका दिया तो उसकी आंखें चमक उठी
" दीदी....ये यहां विजिट करने आए थे.....आप जानती है इन्हें "
कांचल ने कहा तो उसने सर हिला दिया....
" कांचल स्टाफ को यहां भेजो....इनको विजिट मैं करा दूंगी "
कस्तूरी ने कहा तो कांचल ने फोन करके किसी से यहां आने को कहा
स्टाफ के आने के बाद ....वो उसे पूरा स्कूल घुमा आई....
कुछ देर बाद वो वहीं नदी किनारे बैठे हुए थे.... बच्चे वहां से जा चुके थे..
" तो किस्मत फिर से हमें साथ ले आई "
अमोघ ने कहा..पर उसने कुछ नहीं कहा ....वो एकटक पानी के बहाव को देख रही थी.... हां पर आंखों में मुस्कराहट जरुर थी....
" कितने दिन के लिए आए हैं इस बार "
कस्तूरी ने पूछा
अमोघ ने उसकी और देखा ..... दोनों की नजरें फिर मिली...
अमोघ मुस्करा दिया
" मेरा बस चले तो यहां से कहीं जाऊं ही नहीं ...सोच रहा हूं...एक वजह मिल जाए यहां हर बार आने की "
अमोघ ने कहा तो कस्तूरी की मुट्ठी अपनी साड़ी पर कस गई....
" अपने बारे में कुछ बताएंगी....कब से है यहां....
उसने पूछा
" पंद्रह साल हो गए.... यहां आए....अब बस यही रहना चाहती हूं हमेशा....ये बच्चे मेरा पहला प्यार है.... इन्हें के साथ रहना चाहती हूं हमेशा.....
उसने कहा
" तुम्हारी मेहनत यहां हर जगह दिखाई पड़ती है....और इतना अच्छा महसूस कर रहा हूं मैं खुद....जब यहां आया था तो पता नहीं था स्पैशल बच्चों को स्कूल है ये "
उसने कहा
" स्पेशल है तभी तो यहां है....ये वैसे ही है जैसा भगवान ने इन्हें बना कर भेजा है.... दुनिया के चालाकियों....दोगलेपन .... प्रतिस्पर्धा...और जलन से कहीं दूर..... इसलिए ये खूबसूरत है.....और हमारी यही कोशिश रहती है कि....इन बच्चों की प्राकृतिक प्रतिभा को बाहर लाया जा सके...ताकि ये आत्मनिर्भर हो सके....अलग अलग तरह की ट्रेनिंग इनको दी जाती है....ताकि ये यहां से दूर भी अपनी काबिलियत पर जी सके ....
" मै भी मदद करना चाहता हूं "
अमोघ ने कहा
" तो इन्हें अपना वक्त और कोशिशें दीजिए "
कस्तूरी ने कहा....
" डोनेशन देने वाले बहुत आते हैं.... लेकिन वक्त ....वो किसी के पास नहीं होता "
कस्तूरी ने कहा
अमोघ उसे कुछ पल यूं ही देखता रहा .....वो सिर्फ पहनावे में ही सादगी भरी नहीं थी ....उसका किरदार उससे कहीं ज्यादा सादा था
" क्या हुआ "
उसने पूछा
" एक सवाल था "
अमोघ ने कहा
" पूछिए "
उसने कहा
" आपका आखिरी प्यार बनने के लिए किसी को क्या करना होगा "
अमोघ ने कहा.... उसके इस सवाल से एक पल को वो दंग रह गई.....
' कुछ मुश्किल सवाल पूछ लिया क्या "
अमोघ ने कहा तो वो मुस्कुरा दी
" उसे मेरे साथ ....इन बच्चों को भी अपनाना होगा .... मेरे लिए प्रयोरिटी हमेशा यही रहेंगे....अगर उसमें सब्र है....इतना का वो इस बात की गंभीरता को सभझ सके और इंतजार कर सके ....तो
कहते हुए रुक गई वो
" तो....
अमोघ ने पूछा
" तो .... खुद को क्या ..... अपनी रूह तक दे दूंगी उसे "
कस्तूरी ने कहा तो वो मुस्कुरा दिया....
" अपनी ये बात याद रखना "
अमोघ ने कहा तो कस्तूरी ने पलकें झुका ली....
एक पूरा दिन वहां बीता कर....वो वापस लौट आया।।।
अगली सुबह....आठ बजे जब कस्तूरी चाय का कप लिए अपनी खिड़की पर आई ...तो उसे अमोघ दिखाई दिया....वो चौंक उठी.....वो बच्चों के साथ पेंटिंग करते हुए बिल्कुल बच्चा बना हुआ था....
कस्तूरी ने एक गहरी सांस ली .....और खिड़की से टेक लगाए वहीं खड़ी हो गई....और उसे देखने लगी..... ऊंचा कद... गेहुंआ रंग...चेहरे पर चंचलता....और आंखों में अजीब सा खिंचाव....वो कहीं ना कहीं वैसा ही था जैसे जीवनसाथी का सपना उसने कभी देखा था .....
वो बीस दिन यहां रहा था.... उसकी बच्चों के लिए कोशिशें....स्टाफ के साथ बिहेवियर....और कस्तूरी के साथ उसकी गूफ्तगू....वो वाकई जेंटलमैन था.... जिसके पास होने के अहसास से ही उसे सुरक्षित महसूस होता था .....ऐसा लगता था जैसे वो हमेशा से ही यहां का हिस्सा हो....वो ऐसे सबसे घुल मिल गया था.....जब वो यहां से जा रहा था .... कस्तूरी की आंखें नम हो गई थी..... लेकिन जब अमोघ ने उसे पलट कर देखा तो उसने नज़रें फिरा ली..... रोते हुए विदा नहीं करना चाहती थी उसे....एक डोर जो बन्ध गई थी उससे....वो पहला ऐसा शख्स था ... जिसने उसके दिल को इस तरह छुआ था.....इन बीस दिनों में नदी के किनारे उनकी शाम की बातचीत...उसे अमोघ के बहुत करीब ले आई थी
देखते देखते अमोघ उसकी आंखों से ओझल हो गया ....
मांगना चाहता थी उसका फ़ोन नंबर.... लेकिन झिझक या शर्म ने उसे रोक लिया...
और इस बार जाते हुए अमोघ ने उससे कहा था कि कुदरत ने चाहा तो जल्दी मिलेंगे....वो फीका सा मुस्कुरा कर रह गई थी...ना उसके पास अमोघ से बात करने का जरिया था ...और ना अमोघ के पास.....
और इस बार इंतजार लंबा होने वाला था ....क्योंकि जब दिल मैं किसी के लिए भावनाएं हो तो वक्त काटे नहीं कटता
****************
डेढ़ साल बाद
" दीदी.... अमोघ जी आए हैं "
कांचल ने अपने कमरे में आराम करती कस्तूरी से कहा तो वो एक झटके में उठ बैठी....
" कहां है....वो "
उसने पूछा
" नदी किनारे "
कांचल का कहना ही था कि उसने झट से शूज पहने और शॉल पहने वो उस तरफ दौड़ गई
" दीदी आराम से आप अभी बुखार से उठी है "
कांचल कहती रह गई लेकिन कस्तूरी ने नहीं सुना उसने अपना सर झटका दिया। .. इस डेढ़ साल में वो कस्तूरी की भावनाओं से अच्छी तरह से वाकिफ हो गई थी
वो भागते भागते आई तो सांस चढ़ आई थी.... उसने देख तो वो नदी की तरफ चेहरा किए खड़ा था.... जितनी तेजी से यहां तक आई थी... उससे दोगुना तेजी से सीढियां उतर गई वो
" अमोघ "
हांफते हुए कहा तो वो उसकी तरफ पलट गया ....हल्की बढ़ी दाढ़ी और चेहरे पर वैसी ही शरारत.... कस्तूरी का मन किया कि उसे खींचकर अपने गले से लगा ले लेकिन फिर से किसी झिझक के कारण रुक गई वो
" अरे....आराम से.... अभी तो बुखार से उठी हो "
अमोघ आगे बढ़ा और उसके कंधे पर फैली बेतरतीब शॉल को ठीक करके उसे अच्छे से ढ़क दिया.....
कस्तूरी ने उसे हैरानी देखा....इस दौरान उसने जरा सा भी नहीं छुआ था..... पहले दिन की मर्यादा आज भी बरकरार थी....
" ऐसे क्या देख रही हो....कांचल ने ही बताया था....कह रही थी बहुत ज्यादा काम करने लगी हो....क्या किसी चीज से भागने की कोशिश कर रही हो "
अमोघ ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा तो उसका चेहरा ऐसे हो गया जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो....उसे समझ नहीं आया वो क्या कहें
" बहुत वक्त लग गया इस बार आने में....और ये हुलिया क्या बना रखा है..... खाने को नहीं मिल रहा क्या ....और अब खाना खाया तुमने???"
कस्तूरी ने बात बदलते हुए कहा
" तुम तो मां जैसी बातें करने लगी हो....
अमोघ ने कहा तो वो झेंप गई.....वो हंस दिया
" कुछ और सुनना चाहती थी क्या कस्तूरी....इन डेढ़ सालों में लगता है बहुत कुछ बदल गया है...... नहीं???
अमोघ ने उसकी आंखों में देखते हुए कहा तो उसकी पलकें झुक गई
" चलिए पहले कुछ खा लिजिए....बाकी बातें बाद में.....
कस्तूरी ने कहा.....अब ऐसे और खड़े रहना उसके बस में नहीं था
" जो हुकुम "
अमोघ ने कहा और उसके पीछे चला गया
वो उसे अपने घर ले आई....दो कमरों का छोटा सा.... लेकिन बहुत प्यारा घर था.... देखने में ही लगता था ....घर की एक एक चीज बहुत जतन से सज़ाई गई थी .... उसकी नजर हॉल के एक तरफ गए...लैंप पर गई....तो वो चौंक उठा....ऐसा ही तो लेंप उसने दो साल पहले खरीदा था ....
" कस्तूरी ये लैंप कहा से लिया "
उसने पूछा
" ये "
कस्तूरी ने किचन से बाहर झांकते हुए कहा....
" ये तो यही के बच्चों ने बनाया है "
कस्तूरी ने कहा तो वो हैरान रह गया
"'जानती हो बिल्कुल ऐसा ही लैंप मैंने बा
( क्रमशः)