परिचय
मेरा नाम अर्चना कुमारी है और मैं एटा, उत्तर प्रदेश की निवासी हूँ। मैंने बीए हिंदी की शिक्षा प्राप्त की है।
मेरी पहली पुस्तक, "अनकहे त्याग: अर्धांगिनी", उन पत्नियों के अनकहे त्याग और निःस्वार्थ प्रेम को समर्पित है, जिन्हें अक्सर समाज में नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। इस पुस्तक में मैंने कविताओं और विचारों के माध्यम से यह दर्शाने का प्रयास किया है कि कैसे पत्नियों के प्रेम को अक्सर प्रेमिका के प्रेम से तुलना करके स्वार्थी समझा जाता है, जबकि उनका त्याग और समर्पण अतुलनीय है।
मैंने इस पुस्तक में ऐसे सरल और सहज शब्दों का प्रयोग किया है, ताकि पाठक बिना किसी कठिनाई के हर भावना और विचार को आसानी से समझ सकें। मेरा उद्देश्य उन सभी अर्धांगिनियों के बलिदानों को उजागर करना है, जिन्हें शायद किसी ने देखा नहीं या देखना नहीं चाहा। यह पुस्तक पत्नियों के उस निःस्वार्थ प्रेम का एक मौन परंतु सशक्त वर्णन है, जो हमारे जीवन का आधार है।
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प्रस्तावना
मेरी किताब का उद्देश्य सिर्फ उन पुरुषों और प्रेमिकाओं को जागरूक करना है कि प्रेम में प्रेमिका का रास्ता सरल होता है और पत्नी का रास्ता जटिल। मेरा उद्देश्य न तो किसी की भावनाओं को आहत करना है, न किसी को नीचा दिखाना, और न ही कोई तुलना करना।
मुझे बस सबको यह समझाना है कि पत्नी के प्रेम को स्वार्थ से जोड़ना सरासर गलत है। आजकल सोशल मीडिया पर पत्नी और प्रेमिका की तुलना ट्रेंडिंग में है, जिसमें कुछ लेखकों और प्रेमिकाओं ने तुलना करके पत्नी को स्वार्थी बताया है, जो कि बिल्कुल गलत है।
मैंने इस पुस्तक के माध्यम से अनगिनत पत्नियों के त्याग और प्रेम को समझाया है। कविता, रचना, विचारों और अपने तर्कों से मैंने यह बताने का प्रयास किया है कि पत्नियों के सम्मान, त्याग और निःस्वार्थ प्रेम को प्रेमिका से कम क्यों समझा जाता है। इस पुस्तक में उन कारणों और समस्याओं पर भी प्रकाश डाला गया है।
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प्रेमिका का प्रेम निःस्वार्थ क्यों?
प्रेमिका का भार प्रेमी न उठावे,
हर ज़रूरत उसके माता-पिता निभावे।
इस रिश्ते में स्वार्थ का न नाम,
बस मिलता है प्रेम का ही मुकाम।
सप्ताह या माह में मिलन होवे,
हर दुख-दर्द प्रेमी-प्रेमिका संजोवे।
परिवार और क्लेश से दूर ये जोड़ी,
जिम्मेदारी का भार नहीं, प्रेम की ये डोरी।
इसलिए ये रिश्ता लगता है आसान,
नज़र आता है प्रेम का सच्चा मान।
पर समाज इसे निःस्वार्थ प्रेम कहे,
शायद पति पत्नी का प्रेम न सहे।
पत्नी का प्रेम स्वार्थ से तोला जाए,
प्रेमिका से उसकी तुलना हो जाए।
जब पत्नी का भार पति पर आए,
खर्चों का हिसाब वो सबको सुनाए।
कहता है पत्नी बहुत खर्चा करवाए,
इसलिए पत्नी का प्रेम स्वार्थ कहलाए।
---विश्वासघात और लांछनः एक पत्नी का दर्द
जब पति अपनी पत्नी को धोखा देता है,
वो अकेली रहना चाहती है, सबसे दूर भागती है।
पीठ पीछे पति उसके, लांछन लगाता है,
"किसके लिए रहती है," ये सवाल उठाता है।
सच में, कुछ पति अपनी गलती छिपाने को,
अपनी पवित्र पत्नी को 'कुलटा' कहते हैं, बदनाम करते हैं।
जबकि पत्नी का किरदार तो पवित्र होता है,
फिर भी उसे झूठे आरोपों में फँसाया जाता
एक अनकही प्रेम कहानी
कुछ कवियों ने, कुछ लेखकों ने,
प्रेमिका पर लिखी किताबें अनेक।
शायरी, कविता, फ़िल्मों में भी,
छाई उसकी प्रेम-पीड़ा, हर एक।
पर एक कहानी, अनसुनी सी,
छिपी रही, न मिली जिसे पहचान।
एक लड़की, अपने भविष्य के पति को,
समर्पित, जिसका पवित्र था ध्यान।
ना कोई आँखें लड़ीं, ना मन डोला,
ना जीवन में किसी और का था काम।
बस एक ही धुन, एक ही संकल्प,
पति ही होगा प्रिय, बस उसका ही नाम।
इस सदी में, जहाँ सिंगल लड़कियाँ
ढूँढ़ती आज़ादी, अपनी पहचान।
वहाँ वो, बिना दबाव, बिना किसी के,
ईमानदार अपने संकल्प पर महान।
ये कैसा त्याग, ये कैसी निष्ठा,
जो शायद प्रेमिका भी ना कर पाए।
एक अनदेखी पवित्रता, एक अटूट आस,
जिस पर कवि की कलम ना च
तुलना व्यर्थ है
दरअसल, प्रेमिका और पत्नी में तुलना करना व्यर्थ है, क्योंकि एक दिन प्रेमिका पत्नी बनेगी और और भी अपने सिर मढ़ेगी जो पत्नी के लिए मढ़ा। जिस दृष्टि से पत्नी को देखा, वैसे प्रेमिका इन परिस्थितियों से गुजरेगी।
और कभी लेखक और पुरुष शायद भूल गए कि प्रेमिका का कोई स्थान नहीं ले सकता, लेकिन प्रेमिकाओं को लेना पड़ा पत्नी का स्थान। और शादी के बाद इनको भी भुगतान करना पड़ा। सच, तुलना करना व्यर्थ है क्योंकि ये दोनों ही पहले स्त्री हैं, बाद में किसी की प्रेमिका और पत्नी हैं।
क्या पता है कि ये प्रेमिका आजीवन तक प्रेमिका नहीं रहेगी? किसी-किसी की शादी करके पत्नी बनेगी। घूम-फिर कर बनना पत्नी ही है। क्योंकि राधा भी कृष्ण की पत्नी बनीं और वो पार्वती प्रतीक्षा अंत में पत्नी बनीं। और फिर भी कोई