"गली नंबर 11 का इश्क़" सिर्फ एक मोहब्बत की कहानी नहीं, उन जज़्बातों का आईना है जो मोहल्लों की तंग गलियों में पलते हैं।
यह कहानी है अयान की — एक सीधा-सादा लड़का, जिसकी ज़िंदगी में दोस्ती, मस्ती और एक ऐसा इश्क़ आता है जो सब कुछ बदल कर रख देता है।
इन गलियों में मोहब्बत भी है, तकरार भी, और वो एहसास भी… जो दिल को उम्र भर के लिए छू जाते हैं।
Chapter 1: गलीयों का बचपन
पुरानी दिल्ली के पास, गाज़ियाबाद की एक छोटी सी बस्ती थी — जिसका नाम तो लोगों ने बस "कच्ची बस्ती" रख दिया था, लेकिन असली जान थी गली नंबर 11।
पतली सी गली, जिसमें दो साइकिल भी मुश्किल से एक-दूसरे को पार कर पाती थीं, लेकिन दिलों की जगह इतनी बड़ी थी कि हर किसी का अपना एक कोना था।
यहीं रहता था आयान — एक शरारती लेकिन सीधा-सादा लड़का।
उसके बाल हमेशा उलझे रहते, और कपड़े... माँ के डाँटने के बाद भी कभी सिलवटें छोड़ते ही नहीं थे।
उसके तीन सबसे अच्छे दोस्त थे:
टिल्लू – गली का सबसे बड़ा ‘सेटिंगबाज़’, जिसका काम था हर लड़की पर लाइन मारना... लेकिन कभी भी सफलता नहीं मिली।
गोलू – मोटा सा प्यारा लड़का, जिसका सपना था एक दिन DJ बनने का, लेकिन अभी तो माँ के थप्पड़ ही बजते थे।
भूरा – असली नाम भूषण, लेकिन रंग थोड़ा साँवला था, इसलिए गली के बचपन ने उसका नाम ही बदल डाला।
एक दिन, जब आयान ₹5 की कुल्फ़ी लेने छोटी दुकान पर गया था, तभी गली के एक नए मकान में एक लड़की दिखाई दी — सना।
सफ़ेद सलवार-सूट, एक हाथ में डायरी, और दूसरे हाथ में माँ का पल्लू पकड़े हुए...
टिल्लू तुरंत बोला,
"भाई आयान, लगता है कोई तेरे दिल को ले गया... चल, चूरन की दुकान छोड़, दिल का इलाज ढूंढते हैं!"
आयान मुस्कुरा दिया,
"ओये टिल्लू, तू पहले अपनी सेटिंग तो बना ले। वैसे भी पिछली बार मिंटू की बहन ने तुझे झाड़ू से भगाया था।"
गोलू बोला,
"यार सच में, इस गली में नई लड़की आई है... पर देखी कितनी शांत है... ऐसी लड़की से दोस्ती करना बड़ा मुश्किल होता है।"
फिर भूरा ने अपना डायलॉग मारा,
"अरे कौनो मुश्किल नहीं... जब भूरा के साथ टिल्लू और आयान हो, तब हर काम मुश्किल के बाप लागत है!"
तभी आयान ने देखा — सना ने उसकी तरफ देखा…
आँखों में एक अजीब सा सुकून था… जैसे पुराने गाँव के कोने में रखा एक गीला अख़बार का पन्ना, जिसमें कुछ लिखने की जगह हो —
और आयान को लगा, "शायद मैं लिख सकता हूँ उस पन्ने पर..."
"बचपन की दोस्ती का बीज उसी दिन पड़ गया था,
जब आयान ने चुपके से एक गुलाब उसके बग़ीचे के गेट पर रख दिया था — बिना नाम के।"
Chapter 2: मोहल्ले की दोस्ती, स्कूल की कहानी
“जब दो लोग एक साथ बड़े होते हैं, तो कुछ ना कुछ दिल में जरूर बस जाता है — चाहे वो नाम ले या ना ले।”
गली नं. 11 की सुबहें बड़ी पहचान वाली होती थीं — पंडित जी का मंदिर वाला घंटा, मुंह-अंधेरे सब्ज़ी वालों की आवाज़, और कोने वाले बाबूलाल की दुकान से आती कुल्हड़ चाय की खुशबू।
सना अब उस गली की रौनक बन चुकी थी।
जहां जाती, एक सादगी सी बिखर जाती। लड़कियाँ उससे नोट्स माँगतीं, और लड़के बस दूर से निहारते रहते।
पर आयान... वो अलग था।
उसने कभी ये कोशिश नहीं की कि वो सना को रोज़ देखे या किसी हीरो जैसी हरकतें करे।
वो बस वही करता था जो पहले करता था — स्कूल से आकर बापू की दुकान पर बैठना, वायरिंग ठीक करना,
और फिर शाम होते ही गली के कोने वाली बेंच पर दोस्तों के साथ जम जाना।
टिल्लू, गोलू और भूरा हर दिन नए प्लान बनाते —
"अरे भाई, एक दिन तो सना से मिलना ही है... आयान भाई को प्रपोज़ करा देंगे!"
आयान हमेशा मुस्कुरा कर कहता,
"पागल हो गए हो क्या? दोस्ती तो ठीक है... पर कुछ चीज़ें दूर से ही अच्छी लगती हैं।"
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एक दिन स्कूल में एक फंक्शन था — और सना ने मंच पर एक कविता पढ़ी:
"कुछ रिश्तों को नाम नहीं मिलते,
पर उनकी ख़ामोशी भी दर्द मिटा देती है..."
उस वक्त आयान भीड़ में था — छिपा हुआ, सबसे पीछे...
पर उसके दिल में एक आवाज़ थी —
"ये कविता मेरे लिए थी क्या?"
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स्कूल की गलियों से मोहल्ले तक
सना टॉपर थी। हर शिक्षक उसकी तारीफ़ करता,
लेकिन वो अपने आस-पास के लोगों से ज़्यादा जुड़ी रहती थी — खासकर आयान से।
रोज़ स्कूल के बाद वो मोहल्ले की दुकान पर आकर कुछ न कुछ लेती —
कभी चूरन, कभी इमली, कभी बस ₹2 वाली टॉफी।
और आयान वहीं होता।
"तू स्कूल नहीं जाता क्या?" — एक दिन सना ने सीधे पूछ लिया।
आयान ने हाथ में वायर पकड़े हुए ही कहा,
"मैं तो दुकान का इंजीनियर हूँ। डिग्री बाद में लूँगा, पहले ड्यूटी।"
सना हँसी... पहली बार...
और आयान ने वो हँसी दिल में कैद कर ली।
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दोस्ती का पहला कदम
दिवाली आई।
गली में रंगोली, मिठाई, और शोर था।
सना ने सबको ग्रीटिंग्स दिए,
पर आयान के लिए एक हैंडराइटन कार्ड चुपचाप छोड़ गई —
"हर दोस्ती ज़रूरी नहीं आवाज़ करे…
कभी-कभी आँखों का मिलना ही काफ़ी होता है।"
आयान उस कार्ड को रात भर देखता रहा...
उसने कुछ नहीं कहा, पर दिल में एक आवाज़ थी —
"अब ये सिर्फ़ मोहल्ले वाली दोस्ती नहीं रही…”
Chapter 2 End Note:
“जब किसी की हँसी तुम्हें रोज़ का इंतज़ार बन जाए,
तो समझ लो… दोस्ती का रंग धीरे-धीरे मोहब्बत बन रहा है।”
Chapter 3: खामोश इज़हार, अधूरी सी मोहब्बत
"कुछ रिश्तों के बीच लफ़्ज़ों का होना ज़रूरी नहीं होता…
आँखें सब कह जाती हैं, और दिल सुन लेता है।”
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साल 2015
स्कूल खत्म होने को था।
इंटर की आख़िरी बोर्ड परीक्षा के बाद सभी छात्र अपने-अपने सपनों की राह पर निकलने वाले थे।
किसी ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के लिए फ़ॉर्म भरा था,
किसी ने कोचिंग जॉइन कर ली थी,
और कुछ तो सीधे अपने पिताजी का काम सँभालने वाले थे।
आयान, अब भी वहीं था — अपनी पुरानी दुकान पर।
वायर जोड़ने और बल्ब बदलने से ज़्यादा उसका इंटरेस्ट था सना के हर छोटे-बड़े पल में।
सना, स्कूल की टॉपर थी।
उसके घरवाले उसे दिल्ली के एक प्रतिष्ठित कॉलेज से BA (ऑनर्स) कराना चाहते थे।
आयान जानता था —
"आज जो पास है, कल दूर चली जाएगी..."
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मोहब्बत का पहला डर
एक शाम, जब मोहल्ले की बिजली चली गई थी, और पूरा इलाका अंधेरे में डूबा हुआ था —
सना ने मोबाइल की टॉर्च ऑन करके दुकान के सामने आयान से कहा:
"कितना अजीब है ना… अंधेरा होता है तभी रोशनी की क़ीमत समझ आती है।”
आयान थोड़ा मुस्कराया, फिर धीरे से बोला —
"और कुछ रोशनियाँ ऐसी होती हैं जो बिना चमके ही दिल में जगह बना लेती हैं।”
सना थोड़ी देर चुप रही, फिर हल्का सा मुस्कुराई और चली गई।
आयान के दिल में एक तूफ़ान था —
क्या उसने उसके दिल की बात समझ ली?
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वो आख़िरी दिन
इंटर का रिज़ल्ट आया।
सना का दिल्ली में एडमिशन हो गया।
वो जा रही थी — अगले ही हफ़्ते।
आयान ने कुछ नहीं कहा…
बस दोस्तों के साथ एक छोटी-सी महफ़िल में बैठा था।
गोलू ने एक डायलॉग मारा —
"भाई, अब तो तू भी कन्फेस कर दे… वरना एक और मोहब्बत बिना इज़हार के चली जाएगी।”
भूरा बोला —
"जब से दुनिया बनी है ना… ऐसे ही बेचारे मोहब्बतियों की कहानियाँ अधूरी रह जाती हैं… और आयान भी उनमें एक होगा।”
टिल्लू:
"छोड़ दे यार, आयान तो पहले ही ‘साइलेंट लवर’ की कैटेगरी में लिख दिया गया है।”
आयान बस मुस्कुराया…
"मुझे उसका साथ चाहिए, उसका समय नहीं… और अगर किस्मत में हुआ, तो मिल जाएगी।"
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वो चिट्ठी जो कभी नहीं दी गई
सना के जाने वाले दिन,
आयान ने एक पत्र लिखा था।
जिसमें उसने लिखा:
"तेरे जाने के बाद शायद गली वही रहेगी, लोग भी वही होंगे… पर मैं नहीं रहूँगा।
तू पलट के देखे या ना देखे — मैं यहीं रहूँगा।
शायद एक दिन तू समझे… कि मोहब्बत सिर्फ़ मिलने का नाम नहीं,
बल्कि ख़ामोशी में भी किसी के होने का यक़ीन है।”
पर वो चिट्ठी, उसने कभी दी नहीं…
बस अपनी पुरानी किताब में रख दी —
उसी गुलाब के पास, जो उसने कभी उसके गेट के बाहर छोड़ा था।
Chapter 3 End Note:
“हर मोहब्बत को मंज़िल नहीं मिलती,
पर कुछ मोहब्बतें रास्ता बन जाती हैं —
किसी के दिल तक पहुंचने का।”
Chapter 4: जुदाई के बाद भी जुड़ाव
“वक़्त सब कुछ बदल देता है… पर जो दिल में बसा हो,
उसे वक़्त भी नहीं हटा पाता।”
तीन साल बाद
गली नंबर 11 अब भी वही थी —
वही बबलू हलवाई की दुकान,
वही अम्मा का आँगन जहाँ रोज़ सुबह तुलसी का दिया जलता था,
और वही टिल्लू-गोलू-भूरा का अड्डा —
पर अब हर चीज़ में थोड़ी सी ख़ामोशी घुल गई थी।
लेकिन सबसे ज़्यादा बदला था आयान।
उसके चेहरे पर अब कोई बालपन नहीं, बल्कि एक थकान थी —
मोहब्बत की नहीं, इंतज़ार की।
सना चली गई थी, दिल्ली —
पर आयान का दिल कहीं नहीं गया था।
वो वहीं था — वायर्स जोड़ता, रिपेयरिंग करता,
और कभी-कभी छत पर जाकर आसमान को निहारता —
जैसे पूछ रहा हो,
"क्या वो भी मुझे याद करती है?"
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वो कॉल जो नहीं आई
हर त्योहार पर, हर जन्मदिन पर —
आयान फ़ोन की स्क्रीन देखता रहता।
व्हाट्सऐप पर उसे ऑनलाइन भी देखा,
पर कभी एक मैसेज भी नहीं आया।
टिल्लू बोला —
"भाई, तुझे भूल गई होगी… लोग आगे बढ़ते हैं।"
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आयान हल्के से मुस्कुराया —
"जो भूल जाते हैं, वो कभी याद नहीं करते…
और मुझे लगता है, वो कभी-कभी याद ज़रूर करती होगी।”
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यादों का एक कोना
दुकान के एक कोने में एक पुरानी डायरी थी —
जिसमें वो चिट्ठी अब भी दबाकर रखी थी।
सना के साथ बिताए पल, उसकी हैंडराइटिंग, उसकी हँसी,
सब आयान के दिल में अब भी ज़िंदा थे।
गोलू ने एक दिन मज़ाक में कहा —
"भाई, एक काम कर… उस डायरी को नॉवेल बना दे।
नाम रखियो — ‘गली नंबर 11 का दुखी आशिक़’!"
भूरा ने और भी बड़ा मज़ाक मारा —
"नहीं रे, नाम रखियो — ‘वायर्स से जुड़ी मोहब्बत’!"
पर आयान के लिए ये मज़ाक नहीं था —
ये उसकी ज़िंदगी थी।
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एक ख़त... इस बार सना की तरफ से
एक शाम, जब आयान दुकान बंद कर रहा था —
एक बच्चा दौड़ते हुए आया और बोला:
“भैया, आपके नाम की चिट्ठी दी है एक मैडम ने…
कह रहीं थीं, पीछे वाले घर में कुछ दिन ठहरी हैं।”
आयान के हाथ काँपने लगे...
चिट्ठी खोली —
लिखा था:
“तू वैसा ही है जैसा छोड़ा था…
मेरी दुनिया बदल गई, पर तू वही रहा।
मैं वापस नहीं आई तेरे साथ रहने के लिए…
बल्कि देखने के लिए —
क्या दिल अब भी वैसा ही धड़कता है?”
आयान की आँखें नम थीं…
उसने आसमान की तरफ देखा और बोला:
“वैसे ही धड़कता है…
बस अब तक किसी को सुनाने की हिम्मत नहीं हुई।”
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अध्याय 4 समाप्ति टिप्पणी:
“कभी-कभी जुदाई के बाद भी,
दो लोग एक ही लम्हे में जीते रहते हैं…
बस दो अलग-अलग शहरों में।”
Chapter 5: फिर मिलना — छत, चाय और खामोश सवाल
“
“कुछ लोग वापस ज़रूर आते हैं…
पर सवाल वहीं छोड़ जाते हैं —
जो कभी पूछे ही नहीं गए।”
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शाम का वक़्त था।
गली नंबर 11 की छतों पर फिर से पुरानी चहल-पहल लौट आई थी।
बच्चे पतंग उड़ा रहे थे, और कुछ घरों से चाय की ख़ुशबू आ रही थी।
आयान ने तीन साल बाद पहली बार अपनी छत पर क़दम रखा।
मिट्टी अब भी वही थी, रेलिंग पर वही पुरानी पेंट की परतें, और सामने वाली छत…
जहाँ सना खड़ी थी।
दोनों की आँखें मिलीं।
कुछ नहीं कहा, पर दोनों की पलकों में वो तीन साल उतर आए।
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पहली बार… दोबारा
अगले दिन, आयान को गली के मोड़ पर बब्लू चायवाला मिला —
> “भैया, सना मैडम आई थीं… बोलीं एक कड़क चाय देना और कहना, ‘आयान से मिलने आई थी।’”
आयान ने मुस्कुराकर ₹10 दिए और बस इतना कहा:
“उसकी चाय का बिल मेरे खाते में लगाना, बब्लू।”
शाम को दोनों चाय की उसी पुरानी बेंच पर बैठे —
तीन साल बाद पहली बार...
मगर अब दोनों जवान हो चुके थे।
बीस सवाल दोनों की आँखों में थे, पर ज़ुबां पर सिर्फ़ एक:
आयान:
“कैसी है?”
सना:
“ठीक… और तू?”
आयान:
“जैसा तू छोड़ गई थी… वैसा ही हूँ।”
सना ने गहरी साँस ली, फिर बोली —
“दिल्ली में सब कुछ था… हॉस्टल, भीड़, कॉलेज…
पर सुकून नहीं था।
ये गली, ये लोग… और तू — इन सबकी याद रोज़ आती थी।”
आयान बोला:
“तू चली गई, पर तेरी यादें रह गईं…
मैं वही दुकान, वही वायर, वही डायरी… सब कुछ वैसा ही है।”
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ख़ामोश सवाल, अधूरी बातें
चुप रहकर भी दोनों बहुत कुछ बोल रहे थे —
आँखें पूछ रही थीं:
क्या अब भी तू मुझसे प्यार करती है?
क्या जो दोस्ती थी, वो सिर्फ़ दोस्ती थी?
क्या अब वक़्त सही है?
पर दोनों ने कुछ नहीं कहा।
सना उठी, और जाते-जाते बोली —
“कल एक आख़िरी चाय तेरे साथ पिऊँगी… उसके बाद मुझे वापस जाना है।”
आयान बस देखता रह गया —
उसे पता था, कल शायद फिर कुछ ना कह पाए… या सब कुछ कह दे।
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अध्याय 5 समाप्ति टिप्पणी:
“वक़्त छुप गया था उस एक बेंच पर —
जहाँ दो लोग बैठे थे, जो मिल तो चुके थे,
पर अब भी एक फ़ैसले की दहलीज़ पर खड़े थे।”
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अध्याय 6: एक सवाल — क्या अब भी मुझसे मोहब्बत है?
“जो सवाल दिल में दब जाएं,
वो रिश्ते को चुपचाप खा जाते हैं…
पर एक बार पूछ लो,
तो या तो मिल जाते हैं…
या सुकून मिल जाता है।”
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शाम की चाय तैयार थी —
बब्लू ने बेंच साफ़ कर रखी थी जैसे उसे भी पता हो कि आज कुछ ख़ास होने वाला है।
सना ने सफ़ेद कॉटन का कुर्ता पहना था…
आँखों में हल्का सा काजल, और हाथ में वही डायरी,
जो कॉलेज के दिनों में लिखा करती थी।
आयान ने अपना वही पुराना कुर्ता पहना —
हल्का सा फटा हुआ, पर उसमें एक अपनापन था।
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एक आख़िरी बैठक
बब्लू ने दोनों के सामने चाय रखी, और शरारत से बोला —
“भैया, आज वाली चाय कड़क बनाई है…
शायद आज दिल भी कुछ कड़क बोले।”
दोनों मुस्कुरा दिए —
तीन साल बाद पहली बार हँसी ने ख़ामोशी तोड़ी थी।
सना:
“कल जा रही हूँ…
मुझे लगा मैं सब कुछ भूल चुकी हूँ,
पर ये गली… तू… सब वैसे का वैसा ही है।”
आयान (नज़र झुकाकर):
“और तू बदल गई है?”
सना:
“पता नहीं…
दिल्ली ने सिखाया कैसे ज़िंदा रहते हैं,
पर तूने सिखाया था कैसे जिया जाता है।”
एक लंबी ख़ामोशी।
आयान ने एक पुराना कागज़ निकाला —
वही चिट्ठी, जो उसने तीन साल पहले लिखी थी।
“मैं ये तुझे कब का देना चाहता था…
पर हिम्मत नहीं हुई।
आज सोचा… या तो सब कुछ कह दूँ,
या ज़िंदगी भर ख़ामोश रहना पड़ेगा।”
सना ने चिट्ठी पढ़ी —
आँखों से आँसू गिर पड़े।
उसने आँखों में आँखें डाल कर पूछा:
“आयान… एक सवाल है…”
“क्या अब भी मुझसे मोहब्बत है?”
आयान की आँखों में वो 13 साल की यादें चमक उठीं।
उसने हाथ बढ़ाया, और कहा:
“तब भी थी, आज भी है…
और अगर तू कहे…
तो आगे भी रहेगी।”
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एक नई शुरुआत
सना मुस्कुराई,
एक लंबे वक़्त बाद दिल हल्का लगा।
उसने आयान का हाथ पकड़ा —
“दोस्ती से शुरू हुआ था…
शायद अब मोहब्बत से जिएं।”
गली नंबर 11 का चाँद उस दिन कुछ ज़्यादा ही रोशन था।
कहीं दूर बब्लू ने देखा और बोला:
“लगता है आज चाय से ज़्यादा दिल पिघले हैं…”
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अध्याय 6 समाप्ति टिप्पणी:
“कुछ मोहब्बतें वक़्त से लड़ जाती हैं…
और जब वक़्त हार जाता है,
तो मोहब्बत जीत जाती है।”
Chapter 7: मोहल्ला, मोहब्बत और नया सफर
"जब दो दिल मिल जाते हैं,
तो रिश्ते सिर्फ अपने तक सीमित नहीं रहते —
वो पूरे मोहल्ले की मुस्कान बन जाते हैं।”
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तीन महीने बाद
गली नंबर 11 की हवाएं कुछ और ही थीं —
सना ने अपना कॉलेज पूरा कर लिया था और अब वो वापस आ चुकी थी।
ना सिर्फ आयान के लिए, बल्कि खुद के लिए भी।
उसने तय किया — वो अब ये मोहल्ला नहीं छोड़ेगी।
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एक नई सोच, एक नया सपना
सना ने आयान से कहा:
“मैं सिर्फ तेरे साथ रहना नहीं चाहती,
मैं तेरे साथ कुछ बनाना चाहती हूँ।”
आयान ने हैरान होकर पूछा:
“क्या मतलब?”
सना मुस्कुराई:
“अपनी गली के बच्चों के लिए एक छोटी सी लाइब्रेरी और स्टडी स्पेस खोलते हैं।
जहाँ टिल्लू भैया चाय पिलाएं, भूरा भैया मोटिवेशन दें,
और तू… तू बस मेरे साथ बैठा रहे।”
आयान हँसा, और बोला:
“और गोलू DJ बन जाए?”
सना ने मुस्कराते हुए कहा:
“वो तो तभी बनेगा जब शादी में बजाने का मौका मिलेगा।”
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मोहल्ले की शादी
आयान और सना की शादी सादगीभरी थी —
गली के बीचों-बीच पंडाल लगा,
बब्लू ने चाय मुफ्त में दी,
टिल्लू ने माइक संभाला (और तीन बार रो पड़ा),
गोलू ने अपने छोटे स्पीकर से DJ वाला काम संभाला,
और भूरा ने एक भावुक स्पीच दी:
“यह सिर्फ शादी नहीं है,
गली नंबर 11 की जीत है —
जहाँ मोहब्बत वक़्त से जीत गई है।”
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सपना — “गली की पाठशाला”
शादी के एक महीने बाद,
सना ने एक पुरानी दुकान को लाइब्रेरी में बदल दिया —
नाम रखा: "गली की पाठशाला"
जहाँ आयान बिजली ठीक करता,
बच्चों को जुगाड़ सिखाता…
सना उन्हें कहानियाँ सुनाती,
और दोनों मिलकर उन्हें पढ़ना लिखना सिखाते।
टिल्लू ने चाय की मिनी कैंटीन खोल ली, जिसका टैगलाइन था:
"पढ़ाई और चाय — दोनों यहीं मिलती है!"
गोलू DJ तो नहीं बना,
लेकिन बच्चों को म्यूज़िक सिखाने लगा,
और भूरा मोहल्ला कमेटी का हीरो बन गया।
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अध्याय 7 समाप्ति टिप्पणी:
“जब मोहब्बत सिर्फ दिल से नहीं, समाज से भी जुड़ जाए…
तो वो सिर्फ एक रिश्ता नहीं, एक बदलाव बन जाती है।”
Chapter 8: जब मोहब्बत मक़सद बन जाए
"जब दिल से निकली मोहब्बत लोगों तक पहुँचती है…
तब वह सिर्फ़ एक कहानी नहीं,
एक मिसाल बन जाती है।”
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गली नंबर 11 अब पुरानी सी नहीं लगती थी —
वहाँ एक नई रौशनी थी, एक नया जज़्बा,
और हर कोने में एक ‘पाठशाला’ वाली खुशबू थी।
सना रोज़ सुबह 8 बजे लाइब्रेरी खोल देती —
छोटे-छोटे बच्चे चप्पलों में आते,
कोई पेंसिल लाता, कोई कॉपी नहीं लाता,
पर सपने सबके पास थे।
और उन सपनों का रास्ता अब आयान और सना बना रहे थे।
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एक लड़की जिसका नाम 'सपना' था
एक दिन एक 9 साल की लड़की आई —
नाम था 'सपना'।
उसने कहा:
“मुझे स्कूल नहीं जाना, मम्मी कहती हैं लड़कियों का काम घर संभालना होता है।”
सना ने उसे पास बिठाया,
उसकी आँखों में देखा और कहा:
"जो सपना पढ़ता नहीं, वो सिर्फ़ सपना ही रह जाता है…
और तू तो नाम से ही ड्रीम है।”
उस दिन से सपना लाइब्रेरी आने लगी —
और दो महीने में ही वो सबसे तेज़ छात्रा बन गई।
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आयान की वर्कशॉप
आयान ने दुकान के पीछे एक छोटा सा शेड बनाया —
जहाँ वो बच्चों को पंखा, वायर, बल्ब, और छोटी मशीनें बनाना सिखाता।
टिल्लू ने कहा:
“भाई, तू तो इंजीनियर बन गया बिना डिग्री के!”
आयान हँसते हुए बोला:
“ये तो गली नंबर 11 की डिग्री है — ज़मीनी हुनर।”
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पहली बार न्यूज़ में नाम आया
एक NGO वॉलंटियर लाइब्रेरी देखने आया —
और उसने एक आर्टिकल लिखा:
"एक गली जहाँ मोहब्बत ने समाज बदलना शुरू किया — गली नंबर 11, गाज़ियाबाद।”
उस आर्टिकल को वायरल होने में ज़्यादा देर नहीं लगी।
लोग डोनेट करने लगे, पुरानी किताबें भेजने लगे,
और वॉलंटियर्स पढ़ाने आने लगे।
बब्लू ने गर्व से कहा:
“पहले चाय फेमस थी, अब तो लाइब्रेरी भी!”
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ज़िंदगी अब एक उत्सव थी
सना और आयान रात को छत पर बैठते,
आसमान को देखते हुए सना धीरे से कहती
“पहले सोचा था तू मोहब्बत है…
पर अब लगता है तू मेरा मक़सद है।”
आयान मुस्कुराकर कहता:
“और तू मेरी रौशनी…
जिसने मेरी गली को उजाला दिया।”
"जो मोहब्बत दिल से शुरू हो,
और समाज तक पहुँचे,
वो इश्क़ नहीं,
एक क्रांति बन जाती है।”