मेरे प्रिय साथियों
स्नेहिल नमस्कार
कई मित्रों को लगता है कि यदि वे सामने वालों के अपमानजनक व्यवहार का उत्तर उससे भी अधिक धाँसू ज़ोरदार व्यवहार में नहीं लौटाएंगे तो वे सामने वाले के सामने बौने हो जाएंगे। ऐसा क्यों भला? क्या हम इतने कमज़ोर हैं कि किसे के अपशब्दों से टुकड़े टुकड़े हो जाएंगे?
कई बार तो मैंने यहाँ तक सुन लिया कि रीढ की हड्डी ही नहीं है। सच कहूँ मित्रों तो मुझे उनकी बात पर क्रोध नहीं, हँसी आई और मैं वहाँ से हट गई? क्या हमारे पास इतना समय और ऊर्जा होती है कि हम तीरों का उत्तर
सामने से आने वाले तीर से और अधिक नुकीले तीर से दें?
ऐसे ही करते करते उम्र का समय हमें धकेल कर कगार पर ला खड़ा करता है और एक दिन हम....
मुझे लगता है जब हम क्रोध के बजाय शांति, अस्वीकृति के बजाय स्वीकृति और तुलना की जगह संतोष को चुनते हैं तो हम अपनी समस्त ऊर्जा को सद्भाव की ओर ले जाते हैं। इससे हमारा मन शांत, प्रेमपूर्ण ओर करुणामय हो जाता है। इसलिए विवेकपूर्ण विचार अधिक उपयोगी नहीं है, मधुर बोलना, किसी की सहायता करना, किसी के काम आ जाना स्वस्थ मानसिकता तैयार नहीं कर सकता?अपने भीतर झाँकना, कितना सुकून देता है, आईना दिखाता है। सोचकर देखें, यदि हम यह व्ययवहार अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें तो भीतर से कितने सहज रहेंगे। इससे हम अपनी ऊर्जा को नए आयाम दे सकेंगे। हम ऐसा संकल्प लें जो हमारी चेतना को गिरने से रोके। हम अपने आत्मिक संकल्प को एक नए पर्व की तरह मनाएं, तो हम सही मायनों में अपनी नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक ऊर्जा की ओर ले जा सकेंगे। ऐसा होना संभव है न मित्रों?
हम स्वयं को, समस्त परिवार को, मित्रों को शारिरिक, मानसिक और डिजिटल रूप से स्वस्थ रख सकें, यह बदलाव हमारे अपने व्यवहार से हो सकता है, हमें इस आश्वस्ति को लेकर चलना होगा।
प्रत्यंचा चढ़ाने के कौशल से ही तीर सटीक निशाने पर लगता है। यह सिद्धांत जीवन में भी लागू होता है। जिस प्रकार प्रत्यंचा तीर को उसके लक्ष्य तक पहुंचने में महत्वपूर्ण होती है वैसे ही हमारे जीवन में लक्ष्य को पाने के लिए अनुशासन का होना आवश्यक होता है। कहना गलत नहीं होगा कि जीवन के लक्ष्य को हम अनुशासन की प्रत्यंचा से, प्रेम के व्यवहार से साध सकते हैं, सामने से आने वाले तीरों के तीखे प्रत्युत्तर से नहीं।हम जानते हैं प्रेम वृत्त में बँधकर नहीं रहता।
आप सबकी मित्र
डॉ. प्रणव भारती