Web series:_सारे जहां से अच्छा
एक हार्ड कोर थ्रिलर
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रिसर्च एंड एनालिसिस विंग,रॉ की स्थापना और उसके कार्यों की रोमांचक झलक प्रस्तुत करती,यह नई वेब सीरीज । बताती है कि जितनी जंग और लड़ाई मोर्चे पर लड़ी जाती है ,उससे कहीं अधिक गुप्तचर और सीबीआई,रॉ आदि एजेंसियों के लोग करते हैं। फेक यह है कि सेना के जवान आदि शहीद होते हैं तो दुनिया उन्हें जानती और सलाम करती है। लेकिन यह देशभक्त जासूस और अधिकारी गुमनाम मौत मारे जाते हैं।ऊपर से उनसे सरकार और उन्हें यह काम देने वाले अधिकारी भी हाथ झाड़ लेते हैं," हम इन्हें नहीं जानते।" यह कूटनीति है। ऐसे गुमनाम हीरो,जिन्होंने देश के लिए जान कुर्बान कर दी को यह वेब सीरीज बताती हैं। ताशकंद फाइल्स हो या हिम्मत सिंह जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की जिंदगी और कार्यों को दिखाती नीरज पांडे की स्पेशल ओपस हो, यह सभी इन्हीं जांबाज लोगों की बात करती हैं।
दरअसल जासूसी की दुनिया हमेशा से रोमांचक और पर्दे के पीछे रही है। उस पर अधिक काम नहीं हुआ। तो अब ओटीटी के जमाने में नए विषयों की तलाश में हमारे उत्साही और कुछ नया करने वाले निर्देशक,निर्माता इस तरफ जा रहे हैं। मुझे यह आशंका (और डर) बराबर रहता है कि उत्साह में आकर यह हमारे देश की गुप्तचरों और टॉप जासूसी माइंड का तरीका कहीं देश के दुश्मनों तक नहीं पहुंच जाए? क्योंकि कोई किताब या कहानी तो है नहीं कि समय के साथ बदलदी या नया सीख लिया? जासूसी की दुनिया में भी वही गिनती के अधिकतम सात आठ पैंतरे हैं जिन्हें सब आजमाते हैं। अमेरिका,इंग्लैंड जो कई गुना हमसे एडवांस तकनीक में है,वहां ऐसी वेब सीरीज, फिल्में बनी हैं पर तब जब यह तौर तरीके छोड़कर नई राह मुड़ गए। हम उन्हें कॉपी करें पर अपनी सुरक्षा एजेंसियों के तरीके इतने खुलकर और क्लियर न बताएं। दक्षिण एशियाई देशों और खासकर भारत की जासूसी और तौर तरीके नए भी हैं तो पुराने भी बदस्तूर जारी हैं।
उम्मीद है जल्द इन पर ध्यान दिया जाएगा और लगाम लगेगी।क्योंकि यह कुछ अधिक ही वास्तविकता के नजदीक हैं।
कहानी और अभिनय
------------------------------ प्रतीक गांधी,एक युवा जासूस जो रॉ की स्थापना से जुड़ा है, उसके माध्यम से यह रोमांचक कहानी साठ के दशक से प्रारंभ होती है। वहीं हम इस बात से रूबरू होते हैं कि होमी जहांगीर भाभा, एटोमिक वैज्ञानिक,जो भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक थे, परमाणु सम्पन्न देश हमें बनाने ही वाले थे पर तभी सीआईए ने
प्लेनक्रेश में उन्हें खत्म करवा दिया। भारत परमाणु कार्यक्रम में कम से कम पंद्रह वर्ष पीछे चला गया। पाकिस्तान ने इस बात को सीखा और अपना परमाणु बम बनाने का कार्यक्रम तेज किया।प्रधानमंत्री जुल्फिकार भुट्टो, आईएसआई चीफ मुर्तजा ने इसे अंजाम तक पहुंचाया। उधर प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने रामनाथ काव, के सुपरविजन में रॉ की स्थापना की। जिसका कार्य देश के बाहर देश के लिए काम,इंटेल करना था। रॉ के एजेंट दुश्मन देशों में नई पहचान से रहते और भारत के लिए काम करते। पाकिस्तान में कई एजेंट वहीं के नागरिक बनके रहते। तब कोई आधार कार्ड या वोटर आईडी नहीं था,वरना और आसान होता।नकली बनाकर जैसे आज साठ साल बाद हजारों बांग्लादेशी,देश भर में,चीनी, पूर्वोत्तर में रह रहे हैं। सभी के पास भारत की नागरिकता के हर प्रमुख दस्तावेज हैं। यह दिलचस्प है कि भारतीयों में यह क्यों होता है कि हम चंद पैसों के लिए अपने देश के साथ खिलवाड़ करते हैं? रोज और हर गली मुहल्ले में फैले e मित्र साइबर कैफे के माध्यम से सारे दस्तावेज ,नकली कोई भी दसवीं फेल बना देता है। साथ में पार्टी विशेष का वोटर आईडी भी। वह घुसपैठिए उसी पार्टी को वोट भी देते और उसके लिए कार्यकर्ता भी बनते हैं। अभी इन्हीं को पहचान कर बाहर भेजने की बात चल रही तो अनगिनत विपक्षी पार्टी शोर मचा रहीं। हमारे वोट बैंक काटे जा रहे।यह भी स्कैम है कि कैसे आप सिर्फ नाम देखकर कह सकते हो कि यह आप ही को वोट देता है? क्योंकि आप जानते हो कि इन्हें ऐसे ही लाखों की संख्या में आपने कई दशकों से बसाया है। बहुत ही शर्मनाक ही नहीं बल्कि यह राष्ट्रद्रोह भी है।
तो कहानी आगे बढ़ती है और पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम को जानना और रोकने का मिशन लेकर नायक विष्णु शंकर (प्रतीक गांधी) इस्लामाबाद पहुंचता है। रॉ चीफ रजत कपूर किस तरह से इंटेल और विभिन्न जासूसों में कोऑर्डिनेट करते हैं,यह देखने योग्य है।
आगे वहां मुर्तजा,आईएसआई चीफ के रूप में बेहद तेज तर्रार और अपने कामों से देश का ट्रबल शूटर है।वह हर वक्त हर जगह इतना निर्देशक गौरव शुक्ला ने दिखाया है लगता है सीरीज का नायक वही है।
सनी हिंदुजा लगातार अच्छा काम कर रहे हैं।वह रेलवेमैन, TVF की एस्प्रेंटस में भी प्रभाव छोड़ते हैं। यहां भी मुर्तजा के रूप में अपने अलग गेटअप और सधे हुए अभिनय से वह सभी पर भारी पड़े हैं। छ एपिसोड की यह सीरीज आगे कई रोमांचक मोड़ से गुजरती हैं। हमें पता लगता है कि कराची का स्टॉक ब्रोकर,फल विक्रेता हो या पाक फौज का आला अफसर वह भी भारत की रॉ एजेंसी के जासूस या सहयोगी होते हैं। कुछ तो वहां शादी करके बाकायदा गृहस्थ जीवन भी बिताते हैं। और जब इंटेल,जासूसी का भेद खुलता है तो मारे जाते हैं या अपनी पत्नी,बच्चे को छोड़ अपने देश लौट आते हैं। यह है एशियाई देशों का जासूसी का सेट पैटर्न। इसे अमेरिका,फ्रांस,रूस,इंग्लैंड,जर्मनी कम से कम सत्तर साल पहले करके छोड़ चुके। लेकिन हम उसी पर कायम है। शायद वजह यह भी है कि अपार जनसंख्या में गरीब,लाचार,मजलूम हाल खप जाता है,उनके जैसा ही बन जाता है। और आदमी श्री मुख न खोले तो बांग्लादेशी, पाकी,भारतीय,श्रीलंका, नेपाल,म्यांमार,सूरीनाम,जावा,सुमात्रा सभी एक से लगते हैं। बाकी तो सारा काम आपकी बुद्धि और आपको निर्देश देकर भेज रहे आका की ट्रेनिंग पर निर्भर है।
कई अच्छे संवाद और चिल थ्रिलिंग मूमेंट इस वेब सीरीज को देखे जाने योग्य बनाते हैं।
यह सीरीज इत्मीनान और दिलचस्प मोड़ो के साथ गुप्तचरों और सीक्रेट एजेंसी में काम करने वालों की पारिवारिक मुश्किलों और हालातों पर भी निगाह डालती है।वह अपनी पत्नी तक को नहीं बता सकते कि वह देश के लिए कितना महत्वपूर्ण कार्य कर रहे।
इसके अलावा अंडरकवर एजेंट जो पाकिस्तान या किसी अन्य मुल्क में परिवार बनाके रह रहे,तो उनकी वहां फौजी अफसरों से दोस्ती भी होती है।एक दृश्य है जहां फौजी अफसर के बहन उसे प्यार करती है। अफसर पहले गुस्सा करता है फिर मान जाता है। लेकिन कुछ दिनों बाद उसे शक होता है कि यह शेयर ब्रोकर बंदा कुछ और है। वह आईएसआई को इत्तिला दे रहा होता है,और जासूस आखिरी क्षण तक उसे समझा रहा होता है कि," भाईजान, आपका वहम है। ऐसी कोई बात नहीं। " लेकिन वह फोन लगा रहा होता है तो उसी दोस्त और पाकिस्तानी फौजी को जासूस को मारना पड़ता है।
ऐसे कई दिल को छूने वाले लम्हे इस सीरीज में हैं।
आखिर में पाकिस्तान लीबिया आदि देशों से फंडिंग लेकर न्यूक्लियर प्लांट का सारा जरूरी सामान,बॉम्ब असेंबल करने का अलग अलग हिस्सों में शिप से मंगवाता है। वर्ष है उन्नीस सौ बहत्तर,तब हमारे पास न्यूक्लियर हथियार नहीं थे।यदि पाकिस्तान पर हो जाते तो वह हमारी कमर तोड़ देता।क्योंकि बांग्लादेश बनने से वह नाराज था।
खैर उस शिप को खत्म करने का फैसला होता है ग्राउंड लेवल के भारतीय जासूसों की छोटी पांच लोगों की टोली द्वारा।
वह किस तरह आईएसआई और मुर्तजा की चौकन्नी निगाह के बाद भी अपनी जान पर खेलकर उस कार्गो शिप को पाकिस्तान के एक गुप्त बंदरगाह पर बारूद से उड़ा देते हैं,यह घटना पूरे रोमांच से दिखाई गई है। आखिर में वह पांच गुमनाम योद्धा देश के लिए शहीद हो जाते हैं।
अभिनय और निर्देशन
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ऐसे अनजाने और देश के लिए पूरी ईमानदारी से काम करने वाले योद्धाओं को सामने लाती है यह छ भाग की वेबसरीज।इसे नेटफ्लिक्स पर देखा जा सकता है। एक रोमांचक बात बताता हूं। यदि आप उन्नीस बहत्तर के आसपास के अखबार या गुगल पर घटनाएं देखेंगे तो यकीनन आप एक शिप के विस्फोट या नष्ट होने की न्यूज जरूर पाएंगे। यह बताता है कि एक सच्ची घटना पर आधारित वेब सीरीज है सारे जहां से अच्छा। नए निर्देशक और लेखक शोध करके और तथ्यों के साथ कम से कम छह महीने एक कहानी पर काम करते हैं ।फिर वह कहानी इन बोर्ड आती है और उसके बाद उसकी लोकेशन और पात्र तय किए जाते हैं।फिर वह शूटिंग पर आती है। इस सारे प्रॉसेस में कम से कम तीन साल लगते हैं। यानि जो फिल्म या वेब सीरीज हम वर्ष दो हजार सत्ताईस में देखेंगे,उसको कहानी पर काम अभी प्रारंभ हो जाता है।
नायक प्रतीक गांधी हैं , जो स्कैम सीरीज हर्षद मेहता पर बेस्ड ,से लंबे स्ट्रगल के बाद अपनी मंजिल पाए हैं। बहुत संतुलित और अच्छा अभिनय कर गए हैं,विष्णु शंकर के रोल में।उनकी पत्नी के रोल में तिलोत्तमा शोम हम,जो अपने अभिनय की एक खास स्टाइल के लिए जानी जाती हैं। पर यहां उनका कोई खास रोल नहीं था। पर वह पाताल लोक और नाइट मैनेजर जैसी थ्रिलर सीरीज में काम कर चुकी हैं तो शायद इसलिए उन्हें लिया। समांतर दूसरा रोल है गुरुशरण उर्फ रफीक का जिसे बहुत अच्छे से निभाया है सुहेल नायर ने।जिस तरह फौजी अफसर के मध्य में रहते हुए एक डर की अनुभूति के बाद भी बेखौफ दिखने का मुश्किल किरदार निभाया है,वह प्रशंसनीय है। वह दृश्य नहीं भूलता जब मुर्तजा,चीफ से आमना सामना होता है। वह मारे गए फौजी ,जिसे आत्महत्या की शक्ल दी है,के जनाजे के लिए अनुरोध करता है। कई दिल को छूने वाले लम्हे इसने दिए हैं।
लेकिन शो स्टोलन निकले मुर्तजा,आईएसआई चीफ के किरदार में सनी हिंदुजा। लंबे बाल और मोटे चश्मे के कारण पहचान में देर से आते हैं।पर अपने सधे अभिनय और चेहरे के भावों से इनसे अच्छा काम निर्देशक शुक्ला निकालने में सफल रहे। यह एक लंबी दूरी का अभिनेता है। क्योंकि रेलवे मेन का पत्रकार हो,या एस्प्रेंटस का संदीप भैया,एक संघर्षशील युवा फिर बना पीसीएस अधिकारी सभी में यह अपनी छाप छोड़ने में सफल रहे।
संवाद बहुत जरूरी और कम शब्दों के पर बेहतरीन है।
अंत में दिखाया जाता है भारतीय वैज्ञानिक अपनी मेहनत और प्रतिभा से उन्नीस सौ चोहत्तर में भारत को न्यूक्लियर देश बना देते हैं। पाकिस्तान उन्नीस सौ बानवे में ,हमारे करीब अठारह वर्ष बाद यह काम कर पाया यदि उस वक्त रॉ और उसके बहादुर एजेंट ने अपनी जान की बाजी नहीं लगाई होती तो पाकिस्तान हमसे आगे होता। ऐसे जांबाज और गुमनाम योद्धाओं पर यह वेब सीरीज बनाकर उन्हें ट्रिब्यूट भी दिया है गौरव शुक्ला ने।
अंत में विष्णु शंकर नए मिशन पर चीन की सीमा पर जा रहा।आवाज आती है, " हमारे लिए एक मिशन का खत्म होना दूसरे मिशन की शुरुआत है।
Because for spy war never ends.
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(Dr Sandeep Awasthi, film writer and critique
M 7737407061,8279272900)