Uneducated Husband in Hindi Women Focused by Ved Prakash books and stories PDF | अनपढ़ पति

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अनपढ़ पति



गुड्डी ने M.A (इंग्लिश) अच्छे नंबरों से पास कर लिया था । वह देखने में अत्यंत सुंदर थी,जिसका घमंड उसे बहुत था। वह बीएड करने के बाद एक टीचर बनना चाहती थी। लेकिन उसके मां-बाप उसे और आगे पढ़ाना नहीं चाहते थे। 

उसके पिताजी कई बरसो से एक अच्छे लड़के की तलाश कर रहे थे, ताकि वह उसकी शादी करा के अपनी जिम्मदारियों से मुक्त हो सके। उनकी मेहनत सफल हुई। उन्हें उनके पसंद का लड़का आखिर मिल ही गया।

लड़के का गांव में एक बड़ा मकान था, साथ में लगभग एक सौ एकड़ जमीन थी ,जो पुस्तैनी थी। परिवार में उनके मां- बाप के अलावा एक बहन थी जिसकी शादी हो चुकी थी।

खानदान बहुत इज्जतदार था।, किसी चीज की कमी न थी लड़का भी देखने में बहुत हैंडसम और स्मार्ट था लेकिन पढ़ा -लिखा बहुत ही कम था।

गुड्डी के पिताजी लड़के की प्रॉपर्टी देखकर वहीं शादी का मन बना चुके थे लेकिन गुड्डी इस शादी से बिल्कुल भी खुश न थी, उसे और आगे पढ़ाई करना था। लेकिन मां - बाप के दबाव के आगे उसके एक न चली और शादी हिन्दू रीति रिवाज के अनुसार सम्पन्न हो गया।

एक शहर में पली-बढ़ी मॉर्डन लड़की,बहू बन कर एक देहांत में पहुंच गई,जो उसकी कल्पना से बिल्कुल परे था कोई सिनेमा हॉल नहीं,रेस्टुरेंट नहीं,बस खेत खलिहान गाय गोबर, देहाती पोशाक में स्त्री-पुरुष,बच्चे नजर आ रहे थे।

वह खुद को ऐसे माहौल में कैसे ढालेगी? बस इसी बात की चिंता उसे सताए जा रही थी अपने फ्यूचर के बारे सोच कर उसे रोना आ रहा था।

गृह प्रवेश के बाद उसे फूलों से सजाये,कमरे में बैठाया गया। कुछ दिन रिश्तेदारों के रहने से घर में चहल-पहल,शोर गुल थी फिर सारे रिश्तेदार जा चुके थे।

गुड्डी के पति का नाम भोलानाथ था जो सचमुच बहुत भोला था उसे अपने खेत और जानवरों की देख -भाल करना बहुत अच्छा लगता था ।

सुहागवाली रात को भोलानाथ गुड्डी के पास जाकर बैठ गया और कहा "आप बहुत सुंदर लग रही हो" गुड्डी ने कोई जवाब नहीं दिया उल्टा मोबाइल पर कुछ टाइपिंग...... करने लगी।  

भोलानाथ ने फिर पूछा "सुना है .आप बहुत पढ़ाई -लिखाई कि हो , कितना पढ़ी हो????"

गुड्डी नाराजगी भरे स्वर में बोली "M.A की हूं, इंग्लिश से...."

भोला मासूमियत से पूछा "B.A नहीं की हो ,हमारे बुआ की लड़की B.A फर्स्ट डिवीजन से पास है कोई बात नहीं हम B.A में तुम्हारा दाखिला करा देंगे 

(इतना सुनकर गुड्डी के पूरे शरीर में गुस्से से आग लग गया वो पूछी "फैन नहीं है तुमलोग इतनी गर्मी में कैसे रहते हो?"

भोलानाथ जनाब दिया "फेन... तो साबुन में होता है आपको गर्मी लग रही है तो अभी कुएं से दो-चार बाल्टी पानी भर लाता हुं आप गुसलखाने में स्नान कर लो ।

गुड्डी - मेरा मतलब है पंखा ..... इडियट 

भोलानाथ - अच्छा तो बेना चाहिए ,फिर फेन-फेन क्या बोल रही हो?? ,ये लो (एक हाथ का पंखा देकर.....) 

"शहर में पति को सभी इडियट बोलते है क्या ??? गांव की गवार औरते तो अभी भी ए जी... ओ जी... कहकर ही बुलाती है ... वैसे आप मुझे कुछ भी कहकर बुलाऊंगी तो मुझे बुरा नहीं लगेगा। मेरी माताजी,मेरे बाबूजी को "अठन्नी के पापा" कहकर बुलाती है मेरे लड़कपन का नाम अठन्नी है न इसलिए...!" भोलानाथ शर्माते हुए बोला 

गुड्डी (गुस्से में)... तो तुम अठन्नी छाप हो, लेकिन अब अठन्नी तो बंद हो चुका है......। तुम कितना पढ़ें है ???

"तीसरी कक्षा तक पढ़ा हूं उसके बाद स्कूल जाने का मन ही नहीं किया,बस यही खेती-बाडी में लग गया। घर में जानवरों का देखभाल करनेवाला कोई नहीं था" भोलानाथ गर्व से जिम्मेदारी का बोध कराते हुए बोला ।

गुड्डी ब्यंग भरे स्वर में बोली " तुम भी तो एक जानवर की तरह हो,मेरा मतलब है शिक्षा बिहीन मानव को बिना सींग- पूंछ का जानवर ही कहा जाता है । देखो मुझे सींग-बिंग मत मार देना, मुझसे दूर बैठो,और मेरे साथ सुहागरात मनाने की बात तो तुम भूल ही जाओ ।

भोला नाथ कुछ देर खामोश रहा और फिर बोला" गलती तो आपके पिता जी की है कि आपकी शादी एक जानवर से करा दिए और आपको भी तो शादी से पहले सब कुछ देख समझ लेना चाहिए था ।

गुड्डी बड़े कठोर स्वर में बोली "मुझे पता होता की मेरी शादी तुम्हारे जैसे अनपढ़ - गवार लड़के से हो रही है तो मै शादी के दिन ही जहर खा के मर जाती,तुम मेरे पति बनने के लायक ही नहीं हो...!तुम अपनी तरफ देखो और मेरी तरफ देखो मेरे कपड़ों से परफ्यूम की खुशबू आ रही है और तुम्हारे कपड़ो से गोबर की बदबू...... छी ..और हां......कभी भी मुझपे हक जताने की कोशिश मत करना , मै जल्दी ही अपना इंतजाम कहीं और कर लूंगी। 

भोलानाथ को लगा जैसे उसके ऊपर बिजली गिर गई हो ,वो कुछ देर के लिए स्तब्ध रह गया। दिल के सारे अरमान धूल में मिल गए, सुहागरात मानने का ख्याल भी मन से कोसों दूर हो गया। वह एक चटाई लेकर छत पर सोने चला गया, परंतु नींद आंखों से गायब थी, उसके एक एक शब्द कांच के टुकड़े की तरह कान में चुभ रहे थे वह बस खुले आसमान कि तरफ देख रहा था और अंदर ही अंदर रो रहा था ,नींद आने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता....! 

भोलानाथ के घर से कुछ दूरी पर एक शिव मंदिर था। जहां एक बहुत ही सिद्ध महापुरुष पंडित ओंकार नाथ शास्त्री अपने चेलों के साथ डेरा डाले थे जो ग्रामवासियों के समक्ष कथा वाचन करते थे उसी की धीमी आवाज भोलानाथ को सुनाई पड़ रही थी ।‌ उसे पता नहीं क्या सूझी दरवाजा खोला और मंदिर की तरफ चल पड़ा 

मंदिर पर दस बारह लोग ही बैठे थे। बाबा जी इत्तेफाक से कालिदास की कथा सुना रहे थे। भोला नाथ भी पीछे जाकर बैठ गया और कथा सुनने लगा। वह अपना चेहरा अच्छी तरह कंबल से ढका था ताकि उसके आंसू किसी को दिखाई ना पड़े। एक घंटा कथा सुनने के बाद धीरे -धीरे लोग जाने लगे ,सिर्फ भोलानाथ रह गया फिर भी बाबाजी ने कथा सुनाना बंद नहीं किया 

फिर वो प्रसंग आ गया ,जिसमें विद्योतमा ,कालिदास को अपमानित करके अपने महल से निकाल देती है । अंत में जब भोलानाथ को नहीं रहा गया तो ,बाबा जी के पैर पकड़ कर फुट फुट के रोने लगा और कहा" हे..प्रभु मेरी भी दशा कुछ इसी प्रकार की है मै भी पत्नी से अपमानित हूं कृपया मेरा मार्गदर्शन करें 

"बाबाजी कुछ देर मौन रहे फिर बोले "बच्चा तुम्हारे पास दो रास्ते है एक रास्ता घर की तरफ जाता है जो बहुत सरल है घर जाओ और अपनी पत्नी को समझाओ ,और गृहस्थी फिर से शुरू करो ।

और दूसरा रास्ता अति कठिन है जो ज्ञान की तरफ जाता है , आध्यात्म की तरफ जाता है जिस रास्ते पर चलकर कालिदास महान बने, गौतमबुद्ध ने ज्ञान प्राप्त किया, बच्चा अपना जीवन संभोग से समाधी की तरफ ले जाओ,जीवन के वास्तविक सत्य को जानो ।जीवन बच्चे पैदा करने और पत्नी के नखरें उठाने के लिए नहीं है इस सांसारिक मोह माया से ऊपर उठो, मेरे साथ मेरी मंडली में शामिल हो जाओ । बाबा बनो बच्चा ,बाबा बनो और मेरे बाद मेरी गद्दी सम्भालो 

भोलानाथ - बाबाजी.... मुझे आपके बताए रास्ते पर चलना है।

बाबाजी - एक बार फिर से सोच ले बच्चा ,इस रास्ते पर तुम्हे सब कुछ त्याग कर जाना होगा ,ये कांटों भरा है,तुम्हे कठिन साधना करना होगा अन्न - जल त्यागना होगा,कठिन तपस्या करनी होगी, वीर्यवान बनना होगा ,स्त्री मोह त्यागना होगा ।

भोलानाथ फैसला कर चुका था। वह उठ कर महादेव से आशीर्वाद लेने के लिए जैसे ही उनके चरणों में झुका, तो उसके आंखो से आंसू महादेव के चरणों पर गिरने लगे ये देखकर बाबाजी आश्चर्यचकित रह गए ।

बाबाजी भोलानाथ को समझाने लगे ""जाओ भोला अपने घर परिवार से आखिरी मुलाकात कर आओ ,क्योंकी उसके बाद तुम्हारा नया जीवन प्रारंभ होगा ।

बाबाजी का आदेश सुनकर भोला घर की तरफ चल दिया ,घर पहुंच कर एक बक्से में कुछ आवश्यक सामान और कुछ पैसे रख लिया ,इसके पश्चात् अपने माता पिता को कमरे के बाहर से ही प्रणाम किया ,फिर अपने खेतों पर गया और धरती मां को प्रणाम किया , गायो के ऊपर प्यार से हाथ फेरा, और मंदिर की तरफ चल दिया ,उसके कदम बहुत भारी महसूस हो रहे थे जैसे कोई उसे रोक रहा हो, उसके आंखो से अश्रुधारा वह रहे थे।जब भोला मंदिर पर पहुंचा तो बाबाजी ने एक पत्र दिया और कहा" भोलानाथ तुम अभी हरिद्वार के लिए प्रस्थान करो यह पत्र बताए गए महंत को दे देना वह तुम्हें मेरे वहां के आश्रम में रहने का व्यवस्था करा देगा, मै भी वहां कुछ दिनों बाद पहुंच जाऊंगा और फिर तुम्हे गुरु मंत्र दूंगा । भोलानाथ अपनी यात्रा पर निकल गया ।

गुड्डी अपने कमरे में रात भर चैन से सोई थी भोर कब हुई उसे पता न चली,उसकी सभी सहेलियों भी बड़ी बेसब्री से सुबह होने का इंतज़ार कर रही थी, ताकि रात की सारी रोमांटिक बाते और घटनाओं का वर्णन सुन सके। गुड्डी के फोन पर सुबह - सुबह ही बहुत से मिस्ड कॉल पड़े थे नींद खुलते ही उसने अपनी सबसे खास सहेली को फोन किया और रात की सारी घटना विस्तार से सुना दी ।

उस सहेली ने सारी घटना सुनकर अपना सिर पीट लिया और बोली " रात भर तूने खाया- पिया कुछ नहीं और प्लेट तोड़ा दस हजार " 😆😆😆😆