Introduction:
अग्नि की शक्ति लिए एक स्त्री।
अंधकार का शासन करने वाला एक राक्षस।
एक रहस्य जो जन्मों से दफन है।
एक प्रेम... जो सब कुछ भस्म कर सकता है।
“अग्नि और अंधकार की प्रेम कथा” एक ऐसी कहानी है, जहाँ शक्ति, बदला, और भाग्य के बीच पनपता है एक अनहोनी मोहब्बत।
Ch 1:
अधोलोक का आकाश, आकाश नहीं था। वह एक धुंध से भरा, स्याह परदा था जो निरंतर हिलता रहता था, मानो स्वयं यह भूमि पीड़ा में सांस ले रही हो। हर ओर से चीखें गूंजती थीं — वो चीखें जो पापियों की आत्माओं की थीं, जो अंधेरे की गहराइयों में अपनी सज़ा भुगत रहे थे। और उसी पीड़ा से भरे लोक के केंद्र में खड़ा था एक विशाल, काले पत्थरों से बना महल — शैतान राजा का दरबार।
आज इस महल के सिंहासन कक्ष में न्याय होना था।
जंजीरों की खनक और सिपाहियों के भारी कदमों की आवाज़ गूंज रही थी। हर कोना अजीब सी सर्द हवा से भरा हुआ था। नीली ज्वाला से जलते मशालों की रोशनी में, एक लड़की को दरबार के मध्य लाया गया था — घायल, लहूलुहान, परंतु उसकी आँखों में भय नहीं, केवल विरोध था।
शानाया।
बीस वर्ष की वह युवती, जो अपने पूर्वजों के अभिशाप का भार लिए अधोलोक की ज़मीन पर खड़ी थी। उसके पैरों में लोहे की ज़ंजीरें थीं, और हाथों में भी घाव। लेकिन उसकी आँखों में एक चिंगारी थी — वो चिंगारी जो किसी राजा के भय से नहीं बुझ सकती थी।
सिंहासन पर विराजमान था श्याम रॉय — अधोलोक का राजकुमार। उसकी आँखें बर्फ जैसी ठंडी, पर मन में एक ज्वाला जो किसी को भी भस्म कर सकती थी। उसकी उपस्थिति ही डराने के लिए पर्याप्त थी। काले वस्त्रों में, लंबा, गंभीर और क्रूर। उसकी नजर जैसे ही शानाया पर पड़ी, समय थम-सा गया।
दरबार की जनता सन्नाटे में थी। सब जानते थे, अधोलोक के इस न्यायालय में दया की कोई जगह नहीं होती। पर शानाया के लिए यह सिर्फ न्याय नहीं था — यह पुनर्जन्म की सज़ा थी।
“तुम जानती हो कि तुम्हारा अपराध क्या है?” श्याम रॉय की आवाज़ गूंजती हुई कमरे में फैली। उसकी आवाज़ में कोई भाव नहीं था, बस एक ठंडापन।
शानाया ने उसकी आँखों में देखा। “मैं जानती हूँ,” उसने शांत स्वर में कहा, “मैंने स्वर्ग और अधोलोक के कानूनों को तोड़ा है... लेकिन मैंने किसी निर्दोष को नहीं मारा। मैंने केवल खुद को बचाया।”
“और क्या तुम्हें पता है,” श्याम रॉय अपनी जगह से उठते हुए बोला, “कि अधोलोक में आत्मरक्षा कोई तर्क नहीं है? यहाँ शक्ति ही कानून है।”
शानाया मुस्कराई — एक ऐसी मुस्कान जो किसी युद्ध से पहले योद्धा के चेहरे पर होती है। “शक्ति... या पाप?”
दरबार में फुसफुसाहटें होने लगीं। किसी ने भी आज तक शैतान के राजकुमार से इस तरह बात करने की हिम्मत नहीं की थी। लेकिन शानाया कोई साधारण आत्मा नहीं थी।
शायद वह भी नहीं जानती थी कि उसकी आत्मा में अतीत की कितनी परतें दबी हुई थीं।
उसी क्षण, महल की दीवारें थोड़ी सी कांपीं। नीली ज्वाला एक पल को तेज़ हुई और फिर मंद। श्याम रॉय की आँखों में हल्की सी चमक उभरी — कुछ जाना-पहचाना सा।
“तुमने इससे पहले यहाँ कदम रखा है,” उसने धीरे से कहा। यह कथन कोई प्रश्न नहीं था, एक घोषणा थी।
शानाया की साँस थमी। “क्या...?”
“तुम...” श्याम रॉय उसकी ओर बढ़ा। “तुम वही हो... जो पिछले जन्म में मेरी रानी बनी थी। जिसे मैंने स्वयं मार दिया था।”
दरबार में सन्नाटा फैल गया।
शानाया की आँखें फैल गईं, पर फिर वह संभली। “मैं तुम्हें नहीं जानती।”
“पर तुम्हारा खून जानता है,” श्याम रॉय बोला। “तुम्हारी आत्मा जानती है।”
अब उसे सज़ा नहीं, निर्णय लेना था — कैद या विवाह। क्योंकि शानाया का आगमन सिर्फ एक अपराधी के रूप में नहीं हुआ था — वह एक भविष्यवाणी की कड़ी थी।
पुरानी भविष्यवाणी कहती थी: "जब अग्नि की पुत्री अंधकार के दरबार में खड़ी होगी, तब या तो अधोलोक बिखर जाएगा, या उसे प्रेम मिलेगा।"
“तुम्हारी सज़ा यह है,” श्याम रॉय ने कहा, “तुम अधोलोक में रहोगी। मेरी दासी नहीं... मेरी दुल्हन बनकर।”
शानाया स्तब्ध रह गई।
“यह विवाह नहीं, एक श्राप है,” वह बोली। “तुम मुझे बाँधना चाहते हो ताकि मुझे तोड़ सको।”
श्याम रॉय की आँखों में पहली बार एक हल्की सी नरमी उभरी। “शायद... या शायद मैं तुम्हें इसलिए बाँधना चाहता हूँ क्योंकि तुम ही एकमात्र हो जो मुझे भी तोड़ सकती हो।”
उस क्षण, महल की छत से एक कौआ उड़ता हुआ अंदर आया और उसके पंजों से एक लाल पत्थर गिरा। वह पत्थर ज़मीन पर गिरते ही चमक उठा। सबने देखा — वह 'रक्तमणि' थी, जो केवल तब प्रकट होती है जब शाही राज़ सामने आने वाला हो।
जैसे ही वह पत्थर चमका, एक छवि हवा में बनी — शानाया की माँ और श्याम रॉय के पिता — साथ में।
“यह... यह असंभव है,” एक रक्षक चीखा।
श्याम रॉय स्तब्ध था। “मेरे पिता और तुम्हारी माँ...?”
शानाया कांपने लगी। “नहीं... यह झूठ है।”
छवि गायब हो गई, लेकिन एक प्रश्न छोड़ गई — क्या शानाया और श्याम रॉय का बंधन सिर्फ प्रेम नहीं, बल्कि सत्ता और खून का खेल भी था?
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कमरे में अकेली बैठी शानाया अब सिर्फ विवाह के फैसले पर नहीं, अपने पूरे अस्तित्व पर सवाल उठा रही थी। वह अग्नि की देवी की पुत्री है, या एक शाही साज़िश की उपज?
शानाया ने खिड़की से झाँका, जहाँ अधोलोक की नदियाँ आग की तरह जलती थीं। नीचे प्राणी विलाप कर रहे थे — नरक की सज़ा काटते हुए।
“क्या मेरी नियति भी यही है?” उसने खुद से पूछा।
अचानक कमरे में एक तेज़ कंपन हुआ। दीवारें कांप उठीं और एक रहस्यमयी ऊर्जा का आभास हुआ। फर्श पर एक अजीब सी छाया उभरी — किसी ने जादू से संदेश भेजा था।
शानाया ने घुटनों के बल बैठकर उसे छुआ, और एक दृष्टि उभरी — उसकी माँ की, जो एक पुजारिन थी, जिसने उसे बचपन में श्राप से बचाने की कोशिश की थी।
“शानाया,” छाया में आवाज़ आई, “तू अग्नि की अंतिम चिंगारी है। उसे बुझने मत देना। ये विवाह तेरी हार नहीं, तेरे अस्तित्व की पुनरावृत्ति है। सत्य को पहचान।”
आवाज गायब हो गई, लेकिन शानाया अब काँप रही थी — न डर से, बल्कि सच जानने की चाह से।
अगली सुबह, उसे श्याम रॉय के सामने प्रस्तुत किया गया। आज वह सामान्य कैदी नहीं थी। वह अब दुल्हन थी — भले ही अनजानी, अज्ञात, पर नियति की धुरी पर खड़ी हुई।
श्याम रॉय ने उसे ऊपर से नीचे तक देखा। “क्या तुम तैयार हो उस पथ के लिए जो रुधिर और रहस्य से भरा है?”
“अगर वह पथ मुझे मेरी सच्चाई तक ले जाए,” शानाया बोली, “तो मैं अग्नि की तरह जलूँगी, पर झुकूँगी नहीं।”
श्याम रॉय के होंठों पर हल्की सी मुस्कान आई। “तो आज से हम युद्ध के दो पक्ष नहीं... एक ही कथा के दो अध्याय हैं।”
महल की दीवारों पर भविष्यवाणी की अग्नि फिर से जल उठी: "जब अग्नि और अंधकार एक हो जाएँगे, तब नई दुनिया जन्म लेगी... या सब कुछ भस्म हो जाएगा।"
अध्याय समाप्त।
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