Chapter 2
हवा में हल्की ठंडक थी, पर मेरा दिल किसी गर्म लोहे की तरह धड़क रहा था।
अब समझ आ रहा था कि यश मुझे क्यों देखता था—वो मेरे ख़ून का प्यासा है। और क्यों न हो, मैं तो हमेशा लाल रंग पहनती हूँ… और लाल रंग, एक वैम्पायर के लिए, जैसे आग में घी।
आज तो मैंने हद ही कर दी—सिर से पाँव तक लाल में लिपटी थी। मेरी लंबी रेड ड्रेस, लाल बिंदी, लाल गुलाब… और होंठों पर लाल लिपस्टिक।
मुझे पक्का यकीन था, आज तो मैं उसके निशाने पर हूँ।
तभी पीछे से एक कुत्ता भौंकने लगा—सीधा मेरी तरफ़।
“अरे! भाग यहाँ से!” मैंने धीरे से फुसफुसाया, लेकिन वो ज़िद्दी था।
अचानक, यश की आवाज़ गूँजी, गहरी और थोड़ी कड़क—
“कौन है वहाँ?”
मेरे पैरों तले ज़मीन खिसक गई। ओह, भगवान! वो आ रहा है।
मैं बिना सोचे-समझे भागने लगी…
यश बाहर आया तो बिल्कुल एक सामान्य इंसान जैसा दिख रहा था। उसने कुत्ते की तरफ़ देखा—और अजीब बात ये, कुत्ता डरकर भाग गया।
यश ने ज़मीन पर कुछ देखा—एक पायल।
उसने उसे उठाया, आँखों में हल्की हैरानी के साथ कहा, “ये… ये पायल किसकी है? इसका मतलब किसी ने मुझे देख लिया है…”
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कॉलेज का प्लेग्राउंड – कुछ देर बाद
मैं किसी तरह बचकर यहाँ पहुँची थी।
“हाय राम! मेरी पायल… गिर गई! वो भी वही, जो मुझे सबसे ज़्यादा पसंद थी। सब उस यश की वजह से हुआ।”
तभी दूर से यश आता दिखा—हाथ में फूलों का बड़ा सा गुलदस्ता।
“ये अब किसके पास जा रहा है? क्या मुझे कुछ नहीं करेगा? शायद नहीं… लेकिन ये मुझे देखकर ऐसे मुस्कुरा क्यों रहा है? और फिर… वो नशे-सी आँखें… जो मेरी आँखों में सीधे उतर रही हैं। नहीं, नहीं! यहाँ से निकलना ही सही है।”
“रुको!”—उसकी आवाज़ में हल्की घबराहट थी—“रुको जाचु, मुझे तुमसे कुछ कहना है।”
नहीं! मत सुनो… बस यहाँ से चली जा।
पर तब तक पूरे कॉलेज के कई स्टूडेंट्स हमारे आस-पास आ चुके थे। किसी ने कहा—
“ओह्ह! क्या बात है यश, तुम कर सकते हो!”
दूसरा चिल्लाया—“हाँ बोल दो!”
और सबके सामने… यश अपने घुटनों पर बैठ गया।
मेरे हाथ-पाँव सुन्न।
वो गुलदस्ता आगे बढ़ाते हुए बोला, “जाचु, मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ। बहुत समय से कहना चाहता था… क्या तुम मेरी गर्लफ़्रेंड बनोगी?”
चारों तरफ़ से लाल गुलाब की पंखुड़ियाँ हमारे ऊपर बरसने लगीं।
आज का दिन इतना लाल क्यों लग रहा था?
मैं अंदर ही अंदर डर रही थी—क्या करूँ? अगर वैम्पायर को ‘ना’ कहा तो मार देगा… और अगर ‘हाँ’ कहा… तो भी?
यश ने मेरी आँखों में देखते हुए पूछा, “क्या तुम मुझे पसंद नहीं करती?”
भीड़ में से एक आवाज़—“अगर मैं होती तो कब का ‘हाँ’ बोल देती!”—ये रिया की थी।
मैं चौंक गई—रिया! वो तो जिंदा थी। उसके गले पर कोई काटने का निशान भी नहीं था।
क्या… ये सब मैंने गलत देखा था? या मैंने… सपना देखा था?
यश फिर बोला, “जाचु, मैं तुमसे सच में बहुत प्यार करता हूँ।”
मैंने गहरी साँस ली और कहा, “यश, मैं… मैं किसी और से प्यार करती हूँ। माफ करना, मैं उसे छोड़ नहीं सकती। वो मेरी ज़िंदगी है।”
एक पल में माहौल शांत हो गया। सब लोग ऐसे बर्ताव करने लगे जैसे ये सीन हुआ ही नहीं।
यश मुस्कुरा रहा था, लेकिन उसकी आँखें भीगी हुई थीं।
“मुझे खुशी है कि तुम किसी से प्यार करती हो,” उसने कहा, “और माफ करना अगर मैंने तुम्हें सबके सामने awkward feel कराया।”
उसकी आँखों में वो नर्मी थी जो मुझे पल भर के लिए लगा—शायद ये अच्छा इंसान है।
लेकिन तभी… वो मेरे पैरों के पास झुक गया।
“तुम ठीक हो?” उसने पूछा।
मैंने घबराकर कहा, “तुम क्या कर रहे हो?”
उसने हाथ में मेरी पायल दिखाई—“ये तुम्हारी है, जो भागते समय गिर गई थी।”
मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गई—क्या इसे पता है कि मैं इसका सच जानती हूँ?
उसने मेरी आँखों में देखते हुए बस कहा—“हाँ।”
“क्या… क्या कहा तुमने?”—मेरे मुँह से निकला।
“हाँ, मुझे पता है कि तुम जानती हो… मैं एक वैम्पायर हूँ।”
मेरे दिमाग में जैसे घंटियाँ बजने लगीं—1… 2… 3… ओह, भगवान!
और फिर उसकी मुस्कान…
“हाँ, मैं किसी भी इंसान के मन की बातें सुन सकता हूँ।”
उसका चेहरा मेरे चेहरे के बिल्कुल पास था… और उसकी साँसों की गर्मी मेरी त्वचा को छू र
कॉलेज का प्लेग्राउंड उस शाम कुछ और ही लग रहा था।
हवा में नमी थी, और ज़मीन पर हल्की धूप और पेड़ों की लंबी-लंबी परछाइयाँ फैली थीं। आस-पास क्रिकेट खेलते लड़कों की चिल्लाहट, बेंच पर बैठे स्टूडेंट्स की हँसी… और बीच में मैं।
यश मेरे बिल्कुल पास खड़ा था। इतना पास कि उसकी गर्म साँसें मेरी त्वचा से टकराकर अजीब-सा कंपन पैदा कर रही थीं।
मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो रही थी—पर इससे पहले कि मैं कुछ कह पाती, अचानक मेरे कानों के पास एक गहरी, जानी-पहचानी आवाज़ गूँजी—
“ये सब क्या हो रहा है?”
मैंने पलटकर देखा।
वो… मेरा बड़ा भाई, रवि था।
यश तुरंत पीछे हट गया।
रवि की नज़रें हम दोनों पर ठहर गईं। उसके होंठों पर हल्की-सी मुस्कान थी, लेकिन आँखों में गंभीरता छिपी हुई थी।
रवि (धीरे, हल्की मुस्कान के साथ):
“तो, यहाँ क्या चल रहा है?”
मैं (हड़बड़ाकर):
“आप यहाँ?”
यश की आँखें सिकुड़ गईं। शक से भरी आवाज़ में उसने पूछा—
यश:
“ये कौन है?”
रवि (सीधे स्वर में):
“मैं… जाचु का—”
मैं (बीच में ही, तेज़ी से):
“रुको रवि! यश, तुम्हें तुम्हारा जवाब मिल गया ना? अब मैं जा रही हूँ।”
मैंने रवि का हाथ कसकर पकड़ा और वहाँ से चल दी। जाते-जाते रवि ने यश की तरफ़ हल्की मुस्कान फेंकी—
रवि:
“बाय।”
यश वहीं खड़ा रह गया। उसकी आँखें हमें जाते हुए देख रही थीं।
उसके भीतर एक ठंडी आवाज़ गूँजी—
(भीतर की फुसफुसाहट):
“वो तुमसे डरती है। वो इंसान है… और कोई इंसान कभी वैम्पायर से प्यार नहीं करेगा। उसे भूल क्यों नहीं जाते?”
यश ने दाँत भींचते हुए धीरे से कहा—
यश (ठंडी साँस लेकर):
“नहीं। मैं यहाँ उसे ढूँढने आया हूँ। उसे अपने साथ ले जाने… और उसे फिर से बनाने के लिए।”
इतना कहते ही उसके बैग से एक छोटा-सा चमगादड़ फड़फड़ाता हुआ निकला और उसके कंधे पर बैठ गया।
चमगादड़ (कर्कश हँसी के साथ):
“वो रवि से बहुत प्यार करती है। यही उसका बॉयफ्रेंड है। उसने कहा था न, वो किसी और से प्यार करती है? वही है वो।”
यश की आँखों में एक अजीब-सी चमक उभरी।
यश:
“क्या सचमुच उसका बॉयफ्रेंड है? नहीं… मुझे नहीं लगता। उसने बस ये कहा ताकि मैं दूर रहूँ।”
चमगादड़ ने खिसियानी हँसी हँसी—
चमगादड़:
“अगर तुम चाहो तो रवि को ख़त्म कर सकते हो। फिर देखना, जाचु तुम्हारे पास कैसे आती है।”
यश ने सख़्त आवाज़ में कहा—
यश:
“नहीं। हम किसी इंसान को मार नहीं सकते।”
चमगादड़ (धीरे, खतरनाक फुसफुसाहट में):
“ठीक है… पर पीछा करके डराया तो जा सकता है। थोड़ी-सी धमकी, और हमारा काम आसान हो जाएगा।”
यश की आँखें गहरी होती चली गईं। भीतर अँधेरा और घना हो रहा था।
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सीन: कैफ़े
शहर की एक पुरानी सड़क के कोने पर छोटा-सा कॉफ़ी कैफ़े था। बाहर हल्की बारिश की बूंदें गिर रही थीं और शीशे पर पानी की रेखाएँ बन रही थीं।
अंदर पीली रोशनी और कॉफ़ी की खुशबू फैली थी।
मैं और रवि खिड़की के पास वाली टेबल पर बैठे थे। मेरे हाथ में कॉफ़ी का मग था, जिससे भाप धीरे-धीरे उठ रही थी।
रवि ने सीधे सवाल किया—
रवि:
“वो लड़का कौन था? क्या वो तुम्हारा बॉयफ्रेंड है?”
मैं झिझकी, नज़रें झुकाईं—
मैं:
“नहीं भैया… ऐसा कुछ नहीं है। वो बस मेरा कॉलेजमेट है।”
रवि ने हल्की हँसी छोड़ी और सिर हिलाया—
रवि:
“देखने से तो ऐसा बिल्कुल नहीं लगा। चलो छोड़ो… मुझे सब पता है। तुम उसे पसंद करती हो।”
मैं (हड़बड़ाकर):
“क्या…?”
रवि (धीरे, मुस्कुराकर):
“हाँ। मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूँ। मुझे सब पता रहता है कि तुम कहाँ हो, किससे मिल रही हो।”
मैंने गहरी साँस ली और सवाल किया—
मैं:
“ठीक है… पर आप आज कॉलेज आए ही क्यों थे?”
रवि का चेहरा अचानक गंभीर हो गया। उसकी आँखों में मुस्कान की जगह चिंता उतर आई।
रवि (गंभीर स्वर में):
“जाचु, तुम्हें याद है आज कौन-सा दिन है?”
मैंने मासूमियत से जवाब दिया—
मैं:
“क्या? आज… मेरा बर्थडे?”
रवि (आँखें ठंडी करते हुए):
“नहीं। आज अमावस की रात है। और आज तुम्हें घर के बाहर बिल्कुल नहीं निकलना चाहिए था।”
मैं (धीरे):
“पर भैया… वो सब तो रात 8 बजे के बाद होता है न?”
रवि (सख़्ती से):
“नहीं जाचु। समय का कोई भरोसा नहीं। तुम्हें पता है, हमारी बस्ती से कितने लोग अमावस पर गायब हो चुके हैं। पुलिस भी उन्हें कभी नहीं ढूँढ पाई। मैंने तुम्हें रोका था, फिर भी तुम कॉलेज चली गई।”
मैंने सिर झुका लिया। गिल्ट से भरकर कहा—
मैं:
“माफ़ करना भैया… मुझे सचमुच ज़रूरी काम था।”
रवि ने मेरा हाथ कसकर थाम लिया। उसकी आँखों में भाई का डर और मोह साफ़ झलक रहा था—
रवि (धीरे, काँपती आवाज़ में):
“तुम ही मेरी सब कुछ हो, जाचु। अगर माँ-बाप ज़िंदा होते तो शायद मुझे इतनी चिंता नहीं करनी पड़ती। पर अब… तुम ही मेरा परिवार हो। तुम्हें मैं कुछ नहीं होने दूँगा।”
मेरी आँखें भीग गईं। मैंने सिर झुका लिया।
और तभी… कैफ़े के बाहर, बारिश से धुँधले काँच के पीछे…
यश खड़ा था।
वो हमें देख रहा था—पर हमारी बातें नहीं सुन पा रहा था।
उसके कंधे पर चमगादड़ दुबककर बैठा था। उसने फुसफुसाया—
चमगादड़ (धीमे ज़हर भरे स्वर में):
“देखा? कैसे दोनों हाथ पकड़कर बैठे हैं? ये प्यार नहीं तो और क्या है?”
यश की आँखें लाल हो उठीं। उसने दबी आवाज़ में कहा—
यश:
“नहीं। मैं उसे नहीं छोड़ूँगा।”
Countinue.....
BY POOJA KUMARI