न्यूयॉर्क की हवा में एक अलग तरह की ठंडक थी, जो हड्डियों तक उतरकर भी अजीब सी ताजगी दे जाती है। आरव सिंह ने जब टर्मिनल के घूमते दरवाज़े से बाहर कदम रखा, तो उसके सूटकेस के पहिए काँच की फर्श पर हल्की-सी चीं-चीं करते हुए आगे बढ़े। आँखों के सामने टैक्सियों की पीली कतार, कानों में हॉर्न और लोगों की तेज़-तेज़ अंग्रेज़ी, और मन में—एक साथ उत्साह, डर और उम्मीद। उसने पिताजी की पुरानी घड़ी को कलाई पर ठीक किया, फिर अपनी माँ की बाँधी हुई लाल ऊनी डोरी को उँगलियों में घुमाकर एक पल के लिए आँखें बंद कर लीं, जैसे भीतर कहीं किसी मंदिर की घंटी बज उठी हो—“मेहनत करना, सच बोलना, और अपने दिल को गंदा मत होने देना।”
उसने फोन निकाला और हडसन टेक यूनिवर्सिटी के हाउसिंग ऑफिस का पता देखा—क्वींस में एक साधारण-सी बिल्डिंग, जहाँ उसे एक छोटा कमरा मिला था। टैक्सी की कतार की तरफ बढ़ते हुए वह खुद को समझा रहा था कि सब ठीक होगा, कि दुनिया भले नई है, पर इंसान तो वही हैं—हँसते, बोलते, प्यार करते। तभी अचानक बाईं तरफ से तेज़ी से आती रोलर ट्रॉली उसके सूटकेस से टकराई। सूटकेस का लॉक खुल गया और उसके कपड़े, माँ का भेजा पीला दुपट्टा, और एक छोटी डायरी सड़क पर फैल गई। एक मुलायम-सी आवाज़ आई, “ओह नो, आई एम सो, सो सॉरी!” आरव ने सिर उठाया—सुनहरे बालों की हल्की लटें कान के पीछे खोंसे, नीली आँखों में शर्म और हड़बड़ी का मिला-जुला भाव, हाथों में कैमरा बैग, और चेहरे पर ऐसी मुस्कान जो किसी मुश्किल को छोटा कर दे। उसने जल्दी-जल्दी झुककर कपड़े उठाने शुरू किए। “आई शुड’ve वॉच्ड—ये—माफ़ कीजिए, मेरी गलती है,” उसने खुद को सँभालते हुए कहा, और फिर अंग्रेज़ी में जोड़ दिया, “आर यू ओके?”
आरव ने भी कपड़े समेटे, “इट्स ओके… कोई बात नहीं।” उसने अपनी डायरी उठाई, जिसकी सपनीली पन्नों पर गाँव का धूल-सा चिपका था। लड़की ने दुपट्टा उठाकर हँसते हुए कहा, “यह तुम्हारा है? बहुत प्यारा रंग है।” आरव के होंठों पर अनायास मुस्कान आई, “माँ ने दिया है।”
लड़की ने अपना नाम बताया—एमा विलियम्स—और पूछा कि क्या वह पहली बार न्यूयॉर्क आया है। आरव ने सिर हिलाया। एमा ने टैक्सी बुलाने में मदद की, और चलते-चलते अपना कार्ड थमाते हुए बोली, “अगर कुछ भी चाहिए हो—क्लास, कैंपस, शहर—मुझे मैसेज करना। मैं यहीं की हूँ।” कार्ड पर छोटा-सा कैमरा बना था और नीचे एमा का ईमेल, फोन नंबर। आरव ने कार्ड जेब में रखा और टैक्सी में बैठते हुए एक बार पलटकर देखा—एमा ने हाथ हिलाया और दौड़ते कदमों से भीड़ में समा गई।
क्वींस की बिल्डिंग साधारण थी—ईंटों की दीवारें, सँकरे सीढ़ियाँ, और गलियारे में गूँजती किसी के पियानो की अधूरी धुन। कमरे में एक बिस्तर, एक मेज़, और खिड़की के बाहर तारों पर बैठे कबूतर। सामान रखते-रखते उसे माँ की याद आई; अगर वह यहाँ होतीं तो तकिये के पास तुलसी की पत्तियाँ रख देतीं और कहतीं—“विदेश की हवा में भी घर की खुशबू ढूँढ लेना।” उसने खिड़की खोली; दूर से सबवे की धड़धड़ाहट आई, जैसे शहर की धड़कन।
शाम को ओरिएंटेशन था। आरव ने हल्की जैकेट पहनी, डायरी बैग में रखी और निकल पड़ा। सबवे स्टेशन के नीचे की भाप, टिकट मशीनों की ‘बीप’, और प्लेटफॉर्म पर खड़े लोगों के चेहरों की रंग-बिरंगी दुनिया—यह सब देखकर उसे लगा वह किसी बड़े उपन्यास के पहले पन्ने पर आ गया है। उसने मेट्रोकार्ड खरीदा; मशीन ने कार्ड निगलने की कोशिश की और फिर थूक-सी दिया। वह हड़बड़ाया ही था कि बगल से एक आवाज़ आई, “होल्ड इट स्टेडी—हाँ, ऐसे।” उसने मुड़कर देखा—एमा। वही मुस्कान, वही नीली आँखें, और कंधे पर कैमरा। “मैंने सोचा था तुमसे कैंपस में मिलूँगी,” वह बोली, “पर सबवे हमेशा पहले मिलवा देता है।”
दोनों साथ बैठे। डिब्बा हिला तो खिड़की के बाहर सुरंग की काली पट्टियाँ तेज़ी से पीछे जाने लगीं। एमा ने पूछा कि वह किस प्रोग्राम में है। आरव ने बताया—डेटा सिस्टम्स और सोशल इन्फॉर्मेटिक्स—किस तरह तकनीक और इंसानों के रिश्ते बदलते हैं, यह उसे समझना है। एमा ने हँसते हुए कहा, “तो तुम वह लड़के हो जो मोबाइल ऐप में इश्क़ ढूँढते हैं?” आरव भी हँस पड़ा, “इश्क़ मोबाइल में कहाँ मिलता है? वह तो—” उसने वाक्य अधूरा छोड़ दिया, जैसे किसी ने अंदर की घंटी फिर खनका दी हो। एमा ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा, “कभी-कभी किसी के सूटकेस से टकराने में भी।” दोनों मुस्कुरा दिए; डिब्बा अगले स्टेशन पर धीमा हुआ, और आरव को पहली बार लगा कि शहर की ठंडक के भीतर कहीं हल्की-सी गर्मी भी बहती है।
कैंपस रोशनी से भरा हुआ था। लॉन पर फूड ट्रक खड़े थे; कहीं जैज़ बज रहा था, कहीं किसी प्रोफेसर के उबाऊ-से चुटकुले पर पूरे हॉल में सोची-समझी हँसी। आरव को अपना नेमटैग लेते हुए थोड़ा पसीना आया—लोग आसानी से मुस्कुराते थे, सहजता से हाथ मिलाते थे, और वह शब्द तलाशता रह जाता था। एमा ने उसे दो-तीन लोगों से मिलवाया—एक लड़की, सारा जॉनसन, जो मीडिया पॉलिसी पढ़ती थी और जिसकी आँखों में तेज़ी थी; एक लड़का, जोश, जो हर पाँच मिनट में अपना स्टार्टअप आइडिया बदल देता था; और एक लंबा, चौड़ी भौंहों वाला व्यक्ति, जिसे एमा ने दूर से “डेनियल” कहकर पुकारा, पर वह किसी कॉल में व्यस्त था और सिर्फ़ हाथ हिला कर आगे बढ़ गया। आरव ने ध्यान दिया—जब एमा ने डेनियल की तरफ देखा, उसकी मुस्कान थोड़ी छोटी हो गई; जैसे पिछले पन्ने का कोई वाक्य अभी तक मिटा न हो।
ओरिएंटेशन के बाद एमा ने पूछा, “कॉफी?” आरव ने हाँ में सिर हिलाया। कैंपस के कोने पर छोटी-सी कॉफी शॉप थी—लकड़ी की मेज़ें, छत से लटकी पीली रोशनी, और भुनी हुई कॉफी की खुशबू। एमा ने बिना पूछे उसके लिए हॉट चॉकलेट ऑर्डर कर दी, कहती, “पहले दिन कॉफी नहीं, कुछ मीठा।” उसने बातों-बातों में बताया कि वह फोटोग्राफी करती है—शहर के चेहरे, पुलों के नीचे गुम होती परछाइयाँ, और सर्दियों में कोहरे में घुलती स्ट्रीटलाइट्स। आरव ने अपनी डायरी से एक पन्ना निकाला, जिसमें उसने हवाई जहाज़ में लिखा एक छोटा-सा नोट था—“सपना जो डर बन जाए, उसे प्यार की रोशनी चाहिए।” एमा ने उसे पढ़ा और बोली, “तुम्हें कवि होना चाहिए, कोडर नहीं।” आरव हँसा, “कोडर भी कविता लिख सकते हैं, बस उनकी कविता कंपाइलर समझ ले।”
कॉफी शॉप की खिड़की के बाहर, काँच पर भाप जम रही थी, और उसी धुँधले शीशे के पार आरव ने एक क्षण के लिए किसी की परछाईं देखी—एक सधा हुआ क़द, लंबे ओवरकोट की धार, और चेहरे पर उतनी ही स्थिरता जितनी किसी शिकारी की आँखों में होती है। वह परछाईं एक पल में गायब हो गई। आरव ने खुद से कहा, शायद भ्रम है—नए शहर में आँखें भी नया खेल खेलती हैं। फिर भी, उसकी रीढ़ में हल्की-सी सिहरन दौड़ गई। एमा ने ध्यान दिया कि वह एक क्षण को चुप हो गया है। “ऑल गुड?” उसने पूछा। “हाँ,” आरव ने चाशनी-सी मुस्कान ओढ़ ली, “बस, खिड़की के बाहर अपना ही चेहरा देखा।”
रात गहराने लगी थी। कैंपस से निकलकर दोनों स्टेशन तक साथ चले। फुटपाथ पर स्ट्रीटलैम्प्स ने दोनों की परछाइयों को लंबा कर दिया था, जैसे समय खुद खिंच गया हो। एमा ने पूछा, “तुम्हारे लिए ‘प्रेम’ क्या है?” आरव ने कुछ क्षण सोचा। ख़ुद को याद दिलाया कि यहाँ लोग जवाब जल्दी चाहते हैं, पर उसके गाँव में ऐसे सवालों के चारों तरफ चुप्पियाँ बनती थीं। “प्रेम… घर की रसोई में सुबह की रोटी की पहली खुशबू,” वह बोला, “और रात के आख़िरी टुकड़े को किसी और की प्लेट में रख देना। प्रेम… किसी की तस्वीर नहीं, उसके भीतर की थकान को समझ लेना। और… शायद किसी अनजान शहर में किसी की मुस्कान पर यकीन कर लेना।” एमा कुछ पल चुप रही, फिर बोली, “तुम्हें पता है, तुम्हारी हिंदी सुनना भी एक तरह का प्रेम है—जैसे कोई नदी बहुत दूर से आती हो और तुम्हारे पास रुक जाए।”
प्लेटफॉर्म पर ट्रेन आई। विदा लेते हुए एमा ने कहा, “कल शूट है—हडसन पर पुराने डॉक के पास। अगर फ्री हो तो आ जाना। मैं तुम्हें शहर की ‘असली’ तस्वीर दिखाऊँगी।” उसने अपने कैमरा बैग की स्ट्रैप ठीक की, ट्रेन में चढ़ गई, और काँच के पार उसकी हथेली एक पल के लिए आरव की तरफ उठी—खाली हवा में एक नर्म-सा वादा। ट्रेन चली गई; प्लेटफॉर्म पर अब सिर्फ़ कुछ थैलियाँ, कुछ कागज़ और आरव की खामोशी बची।
क्वींस लौटते वक्त उसे बार-बार वह परछाईं याद आती रही। सबवे से बाहर निकला तो हवा और ठंडी थी। गली में फल वाले का ठेला आधा ढका पड़ा था, पास के डेलि की खिड़की पर ‘ओपन’ का लाल नीयन धीमे-धीमे झपक रहा था। उसने सोचा कि कमरे में जाने से पहले गर्म सूप ले ले; पर जेब से बटुआ निकालते ही उसे एहसास हुआ कि उसका कार্ড गायब है। वह चौंका, फिर याद किया—टर्मिनल पर कपड़े बिखरे थे, शायद वहीं कहीं रह गया। उसने फोन में देखें—एमा के कार्ड से उभरता छोटा-सा कैमरा बना हुआ आइकन—उसे लगा, किसी तरह के गड़बड़झाले में वह नंबर काम आ सकता है, पर रात गहरी हो चली थी।
सीढ़ियाँ चढ़ते वक़्त उसने पीछे देखा। उतनी ही दूरी पर वही सधा हुआ क़द; इस बार कोई शक नहीं था। ओवरकोट का कॉलर उठाए, हाथ जेब में डाले, और चलने का अंदाज़ जैसे हर कदम नाप तौलकर रखा गया हो। आरव ने दरवाज़ा खोलने के लिए चाबी घुमाई—ताले ने एक अपरिचित कराह निकाली। वह अंदर घुसा और दरवाज़ा लगाकर एक पल के लिए आँखें बंद कर लीं। कमरा शांत था—सिर्फ़ ऊपर की मंज़िल पर किसी की टीवी की धीमी आवाज़। उसने जैकेट उतारी, बैग मेज़ पर रखा और तब उसे दरवाज़े के नीचे से सरकाया हुआ एक छोटा-सा भूरे रंग का लिफ़ाफ़ा दिखा। उसने उठाया—उस पर उसका नाम साफ़ अक्षरों में लिखा था, “Aarav Singh,” और नीचे एक काले पेन से बना छोटा-सा पुल—जैसे शहर का इशारा।
लिफ़ाफ़ा खोला। अंदर एक पुरानी-सी पोलरॉइड तस्वीर थी—आज शाम की, कैंपस की कॉफी शॉप की खिड़की के बाहर से ली गई; तस्वीर में काँच के धुँधलेपन के पार वह और एमा बैठे थे—एमा हँस रही थी, और आरव अपने हाथ से भाप पर कुछ लिखता-सा दिख रहा था, शायद कोई शब्द जो कैमरा पकड़ नहीं पाया। तस्वीर के पीछे एक लाइन—“यह शहर प्रेम खोजने वालों को पहचान लेता है।” साथ में एक सबवे कार्ड और एक छोटा-सा नोट: “पियर 25, सुबह 7:10। देर मत करना।”
जारी...... भाग 02