Rajedu's mother Sati Dadi : The immortal story of Chena Devi in Hindi Spiritual Stories by Narendra Garuwa books and stories PDF | राजेड़ू की माँ सती दादी : चेना देवी की अमर कथा

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राजेड़ू की माँ सती दादी : चेना देवी की अमर कथा

राजस्थान की तपती रेत में बसे बीकानेर जिले के राजेड़ू गाँव की यह कथा, केवल एक महिला के त्याग और आत्मसम्मान की नहीं, बल्कि एक माँ के अपार प्रेम और बलिदान की अमर गाथा है। यह कहानी है – माँ चेना देवी की 

कई वर्ष पूर्व, राजेड़ू गाँव के प्रतिष्ठित भैराराम जी गरुवा का विवाह पास के ही रेड़ा गाँव की गुणवान, स्वाभिमानी और कर्मठ कन्या चेना देवी से हुआ। विवाह के पश्चात चेना देवी अपने ससुराल आ गईं, पर राजेड़ू गाँव की सबसे बड़ी समस्या थी – पानी की भारी कमी।

गाँव में न तो कुआँ था, न कोई बावड़ी। ऐसे में गाँव की महिलाएँ रोज़ मीलों दूर पानी भरने जाया करती थीं। चेना देवी को भी यह कठिनाई झेलनी पड़ती। वे अपने पीहर रेड़ा गाँव जाया करतीं और वहीं से पानी लाकर ससुराल का काम करती 


एक दिन चेना देवी का नन्हा पुत्र बछराज बीमार था और वह उसे अकेला छोड़ पानी भरने गईं। रेड़ा गाँव पहुँचते-पहुँचते उन्हें देर हो गई। उन्होंने वहाँ की महिलाओं से विनती की:

"बहनों, मेरा बेटा अकेला है, कृपया मुझे पहले पानी भरने दो।"

परंतु उत्तर में उन्हें ताना मिला:

"इतनी जल्दी है तो अपने ससुराल में कुआँ खुदवा लो!"

यह वाक्य सीधे उनके आत्मसम्मान को चीर गया। आँखों में आँसू और मन में क्रोध लिए, उन्होंने बिना एक बूँद पानी भरे ही लौटने का निर्णय लिया।


राजेड़ू पहुँचते ही उन्होंने गाँव के पंचों को बुलाया और खुलकर कहा:

"हम और कब तक पीहरों पर निर्भर रहेंगे? अब समय आ गया है कि अपने गाँव में अपना कुआँ खुदवाएँ!"

गाँववालों को बात उचित लगी, लेकिन राजस्थानी परंपरा अनुसार, निर्णय से पहले वे एक सिद्ध साधु महाराज के पास परामर्श लेने पहुँचे।

साधु महाराज ने गहन ध्यान के बाद कहा:

"राजेड़ू गाँव के मध्य में कुआँ खुदवाओ, पानी मिलेगा। पर एक शर्त है — चेना देवी का पुत्र बछराज इस कुएँ का जल एक वर्ष तक नहीं पीएगा।"

गाँववालों ने यह शर्त मान ली और जल्द ही पूरे गाँव की मेहनत से कुआँ खुदवाया गया। चारों ओर खुशी की लहर दौड़ गई।


परंतु नियति को कुछ और ही मंजूर था।

एक दिन, एक वर्ष पूरा होने से कुछ समय पहले, नन्हा बछराज खेलते-खेलते प्यासा हो गया और अनजाने में उसी कुएँ का पानी पी गया।

अगले ही दिन वह बीमार पड़ा... और कुछ ही समय में उनकी मृत्यु हो गई।

घर में शोक की लहर फैल गई। माँ चेना देवी पर जैसे पहाड़ टूट पड़ा।


सवंत 1560, फाल्गुन मास की अष्टमी तिथि थी। सुबह की पहली किरणें धरती को छू रही थीं। उसी समय, माँ चेना देवी ने अपने मृत पुत्र बछराज को गोद में उठाया, सूरज की ओर देखा और गांववासियों के सामने कहा:

"जिस पुत्र के लिए मैंने अपमान सहा, कुआँ खुदवाया... आज उसी की गोद में मैं अपना प्राण अर्पण कर रही हूँ।"

और फिर वे अपने पुत्र के साथ सती हो गईं।


आज भी राजेड़ू गाँव में माँ चेना देवी का मंदिर है। ग्रामीण उन्हें "माँ सती दादी " कहकर पूजते हैं। उनके बलिदान की गाथा लोकगीतों, किस्सों और मंदिरों की दीवारों में गूंजती है।
आज भी उनकी याद मे प्रति वर्ष माघ सुधी अष्टमी को विशाल मेला भरता है व हरियाणा पंजाब से यात्री आते है!!