खामोश चेहरों के पीछे – पार्ट 4 (लास्ट पार्ट) सच का सामना
रात का अंधेरा अब अपने चरम पर था। आसमान में बादल इतने घने थे कि चाँद की एक किरण भी जमीन तक नहीं पहुँच पा रही थी। हवा धीरे-धीरे तेज़ हो रही थी, और जैसे कहीं दूर से कोई सिसकियाँ सुनाई दे रही हों। राघव और प्रीति एक-दूसरे का हाथ मजबूती से थामे हुए थे। उनका दिल बेचैन था, लेकिन आँखों में एक नई उम्मीद भी थी।
“प्रीति,” राघव ने धीरे से कहा, “अब वक्त आ गया है कि हम अपने डर का सामना करें। जो सच छुपा है, उसे बाहर लाना होगा। अब हम पीछे नहीं हट सकते।”
प्रीति ने सिर हिलाया, उसकी आवाज़ में भी अब हिम्मत थी, “हाँ राघव, चाहे जो भी हो, हम साथ हैं। खामोश चेहरों के पीछे जो राज़ छुपा है, उसे उजागर करना ही हमारा मकसद है।”
आँखों के सामने सब कुछ फिर से ताजा हो आया — अंजलि की मासूमियत, उसकी अचानक मौत, और वो रहस्यमयी नकाबपोश। हर चीज़ अब उनकी हकीकत के बेहद करीब थी।
तभी, आँगन के बाहर हल्की सी हलचल हुई। दोनों ने एक साथ मुड़कर देखा, तो सामने खड़ा था वही नकाबपोश, जिसकी परछाई उनकी ज़िंदगियों पर काली छाया की तरह पड़ी थी। लेकिन इस बार उसकी चाल में कुछ बदला हुआ था — जैसे वह लड़ना छोड़ चुका हो।
“मैं तुम्हें सच बताने आया हूँ,” नकाबपोश ने धीमी लेकिन ठोस आवाज़ में कहा। “मैं वो हूँ जिसने अंजलि को मारा, पर मेरा दिल भी अब इस ग़लत रास्ते से थक चुका है। सच जानो, ताकि तुम आज़ाद हो सको।”
राघव और प्रीति ने हिम्मत जुटाई और उसके सामने खड़े हो गए। नकाबपोश ने धीरे-धीरे अपना नकाब हटाया, और सामने आया एक थका हुआ इंसान — उसकी आँखों में पछतावा और शर्म थी।
उसने बताया कि कैसे उसकी नफ़रत और जालसाज़ी ने उसे एक खतरनाक राह पर ले आया। कैसे उसने अंजलि की जान लेने के बाद खुद को खो दिया। उसने कबूल किया कि सच को छुपाने की कोशिश में उसने और भी कई जाल बिछाए थे।
“लेकिन अब मैं चाहता हूँ कि ये चक्र टूटे। मैं तुम्हें सच बताऊंगा, ताकि तुम उस दर्द को समझ सको, जो मैंने पैदा किया। सच से ही मुक्ति मिलेगी,” उसने कहा।
राघव और प्रीति ने साथ मिलकर उस सच को अपनाया। उन्होंने न केवल अंजलि की मौत का राज़ खोला, बल्कि अपने अंदर के डर, ग़म और खामोशी को भी स्वीकार किया।
आखिरकार, उस रात उन्होंने जाना कि खामोश चेहरों के पीछे छुपी पीड़ा और दर्द भी इंसानियत की सबसे बड़ी सच्चाई है। और जब हम इस सच्चाई को समझ लेते हैं, तभी दिलों में रोशनी फैलती है।
आसमान में बादल छट गए, चाँद फिर से पूरे उजाले के साथ चमक रहा था। राघव और प्रीति ने एक-दूसरे को देखा और मुस्कुराए — उनकी ज़िंदगियाँ अब नई उम्मीदों के साथ शुरू हो रही थीं।
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खामोश चेहरों के पीछे – शायरी
खामोश चेहरों के पीछे छुपा था जो दर्द,
कहीं दबी थी आवाज़, कहीं टूटा था ये सन्देश।
रात के सन्नाटे में छुपी हुई थी हज़ारों बातें,
आँखों की खामोशी ने बयां किए अनकहे राज़।
छुपा हुआ था दिल में वो तन्हा सफ़र कहीं,
जहाँ आशाएं थीं अधूरी, और सपने थे वीरान।
हर चेहरा कहता था कुछ ऐसा, जो सुन न सके कोई,
खामोशियों के बीच भी थी ज़िंदगी की गूँज कहीं।
अब ये राज़ खुल चुका है, अब ये दर्द छुपे नहीं,
रोशनी की किरणें हैं साथ, अब अंधेरा घिर न सके।
सच की राह में चलना है अब, बिना डर, बिना छुपाव के,
खामोश चेहरों के पीछे है अब, एक नया ज़माना जागे।
चलो साथ मिलकर बाँटें ये दर्द, ये आस भी,
जहाँ हर खामोशी बोलेगी, और हर दिल में होगा विश्वास भी।
खामोश चेहरों के पीछे छुपा है जो सच, उसे अपनाएं,
और एक नई शुरुआत करें, जहाँ हर आवाज़ को सुनाएं।
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लेखक - कपिल