एक छोटे से गाँव में राजू नाम का एक लड़का रहता था. वह बहुत गरीब था, लेकिन उसके सपने बहुत ऊँचे थे. उसका सबसे बड़ा सपना था कि वह एक दिन बड़ा होकर डॉक्टर बने और अपने गाँव में एक अस्पताल खोले, जहाँ गरीबों का मुफ्त इलाज हो सके.
राजू हर रोज़ अपने घर से 5 किलोमीटर दूर शहर के स्कूल में पैदल जाता था. उसके पास न तो अच्छी किताबें थीं और न ही स्कूल की वर्दी. वह हमेशा पुरानी, फटी हुई कमीज़ पहनकर जाता था. उसके सहपाठी अक्सर उसका मज़ाक उड़ाते थे.
एक दिन, जब वह स्कूल जा रहा था, तो उसकी मुलाकात एक बूढ़े आदमी से हुई जो सड़क किनारे बैठे थे. वह बहुत बीमार लग रहे थे और उनके पास खाने के लिए कुछ नहीं था. राजू ने अपनी टिफिन खोली, जिसमें सिर्फ़ दो रोटियां और थोड़ी सी सब्ज़ी थी. उसने बिना कुछ सोचे अपनी आधी रोटी और सब्ज़ी उस बूढ़े आदमी को दे दी. बूढ़े आदमी ने मुस्कराते हुए कहा, "बेटा, भगवान तुम्हें बहुत तरक्की देगा."
समय बीतता गया और राजू अपनी पढ़ाई में बहुत मेहनत करता रहा. उसकी मेहनत रंग लाई और उसने मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले लिया. गाँव में हर कोई बहुत खुश था.
चार साल बाद, राजू डॉक्टर बन गया. उसने शहर में एक बड़ा अस्पताल खोला, लेकिन अपने गाँव को नहीं भूला. वह हर महीने एक बार अपने गाँव जाता था और वहाँ एक मुफ्त मेडिकल कैंप लगाता था. वह गरीबों का इलाज करता और उन्हें दवाइयाँ भी देता था.
एक दिन, जब वह गाँव में कैंप लगा रहा था, तो एक बूढ़ा आदमी उसके पास आया. उसे देखते ही राजू को वह दिन याद आ गया जब उसने सड़क किनारे उस बूढ़े आदमी को अपनी रोटी दी थी. राजू ने उन्हें पहचान लिया.
बूढ़े आदमी ने राजू से कहा, "बेटा, तुमने मुझे पहचाना?" राजू ने कहा, "हाँ बाबा, मैंने आपको पहचान लिया." बूढ़े आदमी की आँखों में आँसू आ गए. उन्होंने राजू को गले लगा लिया और कहा, "मुझे पता था कि तुम एक दिन बहुत बड़े आदमी बनोगे."
राजू ने कहा, "बाबा, यह सब आपकी दुआओं का नतीजा है." उस दिन राजू को यह एहसास हुआ कि सबसे बड़ी दौलत पैसा नहीं, बल्कि किसी की दुआएं और दिल की अच्छाई है.
यह कहानी हमें यह सिखाती है कि जब हम दूसरों की मदद करते हैं, तो भगवान खुद हमारी मदद करने के लिए आ जाते हैं. राजू ने उस बूढ़े आदमी की मदद की थी और उसी मदद की वजह से उसे इतनी तरक्की मिली.फल
इस कहानी में "कर्म का फल" भी दिखाई देता है। राजू ने जो अच्छा कर्म किया था, उसकी वजह से ही वह अपने सपने को पूरा कर पाया। बूढ़े आदमी की दुआएं उसके साथ थीं, जिन्होंने उसकी सफलता में एक अहम भूमिका निभाई। यह हमें सिखाता है कि हमारे अच्छे कर्मों का फल हमें किसी न किसी रूप में ज़रूर मिलता है।इंसानियत की असली दौलत पैसा नहीं, बल्कि अच्छे कर्म और दूसरों की दुआएं हैं। राजू डॉक्टर बना, उसने अस्पताल खोला, लेकिन उसे सबसे ज़्यादा खुशी तब हुई जब उस बूढ़े आदमी ने उसे पहचानकर गले लगाया। यह पल पैसों से कहीं ज़्यादा कीमती था।