Horror story in Hindi Horror Stories by Aarif Ansari books and stories PDF | डरावनी कहानी

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डरावनी कहानी


👻 डरावनी कहानी – “किले का अभिशाप”

रात की गहरी खामोशी, और आसमान पर बादलों का बोझिल साया। हवाएँ इस कदर चीख रही थीं मानो किसी अनजाने दर्द से कराह रही हों। दूर पहाड़ियों के बीच बसा एक पुराना, वीरान किला… जिसे लोग वर्षों से “अभिशप्त किला” कहते थे।

लोग कहते थे कि वहाँ जाने वाला कभी लौटकर नहीं आया। और अगर लौटा भी, तो उसका दिमागी संतुलन बिगड़ा हुआ होता। गाँव के लोग उस किले की तरफ़ देखना तक पसंद नहीं करते थे।

पति-पत्नी की कहानी की शुरुआत

आदित्य और नंदिनी — दोनों शहर से आए हुए पति-पत्नी थे। शादी को अभी दो ही साल हुए थे। आदित्य एक फोटोग्राफर था, जिसे रहस्यमयी जगहों की खोज करना बहुत पसंद था। वहीं नंदिनी किताबों और कहानियों की शौकीन थी।

एक दिन आदित्य को एक असाइनमेंट मिला — किसी पुराने ऐतिहासिक किले की तस्वीरें लेना। पैसे भी अच्छे मिलने वाले थे। उसने बिना देर किए उस प्रस्ताव को मान लिया। जब उसने नंदिनी को बताया कि यह वही किला है जिसे लोग “अभिशप्त” कहते हैं, तो नंदिनी थोड़ी घबराई।

“आदित्य, लोग कहते हैं वहाँ भूत-प्रेत रहते हैं… हमें वहाँ नहीं जाना चाहिए।”
आदित्य ने मुस्कुराते हुए कहा,
“नंदिनी, ये सब अंधविश्वास है। मैं सिर्फ़ तस्वीरें खींचने जा रहा हूँ। और वैसे भी तुम मेरे साथ होगी तो डर कैसा?”

नंदिनी ने अनिच्छा से हामी भर दी।

किले की ओर सफ़र

दोनों कार से गाँव की तरफ़ निकले। रास्ता घने जंगलों से होकर जाता था। सूरज ढल रहा था, और धीरे-धीरे चारों तरफ़ अंधेरा छा रहा था। पेड़ों की परछाइयाँ कार की खिड़कियों पर पड़ रही थीं, मानो कोई उनका पीछा कर रहा हो।

कुछ देर बाद उनकी कार किले के मुख्य द्वार पर पहुँची। जर्जर दीवारें, टूटी हुई मूर्तियाँ और लता-पत्तों से ढकी ऊँची-ऊँची मीनारें। हवाओं की सनसनाहट पूरे माहौल को और डरावना बना रही थी।

“आदित्य, मुझे अच्छा नहीं लग रहा… चलो वापस चलते हैं।”
नंदिनी ने कांपते हुए कहा।
“बस एक रात रुकते हैं… सुबह होते ही निकल जाएंगे। मेरे प्रोजेक्ट के लिए यही ज़रूरी है।”
आदित्य ने समझाते हुए कहा।

किले के अंदर प्रवेश

किले का विशाल दरवाज़ा जब आदित्य ने धक्का देकर खोला तो वह भयानक आवाज़ के साथ कर्र-कर्र करता खुला। अंदर धूल और मकड़ी के जाले हर जगह फैले हुए थे। दीवारों पर अजीब-सी काली परछाइयाँ बन रही थीं।

दोनों ने टॉर्च जलाई और अंदर बढ़े।

किले के अंदर अजीब-सी ठंडक थी, मानो किसी ने अभी-अभी उनकी सांसों से गर्मी खींच ली हो। एक बड़े दरबार हॉल में पहुँचकर आदित्य ने अपना कैमरा निकाला और तस्वीरें लेने लगा। नंदिनी चारों ओर की दीवारों पर बने चित्र देखने लगी।

वहीं उसे एक पेंटिंग दिखाई दी — जिसमें एक राजा और रानी खड़े थे। लेकिन पेंटिंग की सबसे डरावनी बात यह थी कि रानी की आँखें असली इंसान की तरह चमक रही थीं।

नंदिनी घबरा गई और तुरंत आदित्य को बुलाया।
“देखो… ये पेंटिंग… इसकी आँखें ऐसे क्यों लग रही हैं जैसे हमें देख रही हों?”
आदित्य ने हँसकर कहा,
“ये सिर्फ़ रोशनी का खेल है।”

लेकिन नंदिनी के चेहरे की डर देख आदित्य खुद भी थोड़ा असहज हो गया।

रात का बसेरा

किले के एक कमरे में दोनों ने अपने बैग रखे। आदित्य ने सोने से पहले कुछ और तस्वीरें खींची। नंदिनी खिड़की के पास खड़ी बाहर देख रही थी। दूर से उसे ऐसा लगा जैसे किले के प्रांगण में कोई सफ़ेद साया घूम रहा हो।

“आदित्य… देखो!”
आदित्य ने खिड़की से बाहर झाँका, लेकिन वहाँ कुछ नहीं था।
“तुम थक गई हो… शायद आँखों का धोखा होगा।”
कहकर आदित्य ने नंदिनी को सोने के लिए कहा।

आधी रात का सन्नाटा

करीब आधी रात को नंदिनी की नींद अचानक खुल गई। उसे लगा जैसे कमरे में कोई खड़ा है। उसने टॉर्च उठाकर इधर-उधर रोशनी डाली। सब सामान्य था।

लेकिन तभी उसे धीमी-धीमी सरसराहट सुनाई दी… जैसे कोई औरत साड़ी घसीटते हुए चल रही हो।
वह आवाज़ धीरे-धीरे कमरे के दरवाज़े के पास रुक गई।

नंदिनी का दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा।
“क… कौन है?” उसने डरते हुए आवाज़ लगाई।

कोई जवाब नहीं आया।

वह धीरे-धीरे दरवाज़े के पास गई और जैसे ही उसने दरवाज़ा खोला… बाहर एक लंबा अंधेरा गलियारा फैला हुआ था। और उस गलियारे के आखिर में — एक औरत खड़ी थी… सफ़ेद कपड़ों में, लंबे खुले बाल और लाल चमकती आँखें।

नंदिनी चीखने ही वाली थी कि वह साया अचानक गायब हो गया।

आदित्य का शक

नंदिनी भागकर आदित्य को जगाने लगी।
“आदित्य… मैंने सच में देखा… एक औरत थी…!”
आदित्य ने चिढ़ते हुए कहा,
“बस करो नंदिनी! ये तुम्हारा वहम है। अगर तुम डरती ही रहती हो तो क्यों साथ आईं?”

नंदिनी रोते हुए चुप हो गई, लेकिन उसके मन में डर और गहरा बैठ गया।

अगली सुबह

सुबह आदित्य बाहर तस्वीरें लेने निकला। नंदिनी भी उसके साथ थी। किले के एक पुराने हिस्से में उन्हें एक कमरा मिला, जिसका दरवाज़ा बाहर से बंद था। बड़ी मुश्किल से आदित्य ने उसे खोला।

अंदर का दृश्य देखकर दोनों सन्न रह गए —
कमरे की दीवारों पर खून से लिखे शब्द थे —
“जो भी यहाँ ठहरेगा, मौत उसका पीछा करेगी।”

और कमरे के बीचों-बीच एक टूटा हुआ पालना पड़ा था। पालने के पास सूखी हड्डियाँ बिखरी हुई थीं।

नंदिनी जोर से चीख पड़ी और आदित्य भी हैरान रह गया।

उसी समय अचानक कमरे का दरवाज़ा अपने-आप बंद हो गया। और अंधेरे में उन्हें वही औरत दिखी —
सफ़ेद कपड़े, लाल आँखें और चेहरे पर खून से सना क्रोध।

उसकी आवाज़ गूँजी —
“तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था…”


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👻 डरावनी कहानी – “किले का अभिशाप”

दरवाज़ा ज़ोर से बंद हुआ और कमरे में अंधेरा छा गया। नंदिनी का हाथ काँपते हुए आदित्य की बाँह पकड़ चुका था। दोनों की साँसें तेज़ हो रही थीं। उस औरत की लाल आँखें अंधेरे में आग की तरह चमक रही थीं।

“तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था…” उसकी आवाज़ पूरे कमरे में गूँज रही थी।

आदित्य ने टॉर्च जलाने की कोशिश की, पर वह तुरंत बुझ गई। कैमरे का फ्लैश जैसे ही चला, एक पल के लिए औरत का डरावना चेहरा साफ़ दिखा। चेहरा जला हुआ, आँखें खून से लाल और होंठों पर काली मुस्कान।

नंदिनी चीख पड़ी और आदित्य ने उसका हाथ पकड़कर दरवाज़े की ओर भागने की कोशिश की। तभी वह औरत अचानक गायब हो गई।

दरवाज़ा अपने आप खुला और दोनों किसी तरह बाहर भाग निकले।

किले के रहस्यमयी किस्से

बाहर आते ही नंदिनी रो पड़ी।
“आदित्य… अब और मत रुकते… ये जगह सचमुच शापित है।”

आदित्य खुद भी हिल चुका था, लेकिन उसके मन में डर से ज़्यादा जिज्ञासा थी।
“नंदिनी, अगर यह सच है तो हमें जानना होगा कि आखिर इस किले में हुआ क्या था। यहाँ कुछ बहुत बड़ा राज़ छुपा है।”

नंदिनी ने सिर हिलाया,
“राज़ खोजने के चक्कर में अगर जान चली गई तो?”

गाँव के बुज़ुर्ग से मुलाक़ात

उस दिन दोनों किले से बाहर आकर नज़दीकी गाँव पहुँचे। गाँव वाले उन्हें देखकर सहम गए। किसी ने उनसे बात करने की हिम्मत नहीं की।

आख़िरकार एक बूढ़ा आदमी, जिसकी आँखों में गहरा डर छुपा था, उनसे बोला —
“तुम दोनों उस किले से लौटकर आए हो? चमत्कार है… वरना वहाँ से कोई वापस नहीं आता।”

आदित्य ने तुरंत पूछा,
“बाबा, उस किले का सच क्या है? वो औरत कौन है?”

बूढ़ा काँपती आवाज़ में बोला,
“वो रानी है… रानी मधुलिका। कभी इस किले की महारानी हुआ करती थीं। लेकिन उन्हें धोखा मिला। अपने ही पति और दरबारियों ने मिलकर उन्हें ज़िंदा जला दिया था। उनके साथ उनका बच्चा भी मार दिया गया। तब से उनकी आत्मा भटक रही है। जो भी इस किले में कदम रखता है, वो समझती हैं कि वह दुश्मन है।”

नंदिनी के चेहरे का रंग उड़ गया।
“तो… क्या उनकी आत्मा हमसे भी बदला लेगी?”

बूढ़ा बोला,
“बेटी, अब तुम लोग फँस चुके हो। उनका श्राप है — जो किले में एक रात रुक जाए, वो उनकी दुनिया से बाहर नहीं निकल पाता।”

किले की वापसी

बूढ़े की बातें सुनकर नंदिनी और भी डर गई। लेकिन आदित्य ने ठान लिया कि वह सच जाने बिना नहीं जाएगा।
“अगर हमें बचना है तो हमें इस श्राप का कारण समझना होगा।”

शाम ढलते ही दोनों फिर किले में लौटे।

किले की दीवारें और भी भयावह लग रही थीं। जैसे-जैसे वे अंदर बढ़े, ठंडी हवाएँ उनकी साँस रोक रही थीं।

अजीब घटनाएँ

रात गहराती गई। नंदिनी को हर जगह रानी मधुलिका की परछाई दिखाई देने लगी। कभी झरोखे में, कभी आँगन में, तो कभी टूटे हुए दरबार में।

आदित्य कैमरे से तस्वीरें ले रहा था। लेकिन जब उसने तस्वीरें देखीं, तो उनमें सिर्फ़ धुंधले चेहरे और चीखती आकृतियाँ कैद थीं।

एक तस्वीर में साफ़ दिख रहा था — रानी मधुलिका नंदिनी के ठीक पीछे खड़ी थी।

आदित्य ने घबराकर कैमरा गिरा दिया।
“नंदिनी… हमें यहाँ से निकलना होगा।”

लेकिन तभी दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया और चारों तरफ़ आवाज़ गूँजने लगी —
“तुम्हारा रिश्ता भी अब मेरा है…”

पति-पत्नी में दरार

उस रात किले के भीतर कुछ अजीब हुआ। आदित्य को लगने लगा कि नंदिनी बदल रही है। उसकी आँखें खाली-सी हो जातीं, आवाज़ ठंडी और अजनबी हो जाती।

“आदित्य… तुम मुझे छोड़कर क्यों नहीं जाते? यहाँ रानी मेरे साथ है… वो मुझे अपने पास बुला रही है।”
नंदिनी ने अचानक फुसफुसाया।

आदित्य हैरान रह गया।
“क्या पागलपन की बातें कर रही हो?”

लेकिन नंदिनी की आँखों में पल भर के लिए वही लाल चमक दिखी।

रानी का सच सामने आता है

आधी रात को दोनों दरबार हॉल में पहुँचे। वहाँ की दीवार पर एक गुप्त रास्ते का निशान था। आदित्य ने दीवार धकेली तो अंदर एक सुरंग खुल गई।

सुरंग में उतरते ही उन्हें एक तहख़ाना मिला। वहाँ पुरानी तलवारें, टूटी मूर्तियाँ और… एक बड़ी चिता के अवशेष थे।

चिता के पास ही एक छोटी-सी हड्डियों की गठरी रखी थी — शायद रानी के बच्चे की।

नंदिनी अचानक ज़ोर से रोने लगी,
“मैं महसूस कर सकती हूँ… उस रानी का दर्द… उसका बच्चा छीन लिया गया… उसे ज़िंदा जला दिया गया।”

और तभी हवा में एक औरत की चीख गूँजी —
“मेरा बदला अधूरा है…”

कमरे की मशालें अपने आप जल उठीं। धुएँ के बीच रानी मधुलिका का भूत प्रकट हुआ। उसका चेहरा क्रोध से विकृत था।

“तुम दोनों भी मुझे धोखा दोगे… जैसे उसने दिया था…”

आदित्य काँपते हुए बोला,
“नहीं… हम तुम्हारे दुश्मन नहीं हैं। हम सिर्फ़ सच्चाई जानने आए हैं।”

लेकिन रानी की आत्मा चिल्लाई —
“अब देर हो चुकी है… तुम्हारी किस्मत उसी चिता में बंध चुकी है।”

और उसी क्षण तहख़ाने का दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया।


👻 डरावनी कहानी – “किले का अभिशाप”

तहख़ाने का दरवाज़ा बंद होते ही अंधेरा और ठंड दोनों बढ़ गए। आदित्य ने नंदिनी का हाथ थाम रखा था, लेकिन उसके हाथ बर्फ़ जैसे ठंडे थे।

रानी मधुलिका की आत्मा चिता के पास खड़ी थी। उसकी आँखों में आग, होंठों पर क्रोध और पूरे माहौल में उसकी चीखें गूँज रही थीं।

“मेरे साथ विश्वासघात हुआ… मुझे धोखा मिला… अब मैं हर रिश्ता तोड़ दूँगी… हर प्यार को जलाकर राख कर दूँगी…”

नंदिनी पर कब्ज़ा

अचानक नंदिनी ज़ोर से चीख पड़ी। उसका शरीर काँपने लगा, आँखें उलट गईं। आदित्य घबराकर उसे पकड़ने की कोशिश करने लगा।

लेकिन अगले ही पल नंदिनी की आवाज़ बदल गई। वह अब नंदिनी की नहीं, बल्कि रानी मधुलिका की थी।
“आदित्य… अब नंदिनी मेरी है। उसका शरीर मेरा है। उसका रिश्ता तुम्हारा नहीं, मेरा होगा।”

आदित्य सन्न रह गया।
“नंदिनी! होश में आओ… मैं तुम्हें खो नहीं सकता!”

नंदिनी हँसने लगी — लेकिन वह हँसी इंसानी नहीं थी।

अतीत की झलक

अचानक तहख़ाने की दीवारें कांपने लगीं। आदित्य के सामने एक दृश्य प्रकट हुआ —
किला अपने पुराने वैभव में था। राजा दरबार में बैठा था, और रानी मधुलिका अपने बच्चे के साथ थी।

लेकिन कुछ ही पलों में दरबारियों ने रानी को पकड़ लिया। राजा ने आदेश दिया —
“इसे ज़िंदा जला दो! इसने मेरे खिलाफ षड्यंत्र रचा है।”

रानी की चीखें गूँज उठीं। उसने अपने बच्चे को छाती से चिपका लिया। लेकिन निर्दयी सैनिकों ने बच्चे को छीनकर आग में फेंक दिया। फिर रानी को चिता पर बाँध दिया गया।

वह चिल्लाती रही —
“मेरे बच्चे को लौटा दो! मुझे धोखा मत दो! तुम्हारा वंश खत्म हो जाएगा…”

और आग ने उसे निगल लिया।

यह दृश्य देखकर आदित्य की आँखों में आँसू भर आए। लेकिन उसी समय रानी की आत्मा गरजी —
“अब तुम्हारी पत्नी मेरे साथ उसी चिता में जलेगी।”

आदित्य की जद्दोजहद

आदित्य ने नंदिनी को कसकर पकड़ लिया।
“नहीं! मैं तुम्हें बचाऊँगा। चाहे इसके लिए मुझे खुद को ही क्यों न कुर्बान करना पड़े।”

नंदिनी अचानक उसकी बाँहों से छूटकर तहख़ाने की दीवार की तरफ़ चली गई। उसके चेहरे पर अब रानी का साया पूरी तरह छा चुका था।

“तुम प्यार की बात करते हो? प्यार वही है जो मेरी मौत के साथ ख़त्म हो गया। तुम्हारा रिश्ता भी आज ख़त्म होगा।”

दीवार पर अचानक आग की लपटें उठीं और उनमें वही पालना दिखाई दिया, जिसमें हड्डियाँ रखी थीं।

नंदिनी उस पालने की ओर बढ़ी।

आत्मा का खेल

आदित्य ने उसे रोकने की कोशिश की, लेकिन नंदिनी ने परालौकिक ताक़त से उसे दूर धकेल दिया। आदित्य ज़मीन पर गिर पड़ा।

“आदित्य…” नंदिनी की आवाज़ में कुछ पल के लिए अपना स्वर लौटा।
“मुझे बचा लो… मैं इस आग में खिंचती जा रही हूँ…”

आदित्य उठा और पूरी ताक़त से उसकी ओर भागा। उसने नंदिनी को अपनी बाँहों में भर लिया।
“तुम मेरी पत्नी हो। हमारा रिश्ता किसी आत्मा से कमज़ोर नहीं पड़ सकता। मैं तुम्हें बचाकर रहूँगा।”

रानी की आत्मा चीखी —
“तुम्हें लगता है कि तुम्हारा प्यार मुझे हरा देगा? मैंने मौत को झेला है… मैंने धोखा सहा है। तुम्हारा रिश्ता यहाँ टिक नहीं पाएगा।”

अचानक तहख़ाने का फर्श टूटने लगा। नीचे काली गहराई, मानो नर्क का द्वार खुल गया हो।

मौत से सामना

आदित्य और नंदिनी उस गहराई की ओर खिंचने लगे। आदित्य ने पूरी ताक़त लगाकर नंदिनी को संभाला।

“आदित्य… छोड़ दो… वरना तुम भी मर जाओगे।”
नंदिनी की आँखों से आँसू बह रहे थे।

“नहीं! मैं तुम्हें कभी नहीं छोड़ूँगा।”

उसने चिल्लाकर कहा।

रानी की आत्मा और ज़्यादा भयानक रूप में प्रकट हुई। उसके बाल हवा में लहराते, आँखों से खून टपकता और शरीर से आग निकलती।
“तो ठीक है… अगर तुम्हें मरना ही है, तो दोनों साथ मरोगे।”

उसने अपने हाथ उठाए और काली आँधी तहख़ाने में फैल गई।

रहस्यमयी मंत्र

उसी समय आदित्य को गाँव के बूढ़े की कही बात याद आई —
“अगर कभी आत्मा तुम पर हावी हो जाए, तो उसका श्राप केवल उसकी आत्मा को शांति देकर ही टूट सकता है।”

आदित्य ने काँपते हुए नंदिनी को कसकर पकड़ते हुए कहा,
“रानी मधुलिका… मैं तुम्हें समझता हूँ। तुम्हें धोखा मिला, तुम्हारा बच्चा छीन लिया गया। लेकिन इस तरह दूसरों का रिश्ता तोड़कर तुम्हें शांति नहीं मिलेगी। तुम्हारे बच्चे की आत्मा भी यही चाहती होगी कि तुम चैन से रहो।”

आदित्य ने आँसुओं के साथ हाथ जोड़ लिए।
“अगर मेरे प्यार में सच्चाई है, तो तुम्हें चैन मिलेगा। वरना हमें भी अपने साथ ले जाओ।”

कुछ पल के लिए अंधेरा थम गया। नंदिनी काँपते हुए आदित्य की बाँहों में गिर गई।

आत्मा का क्रोध या करुणा?

रानी मधुलिका की आत्मा चुप खड़ी रही। उसकी आँखों में क्रोध और पीड़ा दोनों दिखाई दे रहे थे।

वह धीरे-धीरे पालने के पास गई। उसने बच्चे की हड्डियों को अपने हाथों में लिया। अचानक वह रो पड़ी।

पूरा तहख़ाना उसकी चीखों और रुदन से गूँज उठा।
“मेरा बच्चा… मुझे क्यों छीन लिया गया…”
उसकी करुणा पूरे वातावरण में फैल गई। आग की लपटें धीमी पड़ने लगीं।

लेकिन तभी उसकी आँखों में फिर लाल चमक लौट आई।
“नहीं… मैं अभी भी अधूरी हूँ। तुम्हारा रिश्ता मुझे चैन नहीं देगा… तुम्हें भी वही सहना होगा जो मैंने सहा था।”

और अचानक उसने नंदिनी की ओर हाथ बढ़ाया।
👻 डरावनी कहानी – “किले का अभिशाप”


तहख़ाने की दीवारें कांप रही थीं। मशालें अपने आप बुझ गईं। अंधेरे में सिर्फ़ रानी मधुलिका की लाल आँखें चमक रही थीं। उसने अपनी हड्डियों वाली उँगलियाँ फैलाकर नंदिनी की ओर हाथ बढ़ाया।

आदित्य ने नंदिनी को कसकर पकड़ लिया, लेकिन तभी नंदिनी के चेहरे पर अचानक अजीब-सी मुस्कान उभर आई।

“आदित्य… अब मैं नंदिनी नहीं… मधुलिका हूँ।”

आदित्य का दिल जोर से धड़कने लगा। उसकी आँखों के सामने वही डरावना सपना सच हो रहा था जिसका डर उसे शुरू से था — नंदिनी अब खुद नहीं रही।

आत्मा का कब्ज़ा

नंदिनी की आवाज़ गहरी और भारी हो चुकी थी। उसकी आँखों में वही लाल चमक थी।
“तुम सोचते हो कि तुम्हारा रिश्ता मुझे हरा देगा? नहीं… अब मैं तुम्हारी पत्नी ही बनूँगी। तुम चाहो या न चाहो, तुम्हें अब उसी अभिशप्त रिश्ते में जीना होगा जिसमें मैंने जिया था।”

आदित्य ने काँपते हुए कहा,
“नहीं मधुलिका! तुम सिर्फ़ उसकी आत्मा हो। नंदिनी मेरी पत्नी है और मैं उसे कभी खो नहीं सकता।”

नंदिनी ने ठंडी हँसी हँसी।
“तो आओ… लड़ लो मुझसे। देखते हैं तुम्हारा प्यार मज़बूत है या मेरी नफ़रत।”

किले का रूपांतरण

अचानक तहख़ाना काँपने लगा। दोनों दीवारों के पार खिंचकर दरबार हॉल में पहुँच गए। पूरा हॉल वैसा ही था जैसा सैकड़ों साल पहले रहा होगा। चारों ओर राजा, दरबारी और सैनिकों के धुंधले साए खड़े थे।

सभी चिल्ला रहे थे —
“धोखेबाज़ रानी को जला दो! अभिशप्त कर दो!”

नंदिनी, जो अब मधुलिका थी, ज़ोर से चीख पड़ी।
“देखा आदित्य? यही वो लोग थे जिन्होंने मुझे जिंदा जलाया। आज मैं हर रिश्ते को जलाकर ही चैन लूँगी।”

पति-पत्नी की जंग

आदित्य ने नंदिनी का हाथ पकड़ने की कोशिश की, लेकिन उसने उसे जोर से धक्का दिया। आदित्य ज़मीन पर गिर पड़ा।
“नंदिनी! तुम मेरे बिना कुछ नहीं हो। होश में आओ।”

लेकिन नंदिनी की आवाज़ गर्जी,
“मैं नंदिनी नहीं! मैं रानी मधुलिका हूँ।”

उसने हाथ उठाया और अचानक काले धुएँ का तूफ़ान आदित्य पर टूट पड़ा। आदित्य ने पूरी ताक़त लगाकर उठते हुए कहा,
“अगर तुम्हें लगता है कि रिश्ता सिर्फ़ धोखा होता है, तो मेरा प्यार तुम्हें सच दिखाएगा।”

आग का घेरा

अचानक दरबार के बीचों-बीच एक चिता जलने लगी। उसी पर नंदिनी धीरे-धीरे कदम बढ़ा रही थी।

आदित्य दौड़कर उसके सामने खड़ा हो गया।
“नहीं! मैं तुम्हें इसमें जलने नहीं दूँगा।”

नंदिनी की आँखों से आँसू बहने लगे, लेकिन उसके चेहरे पर रानी मधुलिका का ग़ुस्सा हावी था।
“अगर तुम सच्चा प्यार करते हो तो इसी चिता में कूदकर दिखाओ।”

आदित्य ने पल भर सोचा… फिर बिना झिझक आग की ओर बढ़ गया।

बलिदान की शक्ति

आदित्य ने हाथ फैलाकर कहा,
“अगर यही साबित करना है तो मैं तैयार हूँ। पर तुम्हें मेरी पत्नी को छोड़ना होगा।”

उसने चिता में कदम रख दिया। आग ने तुरंत उसके कपड़े जला दिए। वह दर्द से कराह उठा, लेकिन फिर भी उसने चीखते हुए कहा —
“मधुलिका! देखो… मैं अपनी जान देकर भी अपने रिश्ते को बचाने को तैयार हूँ। यही सच्चा प्यार है। यही रिश्ता है।”

नंदिनी अचानक काँप उठी। उसकी आँखें बदलने लगीं। पल भर के लिए उसमें नंदिनी का असली चेहरा झलक पड़ा।

“आ… आदित्य…” उसकी असली आवाज़ निकल आई।

आत्मा का द्वंद्व

रानी मधुलिका की आत्मा चीख पड़ी।
“नहीं! ये रिश्ता नहीं… सिर्फ़ धोखा है। मैं किसी को खुश नहीं रहने दूँगी।”

लेकिन तभी किले की दीवारें हिलने लगीं। जैसे खुद पत्थर भी आदित्य की कुर्बानी को स्वीकार कर रहे हों।

अचानक तहख़ाने से बच्चे के रोने की आवाज़ गूँजी। वह रोना इतना मासूम और दर्द भरा था कि पूरा किला काँप उठा।

रानी मधुलिका उस आवाज़ की ओर देखने लगी। उसकी आँखों में करुणा उभर आई।

रानी का टूटना

आवाज़ और तेज़ हुई —
“माँ… मुझे चैन चाहिए…”

रानी मधुलिका के चेहरे का ग़ुस्सा टूट गया। उसकी आँखों से आँसू बहने लगे।
“मेरा बच्चा… मुझे माफ़ कर दो… मैं सिर्फ़ तुम्हें वापस चाहती थी।”

आग अचानक शांत हो गई। आदित्य वहीं ज़मीन पर गिर पड़ा। उसके शरीर पर जलने के निशान थे लेकिन वह जिंदा था।

नंदिनी दौड़कर उसके पास आई। उसके चेहरे पर अब रानी मधुलिका की परछाई नहीं थी।
“आदित्य! तुमने मेरी जान बचाई… तुम सचमुच मुझे मौत से खींच लाए।”

आत्मा का अंत या नया खेल?

रानी मधुलिका की आत्मा हवा में तैर रही थी। उसके चेहरे पर अब ग़ुस्से की जगह गहरी उदासी थी। उसने बच्चे की हड्डियों को अपने हाथों में लिया और धीरे-धीरे धुएँ में विलीन हो गई।

उसकी आख़िरी आवाज़ गूँजी —
“शायद यही सच्चा रिश्ता है… शायद मुझे भी अब शांति मिल जाए…”

किला अचानक शांत हो गया। आग, चीखें, साए — सब गायब हो गए।

आदित्य और नंदिनी थके हुए, टूटी हालत में एक-दूसरे को गले लगाए बैठे थे।

लेकिन… जैसे ही वे किले से बाहर निकलने लगे, दरवाज़े पर हवा ने अजीब-सी सरसराहट की। मानो कोई अब भी उन्हें देख रहा हो।


👻 डरावनी कहानी – “किले का अभिशाप”



किला अब शांत था। न चीखें, न साए, न आग की लपटें।
आदित्य और नंदिनी ने सोचा कि सब ख़त्म हो गया। वे दोनों हाथ में हाथ डाले भारी कदमों से बाहर की ओर बढ़ने लगे।

लेकिन जैसे ही वे मुख्य दरवाज़े तक पहुँचे, अचानक हवा ज़ोर से चली और दरवाज़ा अपने आप बंद हो गया। पूरा किला फिर से गूँज उठा —
“तुम्हें लगता है मैं चली गई हूँ?”

आदित्य और नंदिनी का चेहरा सफ़ेद पड़ गया।

आत्मा की वापसी

धुएँ से रानी मधुलिका फिर प्रकट हुई। लेकिन इस बार उसका चेहरा न ग़ुस्से में था, न उदासी में — बल्कि अजीब-सी मुस्कान में।

“तुमने सोचा मुझे चैन मिल गया? नहीं… मेरा श्राप इतना आसान नहीं है। मैं शांति चाहती हूँ, पर जब तक इस किले की दीवारें खड़ी हैं, मेरा दर्द अमर रहेगा। और तुम दोनों अब उस दर्द का हिस्सा बनोगे।”

नंदिनी ने डरते हुए आदित्य का हाथ पकड़ लिया।
“आदित्य… हमें बचना होगा।”

श्राप की असली शर्त

अचानक बूढ़े गाँववाले की आवाज़ आदित्य के कानों में गूँजी —
“श्राप तब तक रहेगा जब तक कोई अपना रिश्ता बलिदान देकर उसे तोड़ेगा। प्यार और बलिदान ही उस आत्मा को शांति दे सकते हैं।”

आदित्य को सब समझ आ गया।
“मधुलिका! अगर तुम्हें शांति चाहिए तो हमें बताओ कि तुम्हें क्या चाहिए?”

आत्मा गरजी,
“मेरा पति जिसने मुझे धोखा दिया… उसका वंश इस धरती पर आज भी ज़िंदा है। जब तक उसका खून नहीं बहेगा, मुझे शांति नहीं मिलेगी।”

आदित्य और नंदिनी एक-दूसरे को देखकर सहम गए।

खून का रिश्ता

रानी मधुलिका आगे बोली,
“आदित्य… तुम उसी राजा के वंशज हो। तुम्हारी रगों में उसी का खून बह रहा है। तुम्हारा परिवार ही मेरा शत्रु है।”

आदित्य के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
“न… ये कैसे संभव है?”

लेकिन अचानक उसे याद आया कि उसके पूर्वजों का इतिहास राजघराने से जुड़ा हुआ था। वह सच्चाई अब साफ़ थी — वही इस अभिशाप की जड़ था।

नंदिनी काँपती आवाज़ में बोली,
“नहीं! मैं अपने पति को कुछ नहीं होने दूँगी।”

अंतिम परीक्षा

रानी की आत्मा हँसने लगी।
“तो तय करो… या तो आदित्य की जान जाएगी, या तुम्हारा रिश्ता। एक को खोना ही होगा।”

आदित्य ने नंदिनी का हाथ कसकर पकड़ा।
“नंदिनी, अगर मेरी मौत से तुम्हें ज़िंदगी मिलती है, तो मैं तैयार हूँ। यही मेरे प्यार की सच्चाई है।”

नंदिनी की आँखों से आँसू बह निकले।
“नहीं आदित्य! मैंने तुम्हारे लिए सब सहा है। मैं तुम्हें मरने नहीं दूँगी। अगर जाना ही होगा, तो हम दोनों साथ जाएँगे।”

दोनों एक-दूसरे से लिपट गए।

आत्मा का सच

यह दृश्य देखकर रानी मधुलिका कुछ पल चुप हो गई। उसकी आँखों में आँसू भर आए।
“सदियों पहले मैं यही चाहती थी… कि मेरा पति मेरे साथ खड़ा रहे। लेकिन उसने धोखा दिया। और आज तुम दोनों एक-दूसरे के लिए मरने को तैयार हो…”

उसकी आवाज़ धीरे-धीरे कांपने लगी।
“शायद यही असली रिश्ता है… जो मैंने कभी नहीं पाया। तुम दोनों का प्यार मेरे श्राप से भी मज़बूत है।”

श्राप का अंत

अचानक किले की दीवारें हिलने लगीं। मूर्तियाँ टूटने लगीं, दरवाज़े अपने आप खुलने लगे।
रानी मधुलिका की आत्मा ने अपने बच्चे की हड्डियाँ उठाईं और धीरे-धीरे धुएँ में विलीन हो गई।

उसकी आख़िरी आवाज़ गूँजी —
“आज पहली बार मुझे चैन मिला है। तुम्हारे रिश्ते ने मुझे शांति दी है… अब मैं हमेशा के लिए मुक्त हो रही हूँ।”

और फिर सब शांत हो गया।

नया सवेरा

सुबह की पहली किरण किले की टूटी दीवारों से अंदर आई। आदित्य और नंदिनी बाहर निकल आए।
गाँव वाले चकित रह गए कि दोनों जिंदा लौटे हैं।

आदित्य ने पीछे मुड़कर किले को देखा। अब वह वीरान नहीं, बल्कि शांत लग रहा था। मानो सदियों का बोझ उतर गया हो।

नंदिनी मुस्कुराई और बोली,
“देखा आदित्य, हमारा रिश्ता सचमुच मौत से भी मज़बूत है।”

आदित्य ने उसका हाथ थाम लिया।
“हाँ नंदिनी… और यही रिश्ता हमें ज़िंदगी भर जोड़कर रखेगा।”

दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया। और उस दिन से “अभिशप्त किला” लोगों के लिए सिर्फ़ एक पुरानी कहानी रह गया।


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🎭 समापन

इस तरह पति-पत्नी का सच्चा रिश्ता रानी मधुलिका के सदियों पुराने श्राप को तोड़ पाया।
कहानी हमें यही सिखाती है कि प्यार और विश्वास अगर सच्चा हो, तो वह मौत और अभिशाप से भी ज़्यादा ताक़तवर होता है।