Rain and the great poet Ghagh in Hindi Anything by Dr. R. B. Bhandarkar books and stories PDF | वर्षा और महाकवि घाघ

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वर्षा और महाकवि घाघ

डायरी - 07 सितम्बर 2025     

 
* वर्षा और महाकवि घाघ *         
 
संकलन एवं  प्रस्तुति - डॉ आर बी भण्डारकर 
 
आजकल लगभग समूचे उत्तर भारत में सामान्य से लेकर अतिवर्षा तक की चर्चा है। फसलें प्रभावित हुई हैं,पशुधन और आम नागरिक भी। कहीं बाढ़ है तो कहीं बादल फट रहे हैं। अस्तु यहां घाघ भड्डरी की स्मृति आई है।
 
वर्षा का सामान्य अर्थ प्राकृतिक रूप से बादलों से पानी बरसने से है। पानी जीवन है। पानी के बिना जीवन असंभव है। हमें पीने के लिए भी पानी चाहिए;भोजन,अन्न उत्पादन के लिए भी पानी चाहिए। हमारे देश का मौसम मानसूनी है।
 
 
ऋतुओं की दृष्टि से यहां वर्षा आम तौर पर "वर्षा ऋतु" में होती है। यह ऋतु जुलाई से अक्टूबर तक, हिंदी महीनों में आषाढ़ से आश्विन तक मानी जाती है। प्रत्येक वर्ष यह अवधि थोड़ी आगे पीछे हो जाती है।
 
ज्योतिष विदों ने कुल 27 नक्षत्र मान्य किए हैं -अश्विनी,भरणी,कृतिका,रोहिणी,मृगशिरा,आर्द्रा,पुनर्वसु,पुष्य, अश्लेषा,मघा,पूर्वा फाल्गुनी,उत्तरा फाल्गुनी, हस्ति,चित्रा,स्वाति,विशाखा,अनुराधा,ज्येष्ठा,मूल,पूर्वाषाढा,उत्तराषाढा,श्रवण,धनिष्ठा,शतभिषा,पूर्वा भाद्रपद,उत्तरा भाद्रपद,रेवती।
 
 
भारतीय कृषि और कृषि उत्पादन बहुत कुछ वर्षा पर निर्भर रहते हैं। प्राचीन काल में जब मौसम विज्ञान का आज की तरह का अस्तित्व नहीं था, तब लोक में ही कुछ ज्योतिष विदों,बुध जनों,योग्य कृषकों ने वर्षा होने के अनुमान लगाए।इनमें घाघ भड्डरी मुख्य हैं।
 
कौन थे घाघ?
 
घाघ की कोई प्रामाणिक जीवनी उपलब्ध नहीं है।एक किंवदंती के अनुसार, उनका जन्म 16वीं शताब्दी में मुगल सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान,  उत्तर प्रदेश के कन्नौज के निकट चौधरी सराय नामक गाँव में हुआ था। कहा जाता है कि घाघ, अकबर द्वारा उपहार में दी गई ज़मीन पर, कन्नौज से कुछ किलोमीटर दूर "घाघ सराय" नामक गाँव में बस गए थे।
 
 
अभी तक यह भी स्पष्ट नहीं है कि घाघ और भड्डरी अलग अलग व्यक्ति थे या यह एक ही व्यक्ति का नाम है।एक कथन है - "घाघ कहें सुन भड्डरी"  इससे ऐसा लगता है कि दोनों अलग अलग हैं।कुछ का कहना है कि भड्डरी घाघ का उपनाम है तो कुछ का मत है कि यह घाघ की पत्नी का नाम है,लेकिन कई जगह "घाघ कहें सुन घाघिनी" आया है।इसलिए पत्नी होने की अवधारणा पर भी संदेह उत्पन्न होने लगता है।
 
 
घाघ के काव्य कथनों से स्पष्ट होता है कि उन्हें खेती-किसानी और ज्योतिष,नक्षत्र-विद्या का अच्छा ज्ञान था।  कुछ विद्वान घाघ और भड्डरी को अलग अलग मानते हुए कहते है कि घाघ  खेती, नीति एवं स्वास्थ्य से जुड़ी कहावतों के लिए प्रसिद्ध हैं, तो भड्डरी अपने वर्षा, ज्योतिष और आचार-विचार संबंधी ज्ञान के लिए विख्यात हैं।अस्तु जो कहावतें खेती, नीति एवं स्वास्थ्य से संबंधित हैं वे घाघ की हैं और जो काव्योक्तियां वर्षा, ज्योतिष और आचार-विचार से जुड़ी है वे भड्डरी की हैं।
 
 
पं रामनरेश त्रिपाठी ने "घाघ और भड्डरी" नाम से एक संकलन तैयार किया जो हिंदुस्तानी अकादमी द्वारा  1931 ई. में प्रकाशित किया गया है।लोक में कई ऐसी कहावतें भी मिलती हैं जिनमें विषय गड्ड मड्ड हैं और घाघ तथा भड्डरी के नाम भी।यहां घाघ और भड्डरी का एक ही होना मानकर लेख को संकलित किया गया है।
 
 
हां,एक बात यह भी कि घाघ तथा भड्डरी या घाघ भड्डरी के नाम से मिलने वाली कहावतों,काव्योक्तियों में क्षेपण भी बहुत है और भाषान्तर भी।अस्तु यहाँ अपने परिवेश में सुनी हुई कहावतों,काव्योक्तियों को ही स्थान दिया गया है।
 
हमने ऊपर जिन  27 नक्षत्रों का उल्लेख किया है उनमें से 8 नक्षत्र वर्षा काल में पड़ते हैं।(1)आर्द्रा(2)पुनर्वसु(3)पुष्य(4)अश्लेषा(5)मघा(6)हस्त (7अ)पूर्वा फाल्गुनी(7ब)उत्तरा फाल्गुनी (8अ)चित्रा नक्षत्र(8ब)विचित्रा।
 
 
इन 'नक्षत्रों में वर्षा होने' के संबंध में महाकवि घाघ की कहावतें बड़ी प्रसिद्ध हैं - 
 
(1)आर्द्रा - 
 
अद्रा भद्रा कृत्तिका, असरेखा जु मघाहि।
चंदा ऊगै दूज को सुख से नरा अघाहि।।
 
अर्थात यदि द्वितीया का चन्द्रमा आर्द्रा नक्षत्र, कृत्तिका, अश्लेषा या मघा में अथवा भद्रा में उगे तो मनुष्य सुखी रहेंगे।
 
और
 
रोहिनी बरसै मृग तपै, कुछ कुछ अद्रा जाय।
कहै घाघ सुने घाघिनी, स्वान भात नहीं खाय।।
 
आशय यह कि  यदि रोहिणी बरसे, मृगशिरा तपै और आर्द्रा में साधारण वर्षा हो जाए तो धान की पैदावार इतनी अच्छी होगी कि कुत्ते भी भात खाने से ऊब जाएंगे अर्थात कुत्ते भी चावल नहीं खाएंगे।
 
और
 
आद्रा में जौ बोवै साठी।
दु:खै मारि निकारै लाठी।।
 
घाघ कहते हैं कि जो किसान आर्द्रा में धान बोता है वह दु:ख को लाठी मारकर भगा देता है अर्थात वह धन - धान्य से खुश हाल हो जाता है,दुख पास नहीं फटकता।
 
और
 
आद्रा बरसे पुनर्वसु जाय।
दीन अन्न कोऊ न खाय।।
 
मतलब यह कि यदि आर्द्रा नक्षत्र में वर्षा हो और पुनर्वसु नक्षत्र में पानी न बरसे तो भी ऐसी फसल होगी कि कोई दिया हुआ अन्न भी नहीं खाएगा।
 
(2)पुनर्वसु(3)पुष्य - 
 
पुख्य पुनर्वा बइयें धान।
सो घर कोठिला भरै किसान।। 
 
अर्थात पुष्य और पुनर्वसु नक्षत्र में धान बोने से इनकी पैदावार इतनी अच्छी होती है कि किसानों की कोठियां भर जाती हैं।
 
 
और
 
जो बरसे पुनर्वसु स्वाती।
चरखा चलै न बोलै तांती।
 
तांती एक हस्त चालित यंत्र है।घाघ कहते हैं कि पुनर्वसु और स्वाति नक्षत्र की वर्षा से किसान सुखी रहते है ,उन्हें तांत या चरखा चलाकर जीवन निर्वाह करने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
 
(4)अश्लेषा - 
 
"अद्रा भद्रा कृत्तिका, असरेखा जो मघाहिं।
 चन्दा उगै दूज को, सुख से नरा अघाहिं।।" 
 
अर्थात यदि आषाढ़ महीने की द्वितीया तिथि पर चन्द्रमा अश्लेषा नक्षत्र में उदित हो तो मनुष्यों को सुख ही सुख प्राप्त होता है। 
 
 
(5) मघा:- 
 
मघा न बरसे भरे न पेट।
माता न परसें भरे न पेट।।
 
अर्थात यदि अगर मघा नक्षत्र में पानी न बरसे तो खेत नहीं भर सकते, वर्षा अपर्याप्त रहती है,खेत भूखे से रह जाते हैं ,ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार यदि माँ अपने पुत्र को खाना न परोसे तो उसका पेट नहीं भरता है वह भूखा रह जाता है।
 
 
और
 
जो कहुं मग्घा बरसै जल।
सब नाजों में होगा फल।। 
 
आशय यह कि यदि मघा नक्षत्र में पर्याप्त पानी बरसे तो सब अनाज अच्छी तरह फलते हैं,खूब पैदावार होती है।
 
(6) हस्त:- 
 
बरस लगें जो हाथी।
तो गेहूं बढ़ें छाती।।
 
अर्थात यदि हस्त नक्षत्र लगते ही पानी बरसता है तो गेहूं की फसल छाती तक बढ़ती है।अर्थात गेहूं की फसल अच्छी होती है।
 
और
 
हथिया पोछि ढोलावै।
घर बैठे गेहूं पावै।।
 
आशय यह कि यदि हस्त नक्षत्र में थोड़ा पानी भी गिर जाता है तो गेहूं की पैदावार अच्छी होती है।
 
(7अ)पूर्वा फाल्गुनी(7ब)उत्तरा फाल्गुनी :-
 
 वर्ष लगें जो उत्तरा।
माड़ पियेंगे कुत्तरा।।
 
अर्थात उत्तरा नक्षत्र लगते ही पानी बरसता है तो धान की अधिक पैदावार होती है।कुत्तों को भी माड़ पीने को मिलता है।
 
और
 
जब बरसेगा उत्तरा।
नाज न खावै कुत्तरा।।
 
आशय यह कि  यदि उत्तरा नक्षत्र में पानी बरसेगा तो अन्न इतना अधिक होगा कि उसे कुते भी नहीं खाएंगे।
 
 
(8) चित्रा - 
 
हस्त बरस चित्रा मंडराय।
घर बैठे किसान सुख पाए।।
 
अर्थ - यदि हस्त नक्षत्र में पानी बरसे और चित्रा में बादल छाए रहे तो फसल अच्छी होती है,किसान घर बैठे सुख पाते हैं।
 
और
 
जब बरखा चित्रा में होय।
सगरी खेती जावै खोय।।
 
अर्थ - चित्रा नक्षत्र की भारी वर्षा से प्राय: सारी खेती को नुकसान होता है।
 
और
 
 
उत्रा उत्तर दै गयी, हस्त गयो मुख मोरि।
भली विचारी चित्तरा, परजा लेइ बहोरि।।
 
घाघ कहते हैं  कि यदि उत्तरा नक्षत्र में भी पानी नहीं बरसा और फिर हस्त नक्षत्र भी बिना पानी बरसाए  मुंह मोड़कर चला गया;ऐसी स्थिति में  चित्रा नक्षत्र में पानी बरस गया तो भी सब अच्छा होता है ।इस नक्षत्र में हुई वर्षा प्रजा ,किसान को बसा लेती है,उजड़ने नहीं देती। अर्थात् उत्तरा और हस्त में यदि पानी न बरसे और चित्रा में पानी बरस जाए तो भी उपज अच्छी होती है।
 
और
 
बढ़त जो बरसे चित्रा उतरत बरसे हस्त।
कितनौ राजा डांड़ ले, हारे नहीं गृहस्थ।।
 
अर्थात उत्तरा के उत्तरार्द्ध में और  चित्रा के प्रारम्भ में वर्षा होने से फसल खूब होती है,किसान धन संपन्न हो जाते हैं,राजा कितना ही लगान या उस पर दण्ड ले तो भी किसान को अखरता नहीं है।
 
 
घाघ भड्डरी की यह लोकोपयोगी कहावतें  पूरे उत्तर भारत के कृषक और कृषि कार्यों से जुड़े समाज में गहराई से रची बसी हैं।इसका सबसे बड़ा प्रमाण यह है कि कृषि और संबंधित कार्य करते हुए किसानों को इन्हें गुनगुनाते हुए आमतौर पर देखा जा सकता है।
 
(जिन विद्वानों, स्रोतों से दृष्टि व सामग्री ली गई है,सभी का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ।)
 
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