O Mere Humsafar - 10 in Hindi Drama by NEELOMA books and stories PDF | ओ मेरे हमसफर - 10

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ओ मेरे हमसफर - 10

(प्रिया, रिया से आदित्य को लेकर उसकी भावनाएँ जानना चाहती है। रिया झूठ बोलती है कि वह आदित्य को चाहती है और अपने आईएएस बनने के सपने को छोड़ उसकी बनना चाहती है। मासूम प्रिया उसे सच मान लेती है। परिवार इस रिश्ते को मंज़ूरी दे देता है, पर रिया की मुस्कान के पीछे त्याग का दर्द छुपा है। राठौड़ मेंशन में सगाई की तैयारियाँ जोरों पर हैं। आदित्य रिया के ख्यालों में मग्न है, वहीं कुणाल हवेली लौटते ही सजी सजावट और प्रिया की लड़खड़ाहट देखकर चौंक जाता है। निगाहें मिलती हैं, दिलों में संशय गहराता है। पर वह नहीं जानता—प्रिया उसी की दीवानी है।) अब आगे

बहनों की सगाई 

[इंट. राठौड़ मेंशन – सगाई का हॉल – शाम]

कुणाल चुप है… पर उसका चेहरा बहुत कुछ कह रहा है।

प्रिया को देखकर भीतर कुछ हलचल हुई है…"आज जो लड़की उसकी होने जा रही है…"पर वो… लंगड़ा रही है।

यह बात उसे भीतर तक हिला देती है।

कुणाल (मन में):"क्या माँ ने ये रिश्ता मेरे लिए तय किया है? या… कुछ और?"

वह इन सवालों को चेहरे पर नहीं आने देता। तभी उसकी नजर ललिता राठौड़ पर पड़ती है—चेहरे पर गहरी तृप्ति।थोड़ी दूर रिया खड़ी है… गरिमामयी, संयत।

कुणाल उसके पास जाता है, झुककर चरण छूता है।

कुणाल (हल्के मुस्कान में): “नमस्ते, भाभी।”

रिया चौंकती है, फिर मुस्कुरा उठती है।

रिया: “खुश रहो, कुणाल।”

प्रिया (धीरे से):"हाय कुणाल…"

कुणाल (संकोच के साथ): "हाय…"

वहीं पास खड़े वैभव और बिन्नी दीदी उस क्षण को महसूस करते हैं।

वैभव (धीरे से): “वाह, रिया… तेरी बहन की पसंद भी तुझ जैसी ही है।”

प्रिया के चेहरे पर हल्की मुस्कान है, लेकिन अंदर कुछ मचल रहा है।

शहनाई की धुन बजती है। रिया और आदित्य एक-दूसरे की ओर मुस्कुराते हैं। रिया अंगूठी के लिए हाथ बढ़ाती है—

प्रिया (शरारत से, हाथ खींचते हुए): "अरे! इतनी भी क्या जल्दी है, दीदी? जीजाजी से थोड़ी और जान-पहचान कर लो!"

हॉल में ठहाका गूंजता है।

प्रिया (आदित्य की ओर): "रिया दी की मासूम शक्ल पर मत जाइए, जीजाजी! बहुत खतरनाक हैं ये! अब भी वक्त है… सोच लीजिए।"

आदित्य (हँसते हुए): "अब तो डर लग रहा है…"

(ठहाके)

बिन्नी दीदी:"प्रिया जी! आपकी भी सगाई है… अब कुणाल जी से भी वही सवाल पूछेंगे!"

(तालियाँ और हँसी)

प्रिया शर्माती है। गालों पर गुलाबीपन। अब सबकी निगाहें नए जोड़े पर हैं।

आदित्य (घोषणा करता है): "अब हमारी साली साहिबा प्रिया… और हमारे प्यारे भाई कुणाल !"

कुणाल आगे बढ़ता है। चेहरे पर मुस्कान… लेकिन आँखों में कुछ अधूरा।

प्रिया संकोच में मुस्कुरा रही है। कुणाल अंगूठी उठाता है, प्रिया का हाथ थामता है— …और प्रिया की उंगलियाँ काँप उठती हैं।

बिन्नी: "कुछ कहना नहीं है, मैडम?"

प्रिया चौंक जाती है। हाथ हिलता है—अंगूठी हवा में उड़ती है!

कुणाल झुककर फ़ुर्ती से थाम लेता है।

(तालियाँ) वह प्रिया की आंखों में देखता है— एक गहरी, रहस्यमयी मुस्कान के साथ उसे अंगूठी पहना देता है।

प्रिया भी जल्द ही सँभलकर कुणाल को अंगूठी पहना देती है।

आदित्य (शरारत से): "इतनी जल्दी? अब तो कुणाल आपका ही है!"

(हँसी का फव्वारा)

प्रिया नज़रें झुका लेती है, मुस्कराते हुए।

[रस्में पूरी होती हैं]

रिया और आदित्य ललिता राठौड़ के चरणों में झुकते हैं। ललिता का चेहरा गर्व और संतोष से दमक रहा है। कुणाल और प्रिया भी झुकते हैं।

ललिता का हाथ जब कुणाल के सिर पर आता है, वह भीतर तक सिहर उठता है—

कुणाल (मन में): "कितना अपनापन… क्या सच में ये मेरी मां नहीं बन सकती?"

कुणाल पहली बार प्रिया को एक और दृष्टि से देखता है— एक पुल, उस स्नेह की ओर।

बिन्नी  (चुटकी लेती हैं): "प्रिया! अब तो जेठ-जेठानी के भी पैर छू लो!"

प्रिया (हँसते हुए): "अरे नहीं आंटी , आदित्य जीजू और मैं तो बेस्ट फ्रेंड हैं… है न जीजू?"

आदित्य (सिर हिलाते हुए): "हमेशा।"

ललिता का चेहरा थोड़ा सख्त हो जाता है। बिन्नी उसे देख लेती हैं… कुछ सोचती हैं।

कुणाल, बिना कुछ बोले, आदित्य और रिया के चरणों में झुकता है। प्रिया उसके साथ झुकती है।

[एक नई दृष्टि से… वह प्रिया को देख रहा है।]

---

[कार में – विदाई के बाद]

अब कार में हैं: ललिता, आदित्य, कुणाल। भीतर एक बोलती हुई खामोशी है।

आदित्य (माहौल हल्का करते हुए): "माँ, आज तो आप रिया को देखकर कॉलेज वाली लग रही थीं।"

ललिता (मुस्कान के साथ): "रिया जैसी बहू हो तो हर माँ जवान महसूस करने लगे…"

(फिर कुणाल की ओर मुड़ती हैं)

ललिता: "और प्रिया… कैसी लगी तुम्हें?"

कुणाल (हौले से): "अलग है, माँ… पर बुरी नहीं।"

ललिता (धीरे):"अलग तो है… लेकिन वक्त के साथ सब ढल जाता है।"

कुणाल उनकी ओर देखता है—सिर्फ देखता है।

आदित्य (हँसते हुए):"इन दोनों बहनों ने तो घर की स्कीम बदल दी, माँ।"

ललिता (गंभीर, पर कोमल लहजे में):"घर बदलना बुरा नहीं बेटा…बस नींव ना हिलने पाए…"

कुणाल उस बात को दोहराता है मन में—"नींव…"

क्या वह उस नींव का हिस्सा बन पाएगा? गाड़ी धीरे-धीरे मोड़ काटती है। सड़क पर… अंधेरा गहराने लगा है।

......

1. क्या रिया का झूठा इकरार प्रिया की मासूम मोहब्बत को कुर्बानी में बदल देगा?

2. क्या प्रिया की लड़खड़ाती मुस्कान और सजती सगाई कुणाल को उसके छिपे जज़्बातों का एहसास दिला पाएगी?

3. रिया की खामोश हँसी के पीछे छुपा दर्द क्या आदित्य को कभी सच से रूबरू करवा पाएगा?

आगे जानने के लिए पढ़ते रहिए "ओ मेरे हमसफ़र".