बुकशॉप के बाहर—एक नया मोड़
समीरा ने झेंपकर सिर झुका लिया, और दानिश की मुस्कुराहट गहरी हो गई। वह जानता था कि समीरा अपने जज़्बात छुपाने की कितनी कोशिश कर रही थी, मगर उसकी आँखें सब बयां कर रही थीं।
कुछ सेकंड की खामोशी के बाद, समीरा ने खुद को संभालते हुए कहा, "तो... तुम यहाँ किताबें लेने आए थे?"
दानिश ने हल्की मुस्कान के साथ कंधे उचका दिए। "हाँ… या शायद किसी खास इंसान से मिलने के लिए," उसने मज़ाकिया लहजे में कहा।
समीरा ने आँखें घुमा लीं, मगर उसके होठों की कोर हल्की सी ऊपर उठ गई।
"तो… कौन-सी किताब लेनी थी तुम्हें?" उसने माहौल को हल्का करने की कोशिश की।
दानिश ने गहरी सांस लेते हुए जवाब दिया, "पता नहीं… शायद कोई ऐसी जो यह समझा सके कि दिल की बात कहना इतना मुश्किल क्यों होता है?"
समीरा का दिल एक पल के लिए ठहर गया। उसने नजरें बचाने की कोशिश की, मगर दानिश की गहरी आँखें उसे देख रही थीं—बिल्कुल वैसी ही उम्मीद से भरी, जैसी फोन कॉल पर थी।
"शायद…" समीरा ने धीमे से कहा, "कभी-कभी हमें खुद को समझाने में ज्यादा वक्त लग जाता है।"
दानिश ने हल्की हंसी भरी सांस ली। "और जब तक समझ आते हैं, तब तक देर हो चुकी होती है, है ना?"
समीरा ने पहली बार उसकी आँखों में झाँककर देखा। "हो सकता है… या हो सकता है कि हमें खुद को थोड़ा और वक्त देना चाहिए।"
उसके शब्दों में कोई बेरुखी नहीं थी। दानिश को यह बदलाव महसूस हुआ।
"मैं इंतजार कर सकता हूँ," उसने हल्के अंदाज में कहा, "मगर अगर कभी तुम्हें लगे कि तुम्हें अब और छुपाने की जरूरत नहीं है, तो बस बता देना। मैं किताबों की दुकान में ही मिल जाऊँगा," उसने मुस्कुराकर कहा।
समीरा चाहकर भी अपनी मुस्कान रोक नहीं पाई।
हवा में एक अलग सी गर्माहट थी। कुछ अनकहा था, मगर अब उतना भारी नहीं था जितना पहले था।
"तो फिर… मिलते हैं?" दानिश ने पूछा।
समीरा ने हल्के से सिर हिलाया। "शायद," उसने मुस्कराते हुए कहा।
दानिश ने एक बार उसे देखा, फिर हल्के कदमों से जाने लगा।
समीरा ने एक लंबी सांस ली। पहली बार, उसे लगा कि शायद भागना ही हल नहीं था।
शायद… उसे भी अब खुद को थोड़ा वक्त देना चाहिए।
दानिश ने हल्की मुस्कान के साथ समीरा को देखा। "अच्छा, तो फिर मिलते हैं?"
समीरा ने हल्के से सिर हिलाया। "शायद," उसने मुस्कराते हुए कहा।
दानिश ने एक आखिरी बार उसे देखा, फिर मुड़कर धीरे-धीरे चला गया। समीरा कुछ देर वहीं खड़ी रही, उसकी धड़कनों की रफ्तार अब भी थोड़ी तेज थी। उसने गहरी सांस ली, खुद को संभाला और अपनी स्कूटी की ओर बढ़ी।
कॉलेज की ओर सफर
स्कूटी स्टार्ट करते ही हवा के हल्के झोंके उसके चेहरे से टकराए। दानिश की बातों की गूंज अब भी उसके दिमाग में थी। "मैं इंतजार कर सकता हूँ... मगर अगर कभी तुम्हें लगे कि तुम्हें अब और छुपाने की जरूरत नहीं है, तो बस बता देना।"
उसने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया और गियर बदलकर तेज़ी से कॉलेज की ओर बढ़ गई।
कॉलेज कैंपस में एक नई हलचल
समीरा ने स्कूटी कॉलेज की पार्किंग में रोकी और गहरी सांस ली। उसके दिल की धड़कनें अब भी थोड़ी तेज़ थीं, मगर उसने खुद को संभाला। हेलमेट उतारकर बालों को झटका और अपनी किताबें लेकर तेजी से कैंपस की ओर बढ़ गई।
"समीरा!" रिया की आवाज़ सुनते ही उसने सिर उठाया। रिया उसे कॉलेज गेट के पास बेचैनी से खड़ी मिली।
"कहाँ थी तू? मैं कब से तेरा इंतज़ार कर रही हूँ!" रिया ने शिकायत की।
समीरा ने मुस्कुराने की कोशिश की। "बस… रास्ते में थोड़ा टाइम लग गया।"
"अच्छा छोड़, अब जल्दी बता! तूने इकोनॉमिक्स का टेस्ट प्रिपेयर कर लिया? मुझे तो लग रहा है, इस बार तो हमारी हालत खराब होने वाली है!" रिया ने परेशान होकर कहा।
समीरा हंस पड़ी। "अरे, इतना भी मुश्किल नहीं है! हमने पिछले हफ्ते जो मटेरियल पढ़ा था, वही आएगा।"
रिया ने आह भरी। "फिर भी, इंडियन इकोनॉमी के ग्रोथ मॉडल्स तो मुझे अभी तक समझ नहीं आए हैं! ये हर बार कैपिटल फॉर्मेशन, लेबर प्रोडक्टिविटी, और टेक्नोलॉजी वाले कॉन्सेप्ट्स दिमाग घुमा देते हैं।"
समीरा ने सिर हिलाया। "देख, हार्वोड-डोमर मॉडल सबसे बेसिक है। उसमें क्या था? ये कि अगर कोई भी देश अपनी इकोनॉमिक ग्रोथ बढ़ाना चाहता है, तो उसे ज्यादा इन्वेस्टमेंट करनी होगी और प्रोडक्टिविटी इंप्रूव करनी होगी।"
रिया ने सर पकड़ लिया। "हाँ, और वो ICOR—Incremental Capital Output Ratio! मतलब जितना ज्यादा ICOR, उतना कम ग्रोथ। पर फिर सोलो ग्रोथ मॉडल इसमें क्या नया जोड़ता है?"
समीरा ने पैदल चलते हुए समझाना शुरू किया। "सोलो ग्रोथ मॉडल कहता है कि सिर्फ इन्वेस्टमेंट ही काफी नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन भी ज़रूरी है। लॉन्ग-टर्म में किसी भी इकॉनमी की ग्रोथ टेक्नोलॉजी और लेबर स्किल्स पर डिपेंड करती है। अगर टेक्नोलॉजी में इनोवेशन नहीं हुआ, तो सिर्फ इन्वेस्टमेंट से इकॉनमी आगे नहीं बढ़ सकती।"
रिया ने धीरे-धीरे सिर हिलाया। "अच्छा, तो इसका मतलब कि अगर कोई देश लंबे समय तक ग्रोथ बनाए रखना चाहता है, तो उसे नई टेक्नोलॉजी अपनानी होगी, ना कि सिर्फ कैपिटल बढ़ाने पर ध्यान देना होगा?"
"बिल्कुल सही पकड़ा!" समीरा ने मुस्कुराते हुए कहा।
"तो फिर इंडियन इकोनॉमी के लिए ये दोनों मॉडल कैसे अप्लाई होते हैं?" रिया ने सवाल किया।
समीरा ने थोड़ा सोचा और फिर बोली, "देख, 1950s और 60s में हमारे देश ने प्लानिंग के जरिए कैपिटल फॉर्मेशन बढ़ाने की कोशिश की थी, जो हार्वोड-डोमर मॉडल से मेल खाती थी। लेकिन 1991 के बाद जब लाइसेंस राज हटा, ग्लोबलाइजेशन आया, तब हमारी इकॉनमी सोलो मॉडल के हिसाब से ग्रोथ करने लगी—मतलब टेक्नोलॉजी, इनोवेशन और प्रोडक्टिविटी पर ज़्यादा फोकस बढ़ गया।"
रिया की आँखें चमक उठीं। "ओह! अब समझ आया कि क्यों 90s के बाद ग्रोथ तेज़ हो गई। टेक्नोलॉजी की वजह से!"
"बिल्कुल! और यही कारण है कि आजकल सरकार रिसर्च और इनोवेशन पर ज़्यादा फोकस कर रही है।" समीरा ने कहा।
"यार, तू तो प्रोफेसर बन सकती है!" रिया ने मज़ाक किया।
समीरा ने मुस्कुरा दिया, लेकिन दानिश की बात उसके ज़ेहन में फिर से गूंज गई—"अगर कभी तुम्हें लगे कि तुम्हें अब और छुपाने की जरूरत नहीं है, तो बस बता देना।"
शायद इकोनॉमिक्स की तरह, जिंदगी में भी कुछ चीज़ें सिर्फ लॉन्ग-टर्म पर्सपेक्टिव से ही समझ आती हैं।
"चल, क्लास में चलते हैं," समीरा ने कहा।
"हाँ, और रास्ते में मुझे Inflationary Gap भी समझा देना!" रिया ने हंसते हुए कहा।
दोनों क्लास की ओर बढ़ गईं, मगर समीरा के ज़ेहन में अब सिर्फ इकोनॉमिक्स नहीं, बल्कि कुछ और भी हलचल मचा रहा था।