✨सपनों की शुरुआत✨
(जहाँ आसमान अभी दूर था, लेकिन आंखों में उसका अक्स था...)
कानपुर के बाहरी इलाके में बसा एक छोटा-सा गांव, जिसका नाम तो था, लेकिन नक्शों में अक्सर छूट जाया करता था जैसे उसकी गलियों की तरह वहां की लड़कियां भी अकसर अनदेखी रह जाती थीं। उसी गांव की एक मिट्टी की गंध से भरी हवाओं में पली-बढ़ी थी जानवी।
जानवी बचपन से ही कुछ अलग थी। जहां लड़कियां गुड़ियों से खेलतीं, वो किताबों में खोई रहती। जब खेतों में शादी-ब्याह के गीत गूंजते, तो वो अपने घर के एक कोने में बैठी 'आर्थिक नीतियों' पर पढ़ती मिलती।
पढ़ाई उसके लिए शौक नहीं, सांस लेने जैसा जरूरी काम था।
पिता की परछाई
उसके जीवन में सबसे मजबूत रिश्ता था उसके पिता का, जो दिन भर मेहनत-मजदूरी करता और अपने परिवार का पेट भरता। जब कई बार वह थक-हार कर घर आते, तो जानवी पूछती,
"पापा, आपको कभी बुरा नहीं लगता इतनी मेहनत करके भी लोग आपकी कद्र नहीं करते?"
पिता मुस्कुरा देते,
"बिटिया, जो मेहनत की कद्र ना करे, उसका अफसोस नहीं करना चाहिए...
मेहनत का असली सम्मान तब मिलता है, जब वो किसी के जीवन को बदल दे, और तू किसी की नहीं, पूरी पीढ़ी की सोच बदलेगी।"
जानवी को अपने पापा की आंखों में विश्वास दिखता था। और यही विश्वास उसकी सबसे बड़ी पूंजी बन गया।
लड़की होकर भी अलग थी...
जानवी उन लड़कियों में से नहीं थी जो सपने किसी और की आंखों से देखती हैं। बल्कि वह हर उस बात पर सवाल उठाती थी जो उसे सही नहीं लगती।
"शादी की उम्र हो रही है..."
"लड़की हो, ज्यादा मत सोचो..."
"गांव में रहकर कौन बन पाया है।AS?"
ये सब सुन-सुनकर वह और चुप हो गई, लेकिन अंदर से और मजबूत होती गई।
शहर की ओर पहला कदम
घरवालों की मदद और स्कॉलरशिप से उसने कानपुर यूनिवर्सिटी में मास्टर्स ऑफ इकोनॉमिक्स में दाखिला ले लिया। वो पहली बार गांव से बाहर पढ़ने निकली थी। शहर बड़ा था, लोग तेज़ थे, और दुनिया अलग ही तरह से चलती थी। लेकिन जानवी का ध्यान इधर-उधर नहीं भटका। उसका एक ही सपना था प्रोफेसर बनना।
शांत-सी दिखने वाली जानवी, क्लास की सबसे तेज छात्रा थी। लेकिन उसके पास न branded कपड़े थे, न स्टाइल, बस स्पष्टता और समझ थी। उसकी लाइफ रुटीन में बंधी हुई थी क्लास, पढ़ाई, लाइब्रेरी, घर... फिर वही दोहराव ।
एक सवाल, जिसने सब बदल दिया
एक दिन यूनिवर्सिटी में यूपीएससी का सेमिनार हुआ। अंदर से आवाज़ आई "मुझे भी ये करना है।"
उस दिन से वो बदल गई। उसके सपनों का दायरा बड़ा हो गया। अब वो किताबें सिर्फ डिग्री के लिए नहीं, देश को समझने के लिए पढ़ने लगी। जब उसने घर बताया कि वो यूपीएससी की तैयारी करना चाहती है, तो पहले तो सब चौंक गए। लेकिन उसके पिता ने मुस्कुरा कर कहा-
"जो सपना बड़ा होता है, उसका डर भी बड़ा होता है बेटा। लेकिन तू डर मत, मैं हूंन।"
यही वाक्य जानवी के लिए संजीवनी बन गया।
एकांत की साथी बनी किताबें
उसने हॉस्टल छोड़ दिया, खर्च बचाने के लिए छोटे से किराए के कमरे में रहने लगी। सुबह 5 बजे उठती, रात को देर तक पढ़ती। बाकी लड़कियां जब फ्रेश होकर इंस्टा पर स्टोरी लगाती थीं, वो नोट्स तैयार करती थी। कॉफी हाउस की जगह उसके लिए लाइब्रेरी ही सब कुछ था।
कभी-कभी अकेलापन उसे भी खलता था, लेकिन वो रिश्तों से ज्यादा, अपने मिशन से प्रेम करने लगी थी। जानवी की जिंदगी अब बदलाव की राह पर थी। वो जानती थी कि ये सफर आसान नहीं है, लेकिन उस जिद्द में एक चमक थी -
"मुझे खुद को साबित करना है।"
कभी-कभी रात को थक कर बैठती, किताबों को घूरती, और फिर पापा की कही एक बात याद आतीः
"जिस दिन तू अफसर बनेगी, उस दिन गांव की हर लड़की कहेगी अगर जानवी बन सकती है, तो मैं भी बन सकती हूं।"
और यही सपना जानवी की आंखों में उजाले की तरह जलता रहा... बिना रुके, बिना थमे वह अपनी मंज़िल की ओर मजबूती के साथ बढ़ने लगी थी।
आगे यह देखना दिलचस्प होगा कि जब जानवी की दुनिया में पंकज दाखिल होगा। पहले तो एक नई उम्मीद जगाएगा, लेकिन फिर आगे चलकर एक ऐसा आघात पहुंचाएगा जो जानवी के लिए सबक बन जाएगा।