एक लड़का in Hindi Magazine by Rinku books and stories PDF | एक लड़का

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एक लड़का

भाग-1

बारिश की बूँदें खिड़की के शीशे पर धीमे-धीमे बज रही थीं। कमरे में बस एक पुराना बल्ब जल रहा था, जिसकी पीली रोशनी दीवारों पर थकान की परछाइयाँ खींच रही थी। उसी रोशनी के नीचे एक लड़का बैठा था — नाम उसका अरमान।

उसके सामने एक पुरानी डायरी खुली थी। पन्नों पर स्याही के दाग थे, जैसे किसी ने बीच में ही लिखना छोड़ दिया हो। अरमान ने पन्ने पर उँगलियाँ फेरते हुए कहा,
"लोग सोचते हैं, मेरी ज़िंदगी कहानी जैसी है… लेकिन असल में, ये कहानियाँ अभी पूरी ही नहीं हुईं।"

पहला किस्सा — बचपन का।
एक छोटा कस्बा, जहाँ हर सुबह स्कूल की घंटी और नीम के पत्तों की सरसराहट मिलकर दिन की शुरुआत करते थे। तब वह सोचता था, बड़ा होकर शहर जाएगा, अपने सपनों की ऊँचाई छू लेगा। पर किस्मत ने उसे शहर बुलाया, लेकिन सपनों के लिए नहीं… जिम्मेदारियों से भागने के लिए।

दूसरा किस्सा — मोहब्बत का।
कॉलेज की लाइब्रेरी में, किताब के पीछे से झाँकता एक चेहरा — अनाया। उसकी मुस्कान ने अरमान के भीतर रोशनी भर दी थी। लेकिन, बिना किसी शोर के, जैसे पतझड़ में पत्ते गिर जाते हैं, वैसे ही यह रिश्ता भी टूट गया। वजह? न उसने पूछी, न उसने बताई।

तीसरा किस्सा — दोस्ती का।
एक ऐसा दोस्त जो भाई जैसा था। साथ में हँसी, साथ में संघर्ष… लेकिन पैसों और शक ने उनके बीच दीवार खड़ी कर दी। आज तक अरमान को समझ नहीं आया, गलती किसकी थी — उसकी या हालात की।

अरमान ने एक लंबी सांस ली, पन्ना पलटा और लिखा —
"बाकी किस्से अभी बाकी हैं… शायद किसी दिन कोई इन्हें पढ़कर समझ पाए कि मैं कौन था, और क्यों कभी पूरी तरह खुश नहीं हो पाया।"

बाहर बारिश तेज़ हो गई थी। भीतर, एक लड़का अपनी अधूरी कहानियों के साथ फिर से चुप हो गया।


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भाग - 2

बरसात थम चुकी थी। कमरे में अब भी वही पीली रोशनी थी, लेकिन खिड़की से आती ठंडी हवा में कुछ अलग था — जैसे मौसम कोई संदेश लाया हो।

अरमान अपनी डायरी बंद करने ही वाला था कि दरवाज़े पर दस्तक हुई।
दरवाज़ा खोला, तो सामने एक लड़की खड़ी थी — भीगी हुई, हाथ में पुराना बैग, आँखों में बेचैनी।

"तुम… अरमान हो?" उसने पूछा।

अरमान ने सिर हिलाया।
"ये तुम्हारी डायरी… लाइब्रेरी में मिली थी।"

अरमान ने डायरी ली, हैरानी से पन्ने पलटे। ये वही डायरी थी जो सालों पहले उसने खो दी थी, जिसमें उसके बचपन, उसकी मोहब्बत और दोस्ती के सारे पन्ने लिखे थे।
"तुम्हें ये कैसे मिली?"

लड़की ने मुस्कुराते हुए कहा,
"मैं अनाया की छोटी बहन हूँ। उसने ये मुझे दी थी… जाने से पहले। उसने कहा था, अगर कभी तुम्हें मिलूँ, तो बता दूँ — उसकी चुप्पी की वजह तुम नहीं थे, हालात थे।"

अरमान के सीने में वर्षों से जमा बोझ जैसे हल्का हो गया।

उस शाम, लड़की के साथ बातें करते-करते अरमान ने जाना कि उसका बचपन वाला कस्बा अब बदला नहीं, बल्कि बेहतर हो गया है। उसका बचपन का दोस्त भी अब वहीं है, और वो उसे ढूँढ रहा है।

अगले ही हफ़्ते, अरमान कस्बे लौटा। नीम के पेड़ों के नीचे खड़ा होकर उसने महसूस किया — अधूरे किस्से भी पूरे हो सकते हैं, बस उन्हें समय देना पड़ता है।

डायरी के आख़िरी पन्ने पर उसने लिखा —
"अब मैं खुश हूँ… और मेरी कहानी पूरी हो चुकी है।"