battle of life in Hindi Motivational Stories by Arun books and stories PDF | जीवन का रण

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जीवन का रण

" जीवन का रण " — अरुण

सुबह उठो, और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में अनगिनत दुश्मनों से लड़ो ।
ये कोई साधारण दिन नहीं — ये एक युद्ध है ।

सोचो…
तुम उस युद्ध में हो जहाँ तुम्हारी सेना छोटी है,
दुश्मन ताक़तवर , निर्दयी और निर्दय है ।
हारने पर सिर्फ़ तुम्हारा राज्य ही नहीं —
तुम्हारी उम्मीद , तुम्हारी आने वाली पीढ़ियाँ , और तुम्हारी प्रतिष्ठा भी दाँव पर है ।

युद्ध तुम हार रहे हो ।
चारों ओर तुम्हारे साथी सैनिक कट रहे हैं ।
गला प्यास से सूखा है , और तुम अपना ही खून पीकर प्यास बुझा रहे हो ।

अचानक , तुम्हारी आँखों के सामने —
तुम्हारे सेनापति की आंत निकालकर ,
उसे तुम्हारे राज्य के ध्वज के भाले पर टांग दिया जाता है ।
तुम चाहने लगते हो कि कोई तीर हवा से आए
और तुम्हारी छाती चीर दे ।
क्यों कि वो दृश्य से तुम अंदर तक डर गए हो ,
तुम खुद घुटनों बल होकर ये सब रोकना चाहते हो ।

लेकिन सामने वाले दुष्ट राजा की हँसी , तुम्हारे ध्वज को तुम्हारे सेनापति की आंत की जगह पेट में घुसा देना ।

लेकिन फिर तुम सोचते हो —
जब मरना ही है , तो क्यों न तलवार हवा में लहराई जाए !
क्यों न अपने शरीर को दुश्मन के भाले और तलवार से छलनी कर दिया जाए ,
ताकि दुश्मन के दिल में डर पैदा हो कि " ये अब भी जीत सकते हैं ! "

तुम चिल्लाते हो —
" आओ ! हम दिखाते हैं कि आंत शरीर से कैसे निकाली जाती है !
हाथ में जो मिले , उठा लो !
गर्दन कटे तो कटवा लो ,
पर उनकी आँखों में अपनी खोम का डर भर दो ! "

इतिहास में ऐसी दास्तान लिखो
कि आने वाली पीढ़ियाँ पढ़कर काँप जाएँ —
" हाँ , ऐसे योद्धा भी होते थे । "

ये युद्ध तुम जीतोगे ।
क्योंकि तुम हर दिन ऐसा युद्ध जीतते हो ।
तुम अपने घर के , अपने क्षेत्र के , अपने जीवन के महान योद्धा हो ।

मुसीबत ?
ये तो कुछ भी नहीं है ।
बस सोच बदलने की ज़रूरत है ।
अगर मरना है तो जीवन - रूपी तलवार छोड़कर
आ रहे हज़ारों तीरों का खुले हाथ स्वागत करो ।
कोई न कोई तीर मौत के गले लगा ही लेगा ।

और अगर जीना है  —
तो तलवार कसकर पकड़ो ,
ढाल को बाँध लो ,
और टूट पड़ो अपनी मुसीबतों पर ।

ताकि आने वाली पीढ़ियाँ कहें —
" कोई था जिसने उस दलदल से बाहर निकाला । "

हम सब राजा हैं ।
हमें हारना नहीं है ।
हम रण जीतने आए हैं —
अंतिम सांस तक , अंतिम खून की बूंद तक ,
अंतिम दुश्मन की चीख तक ।

और मैं भगवान से यही कहूँगा —
" मैं तलवार नहीं छोड़ूँगा ।
मुझे यश नहीं चाहिए , अभिमन्यु की भांति ,
मुझे प्रशंसा भी नहीं चाहिए , कर्ण की भांति ।
मुझे बस विजय चाहिए ।
चाहे राह दिखाओ जैसे अर्जुन की भांति ,
या तीरों से छलनी करो जैसे भीष्म पितामह की भांति  —
अंत में जीत मेरी ही होगी । "

इतिहास बदला जा सकता , 
मेरी छवि को खराब बताया जा सकता ,

जिस प्रकार मेरी तलवार ने युद्ध को बदल दिया , शायद कोई और भी है जो कलम को तलवार बना चुका है ।
मैने एक वक्त में सब काट दिया , वो हजारों साल काटे गा मुझे मेरे इतिहास से ।




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