रामनगर नाम का एक छोटा-सा गाँव था। चारों तरफ़ हरियाली, खेतों में लहलहाती फसलें, और गाँव के लोग जो अपनी सादगी और मेहनत से जीवन जीते थे। इस गाँव के बीचोबीच एक बड़ी-सी हवेली थी, जिसमें रिया रहती थी। रिया अपने गाँव की सबसे ख़ूबसूरत लड़की मानी जाती थी। उसके रूप-रंग की चर्चा पूरे इलाके में थी, लेकिन साथ ही लोग ये भी कहते थे कि – “रिया जितनी सुंदर है, उतनी ही घमंडी भी है।”
रिया का पालन-पोषण अमीरी और शान-शौकत में हुआ था। उसके पिता गाँव के सबसे बड़े ज़मींदार थे। यही वजह थी कि रिया हमेशा अपने आप को बाक़ियों से ऊँचा समझती थी। गाँव की औरतें खेतों में काम करतीं, तो वह उनका मज़ाक उड़ाती। लड़के उसकी एक झलक पाने के लिए बेचैन रहते, लेकिन रिया उन्हें नज़रअंदाज़ कर देती।
दूसरी ओर, उसी गाँव में अर्जुन नाम का एक साधारण-सा लड़का रहता था। अर्जुन के पिता किसान थे और खेतों से ही उनका गुज़ारा होता था। अर्जुन बचपन से ही मेहनती और ईमानदार था। सुबह सूरज निकलने से पहले ही वह खेतों में पहुँच जाता और देर शाम तक काम करता। उसका शरीर मेहनत से मजबूत और रंग धूप से सांवला था। लेकिन उसके दिल में इंसानियत और सच्चाई की रोशनी चमकती थी।
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मेला और पहली मुलाक़ात
सावन का महीना था और गाँव में सालाना मेला लगने वाला था। यह मेला पूरे इलाके में मशहूर था। दूर-दराज़ से लोग आते, झूले लगते, मिठाइयों की दुक़ानें सजतीं और लोकगीत गाए जाते।
रिया ने सोचा कि इस बार मेले में वो सबको अपनी खूबसूरती और फैशन से प्रभावित कर देगी। उसने अपनी सबसे महंगी ड्रेस पहनी, बालों में फूल लगाए और हाथों में कंगन डाले। जैसे ही वो मेले में पहुँची, सबकी नज़रें उसी पर टिक गईं। लड़कियाँ जलने लगीं और लड़के दीवाने हो गए। रिया को ये सब देखकर और भी घमंड हो गया।
उसी मेले में अर्जुन भी आया था। लेकिन उसका मक़सद शौक दिखाना नहीं, बल्कि अपने खेत की उपज से जुड़े सामान खरीदना था। उसने साधारण धोती-कुर्ता पहन रखा था और हाथ में हल्की-सी किताब थी, जिसमें वो खेती से जुड़े नोट लिखता रहता।
रिया की नज़र जब अर्जुन पर पड़ी तो उसने मन ही मन हँसते हुए सोचा –
“ये कैसा गंवार है? बिना तैयार हुए ही मेला घूमने चला आया। सच में, ऐसे लोग मेरी दुनिया से बहुत दूर हैं।”
लेकिन उसी वक्त कुछ शरारती लड़कों ने रिया को छेड़ना शुरू कर दिया। रिया घबरा गई। तभी अर्जुन आगे आया और उन लड़कों से बोला –
अर्जुन: “शरम नहीं आती? किसी की इज़्ज़त से खिलवाड़ करना आसान है, लेकिन किसी और की बहन-बेटी को अपनी नज़रों से देखो तो समझ आ जाएगा।”
अर्जुन की सख़्त आवाज़ और आत्मविश्वास देखकर वो लड़के वहाँ से भाग खड़े हुए।
रिया ने पहली बार अर्जुन को गौर से देखा। उसके चेहरे पर गुस्सा तो था, लेकिन आँखों में इमानदारी और सच्चाई भी झलक रही थी।
रिया (धीरे से): “थ… थैंक यू।”
अर्जुन (मुस्कुराते हुए): “धन्यवाद की ज़रूरत नहीं, इंसानियत का फ़र्ज़ था।”
रिया हैरान रह गई। ये वही लड़का था जिसे उसने अभी थोड़ी देर पहले गंवार समझा था।
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धीरे-धीरे बदलता नज़रिया
उस घटना के बाद रिया का दिल अर्जुन की ओर खिंचने लगा, लेकिन उसका घमंड उसे मानने नहीं देता। वह बार-बार सोचती – “मैं ज़मींदार की बेटी, और ये एक किसान का बेटा… ये कैसे मुमकिन है?”
कुछ दिनों बाद, बारिश के मौसम में, खेतों की पगडंडी से गुजरते हुए रिया का पैर फिसल गया और वो कीचड़ में गिर गई। वो चीख पड़ी –
रिया: “बचाओ… कोई तो मदद करो!”
अर्जुन वहीं खेत में हल चला रहा था। उसने तुरंत दौड़कर रिया को उठाया। उसके कपड़े गीले और गंदे हो गए, लेकिन अर्जुन ने परवाह नहीं की।
अर्जुन (हाथ बढ़ाते हुए): “संभलकर चलिए, खेत की मिट्टी फिसलन भरी होती है।”
रिया (शर्माते हुए): “म… माफ़ करना, मैं तुम्हें ग़लत समझती थी।”
उस दिन के बाद रिया का रवैया बदलने लगा। वो अक्सर अर्जुन से बातें करने लगी। कभी खेतों की जानकारी लेती, कभी गाँव की कहानियाँ सुनती। अर्जुन उसे धैर्य से समझाता।
अर्जुन: “मेहनत से बड़ा कोई गहना नहीं। ज़िंदगी की असली चमक खेतों की हरियाली और दिल की सच्चाई में है।”
रिया (सोच में): “सच कह रहे हो… मैंने हमेशा दौलत और शौकत को ही सबकुछ समझा।”
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गाँव वालों की बातें और रिया का इम्तिहान
गाँव में धीरे-धीरे ये ख़बर फैल गई कि रिया अब अर्जुन से बातें करने लगी है। कुछ लोग हैरान थे, कुछ हँसी उड़ाने लगे।
गाँव की औरतें: “अरे! ज़मींदार की बेटी और किसान का बेटा? ये तो नामुमकिन है।”
कुछ लड़के: “रिया जैसी लड़की कभी किसान के घर की बहू नहीं बन सकती।”
ये बातें रिया तक पहुँचीं। उसका दिल टूटा, लेकिन उसने महसूस किया कि अर्जुन की सच्चाई के सामने ये सब बातें छोटी हैं।
एक दिन रिया ने अर्जुन से कहा –
रिया: “अगर मैं सबकुछ छोड़कर तुम्हारे साथ आना चाहूँ, तो क्या तुम मुझे अपनाओगे?”
अर्जुन (मुस्कुराते हुए): “रिया, ये सवाल तुम्हारे लिए है। मुझे तुम्हारी दौलत या शोहरत नहीं चाहिए। मुझे बस तुम्हारा दिल चाहिए, जो सच्चा हो।”
रिया की आँखों से आँसू बह निकले। उसे पहली बार समझ आया कि असली प्यार क्या होता है।
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प्यार की जीत और शादी
कुछ महीनों बाद, रिया ने अपने माता-पिता को अर्जुन के बारे में बताया। शुरुआत में उन्होंने सख़्त विरोध किया –
रिया के पिता: “हमारी बेटी किसान के घर जाएगी? ये कभी नहीं हो सकता!”
लेकिन रिया ने साफ़ कहा –
रिया: “पापा, दौलत और शान-शौकत से ज़्यादा मुझे एक सच्चा और ईमानदार साथी चाहिए। अगर मेरी शादी होगी, तो सिर्फ़ अर्जुन से।”
आख़िरकार, परिवार मान गया। गाँव वालों के सामने धूमधाम से रिया और अर्जुन की शादी हुई।
शादी के दिन रिया ने अर्जुन का हाथ थामकर कहा –
रिया: “तुमने मेरा घमंड तोड़ा और मुझे असली इंसानियत का मतलब सिखाया। आज से मेरी सारी ज़िंदगी तुम्हारी है।”
अर्जुन: “और मैं वादा करता हूँ कि हर हाल में तुम्हारा साथ दूँगा।”
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कहानी का सबक़
गाँव वाले आज भी कहते हैं –
“ग़मंड चाहे कितना भी बड़ा क्यों न हो, सच्चाई और प्यार के आगे टिक नहीं सकता।”
रिया और अर्जुन की जोड़ी पूरे गाँव के लिए मिसाल बन गई।