Stigma in Hindi Fiction Stories by Yash Singh books and stories PDF | कलंक

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कलंक

रात काफी गहरी थी ,आसमान में काले बादल छाए थे। दूध सी सफेद चाँदनी में नहाया हुआ चाँद काले बादलों के पीछे से झाँक रहा था। उस चाँद का प्रतिबिंब पास ही की एक शांत नदी में बन रहा था। नदी के सामने कुछ ही दूरी पर माँ काली का पुराना मंदिर था। मंदिर ज्यादा पुराना था और गाव से भी काफी दूर इसी कारणवश कुछ लोग ही मंदिर आ पाते थे। मंदिर की देखभाल पंडित दीनदयाल के हाथों में थी। रोज सुबह मंदिर का गेट खोलना,ज्योत बत्ती करना उन्ही का काम था। पंडित दीनदयाल छोटी कद काठी के थे ,कहने को 56 वर्ष के हो चले थे लेकिन चेहरे पर एक भी झुर्री नहीं थी। वो सफेद धोती कुर्ते में रहते थे। नजर उनकी कमजोर थी दूर का कम दिखता था इसलिए एक चश्मा लगाए रखते थे। शाम की आरती के बाद पंडित दीनदयाल हर रोज नदी के किनारे बैठा करते थे। कुछ समय वो आत्म मंथन को देते थे। आज भी वो सब काम से फारिक होकर नदी के किनारे एक पत्थर पर आके बैठ गए और सोचने लगे यदि मंदिर का हर पत्थर ये सोचे की मूर्ति बन जाऊँ तो क्या कभी भव्य मंदिर का निर्माण हो पाएगा? कभी नहीं। दीनदयाल एकांत में ये सब सोच ही रहे थे तभी अचानक से पीछे से किसी की आवाज आयी बचाओ ,बचाओ कोई है जो मेरी रक्षा कर सके। भगवान के लिए छोड़ दो मुझे ।पंडित दीनदयाल ने पीछे देखा तो एक युवती सफेद साड़ी पहने भागी चली आ रही थी उसकी गोद में चार महीने का बच्चा था, जिसे साड़ी के आँचल में छिपा रखा था। उसने हाथों में हरी चूडियां पहन रखी थी जो उसी के खून में सनी हुई थी। पहले तो पंडित दीनदयाल एकटक उसे देखते रहे और जैसे ही वो पास आयी उससे बोले कोन हो बेटी? किससे भाग रही हो? कोन तुम्हारे पीछे पढ़ा है? बाबा मैं सोनीपत की महारानी सोनप्रिया हूँ। ब्रिटिश सेना ने हमारे महल को चारों तरफ से घेर लिया है महाराज भी युद्ध में मारे गए मैं कैसे तैसे ब्रिटिश सेना से अपनी जान बचाकर यहाँ पहुंची हूँ अंग्रेज सैनिक मेरे पीछे पड़े हैं वो मुझे और मेरे बच्चे को मार देना चाहते हैं मैं क्या करूं? कैसे अपनी जान बचाऊ ?उसकी बातें सुनकर दीनदयाल का दिल पसीज गया। सुनो बेटी मंदिर के पीछे एक तहखाना बना हुआ है ।तुम चाहो तो कुछ दिन वहां रुक सकती हो जब तक अँग्रेजी सैनिक यहाँ से चले नहीं जाते। आपका बहुत बहुत शुक्रिया बाबा आपका उपकार होगा मुझ पर इतना कहकर सोनप्रिया दीनदयाल के पीछे पीछे तहखाने की ओर चल दी। तहखाने का रास्ता मंदिर के पीछे से होकर जाता था। सोन प्रिया  जैसे ही तहखाने पर पहुंची तो उसने देखा कि एक अंधेरी गुफा है जिसके मुहँ पर एक बड़ा सा पत्थर रखा है उस पत्थर को लौकी और तोरी की बेल ने ढक रखा है दीनदयाल ने अपनी पूरी ऊर्जा लगा कर उस पत्थर को हटा दिया अंदर मकड़ी के जाले लगे थे और काफी गंदगी भी थी दीनदयाल सोन प्रिया को गुफा में प्रवेश करने के लिए बोलता है उसके कहने पर सोन प्रिया  गुफा के अन्दर चली जाती है और दीनदयाल बाहर से पत्थर लगा देता है इतने में ही घोड़ों के चलने की आवाज दीनदयाल के कानो में पढ़ती है।