Trikaal - 9 in Hindi Adventure Stories by WordsbyJATIN books and stories PDF | त्रिकाल - रहस्य की अंतिम शिला - 9

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त्रिकाल - रहस्य की अंतिम शिला - 9

गुफा की दीवारों पर जलती मशालें टिमटिमा रही थीं। हवा में घुटन-सी घुली थी, जैसे पत्थरों के भीतर दबी सदियों पुरानी कोई अनकही चीख अब भी जीवित हो। आर्यन आगे बढ़ा, उसके हाथ में वही धातु की जली हुई चाबी थी, जो “अग्नि द्वार” के पार मिली थी।


ईशा की सांसें तेज़ थीं।

“आर्यन… मुझे लग रहा है कोई हमें देख रहा है…”


डॉ. ईशान वर्मा ने उसे टोका, “यह बस तुम्हारा भ्रम है, अंधेरे में दिमाग़ धोखा देता है।”

लेकिन उसकी अपनी आँखें भी बेचैन थीं, जैसे कहीं भीतर उसे भी यक़ीन था कि कोई छुपा है।


अचानक, दूर से मंत्रोच्चार की ध्वनि सुनाई दी। गहरी, खुरदरी आवाज़… मानो किसी प्राचीन साधु की गूंज, जो दीवारों से टकराकर लौट रही हो।


आर्यन ठिठक गया।

“ये आवाज़… मैंने पहले भी सुनी थी… मंदिर में, जब पहली बार पुजारी ने मुझे चेतावनी दी थी।”


सबके कदम धीमे हो गए। मशाल की लौ एक पल के लिए लंबी हो उठी और बुझने को हुई, तभी सामने से एक परछाई उभरी।


वह वही गाँव का साधु था, जिसने शुरुआत में आर्यन को चेतावनी दी थी। उसका चेहरा अब और थका हुआ, आँखें गहरी धँसी हुईं, लेकिन आवाज़ पहले से भी अधिक भारी।


साधु ने धीमे स्वर में कहा –

“तुम लोग सीमा लांघ चुके हो। जो मार्ग अब खुला है, वह केवल अग्नि का नहीं, मृत्यु का भी है। जिस सत्य को खोज रहे हो, उसकी कीमत तुम्हारी आत्मा तक होगी…”


वेदिका आगे बढ़ी, उसकी आँखों में वही रहस्यमय चमक थी


“महात्मा, आप फिर से सामने आए… इसका अर्थ है कि हमने सही द्वार छेड़ दिया है। लेकिन बताइए, हमें कौन रोक रहा है? कौन है ये गूंज जो हमें कदम दर कदम डराती है?”


साधु की नज़रें आर्यन पर टिक गईं।

“सवाल तुम कर रही हो, उत्तर भी तुम्हारे भीतर है… पर सुन लो, त्रिकाल शिला का रहस्य कोई साधारण ग्रंथ नहीं। पुजारी, मंदिर, और यह अग्नि द्वार – सब मात्र रक्षक हैं, वास्तविक मार्गदर्शक वह है… जो आवाज़ तुम रातों में सुनते हो।”


आर्यन के गले में सूखापन उतर आया।

उसे सचमुच याद आया… कई रातों से, सपनों में वही रहस्यमयी स्त्री स्वर गूंजता था – “आओ… और आगे आओ…”


ईशान ने हँसने की कोशिश की, “ये सब अंधविश्वास है। आवाज़ें, सपने… सब मस्तिष्क की उपज।”


लेकिन तभी, हवा में धूल-सी घूमी और मंदिर के पुजारी का चेहरा दीवार पर उभरा – जैसे धुंध से बना हुआ।

उसकी आँखें लाल चमक रही थीं।


पुजारी की परछाई ने धीमे स्वर में कहा –

“आर्यन… तुम लौट सकते हो। अभी भी वक़्त है। आगे सिर्फ़ विनाश है। और अगर तुम बढ़े… तो अगला शिकार तुम्हारा कोई साथी होगा।”


ईशा ने तुरंत आर्यन का हाथ पकड़ लिया।

“नहीं! हमें लौट चलना चाहिए…”


लेकिन आर्यन की नज़रें ठंडी थीं।

“अब वापसी नामुमकिन है।”


साधु ने लंबी साँस ली और कहा –

“तो फिर तैयार रहो। अगला द्वार तुम्हें आत्मा और अग्नि, दोनों से गुज़ार कर ही खुलेगा।”


दीवारें एकाएक कांप उठीं, मशालें बुझने लगीं… और सब तरफ वही गूंज गड़गड़ाहट बनकर फैल गई –

“त्रिकाल… त्रिकाल… त्रिकाल…”


“मौन पुकार”


गुफ़ा की गहराइयों में एक अजीब-सा सन्नाटा पसरा हुआ था। आर्यन, वेदिका और डॉ. ईशान, तीनों उस जगह को टटोलते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे थे। उनके कदमों की आहट गुफ़ा की दीवारों से टकराकर अजीब-सी गूँज पैदा कर रही थी।


आर्यन ने मशाल ऊँची उठाई और बोला –

“यहाँ कुछ है… दीवार पर उकेरी हुई आकृतियाँ।”


दीवार पर प्राचीन लिपि में कुछ मंत्र और चित्र बने हुए थे—एक वृत्त जिसके बीच अग्नि का चिन्ह था और उसके चारों ओर तीन मानव आकृतियाँ झुकी खड़ी थीं।


वेदिका ने गहरी साँस लेते हुए कहा –

“यह संकेत है कि यहाँ कोई अगला रहस्य छिपा हुआ है… लेकिन इसे खोलने के लिए हमें वही मंत्र चाहिए जो पुरोहित ने कभी बताया था।”


डॉ. ईशान ने माथे पर हाथ रखते हुए याद करने की कोशिश की।

“मुझे याद है… जब हम मंदिर में थे तो एक बूढ़ा साधु हमें कह रहा था – ‘तीन स्वर, तीन दिशा और तीन दीपक… यही खोलेंगे त्रिकाल का द्वार।’ शायद इसी का संबंध यहाँ से है।”


इतना कहते ही गुफ़ा के भीतर कहीं दूर से घंटी बजने जैसी आवाज़ आई। तीनों चौंक पड़े।


आर्यन फुसफुसाया –

“क्या कोई और भी यहाँ है?”


आवाज़ धीरे-धीरे पास आती गई। मशाल की लौ काँपने लगी। और तभी अंधेरे से एक परछाईं उभरकर सामने आई। एक झुकी हुई आकृति, लंबी जटाएँ, शरीर पर भगवा चोगा और आँखों में ऐसी चमक, जैसे उसने युगों से सब कुछ देख लिया हो।


वह साधु वहीं आकर रुक गया।


“तुम वही हो… जिनकी प्रतीक्षा सदियों से की जा रही थी।” उसकी आवाज़ धीमी मगर गूँजती हुई थी।

“त्रिकाल रहस्य की डोर अब तुम्हारे हाथ में है। लेकिन चेतावनी सुन लो—इस डोर को थामना आसान नहीं… इसका हर धागा तुम्हें तुम्हारे भय से गुज़ारेगा।”


वेदिका ने हिम्मत जुटाकर पूछा –

“गुरुदेव, यह अग्नि का चिन्ह… इसे कैसे पार करें?”


साधु ने अपनी दाढ़ी में हाथ फेरते हुए कहा –

“अग्नि के द्वार से पहले तुम्हें अपनी आत्मा की परीक्षा देनी होगी। तुम तीन हो, लेकिन द्वार केवल एक है। तुम्हें तय करना होगा कि पहले कौन प्रवेश करेगा… और यह निर्णय ही तय करेगा कि कौन इस रहस्य के योग्य है।”


आर्यन, वेदिका और डॉ. ईशान तीनों एक-दूसरे की ओर देखने लगे।

गुफ़ा की ठंडी हवा अचानक और भारी हो गई। मशाल की रोशनी टिमटिमाई और दीवार पर बने अग्नि-चिह्न से हल्की

लाल आभा फैलने लगी।


आर्यन ने अपनी मुट्ठी कसते हुए कहा –

“तो यही है हमारी अगली परीक्षा…”