The journey of round rotis in Hindi Short Stories by AKANKSHA SRIVASTAVA books and stories PDF | गोल रोटियों का सफ़र

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गोल रोटियों का सफ़र

"प्रेम, परंपरा और परिपूर्णता की कहानी"
 
गोल रोटी—सुनने में जितनी साधारण, बनाने में उतनी ही कठिन! यह भारतीय रसोई की वह कारीगरी है, जिसे हर नवविवाहिता से लेकर अनुभवी गृहिणी तक परिपूर्ण बनाने की कोशिश करती है। लेकिन रोटी का यह गोल आकार सिर्फ भूख मिटाने का जरिया नहीं, बल्कि उसमें छिपा होता है प्रेम, परंपरा और पूर्णता का संदेश।

गोल रोटी भारतीय संस्कृति का एक अटूट हिस्सा है। बचपन से लेकर बुढ़ापे तक, गोल रोटियाँ हर पीढ़ी की यादों में बसती हैं। हर माँ की एक ख्वाहिश होती है कि उसकी बेटी भी उसकी तरह परफेक्ट गोल रोटियाँ बनाए, क्योंकि रोटियाँ सिर्फ खाना नहीं, बल्कि एक परंपरा है जो पीढ़ी दर पीढ़ी चलती रहती है। गोल रोटी बनाना मानो जीवन के हर पहलू में सामंजस्य और पूर्णता को पाने जैसा है।

जब रोटी का आटा गूंथा जाता है, तो वह गाढ़ा या पतला हो सकता है, जैसा इंसान का जीवन—कभी सरल, कभी मुश्किल। और जब उसे बेलना शुरू करते हैं, तो वह कभी गोल निकलती है, कभी अजीबोगरीब आकार की। यह हर उस कोशिश का प्रतीक है, जो हम जीवन में कुछ सही करने की करते हैं। लेकिन जैसे-जैसे हम सीखते जाते हैं, रोटियाँ भी गोल और परफेक्ट होती जाती हैं। इसमें धैर्य और मेहनत दोनों का साथ होता है, ठीक वैसे ही जैसे जीवन में।

गोल रोटी की असली पहचान तब होती है, जब उस पर मस्का लगाया जाता है। मस्के की वह नरमी जीवन में प्रेम और सहानुभूति की तरह होती है, जो हमारे रिश्तों को स्वादिष्ट बनाती है।

कई घरों में रोटी का गोल होना सिर्फ भोजन की बात नहीं, बल्कि यह परिवार के बीच की समझ, सहयोग और आपसी प्यार का प्रतीक है। चाहे वह माँ हो जो अपने बच्चों के लिए रोटियाँ बनाती है, या वह दादी हो जो पूरे परिवार को गोल-गोल रोटियों के साथ किस्से सुनाती है, रोटी हमेशा से घर का दिल रही है।गोल रोटी न केवल हमारे खाने का अभिन्न हिस्सा है, बल्कि यह हमारे जीवन के कई पहलुओं का प्रतीक भी है। यह हमें सिखाती है कि जीवन में सामंजस्य, परिश्रम और प्रेम का महत्व क्या होता है।


इसी पर आधारित है ये तीन छोटी कहानिया, जो आपके घर कि रोटियों कि कहानी भी याद दिला दें। 

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किचन में हल्की आंच पर तवा तप रहा था और लड़की, अपने छोटे-छोटे हाथों से आटे की लोई को बेलने की कोशिश कर रही थी। हर बार बेलन से दबाने पर आटा कभी एक तरफ से मोटा हो जाता तो कभी दूसरी तरफ से पतला। सामने खड़े उसके पिता, जिनके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान थी, गौर से देख रहे थे। उनकी आंखों में गर्व था, क्योंकि उनकी बेटी पहली बार रोटियां बनाने की कोशिश कर रही थी।

पिता उसकी हर छोटी कोशिश पर उसे प्रोत्साहित करते, "अरे वाह! ये तो बढ़िया हो रही है।" लड़की के चेहरे पर मेहनत और ध्यान देने की झलक साफ दिख रही थी। कभी रोटी भारत का नक्शा बन जाती, तो कभी एक कोने में खिंच जाती, लेकिन पिता बिना रुके उसके साथ खड़े रहे, जैसे उसके हर प्रयास को अपना समर्थन दे रहे हों।

और फिर, एक पल ऐसा आया जब लड़की ने बेलन घुमाया और रोटी लगभग गोल हो गई। उसने मुस्कुराते हुए अपने पिता की तरफ देखा, मानो जीत हासिल कर ली हो। पिता ने उसकी पीठ थपथपाते हुए कहा, "देखा, मेहनत का फल मिलता है। अगली बार और भी अच्छी बनेगी।"

किचन में उस दिन सिर्फ रोटियों की खुशबू नहीं थी, बल्कि एक नए सीखने के सफर की शुरुआत हो चुकी थी—जहां प्यार, मेहनत, और धैर्य का स्वाद हर रोटी में था।







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किचन में हल्की-हल्की आंच पर तवा तप रहा था और सामने एक लड़की, हाथों में गोल-गोल रोटी लिए, उस पर प्यार से मस्का लगा रही थी। उसकी नज़रें बड़ी गंभीर थीं, मानो इस रोटी में कोई बड़ा रहस्य छिपा हो, और उसके माथे पर सिलवटें बता रही थीं कि रोटी सिर्फ खाने का नहीं, कुछ और भी है।

नेहा, जो अक्सर खुद को आधुनिक और आत्मनिर्भर कहती थी, इस समय किचन में खुद को अजीब-सा महसूस कर रही थी। वैसे तो उसे रोटियाँ बनाना बिल्कुल पसंद नहीं था, लेकिन सास के रोज रोज के ताने से आज उसने ठान लिया था कि अपने बचपन के दिनों की तरह एकदम गोल रोटी बनाएगी। वह याद कर रही थी जब उसकी माँ उसके लिए हर रोज़ गोल-गोल रोटियाँ बनाती थीं और उसमें मस्का लगाकर कहती थीं, "इसे खा, इससे तेरा दिमाग तेज़ होगा!"

मगर नेहा के लिए आज ये रोटी एक और किस्सा बुन रही थी। उसने जबसे नौकरी शुरू की थी, उसे कभी किचन में जाने का वक्त ही नहीं मिला। वो और उसके पार्टनर, दोनों ऑफिस की भागदौड़ में ही लगे रहते थे, और खाना ऑनलाइन ऑर्डर करना उनकी आदत बन चुकी थी।जिस बात से सासु माँ का बीपी बढ़ा रहता, पर आज कुछ अलग था। नेहा ने सोचा, "आखिर मैं क्यों नहीं एक सादी-सी रोटी बनाकर उसे महसूस कर सकती?"

रोटी सेंकते हुए उसे एहसास हुआ कि ये गोल रोटी और उस पर लगने वाला मस्का सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि प्यार और अपनेपन की निशानी है। उसे रोटिया बनाते बनाते ही दादी के हाथों की रोटियाँ याद आ गईं, जो बचपन में उसे चुपके से ज़्यादा खिलाने की कोशिश करती थीं। वो मस्के से भरी रोटियाँ किसी प्रतियोगिता से कम नहीं होती थीं। और नेहा को लगता था कि दादी की रोटियों में जादू था, वो उसे हर मुश्किल से निकाल लाती थीं।

नेहा ने मस्का लगाकर रोटी को प्लेट में रखा और सोचा, "शायद, ये रोटी भी कुछ ऐसा ही करेगी। ये सिर्फ खाना नहीं, बल्कि एक नई शुरुआत है – अपने और अपने रिश्तों के लिए।"

किचन में हल्की-सी मुस्कान के साथ उसने तय किया कि अब से खाना वो ऑनलाइन नहीं, खुद बनाएगी – थोड़ा प्यार, थोड़ी मेहनत और मस्के के स्वाद के साथ !



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आयुषी आज सुबह-सुबह उठी और सीधे किचन की ओर चल दी। हर दिन की तरह आज भी उसे ऑफिस जाना था, पर आज का दिन थोड़ा खास था। वह अपने नए बॉस के साथ पहली बार मीटिंग करने वाली थी, और उसके मन में थोड़ी घबराहट भी थी। चाय का पानी गैस पर चढ़ाते हुए उसने सोचा, "आज का दिन अच्छे से गुजरना चाहिए।"

थोड़ी देर बाद उसने चपाती के आटे का डिब्बा निकाला और रोटियाँ बेलने लगी। पहली रोटी जरा टेढ़ी-मेढ़ी निकली, दूसरी भी कुछ खास नहीं बनी। लेकिन तीसरी रोटी देखकर उसके चेहरे पर मुस्कान आ गई – एकदम गोल, परफेक्ट! उसने उसे तवे पर डाला और हल्की सी आंच पर सेंकने लगी।

रोटी सेंकते हुए उसने मस्के का डिब्बा निकाला। जैसे ही रोटी उतरी, उसने तुरंत उस पर मस्का लगाया। उसे देखकर उसे अपने दादी की याद आ गई। दादी हर सुबह उसे ऐसे ही मस्का लगी रोटी खिलाया करती थीं, कहती थीं, "जब तक मस्का नहीं लगाओगी, जिंदगी में नरमी कैसे आएगी?"

आयुषी ने मन ही मन मुस्कुराते हुए रोटी प्लेट में रखी और सोचा, "दादी सच कहती थीं, मस्का सिर्फ रोटी पर नहीं, रिश्तों पर भी लगाना चाहिए।"

आज सुबह की ये रोटी सिर्फ पेट भरने के लिए नहीं थी, बल्कि दादी की सिखाई नरमी और प्यार की याद थी। शायद यही नरमी उसे ऑफिस की सख्त जिंदगी में भी काम आएगी। उसने खुद से वादा किया कि चाहे दिन कैसा भी हो, वह अपने दिल पर मस्का लगाए रखेगी, ताकि हर हालात में मुस्कान बनी रहे।

वह प्लेट उठाकर खाने बैठी, और उसके चेहरे पर संतोष की हल्की सी मुस्कान छा गई – रोटी, मस्का और उसकी मुस्कान, तीनों एक साथ थे।



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