इश्क़ में तबाही
एपिसोड 1– भागना, जंगल और नई राह
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🌌 भागते हुए सुरेश
गांव का सूरज ढल चुका था।
सुरेश अपने कदमों की आवाज़ सुनते हुए भाग रहा था।
हर मोड़ पर डर और मौत की परछाई—पुलिस उसके पीछे, और गांव वालों का गुस्सा लगातार पीछा कर रहा था।
उस दिन क्या हुआ था?
लड़की के परिवार का एक सदस्य मारा गया, और लोग तुरंत सुरेश को दोषी मान बैठे।
सुरेश जानता था—सच्चाई चाहे जो हो, अब उसे सिर्फ़ अपनी जान बचानी है।
> “अगर मैं रुकूँगा… अगर मैं उसी दिन कह दूँ कि मैंने नहीं किया… तो शायद मुझे यह सब सहना पड़ेगा।”
पैर लहूलुहान, सांसें तेज़, और आँखों में दर्द।
वह जंगल की तरफ़ कूच करता है, जहां घने पेड़ और झाड़ियों में छुपने की जगह थी।
🌌 जंगल की रात
जंगल की रात डरावनी थी। ठंडी हवा, झाड़ियों की सरसराहट और दूर कहीं से आती सिर-पसीने वाली खामोशी।
और बीच में खड़ा था सुरेश।
बिखरे बाल, माथे पर पसीना, हाथ में पुरानी बंदूक।
आंखों में डर नहीं, बस थकी पर अजीब-सी चमक।
पुलिस का घेरा चारों तरफ़। मशालों और टॉर्च की रोशनी झाड़ियों को चीर रही थी।
> “सुरेश! हथियार डाल दे… तेरा खेल ख़त्म है!”
थानेदार की आवाज़ जंगल में गूंज रही थी।
सुरेश ने सिर झुका लिया। कोई चुनौती नहीं, बस आंखें आसमान की ओर उठाईं।
> “मैं कातिल नहीं हूँ… मैंने किसी को नहीं भगाया… लेकिन तुम सबने मुझे डाकू बना दिया।”
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🌲 जंगल का जीवन
जंगल में पहली रात डरावनी थी।
सुरेश भीषण भूख और थकान के बावजूद झाड़ियों में छुपा।
तालाब का गंदा पानी पीता, और खुद से सवाल करता—
> “क्या सच में सीधेपन से कुछ हासिल होता है? या दुनिया सिर्फ चालाकों के लिए है?”
धीरे-धीरे उसकी मासूमियत और मास्टर वाला पहलू मरता गया।
अब बचा सिर्फ एक सुरक्षात्मक, मजबूत और सावधान भगोड़ा, जो किसी पर भरोसा नहीं करता।
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👥 चोरों का झुंड और नरेश
कुछ दिन बाद, जंगल में उसे कुछ चोरों का झुंड मिला।
सुरेश ने देखा—उनमें उसका पुराना दोस्त नरेश भी था।
सुरेश ने उसे उठाया और पूछा:
> “नरेश, तुम यहां क्या कर रहे हो? पानी-खाने के लिए आया?”
नरेश ने सारी कहानी बताई—गांव में जो हुआ, लड़ाई, इल्ज़ाम, और पुलिस का पीछा।
सुरेश ने मन में ठानी—
> “अगर मैं सीधेपन से चलता रहा, तो लोग मेरा फायदा उठाते रहेंगे। अब समय है कि मैं सबक सिखाऊँ।”
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💭 मन की आवाज़
सुरेश की आँखें झाड़ियों में झांकती थीं।
वह सोचता था:
> “अगर मैं पहले ही मजबूत बन जाता, तो शायद इतना नुकसान नहीं होता।
लेकिन अब मैं तैयार हूँ। अब मैं उन लोगों से इंसाफ़ का हिसाब लूंगा।
कोई मासूम नहीं सजा भुगतेगा, कोई अपराधी नहीं बच जाएगा।”
नरेश ने उसे चेतावनी दी:
> “सीधेपन से कुछ नहीं होगा, सुरेश। अब जो होना है, वही होगा।”
सुरेश की आवाज़ अंदर से गूँजी:
> “हां, अब मैं सबक सिखाने के लिए तैयार हूँ… पर सही और गलत की अपनी रेखा के साथ।”
वर्तमान – जंगल में गोलीबारी
पुलिस की गोलियां चल रही हैं।
सुरेश ने बंदूक कसकर पकड़ ली।
अब उसके आंखों में डर नहीं, सिर्फ़ आँसुओं की चमक।
> “तुम सबने मुझे डाकू बना दिया। अगर उस दिन मुझ पर इल्ज़ाम न लगता…
तो आज मैं बच्चों को पढ़ा रहा होता, न कि ये बंदूक थामे खड़ा होता।”
जंगल की खामोशी टूट गई।
सुरेश की जिंदगी एक नए मोड़ पर, जहां से शुरू होती है
“इश्क़ में तबाही” की असली दास्तान।
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