काला स्टेशन 🚉🌑
भाग 1 – रहस्यमयी स्टेशन
बिहार और बंगाल की सीमा पर एक पुराना रेलवे स्टेशन था – काला स्टेशन। आधिकारिक रिकॉर्ड में उसका नाम कई सालों पहले हटा दिया गया था, क्योंकि वहाँ से कोई ट्रेन अब रुकती ही नहीं थी। लेकिन गाँव के लोग कहते थे कि रात के बारह बजे वहाँ से एक अजीब सी ट्रेन गुजरती है। उस ट्रेन की सीटी साधारण नहीं होती, बल्कि किसी के चीखने जैसी लगती है।
राहुल, पटना का एक युवक, अपने दोस्त की शादी से लौट रहा था। ट्रेन लेट हो चुकी थी और थकान की वजह से वो नींद में था। जब उसने आँख खोली तो पाया कि ट्रेन एक सुनसान स्टेशन पर खड़ी है। उसे लगा कि ये कोई छोटा स्टेशन होगा, लेकिन बोर्ड पर धुंधले अक्षरों में लिखा था – काला स्टेशन।
---
भाग 2 – पहला डर
राहुल ने अपना बैग उठाया और प्लेटफॉर्म पर उतर गया। चारों ओर अंधेरा था, बस एक पुराना लैम्प जल रहा था जिसकी रोशनी आधी बुझी हुई थी। पूरा प्लेटफॉर्म सूना था। कहीं कोई कुली नहीं, न चायवाला, न यात्री। सिर्फ खामोशी।
अचानक उसने देखा – प्लेटफॉर्म के एक कोने पर कोई खड़ा है। लंबा-सा आदमी, फटे हुए कपड़े और सिर झुका हुआ। राहुल ने हिम्मत करके आवाज दी –
“भाईसाहब, अगली ट्रेन कब आएगी?”
उस शख्स ने सिर उठाया। उसका चेहरा काला पड़ चुका था, जैसे जल चुका हो। उसकी आँखें लाल आग की तरह चमक रही थीं। राहुल के रोंगटे खड़े हो गए।
---
भाग 3 – अतीत की परछाइयाँ
राहुल घबराकर पीछे हटा। तभी पुराना लैम्प टिमटिमाने लगा और पूरे प्लेटफॉर्म पर जैसे सैकड़ों साये घूमने लगे। कानों में चीखें गूंजने लगीं – “भागो… भागो…”
उसी वक्त राहुल के पास एक बूढ़ा आदमी आकर बैठ गया। उसका चेहरा सामान्य था लेकिन आँखों में डर साफ झलक रहा था। उसने कहा:
“बेटा, तुम गलत जगह उतर गए हो। ये स्टेशन अब ज़िंदा लोगों के लिए नहीं है।”
राहुल ने काँपते हुए पूछा – “क्यों? यहाँ क्या हुआ था?”
बूढ़े ने गहरी साँस ली और बोला:
“बीस साल पहले यहाँ एक भीषण हादसा हुआ था। आधी रात को एक ट्रेन पटरी से उतर गई थी। सैकड़ों यात्री मारे गए। लेकिन उनकी आत्माएँ अब तक चैन से सो नहीं पाईं। हर रात बारह बजे वही ट्रेन लौटती है… अपने यात्रियों को साथ लेकर।”
---
भाग 4 – आत्माओं की ट्रेन
राहुल ने देखा कि घड़ी ने बारह बजा दिए। अचानक सीटी की भयानक आवाज आई। ट्रैक पर एक पुरानी ट्रेन दिखाई दी। धुआँ, चीखें और खून की गंध पूरे स्टेशन में फैल गई।
ट्रेन धीरे-धीरे प्लेटफॉर्म पर रुकी। खिड़कियों से चेहरे झाँक रहे थे – कुछ बिना आँखों के, कुछ आधे जले हुए, कुछ खोपड़ी जैसे। सब राहुल की तरफ देख रहे थे।
बूढ़ा काँपती आवाज में बोला – “ये वही लोग हैं… जो उस हादसे में मरे थे। और अब ये हर नए यात्री को अपने साथ ले जाते हैं।”
ट्रेन का दरवाज़ा अपने आप खुल गया। अंदर से सड़े-गले हाथ बाहर निकले और राहुल को पकड़ने लगे। उसका गला सूख गया।
---
भाग 5 – भागने की कोशिश
राहुल ने पूरी ताकत से खुद को छुड़ाया और प्लेटफॉर्म पर दौड़ पड़ा। पीछे-पीछे डरावनी हँसी और चीखें गूंज रही थीं। अचानक उसके पैरों के नीचे ज़मीन फटने लगी। उसे लगा कि वो किसी गहरी खाई में गिर जाएगा।
लेकिन तभी किसी ने उसका हाथ पकड़ लिया। वही बूढ़ा था। उसने राहुल को खींचकर प्लेटफॉर्म से बाहर किया और चिल्लाया – “भाग जा! सूरज निकलने से पहले निकल जा!”
राहुल किसी तरह अंधेरे जंगल की तरफ भागने लगा। पीछे मुड़कर देखा तो ट्रेन फिर से गायब हो चुकी थी। प्लेटफॉर्म फिर से शांत, लेकिन उस शांत माहौल में अभी भी कराहने की आवाजें गूंज रही थीं।
---
भाग 6 – सच्चाई का खुलासा
सुबह होने पर राहुल गाँव वालों तक पहुँचा और सारी बात बताई। गाँव वाले हैरान नहीं हुए। उन्होंने कहा –
“तुम्हें बचाकर लाने वाला बूढ़ा कोई इंसान नहीं था। वो भी उसी हादसे में मारा गया था। शायद उसकी आत्मा अधूरी है, इसलिए वो हर बार नए लोगों को बचाने की कोशिश करता है।”
राहुल के हाथ काँप रहे थे। उसे एहसास हुआ कि वो ज़िंदा तो बच गया, लेकिन उसकी आत्मा अब कभी चैन से नहीं रह पाएगी। क्योंकि उसने काला स्टेशन देख लिया था।
---
भाग 7 – अधूरी यात्रा
कई साल बीत गए। राहुल अब शहर में रहता है, लेकिन रात के बारह बजे उसके कानों में अब भी वही सीटी गूंजती है। कभी-कभी उसे खिड़की के बाहर वही ट्रेन दिखती है – जली हुई खिड़कियाँ, सड़ते चेहरे और खून से सनी पटरी।
राहुल जानता है कि उसकी यात्रा अब भी अधूरी है। एक दिन वो भी उस ट्रेन का यात्री बन जाएगा।
---
समाप्त 👻✨