Ch 8: दर्पण कक्ष
मीरा, रवि, यामिनी, राघव और तेजा — अब जान चुके थे कि उनका सामना किसी साधारण आत्मा से नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली तांत्रिक की अधूरी आत्मा से है जिसे लोग 'छठा' कहते थे। मंदिर में देखा गया अग्निकुंड, आत्माओं की चेतावनी, और मीरा के हाथ पर उभरते नए चिन्ह — ये सब इशारा कर रहे थे कि समय बहुत कम बचा था।
अब उनका अगला लक्ष्य था — उन पाँच आत्माओं की पहचान करना, जिन्होंने पहले कभी उस अनुष्ठान में भाग लिया था। पर कैसे?
📜 एक पुरानी इमारत का रहस्य
मीरा को याद आया कि मंदिर के पीछे एक और पुरानी इमारत थी, जो अब टूट चुकी थी। वहाँ कभी एक ध्यान-कक्ष हुआ करता था, जहाँ तांत्रिक साधनाएँ की जाती थीं।
“हमें वहाँ चलना चाहिए,” मीरा बोली।
तेजा ने सिर हिलाया, “हाँ, शायद वहाँ कुछ और सुराग मिलें जो उन पाँच आत्माओं की पहचान में मदद करें।”
सबने हाथ में मशालें लीं और उस पुराने हिस्से की ओर बढ़े। रास्ता काँटों और सूखी बेलों से भरा हुआ था। जैसे ही वे वहाँ पहुँचे, एक भारी लोहे का दरवाज़ा दिखा — जंग लगा हुआ, लेकिन अब भी बंद।
राघव ने धीरे से धक्का दिया। दरवाज़ा चरमराया, और धूल के गुबार के बीच खुल गया।
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🪞 दर्पणों का रहस्यमयी कक्ष
अंदर का दृश्य देखकर सभी रुक गए।
पूरा कमरा अलग-अलग आकार के दर्पणों से भरा था — छोटे, बड़े, कुछ टूटे हुए, कुछ धुंधले। पर ये साधारण दर्पण नहीं थे।
मीरा ने कहा, “यह वही ‘दर्पण कक्ष’ है जिसका ज़िक्र निश्ठा की डायरी में था। कहा जाता है कि इनमें आत्मा की परछाई कैद की जा सकती है।”
यामिनी ने आश्चर्य से पूछा, “पर ये इतने सारे दर्पण किसलिए?”
तेजा ने गंभीरता से जवाब दिया, “हर दर्पण एक आत्मा की पहचान है। शायद जिन पाँच लोगों ने अनुष्ठान किया था, उनकी परछाइयाँ इनमें छुपी हैं।”
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🌘 पहला दर्पण जागता है
मीरा जैसे ही सबसे बड़े दर्पण के पास पहुँची, उसकी हथेली फिर से चमकने लगी। वह दर्पण अपने आप हल्का-हल्का काँपने लगा। अंदर धीरे-धीरे एक छवि उभरने लगी — एक युवक, जिसके कपड़े पुराने ज़माने के थे, आँखों में डर और माथे पर वही चिन्ह जो मीरा के हाथ पर था।
“ये… ये पहला है,” मीरा ने धीरे से कहा।
रवि ने पूछा, “क्या ये आत्मा अब भी यहीं है?”
जैसे ही उसने यह कहा, दर्पण के अंदर से एक ठंडी हवा निकलने लगी और वो छवि बोल उठी —
> “मैंने साथ दिया था… लेकिन मेरी मौत अनजानी रही…”
सभी डर के मारे एक कदम पीछे हट गए।
मीरा ने धीरे से पूछा, “तुम्हारा नाम क्या है?”
> “मेरा नाम… अरुण था… मैं पाँच में से पहला था…”
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🧩 पहचान का सिलसिला
अरुण की आत्मा ने बताया कि पाँच आत्माओं में से हर एक की परछाई एक अलग दर्पण में बंद है, लेकिन वे सभी केवल ‘कुंजी’ को ही पहचान सकती हैं — और कुंजी कोई और नहीं, बल्कि मीरा ही थी।
मीरा को अब एक नई जिम्मेदारी मिल गई थी — हर दर्पण के पास जाना और आत्मा को पुकारना।
दूसरे दर्पण में एक स्त्री की परछाई थी — वह शांत थी, लेकिन उसकी आँखों में दर्द था।
“मेरा नाम साधना था,” वह बोली, “मैंने अनुष्ठान के लिए अपनी बेटी को छोड़ा… और आज भी उसका चेहरा भूल नहीं पाई…”
मीरा की आँखों में आँसू आ गए। यामिनी ने उसका हाथ थामा।
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⚠️ तीसरा दर्पण — भय की परीक्षा
तीसरा दर्पण सबसे अजीब था। उसमें कोई परछाई नहीं दिखी। केवल एक धुंध सी थी, लेकिन जैसे ही मीरा पास गई, दर्पण काला पड़ गया।
एक अजीब-सी आवाज़ गूंजी —
> “तुम्हें डर है… अपने भीतर के अंधेरे से… क्या तुम सच में उन्हें बचाना चाहती हो?”
मीरा ने डरते हुए कहा, “हाँ… मैं उन्हें बचाना चाहती हूँ, खुद को भी।”
धीरे-धीरे धुंध साफ़ हुई, और एक वृद्ध व्यक्ति की परछाई उभरी — लंबी दाढ़ी, आँखों में अजीब चमक।
> “मैं था ‘सत्यनारायण’। मैंने अंत समय में पीछे हटने की कोशिश की थी… और छठे ने मुझे पकड़ लिया था…”
“क्या तुम्हें अब मुक्त किया जा सकता है?” रवि ने पूछा।
> “सिर्फ़ तब… जब पाँचों एक बार फिर एक हों।”
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🔓 चौथा और पाँचवाँ दर्पण
चौथे दर्पण में एक किशोर लड़का दिखाई दिया — बहुत ही छोटा, शायद 14-15 साल का। “मैं विनीत हूँ… मुझे बिना समझे अनुष्ठान में खड़ा किया गया था… मुझे डर लग रहा था… पर मैंने कुछ नहीं कहा।”
मीरा ने उसकी ओर मुस्कुराते हुए देखा, “अब तुम्हारी आत्मा शांत होगी। मैं वादा करती हूँ।”
आखिरी दर्पण खाली था।
“यहाँ कोई क्यों नहीं है?” राघव ने पूछा।
तेजा ने गहराई से कहा, “क्योंकि पाँचवाँ द्रोही था… वो अब भी जीवित हो सकता है — किसी नए शरीर में।”
मीरा चौंक गई। “क्या मतलब?”
“उसने छठे से समझौता कर लिया था… और वह अब इंसानों के बीच घूम रहा है — हमें धोखा देने के लिए।”
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🔮 दर्पण कक्ष की चेतावनी
तभी सभी दर्पण एक साथ चमक उठे, और कमरे में एक नई आवाज़ गूंजी —
> “अब तुम जान चुके हो… लेकिन अगली पूर्णिमा से पहले इन आत्माओं को फिर से एकत्र करना होगा… नहीं तो छठा फिर जागेगा।”
मीरा ने कसम खाई — “मैं उन चार आत्माओं को मुक्त करुँगी… और पाँचवाँ अगर अब भी छिपा है, तो उसे सामने लाकर रोकूँगी।”
1. क्या पाँचवां आत्मा अब भी जीवित किसी इंसान के रूप में उनके बीच है?
और अगर हाँ, तो क्या वह उनमें से कोई एक हो सकता है?
2. क्या उन चार आत्माओं को एकत्र करने के दौरान कोई आत्मा विरोध करेगी… या छठे के प्रभाव में आ चुकी है?
3. क्या मीरा वास्तव में 'कुंजी' है — या छठा केवल उसे भ्रमित कर रहा है अपने फायदे के लिए?
4. क्या रवि, यामिनी, राघव या तेजा में से कोई किसी पिछले जन्म से वो धोखेबाज़ पाँचवां आत्मा है?
5. क्यों सिर्फ़ मीरा को चिन्ह मिला? क्या बाकी लोगों के शरीर में भी कुछ छिपा हुआ है जो अभी तक सामने नहीं आया है?
6. क्या आत्माओं को इकट्ठा करने की कोशिश से ही छठा और शक्तिशाली होता जा रहा है?
7. क्या निश्ठा की आत्मा सचमुच मीरा की मदद कर रही है, या वह भी छठे के प्रभाव में है?
8. क्या मंदिर की परछाइयों में कुछ और भी है जो अब तक जागा नहीं… कोई सातवीं शक्ति?
9. क्या आत्माओं को
मुक्त करने की प्रक्रिया में कुछ भयानक बलिदान की आवश्यकता है?
10. क्या मीरा खुद को खो देगी इस युद्ध में — या कुछ ऐसा जागेगा जो उससे भी ज़्यादा ख़तरनाक है?