❤️ I Am Alone ❤️
बारिश की हल्की-हल्की बूंदें खिड़की पर टप-टप गिर रही थीं।
मेरे कमरे की दीवारें नमी से भरी थीं, और हवा में एक अजीब-सी ठंडक थी।
कॉफ़ी का मग हाथ में लिए मैं बस बाहर देख रहा था।
मौसम कितना सुंदर था… पर मेरे अंदर एक सूना-सा रेगिस्तान पसरा हुआ था।
मेरा नाम आदित्य है। उम्र 25 साल।
कुछ साल पहले तक मेरी जिंदगी हँसी, दोस्तों और सपनों से भरी थी। कॉलेज में मेरी एक गैंग थी — 5 दोस्त, जिनके बिना मैं अधूरा था।
क्लास बंक करना, रात में कैंटीन में मैगी खाना, और बिना वजह हँसना — यही जिंदगी थी।
लेकिन कॉलेज खत्म होते ही सबके रास्ते अलग हो गए।
कोई शादीशुदा हो गया, कोई विदेश चला गया, कोई अपने बिज़नेस में बिज़ी हो गया।
शुरुआत में सबने कॉल्स, मैसेज, और वीडियो चैट्स से टच में रहना चाहा… लेकिन धीरे-धीरे सबका वक्त और priorities बदल गईं।
और मैं?
मैं उसी शहर में रह गया, उसी गलियों में, लेकिन लोगों के बिना जिनसे मेरी यादें जुड़ी थीं।
दिन ऑफिस में निकल जाता, रातें मोबाइल स्क्रीन के सामने — सोशल मीडिया पर दोस्तों की हँसती-खिलखिलाती तस्वीरें देखते हुए।
उनकी खुशी देखकर अच्छा भी लगता और दिल के अंदर एक खालीपन और गहरा हो जाता।
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वो संडे
एक रविवार की सुबह, मैं बिना किसी प्लान के शहर के पुराने कैफ़े चला गया।
ये वही जगह थी जहाँ कभी हम सब मिलते थे। अब वहाँ सिर्फ़ मैं और मेरी कॉफ़ी थी।
मैं खिड़की के पास बैठा बारिश देख रहा था कि तभी एक मुलायम-सी आवाज़ आई —
"Excuse me, क्या मैं यहाँ बैठ सकती हूँ?"
मैंने नज़र उठाई।
एक लड़की खड़ी थी — सिंपल जीन्स, हल्के नीले रंग की शर्ट, बाल खुले और आँखों में एक अजीब-सी गहराई।
मैंने हल्के से मुस्कुराकर हाँ कहा।
"मेरा नाम काव्या है," उसने बैठते हुए कहा।
"मैं यहाँ नई हूँ। अकेले कॉफ़ी पीने में मज़ा नहीं आता, तो सोचा किसी के साथ बैठ लूँ।"
उसकी बातें सीधी-सादी थीं, लेकिन उनमें एक अपनापन था।
हमारी बातें शुरू हुईं — उसने बताया कि वो यहाँ एक पब्लिशिंग हाउस में जॉब करती है, और उसका कोई जान-पहचान वाला नहीं है इस शहर में।
मैंने भी अपनी कहानी बताई।
उस दिन हमारी बातें बस 20-25 मिनट चलीं, लेकिन जाने क्यों, उस छोटी-सी मुलाकात ने मेरे मन में हल्की-सी रोशनी भर दी।
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मुलाकातें बढ़ने लगीं
अगले हफ़्ते, फिर मैं कैफ़े गया — और काव्या वहाँ थी।
हमने एक-दूसरे को देखा, और बिना कहे ही मुस्कुराकर साथ बैठ गए।
अब ये एक रूटीन बन गया। कभी कैफ़े में, कभी पार्क में, और कभी बस सड़क पर चलते-चलते बातें करना।
वो अपने बचपन की कहानियाँ सुनाती, और मैं अपने कॉलेज के दिनों की।
हम एक-दूसरे के अकेलेपन को भरने लगे थे, शायद बिना समझे।
मैंने पहली बार महसूस किया कि ज़िंदगी में नए लोग भी पुराने घावों को थोड़ा-सा भर सकते हैं।
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सच का पल
लेकिन जिंदगी हमेशा हमें उतना वक्त नहीं देती, जितना हम चाहते हैं।
एक दिन, जब हम बारिश में सड़क किनारे चाय पी रहे थे, काव्या चुप थी।
मैंने पूछा, "क्या हुआ?"
उसने गहरी साँस ली और बोली —
"आदित्य… मुझे वापस अपने शहर जाना होगा। मम्मी की तबियत बहुत खराब है। शायद हमें फिर मिलने का मौका न मिले।"
उस पल ऐसा लगा जैसे कोई मेरी दुनिया से रोशनी खींच रहा हो।
मैं कुछ कहना चाहता था… लेकिन शब्द गले में अटक गए।
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आखिरी मुलाकात
हमने अगले दिन फिर मिलने का वादा किया।
मैं समय से पहले कैफ़े पहुँच गया।
वो आई, मुस्कुराई, लेकिन उसकी आँखों में नमी थी।
"तुमसे मिलना अच्छा लगा, आदित्य," उसने कहा।
"तुमने मुझे सिखाया कि इस शहर में भी लोग सच्चे हो सकते हैं।"
मैं बस इतना कह पाया —
"तुमने मुझे सिखाया कि अकेलापन भी खूबसूरत हो सकता है… अगर सही इंसान साथ हो।"
उसने हल्के से मेरा हाथ पकड़ा, और फिर चली गई।
मैंने उसे जाते हुए देखा… जब तक वो भीड़ में गायब नहीं हो गई।
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आज
वो मुलाकात को कई महीने हो चुके हैं।
मैं अब भी अकेला हूँ — हाँ, I am alone — लेकिन अब ये अकेलापन पहले जैसा नहीं है।
काव्या ने मुझे सिखाया कि जिंदगी में लोग आते-जाते रहेंगे, लेकिन हमें अपने दिल को ज़िंदा रखना है।
आज भी बारिश होती है, और मैं खिड़की के पास बैठा कॉफ़ी पीता हूँ।
कभी-कभी मन ही मन मुस्कुराकर कहता हूँ —
"I am alone… but I am not lonely."
क्योंकि अब मुझे पता है —
अकेलापन कोई सज़ा नहीं, ये अपने आप को समझने और मजबूत बनने का मौका है।