Chetak: The King's Shadow - 1 in Hindi Fiction Stories by SAURABH GUPTA books and stories PDF | Chetak: The King's Shadow - 1

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Chetak: The King's Shadow - 1

अरावली की पहाड़ियों पर वह सुबह कुछ अलग थी। हलकी गुलाबी धूप धीरे-धीरे पहाड़ियों की चोटी से उतर रही थी और नीचे फैली धूलभरी घाटियों को छू रही थी। बांस और बबूल के झुरमुटों के बीच एक छोटी-सी घास की ढलान थी, जहाँ एक बूढ़ा सेवक बार-बार अपनी नज़रें उठा रहा था। उसका नाम था रायमल। वह वर्षों से मेवाड़ की तबेलियों का मुख्य सेवक था, घोड़ों की भाषा समझता था, उनकी चाल, उनकी सांस, उनके हिनहिनाने तक में अर्थ ढूंढ़ लेता था।
आज उसकी आंखों में प्रतीक्षा थी। साँझ से ही एक विशेष घोड़ी प्रसव वेदना में थी। वह घोड़ी कोई सामान्य नहीं थी, वह उन पाँच घोड़ियों में से एक थी जिन्हें स्वयं महाराणा प्रताप ने युद्ध के लिए तैयार करने का आदेश दिया था। वह ऊँची नस्ल की, तेज़, अनुशासित और गर्व से सिर उठाकर चलने वाली घोड़ी थी। रायमल ने उसका नाम रखा था सूरजमुखी।
तबेलों की छत के ऊपर बैठे कौवे अचानक उड़ गए। भीतर से एक भारी हिनहिनाहट की आवाज़ आई। रायमल दौड़ता हुआ अंदर गया।
भीतर का दृश्य अवर्णनीय था। सूरजमुखी ज़मीन पर बैठी थी, उसका शरीर थरथरा रहा था, और उसके सामने घास पर लेटा हुआ था एक नवजात शिशु — घोड़े का बच्चा — नीले रंग की झिलमिल चमक लिए हुए। ऐसा रंग रायमल ने अपने जीवन में कभी नहीं देखा था। न सफेद, न काला, न भूरा। वह नीलापन जैसे आकाश से उतर कर आया हो।
रायमल स्तब्ध रह गया। उसकी आंखों से आँसू बह निकले।
मेवाड़ के इतिहास में पहली बार किसी घोड़े ने ऐसा जन्म लिया था।
रायमल ने धीरे से उस शिशु को अपनी गोद में लिया। वह अभी भी सांसें लेने की कोशिश कर रहा था, उसकी आंखें बंद थीं लेकिन उसकी गर्दन में कंपन था — जैसे वह जीवन के लिए लड़ा रहा हो। उसकी माँ सूरजमुखी थक चुकी थी, पर उसकी आंखों में सन्तोष था।
घोड़े के शिशु ने धीरे-धीरे आंखें खोलीं। उसकी आंखों में आकाश की गंभीरता थी और धरती की कोमलता। वह पहली बार रोशनी में देख रहा था। रायमल को लगा जैसे उसने उस शिशु की आंखों में कोई युद्ध देख लिया हो, कोई सपना देख लिया हो, जो आगे आने वाला था।
उसने अपने हाथ जोड़ लिए।
राजमहल में जब यह समाचार पहुँचा, महाराणा प्रताप स्वयं तबेलों में आए। उनके साथ राघवदास पुजारी भी थे।
रायमल ने जैसे ही उस नीले शिशु को प्रताप के सामने रखा, महाराणा की आंखें कुछ क्षणों के लिए शांत हो गईं। उन्होंने घोड़े के बच्चे को छूते हुए कहा
यह घोड़ा नहीं है। यह किसी युद्ध का पूर्व संकेत है। देखना, यह एक दिन मेरे प्राण बचाएगा।
राघवदास ने उस घोड़े की पेशानी पर सिंदूर लगाया और कहा
इसका नाम चेतक होना चाहिए। चेतक, जो चित्त को जगाए, हृदय को चेताए।
महाराणा प्रताप ने सिर हिलाया
हां, यही नाम उचित है। चेतक।
चेतक के जन्म की खबर पूरे महल में फैल गई। लेकिन बहुत कम लोग जानते थे कि इस नीले घोड़े की किस्मत केवल शाही तबेले में रहने की नहीं थी, बल्कि युद्ध की धार पर चलने की थी। उसकी रगों में साहस दौड़ता था, उसकी हड्डियों में तूफान था, और उसके हृदय में निष्ठा।
चेतक बड़ा होने लगा। रायमल ने उसे दूध पिलाया, उसकी चाल सिखाई, उसके कंधों को सहलाते हुए कहानियाँ सुनाईं। चेतक हर शब्द को समझता था। वह आम घोड़ों की तरह नहीं था। उसकी समझ, उसकी गति, उसकी आंखों की दृष्टि — सब कुछ अलग था।
रायमल कभी-कभी उसे दूर पहाड़ियों पर लेकर जाता और कहता
देख चेतक, उधर दुश्मन आएँगे। उधर से तलवारें चलेंगी। तुझे न डरना है, न रुकना है।
चेतक गर्दन हिलाता और ज़ोर से हिनहिनाता — जैसे कह रहा हो कि वह तैयार है।
एक दिन, जब चेतक एक वर्ष का हुआ, महाराणा प्रताप ने उसे स्वयं अपनी पीठ पर बिठाने का आदेश दिया।
जब चेतक पर प्रताप बैठे, तब वह स्थिर खड़ा रहा। न काँपा, न घबराया। उसने अपने पंजों को ज़मीन में गाड़ दिया और फिर एक झटके में हवा में उछल गया।
उस दिन महल की दीवारों पर गूंजा —
राजा को घोड़ा मिल गया है
लेकिन कोई नहीं जानता था कि यह सिर्फ़ राजा का घोड़ा नहीं था। यह उसका सखा, उसका साथी, उसका प्रहरी बनने जा रहा था। और एक दिन, यह अपने प्राण देकर भी अपने राजा की रक्षा करेगा।
अभी वह दिन दूर था, पर चेतक के दिल में यह पहले से अंकित था।
वह केवल दौड़ने के लिए नहीं जन्मा था। वह इतिहास लिखने के लिए आया था।
सूरज ढल चुका था। अरावली की पहाड़ियों के पीछे नीला आकाश गहरा होता जा रहा था और तबेलों के भीतर धीमा उजाला भरने लगा था। चेतक घास पर लेटा था लेकिन उसकी आंखें किसी योद्धा की तरह जाग रही थीं। दिन भर की थकान उसके शरीर में थी, पर उसके भीतर एक बेचैनी थी — जैसे वह किसी बुलावे की प्रतीक्षा कर रहा हो।
रायमल पास बैठा उसकी पीठ सहला रहा था। बूढ़े हाथों में अनुभव था, प्यार था, और चेतक के लिए कुछ ऐसा भाव था जो वह शब्दों में नहीं कह पाता था। चेतक ने उसकी हथेली की खुशबू पहचान ली थी। वह जब भी पास आता, तो उसकी सांसें धीमी हो जातीं और उसका हृदय शांत।
राजमहल में उत्सव चल रहा था। चेतक के जन्म की एक वर्षगांठ थी। पूरे मेवाड़ में यह पहला अवसर था जब किसी घोड़े का जन्मदिन मनाया जा रहा था। मगर चेतक को इन सब बातों से कोई वास्ता नहीं था। उसे तो केवल आवाज़ें सुनाई देती थीं — लोहे की खनखनाहट, तलवार की टंकार, दूर पहाड़ी पर उड़ती हुई धूल, और कभी-कभी वह कल्पना करता — कोई सेनापति उसके ऊपर सवार होकर युद्ध भूमि में दौड़ रहा है।
चेतक की चाल अब तेज हो चली थी। उसकी टाँगें मजबूत थीं और उसकी गर्दन उठी हुई। वह दौड़ता तो लगता जैसे हवा भी पीछे रह जाए। मगर अभी तक उसने एक भी युद्ध नहीं देखा था। रायमल जानता था कि यह घोड़ा किसी साधारण रथ को खींचने के लिए नहीं बना, न ही किसी जुलूस की शोभा बढ़ाने के लिए।
चेतक को जो जीवन दिया गया था, उसमें रक्त और अग्नि की गंध थी।
एक दिन प्रातःकाल महाराणा प्रताप ने आदेश दिया कि चेतक को पहाड़ी मार्गों पर अभ्यास कराया जाए। यह मार्ग खतरनाक थे, पथरीले और तीव्र चढ़ाई वाले। कई सैनिकों ने कहा कि यह घोड़ा अभी बालक है, वह कैसे संभालेगा ये रास्ते। मगर प्रताप ने केवल एक उत्तर दिया।
जिसे मेरे युद्ध की आग में चलना है, उसे पहले इस धरती की चोटों को सहना होगा।
अगले ही दिन, रायमल चेतक को लेकर पहाड़ियों की ओर बढ़ा। पहाड़ चुप थे, लेकिन उनमें एक परीक्षा छिपी थी। पहली चढ़ाई पर ही चेतक की सांसें तेज हो गईं। उसकी टाँगों में कंपन था, पर उसकी आंखों में कोई डर नहीं था। उसने सिर ऊपर उठाया और एक लंबी हिनहिनाहट की, जैसे किसी युद्ध का उद्घोष कर रहा हो।
रायमल पीछे खड़ा था, लेकिन चेतक आगे बढ़ता गया। एक चट्टान आई, जहाँ पाँव फिसल सकते थे। चेतक रुका, हवा को सूंघा, चट्टान की दिशा का अनुमान लगाया और एक ही छलांग में उसे पार कर गया। उसकी आंखें चमक रही थीं। वह लौटकर आया और रायमल के पास खड़ा हो गया।
रायमल की आंखें नम हो गईं।
तू तो साक्षात अग्नि का संतान है रे,
उसी दिन संध्या को चेतक को महल लाया गया। महाराणा प्रताप खुले मैदान में खड़े थे। उन्होंने चेतक को देखा और फिर चुपचाप उसकी पीठ पर सवार हो गए। एक बार भी चेतक ने न तो डर दिखाया, न हिचकिचाहट। जैसे वह जानता था कि यही उसका स्थान है।
प्रताप ने कमर से तलवार निकाली, ऊपर हवा में लहराई और कहा
मेरे रण का साथी अब मेरे पास है। ये सिर्फ़ घोड़ा नहीं है। ये चेतक है, और ये मेरी आत्मा बनकर लड़ेगा।
वहीं खड़े सारे सैनिक स्तब्ध थे। चेतक धीरे-धीरे मैदान में चलने लगा। उसकी चाल में आत्मविश्वास था, उसकी पीठ सीधी और उसकी गर्दन ऊँची। जैसे उसने स्वीकार कर लिया हो कि अब उसकी साधारण घोड़े वाली ज़िंदगी समाप्त हो गई है।
वह अब एक राजा का घोड़ा नहीं था।
वह अब एक राजा की रक्षा की प्रतिज्ञा बन गया था।
रात को जब सारे महल में दीप जल रहे थे, रायमल अकेला तबेले के कोने में बैठा था। चेतक उसके पास लेटा था। रायमल ने उसका सिर अपनी गोद में लिया और धीमे स्वर में बोला
तुझे अब आराम कम मिलेगा, बेटा। अब तुझे दौड़ना होगा, छलांग लगानी होगी, घायल होना होगा, शायद... एक दिन जान भी देनी होगी
चेतक ने आंखें बंद कर लीं। उसकी सांसें शांत थीं। लेकिन उसके दिल की धड़कनें तेज़ थीं — जैसे वह कह रहा हो कि वह सब सह लेगा, अगर उसका राजा सुरक्षित रहेगा।
उस रात आसमान में कोई तारा टूटा नहीं, पर धरती पर एक तारा चमकने लगा था।
एक नीला वीर, जो युद्ध के लिए जन्मा था
एक चेतक, जो इतिहास बन जाएगा