Prem ke irshalu in Hindi Short Stories by Rajeev kumar books and stories PDF | प्रेम के ईर्ष्यालु

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प्रेम के ईर्ष्यालु

 

अमवा के पेड़ के मुंडेर पर बैठी कोयलिया ’’ कुहू- कुहू ’’ की आवाज से गीत गा रही थी। किस फुनगी पर बैठी थी इसका पता स्पष्ट रूप से नहीं चल रहा था।
नीचे नदी का पानी कल-कल बह कर मधुर राग उत्पन्न कर रही थी। नदी किनारे अमवा के पेड़ के नीचे युगल प्रेमी नेत्र की स्पष्ट भाषा में वार्तालाप कर रहे थे। ऐसा भी नहीं था कि इन दोनों का मिलना रोज ही नसीब होता था। यह मिलन तो पुरे 10 दिनों के बाद हुआ था और उन दोनों के पास कल के लिए बहुत कुछ था। कोई आ न जाए इस बात का भी थोड़ा सा भय था। इसलिए कि इस स्थान पर ऐसे तो केाई बहुत ज्यादा आता नहीं था फिर भी संयोग की बात को कौन अनदेखा करे।
बिरजू ने गौरी को अपनी बाहों में भर कर कहा ’’ गुंगी बनकर ही रहना था तो यहाँ क्यों बुलाया , मेरे दिल में कितना शोर है और तुम्हारे लब सिले हुए हैं।
गौरी ने अपनी अंगूलियां बिरजू की कलाई पर फेर दी, गौरी के तलवे की गरमाहट, पैरों के द्वारा बिरजू के पूरे बदन में गुदगुदी पैदा कर रही थी, गौरी ने कहा ’’ डरना तो हमको चाहिए, आप क्यों डरतें हैं। गली में गुजरते आते-जाते मैं आपको देखती रहती हूं, मगर मेरी पलकें झुकने से पहले ही आप अपनी पलकें झुका लेतें हैं। जैसे कि हमको अनदेखा कर रहे हैं। ’’
बिरजू ने सिर पीटकर कहा ’’ हाय रे मेरा नसीब, कहाँ तो मौन व्रत धारण किए हुए थी और मौन व्रत तोड़ा भी तो सिर्फ शिकायत करने के लिए। ’’
गौरी ने मुस्करा कर कहा ’’ नहीं जी, शिकायत तो आप कर रहे हैं। अपने दिल की बात करना शिकायत कबसे होने लगा भला। ’’
बिरजू ने शरारत में गौरी की चोटी पकड़ कर खिंचा तो गौरी ने भी चुट्टी काट कर नाखुन उंकेर दिए। इस शरारत में दर्द तो दोनों को हुआ था इसलिए दोनों ने एक दुसरे से इसकी शिकायत किए वगैर नकली मुस्कान को जिंदा रखा। दोनों के बाहों की पकड़ को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानों वर्षों के बाद मिले हो और वर्षों के बाद ही मिलेगें। सुर्यदवे भी उग्र हो रहे थे। ठंडक अब उमस में तब्दील हो चली थी। दोनों छुटने-छुटने को होते थे फिर पकड़ मजबूत हो जाती थी।
अंततः दोनों ने ही एक दुसरे को झटके के साथ अलग किया मगर मुस्करा कर। बिरजू और गौरी कुछ दुर तो हाथ पकड़ कर घर लौट रहे थे मगर थोड़ी दुर आकर एक दुसरे का हाथ छोड़ दिया।
कोई न देख पाए, कोई न जान पाए,यही सोचकर बिरजू ने कहा ’’ मैं तो इस तरफ से घर जाता हूँ, तुम उस रास्ते से अपने घर जाओ। ’’

गौरी ने हाँ में सिर हिलाया और दोनों दो रास्ते से चलने से पहले एक दुसरे को जी भरकर देखा और दोनों की आँखें नम हो आयीं। बिरजू भी रास्ता भर सोचता रहा और गौरी भी रास्ता भर सोचती आयी।
बिरजू ने देखा कि गौरी के माता-पिता और मेरे माता-पिता दरवाजे पर खड़े होकर गुस्से से घूर रहे हैं।
बिरजू वहाँ खड़ा मोहना को मुस्कराता देखकर सारी बात समझ गया।

समाप्त।