I am waiting for your letter in Hindi Spiritual Stories by Adarsh Rajput books and stories PDF | तुम्हारी चिट्ठी, मेरा इंतज़ार

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तुम्हारी चिट्ठी, मेरा इंतज़ार

राधिका कॉलेज की लाइब्रेरी के उस कोने में बैठी थी जहाँ अक्सर वह और आर्यन साथ पढ़ा करते थे। सामने किताब खुली थी, पर उसके पन्नों पर नज़रें टिक नहीं पा रही थीं। उसकी उंगलियाँ कांप रही थीं, क्योंकि हाथ में वह चिट्ठी थी जो आज अचानक उसे पुराने बैग से मिली थी। पीला पड़ा कागज़, धुंधले से अक्षर, और उस पर कुछ आँसुओं के धब्बे—मानो वक्त भी इस चिट्ठी के साथ रुक गया हो।

उस चिट्ठी पर लिखा था—

"राधिका, जब तुम ये पंक्तियाँ पढ़ोगी, तब शायद मैं यहाँ न रहूँ। मैं जानता हूँ बिना बताए जाना ग़लत है, पर हालात ऐसे हैं कि मजबूरन यह करना पड़ रहा है। पापा की तबीयत बिगड़ गई है और घर की सारी ज़िम्मेदारी अचानक मेरे कंधों पर आ गई है। मैं तुमसे वादा करता हूँ, ये दूरी हमेशा की नहीं होगी। मैं तुम्हें कभी छोड़कर नहीं जा सकता। अगर किस्मत ने साथ दिया, तो एक दिन लौटकर ज़रूर आऊँगा। बस इंतज़ार करना।”

राधिका ने यह पढ़ते ही अपनी पलकों को बंद कर लिया। तीन साल पहले आर्यन अचानक कॉलेज से गायब हो गया था। सबने कहा, “वो तुम्हें धोखा देकर चला गया।” और धीरे-धीरे उसने भी मान लिया कि शायद यही सच था। कितनी ही रातें उसने तकिए में मुँह छुपाकर रोते-रोते गुज़ारीं थीं।

लेकिन आज यह चिट्ठी सच का आईना थी। यह जुदाई धोखा नहीं, मजबूरी थी। राधिका की आँखों से आँसू बह निकले—पर इस बार दर्द के नहीं, सुकून के।

वह चिट्ठी हाथ में लिए चुपचाप बैठी थी कि तभी लाइब्रेरी का दरवाज़ा खुला। कदमों की आहट गूँजी। राधिका ने सिर उठाया—और उसकी साँसें थम गईं।

सामने वही खड़ा था—आर्यन।
तीन साल बाद भी चेहरा वैसा ही था, बस थोड़ा थका हुआ। आँखों में अब भी वही सच्चाई थी।

आर्यन ने धीमे स्वर में कहा—
“राधिका… मुझे पता है बहुत देर हो गई। पर यकीन मानो, मैंने हर दिन तुम्हें याद किया है। मैं लौटा हूँ… सिर्फ तुम्हारे लिए।”

राधिका के हाथ से चिट्ठी मेज़ पर गिर गई। उसके होंठ काँपे, पर शब्द खुद-ब-खुद निकल पड़े—
“अब चिट्ठी की ज़रूरत नहीं… क्योंकि तुम खुद लौट आए हो।”

लाइब्रेरी का सन्नाटा अब उनके दिलों की धड़कनों से टूट रहा था। तीन साल का इंतज़ार, दर्द और सवाल—सबका जवाब उसी लम्हे में मिल गया था।

उस पल राधिका ने समझ लिया—कभी-कभी अधूरी चिट्ठियाँ भी पूरी कहानियाँ लिख जाती हैं।
राधिका कॉलेज की लाइब्रेरी में बैठी थी। किताब खुली हुई थी, पर उसका ध्यान कहीं और था। उसकी आंखों में आँसू थे और हाथों में एक पुरानी चिट्ठी।

ये चिट्ठी उसे अपने बैग के कोने में आज ही मिली थी। यह चिट्ठी आर्यन ने लिखी थी — वही आर्यन जो तीन साल पहले बिना बताए शहर छोड़ गया था।

चिट्ठी में लिखा था:
"राधिका, शायद जब तुम ये पढ़ोगी तब मैं यहाँ नहीं रहूँगा। पर यकीन मानो, मैंने तुम्हें कभी छोड़ा नहीं। हालात ने मजबूर किया है, पर दिल अब भी तुम्हारे पास है। अगर किस्मत ने साथ दिया तो एक दिन लौटकर ज़रूर आऊँगा।"

राधिका ने चिट्ठी पढ़कर होंठों पर हल्की मुस्कान लाई।
“तो तुम गए नहीं थे, तुम तो हमेशा यहीं थे…”

उसी पल, लाइब्रेरी के दरवाज़े पर एक साया पड़ा।
राधिका ने सिर उठाया — सामने वही था, आर्यन।
उसकी आँखों में वही सच्चाई थी, वही इंतज़ार।

राधिका ने चिट्ठी को बंद किया और धीमे से कहा:
“अब चिट्ठी की ज़रूरत नहीं… क्योंकि तुम खुद लौट आए हो।”


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