पार्ट 9
रात के सन्नाटे में हवेली के पुराने हिस्से से फिर वही अजीब सी खटखटाहट आने लगी। बारिश रुक चुकी थी, लेकिन हवा में अब भी नमी और डर की गंध तैर रही थी।
रश्मि ने अपने कमरे की खिड़की से झाँका— आँगन के कोने में कोई परछाईं झुककर कुछ खोद रही थी। उसकी साँसें तेज़ हो गईं।
"ये कौन हो सकता है इतनी रात में?" उसने खुद से कहा।
दिल में डर और जिज्ञासा एक साथ उमड़ पड़ी। उसने टॉर्च उठाई और धीरे से कमरे का दरवाज़ा खोला। सीढ़ियों पर कदम रखते ही लकड़ी चरमराई। रश्मि ठिठक गई, कहीं आवाज़ सुनकर वो परछाईं भाग न जाए।
आँगन के पास पहुँचकर उसने टॉर्च की रोशनी डाली— लेकिन वहाँ कोई नहीं था।
बस मिट्टी पर ताज़ा खोदे हुए गड्ढे के निशान थे… और उसके बगल में एक पुरानी, खून से सनी चुन्नी।
रश्मि का गला सूख गया। ये वही चुन्नी थी, जो उसकी भाभी सविता ने शादी के समय पहनी थी… और जो तीन साल पहले उसकी लाश के साथ गायब हो गई थी।
"ये… यहाँ कैसे?" उसके हाथ काँप रहे थे।
अचानक पीछे से किसी ने फुसफुसाया— "सच मत जान रश्मि… वरना तू भी…"
रश्मि पलटी, लेकिन वहाँ सिर्फ हवा का झोंका था।
सुबह होते ही उसने ये बात विक्रम को बताई, लेकिन उसने हँसकर टाल दिया—
"तू बेवजह डर रही है, ये सब तेरे दिमाग का खेल है।"
पर रश्मि जानती थी, वो जो देख चुकी है, वो कोई सपना नहीं था।
शाम को गाँव में खबर फैल गई कि ठाकुर रणवीर की हवेली के पीछे वाले कुएँ में एक और लाश मिली है। पुलिस ने जगह को घेर लिया। रश्मि भीड़ में जाकर खड़ी हो गई।
जब लाश बाहर निकाली गई, तो सबके होश उड़ गए— वो मोहन था। वही मोहन, जो दो दिन पहले ही रश्मि से मिलने आया था और कह रहा था कि उसके पास सविता की मौत का सच है।
रश्मि का दिल डूब गया। मोहन के गले पर गहरे कट के निशान थे, जैसे किसी ने धारदार हथियार से वार किया हो।
पुलिस ने रश्मि से पूछताछ शुरू की, क्योंकि मोहन आखिरी बार उसी के पास आया था। उसने सब कुछ बता दिया— चुन्नी, गड्ढा, और वो रहस्यमयी आवाज़।
लेकिन जैसे ही वो घर लौटी, उसे अपने कमरे के दरवाज़े पर एक लिफाफा पड़ा मिला।
अंदर बस एक लाइन लिखी थी—
"अगर अपनी जान की परवाह है तो चुन्नी वापस उसी जगह रख दे, जहाँ से उठाई थी। सच जानने की कोशिश मत कर…"
रश्मि का दिमाग सुन्न हो गया। अब साफ था कि हवेली में कोई ऐसा है जो इन सब हत्याओं के पीछे है… और वो उसे देख भी रहा है, सुन भी रहा है।
रात में उसने चुन्नी को अलमारी में छुपा दिया और तय किया कि वो सच जाने बिना चैन से नहीं बैठेगी।
लेकिन उसी रात, उसकी अलमारी अपने-आप खुल गई… और चुन्नी गायब थी।
खिड़की से बाहर देखा तो वही परछाईं, हवेली के पुराने हिस्से की तरफ जा रही थी… हाथ में वही खून से सनी चुन्नी।
रश्मि ने टॉर्च और मोबाइल उठाया, और चुपचाप उसका पीछा करने लगी।
पुराने हिस्से में पहुँचकर उसने देखा— वहाँ फर्श के बीचोबीच एक बड़ा सा लोहे का संदूक था। परछाईं ने चुन्नी उसमें रखी, ताला लगाया और दीवार के पीछे से एक चाबी निकालकर छुपा दी।
रश्मि पास पहुँची ही थी कि पीछे से किसी ने उसके मुँह पर कपड़ा दबा दिया।
तेज़ बदबूदार महक से उसकी आँखें बंद होने लगीं… और बेहोश होने से पहले उसने आखिरी बार देखा—
वो चेहरा, जिसे वो सबसे ज़्यादा भरोसेमंद मानती थी… विक्रम।