Opposite pole in Hindi Short Stories by Deepak sharma books and stories PDF | विपरीत ध्रुव

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विपरीत ध्रुव

 

विषय नाज़ुक है और स्थिति जटिल…..

पत्नी मेरी प्रेमपात्र है और पति मुझे अपना विश्वासपात्र बनाए चले जा रहा है…..

“तुम्हारी मै'म ने आजकल घर को मुक्केबाज़ी का अखाड़ा बना रखा है…..”

“और आप ने उसे घुड़दौड़ का मैदान!” नंदन वशिष्ठ की शिकायत को मैं हंसी में टाल देती हूं।

“तुम्हारी मै'म कनक के साथ ऐसी नृशंस हैं कि क्या बताऊं?”

“मै’ म के क्रोध को कनक स्वंंय न्योता देती है,” मैं पत्नी का पक्ष लेती हूं, “मै’ म उसे पढ़ाई की ऊंची देहरी पर देखना चाहती हैं और वह फ़ैशन की दुनिया में प्रवेश चाह रही है…..”

एक फ़ैशन हाउस द्वारा आयोजित एक टीन प्रिंसेस प्रतियोगिता में कनक भाग लेने जा रही है।

प्रभा मै'म के कड़े विरोध के बावजूद।

नंदन वशिष्ठ के प्रोत्साहन के बूते पर : “इस में भाग लेने से कनक का व्यक्तित्व और निखरेगा, उस की बुद्धि और चमकेगी…..”

जब कि प्रभा मै'म का तर्क है– “सिद्धांत के स्तर पर मैं इस के विरुद्ध हूं। एक तो वह फ़ैशन हाउस अपनी उपभोज्य वस्तुओं का बाज़ार तैयार करने की खातिर युवतियों का शोषण करना चाहता है और दूसरे, इस से पुरुषों द्वारा दिए गए नारे- ब्यूटीफ़ुल इज़ फ़्रेल (वही सुंदर है जो कृशकाय है) को बढ़ावा मिलता है…..”

“आप क्यों भूल जाती हो इस वर्ष कनक अठारह की होने जा रही है, जब कि तुम्हारी मै'म को पचास पार किए हुए एक साल से ज़्यादा हो रहा है……”

कनक उनकी दत्तक पुत्री है। जिसे उन्हों ने उस के तीसरे वर्ष में अपने विवाह के कुछ ही माह बाद गोद लिया था।

बेशक, उन के प्रेम- विवाह का प्रेम अब इतिहास बन चुका है, किंतु सन 2010 में रचे गए उन के उस विवाह ने तब तीखी प्रतिक्रियाएं बटोरी थीं। अस्सी किलो,पांच फ़ीट दो इंच की छत्तीस-वर्षीया प्रभा मै'म अपने कालेज के मनोविज्ञान विभाग में रीडर थीं और सत्तर किलो,छह फ़ुट एक इंच के छब्बीस वर्षीय नंदन वशिष्ठ एक अंशकालिक अध्यापक।

 

“मेरा हाथ पकड़े रहिएगा,  पपा…..”

कनक खूब ऊंची एड़ी की सैंडिल पहन कर चलने का अभ्यास कर रही है।

नंदन वशिष्ठ का हाथ थाम कर।

प्रभा मै'म के ‘हो’, ‘हे’ के बीच।

जब मै'म का कष्ट मुझ से देखे नहीं बनता तो वातावरण को सहज बनाने के लिए मैं हंसती हूं, “मै'म अपनी बेटी को ‘रेड शूज़’ में देखना चाहती हैं और आप उसे ‘गोल्डन स्लीपरज़’ में……”

परी कथा वाली सिंड्रैला के प्रसिद्ध फ़र स्लीपर को जानबूझ कर उमेठ कर मैं ने सोने के बना दिए हैं।

“रेड शूज़?” अपने कदम रोक कर कनक मुझ से पूछती है।

“रेड शूज़ माने ‘शूज़ औव आर्ट’,” मैं कहती हूं, “ऐन सेक्सटन की एक कविता है, ‘रेड शूज़’। जो मैं ने पहली बार मै'म ही से सुनी थी और आज मैं उसी पर लिखी हुई अपनी टिप्पणी मै'म को दिखाने लाई हूं…..”

 

इन दिनों मैं ‘रचनात्मक ऊर्जा एंव स्त्री- मनोरोग’ विषय पर शोध कर रही हूं।

प्रभा मै'म के संचालन एंव सरंक्षण में। इधर पिछले वर्ष से। जब अपनी पी.सी.एस. के अंतर्गत मेरी नियुक्ति अपने ही कस्बापुर में मुख्य विकास अधिकारी के पद पर हुई थी।

इक्कीस वर्ष पहले भी मैं प्रभा मै'म की छात्रा रही थी। जब यह कालेज केवल स्नातक कक्षाओं तक ही था। किंतु जब तक मैं लखनऊ से मनोविज्ञान में एम.ए. पूरी करने के बाद कस्बापुर लौटी तो प्रभा मै'म ही की अनुशंसा पर मुझे यहां पर एक अंशकालिक अध्यापिका की नियुक्ति भी मिल गई थी।

नंदन वशिष्ठ जब तक यहां एक वर्ष पहले ही से एक अंशकालिक अध्यापक रहा था। वास्तव में हम दोनों उस दौरान अपने भीतर एक दूसरे के नाम पर एक प्रेम- पुंज एकत्रित भी करते रहे थे किंतु उस समय हम दोनों पर ही अपने-अपने परिवारों का बोझ रहा था और हम उस पूंजी का लाभ नहीं उठा पाए थे। और नंदन वशिष्ठ ने मेरे पी.सी.एस. में आते ही प्रभा मै'म से विवाह रचा लिया था।

अपने विवाहोपरांत उस ने अपना कालेज अध्यापन छोड़ दिया था।अपना फ़ोटो स्टूडियो खोलने के लिए।  प्रभा मै'म की तेरह- वर्षीय नौकरी के बैंक खाते के बल पर। फ़ोटोग्राफ़ी के अपने कौशल को आधार बनाकर।

 

“ऐन सेक्सटन हमारे किसी काम की नहीं,” मेरी ओर देख कर नंदन वशिष्ठ अपना हाथ कनक की ओर बढ़ा देता है, “न ही इन की मै'म। हमें आगे बढ़ना है। प्रकाश की ओर। सफलता की ओर। कम, प्रैक्टिस सम मोर…..”

रोमांचित और प्रफ़ुल्लित मुद्रा में कनक उस का हाथ फिर थाम लेती है। और धीर,संतुलित कदम भरने लगती है।

“मैं किसी काम की नहीं?” तमतमाए अपने चेहरे के साथ प्रभा मै'म अपने हाथ से नंदन वशिष्ठ का हाथ झकझोरती हैं, “मेरे बारे में जो बोले, उसे फिर से कहो तो…..”

“मैं बाद में आती हूं,” उस युद्धस्थिति से मैं भाग खड़ी होती हूं।

 

अगले दिन मेरे ज़िलाधिकारी मुझ से कहते हैं : इसी सप्ताह के मध्य में घटित होने वाली टीन प्रिंसेस प्रतियोगिता में उन के स्थान पर एक निर्णायक की हैसियत से मुझे जाना होगा क्योंकि उसी दिन हमारे मंडलायुक्त सपत्नीक हमारे कस्बापुर में पधार रहे हैं।

उन के इस प्रस्ताव ने मुझे एक नया उद्देश्य दे डाला है। और उत्साह से भर कर मैं मै'म के घर जा पहुंचती हूं : “कनक का घमंड, बस, टूटने ही वाला है…..”

“दिखाव-बनाव और चाल- ठवन में कनक यदि सब से आगे रहती भी है तो उसे प्रश्नोत्तर के दौर में आसानी से पिछेड़ा जा सकता है,” इस नई सूचना का प्रभा मै'म स्वागत करती हैं, “अब तुम्हीं उस से प्रश्न पूछना और उसे फ़ेल कर देना।”

“मेरी यही मंशा है, मै'म,” मैं कहती हूं, “लेकिन मेरा प्रश्न आप ही तैयार करेंगी,आप ही बनाएंगी, आप ही बताएंगी…..”

“मेरा प्रश्न तुम्हें समय रहते ज़रूर मिल जाएगा…..”

 

उसी शाम नंदन वशिष्ठ मेरे घर आन पहुंचता है।

पुराने दिनों की मानिंद।

“मुझे पता चला है कनक वाली निर्णायक मंडली में तुम भी रहोगी।”

नंदन वशिष्ठ का वह फ़ोटो स्टूडियो उसे आर्थिक लाभ पहुंचाने के साथ-साथ उसे लोकप्रियता दिलाने में भी सफ़ल सिद्ध हुआ है और अब कस्बापुर के महत्वपूर्ण समारोहों में वह विशेष रूप से आमंत्रित भी किया जाता है : उन के विवरण अपने कैमरे में दर्ज करने के लिए।

टीन प्रिंसेस की इस प्रतियोगिता के आयोजन में भी उसे इसी काम के लिए रखा गया है और वह उस फ़ैशन हाउस के सीधे संपर्क में है।

“हां,” नंदन वशिष्ठ से मैं झूठ नहीं बोल पाती हूं।

“मैं चाहता हूं प्रश्नोत्तर के दौरान तुम्हीं कनक की प्रश्नकर्ता रहो…..”

“ताकि मेरे प्रश्न का उत्तर आप उसे तैयार करा सकें?” मैं हंस पड़ती हूं।

“नहीं,”वह झेंप जाता है,“ताकि  अपने प्रश्न का सही उत्तर तुम्हीं उसे तैयार करा सको…..”

“इतना भरोसा है मुझ पर?”

“हां।बताओ तुम क्या पूछोगी?”

“आप ही कोई प्रश्न क्यों नहीं मुझे दे देते? फिर उस का सही उत्तर भी आप ही कनक को तैयार भी करवा सकेंगे। करवा  ही देंगे,” मैं ने बच निकलना चाहा है।

यों भी प्रभा मै'म का प्रश्न मेरे पास आना अभी बाकी है।

“ठीक है,” नंदन वशिष्ठ प्रसन्न है, “मेरा प्रश्न तुम्हें परसों तक मिल जाएगा और तुम्हें वही पूछना भी होगा। कनक के लिए यह प्रतियोगिता बहुत महत्व रखती है…..”

“और कनक आप के लिए,” मैं हंस पड़ती हूं, “उस की विजय की ललक जितनी आप में है, उतनी शायद उस में भी नहीं।”

“सच पूछो तो अब मेरे जीवन का आधार बस वही एकल लड़की है। उस के विचार मात्र से मेरे कंधों पर पंख उग आते हैं और उस के स्पर्श मात्र से जीवन एक आनंदोत्सव में बदल लेता है।”

“आप के इस पुलक,इस उन्माद के पीछे कोई काम- भावना तो नहीं? स्त्री-मद तो नहीं?” शासकीय सेवा में बीते इन पिछले पंद्रह वर्षों ने मुझे प्रौढ़ बना डाला है और अब किसी भी विषयवस्तु को युक्तियुक्त स्पष्टता के घेरे में लाने से मैं हिचकिचाती नहीं।

“संभवतः,” नंदन वशिष्ठ अपने कंधे उचकाता है।

“किंतु क्या यह नैतिक है? उचित है? प्रभा मै'म की संगति में आप उसे गोद ले चुके हैं। वह आप को पिता मानती रही है। पपा कहती है आप को…..”

“वह सब दिखावा है। तुम्हारी प्रभा मै'म को अपनी तरफ़ रखे रहने के लिए।”

“यह तो ठीक नहीं। आप केवल प्रभा मै'म ही के प्रति अन्याय नहीं कर रहे। कनक के प्रति भी यह अन्याय है …..”

“कनक को मैं परख चुका हूं। वह पूरी तरह मेरी तरफ़ है। मुझे उतना ही चाहती है, जितना मैं उसे। तुम्हें अपने युंग याद हैं? मन का लोलक विवेक और अविवेक के बीच डोलता है। सही और गलत के बीच नहीं…..”

उस के बोल मेरे मानस- पटल पर बल्लमनोक की तरह आ चुभते हैं। एक नोक पर यदि आश्रीय अबोध कनक की शुचिता दांव पर है तो दूसरी नोक पर अनुभवी,उपकारी प्रभा मै'म की पत्नी- प्रतिष्ठा…..

 

यह किसी संयोग से कम नहीं जो प्रभा मै'म और नंदन वशिष्ठ ने मुझे एक ही प्रश्न दिया है।

और अप्रतिभ हो रही अपनी अवस्था में दोनों को मैं ने आश्वासन भी एकरूप ही दिया है : कोई नहीं जान पाएगा यह प्रश्न मैं ने  नहीं तैयार किया।

दूसरा संयोग मुझे प्रतियोगिता के दिन देखने को मिलता है। मंडलायुक्त और ज़िलाधिकारी की पत्नियां भी प्रतियोगिता स्थल पर आ पहुंचती हैं और फ़ैशन हाउस के प्रवर्तक उन्हें निर्णायक मंडली में सम्मिलित कर लेते हैं।

नंदन वशिष्ठ अपनी उपायकुशलता फिर काम में लाता है और कनक को प्रश्न पूछने का उत्तरदायित्व मुझे ही सौंपा जाता है।

पति- पत्नी द्वारा अलग-अलग तैयार किया गया वह समरूप प्रश्न मैं ने दोहरा दिया है : यदि आप को अध्ययन और फ़ैशन में से एक चीज़ चुननी पड़े तो आप क्या चुनेंगी और क्यों ?

कनक का उत्तर उस की प्रकृति के ठीक विपरीत रहा है :

“फ़ैशन की उपेक्षा करना मूर्खता अवश्य है किंतु अध्ययन की उपेक्षा करना महामूर्खता। क्योंकि अध्ययन अपने आप में एक बहुत बड़ा प्रतिफल है। वर्जिनिया वुल्फ़ लिखती हैं, न्याय के दिन जब सर्वशक्तिमान ईश्वर के सामने युद्ध- विजेताओं एंव महान राजनीतिज्ञों के बीच हम अध्ययनकर्ता अपनी पुस्तकों के साथ न्याय की दिष्ट धारा के अंतर्गत अपने- अपने पुरस्कार पाने जाएंगे तो ईश्वर अवश्य बोल उठेंगे– इन पढ़ने वालों को देने के लिए हमारे पास कुछ भी नहीं है। ये लोग पहले ही से पुरस्कृत हैं। इन्हें अध्ययन से प्रेम रहा है…..”

पूरा हाल तालियों से गूंज उठा है और सभी के होंठों पर एक ही बात है – ताज का निर्णय तय है। ताज कनक को ही मिलेगा।

और ताज उसे मिलता भी है। वह ‘टीन प्रिंसेस’ घोषित कर दी जाती है।

मंडलायुक्त तथा ज़िलाधिकारी की पत्नियों को काटने की हिम्मत मुझ में कहां रही? कहां है?

 

उसी रात प्रभा मै'म आत्महत्या कर लेती हैं। नींद की गोलियां अधिक मात्रा में ले कर।

उस के चौथे ही माह कनक का अठारहवां जन्मदिन आन टपकता है जिसे नंंदन वशिष्ठ धूमधाम से मनाता है। एक बड़े होटल में अपने तीस अतिथियों के बीच। जिस में सम्मिलित होना मुझे गवारा नहीं।

और फिर अगले ही दिन कनक को संग ले कर  कचहरी जाता है और वे दोनों अपने विवाह की अर्ज़ी जमा कर आते हैं।

तदनंतर कचहरी द्वारा उन के विवाह- सूत्र में बंध जाने पर उन के विवरण हमारे स्थानीय समाचार- पत्र उल्लास- भरे उन

के फ़ोटो के साथ अपने मुख्य पृष्ठ पर उन का साक्षात्कार छापते हैॅ।  उन के सांझे कथन को मोटे अक्षरों में उद्धत करते हुए :

“हम संगोत्र नहीं। तिस पर व्यस्क हैं । समझदार हैं । स्वतंत्र हैं । स्वायत्त हैं। ऐसे में एक नए परिवार की सांझी नींव रखना चाहते हैं तो इस में गलत क्या है?”

मगर कस्बापुर निवासियों को उन के इस कथन से गहरी आपत्ति है। समूहों के समूह नंदन वशिष्ठ के फ़ोटो स्टूडियो पर पत्थर फेंकने में लग गए हैं और उसे शहर छोड़ने को बोल रहे हैं।

प्रभा मै'म को वे भूले नहीं हैं।