प्राचीन समय की बात है जब आकाश, धरती और अधोलोक तीनों के बीच संतुलन देवी-देवताओं की कृपा और जिन्नों की शक्ति से बना हुआ था। देवता नियम और धर्म का पालन कराते थे, जबकि जिन्न अपनी जादुई शक्तियों से दुनिया को छाया और प्रकाश का संतुलन देते थे। उस समय मनुष्य अभी उतने विकसित नहीं हुए थे, वे देवताओं की पूजा और जिन्नों से भय के साथ जीते थे।
हिमालय की गहरी घाटियों में एक गुप्त लोक था जहाँ देवियाँ और परियाँ निवास करती थीं। उस लोक को "सुरलोक" कहा जाता था। वहाँ के फूल कभी मुरझाते नहीं थे, नदियाँ मीठे अमृत की तरह बहती थीं और हर प्राणी संगीत और प्रकाश से जीता था। लेकिन सुरलोक से दूर रेगिस्तानों और अंधेरी गुफाओं में जिन्नों का साम्राज्य था, जिसे "अलझान लोक" कहा जाता था। वहाँ अग्नि के स्तंभ जलते रहते, रेत पर तूफ़ान चलते और हवा में रहस्यमयी मंत्र गूंजते थे।
देवताओं ने हमेशा जिन्नों से दूरी बनाए रखी क्योंकि उनका स्वभाव अनियंत्रित था। वे कभी अच्छाई के लिए काम करते तो कभी विनाश के लिए। फिर भी कुछ जिन्न ऐसे थे जो शांति चाहते थे और देवताओं के साथ संतुलन बनाए रखना चाहते थे।
कहानी की शुरुआत होती है एक साधारण मानव कन्या "अनाया" से। अनाया एक गांव में रहती थी जो देवी दुर्गा के प्राचीन मंदिर के पास बसा था। वह बचपन से ही मंदिर की घंटियों और दीपों के बीच पली थी। उसकी आत्मा में एक दिव्य ज्योति थी, जिसे वह खुद नहीं जानती थी। एक दिन मंदिर की सबसे पुरानी पुजारिन ने उसे बुलाकर कहा –
"अनाया, तुम्हारे जन्म में कोई रहस्य है। तुम्हारे भीतर देवियों की आशीर्वाद शक्ति है। लेकिन समय आने पर ही यह प्रकट होगी।"
उसी समय दूर अलझान लोक में एक जिन्न राजकुमार "ज़ह्रान" अपने पिता से विद्रोह कर रहा था। ज़ह्रान दिल से दयालु था, लेकिन उसका पिता "जम्हार" युद्ध और विनाश का समर्थक था। ज़ह्रान हमेशा सोचता था कि अगर जिन्न और देवता मिल जाएँ तो दुनिया कितनी सुंदर हो सकती है। उसके भीतर भी एक अद्भुत शक्ति थी, जो उसे बाकी जिन्नों से अलग बनाती थी।
भाग्य का खेल ऐसा चला कि एक रात अनाया जंगल से गुजर रही थी, जब अचानक आकाश में बिजली कड़कने लगी और काले बादल छा गए। उसी पल एक विशाल अग्नि चक्र उसके सामने प्रकट हुआ और उसमें से ज़ह्रान बाहर आया। अनाया पहले डर गई, लेकिन ज़ह्रान की आंखों में उसे भय नहीं, बल्कि दया और करुणा दिखाई दी।
"मैं तुम्हें नुकसान पहुँचाने नहीं आया," ज़ह्रान ने धीरे से कहा।
"तो फिर क्यों आए हो?" अनाया ने कांपती आवाज़ में पूछा।
"क्योंकि तुम्हारे भीतर प्रकाश है और मेरे भीतर छाया। शायद हम मिलकर इस संसार को बचा सकें।"
अनाया को कुछ समझ नहीं आया, परंतु उसी क्षण आसमान में दिव्य परियाँ प्रकट हुईं। उनमें से सबसे बड़ी परी "आर्या" थी, जिसने कहा –
"अनाया, तुम्हारा भाग्य अब शुरू होता है। यह जिन्न राजकुमार तुम्हारा साथी बनेगा, क्योंकि आने वाले समय में देवताओं और जिन्नों के बीच एक भीषण युद्ध होने वाला है। केवल तुम दोनों ही उस युद्ध को रोक सकते हो।"
अनाया और ज़ह्रान दोनों चकित थे। अगले कुछ दिनों में परियों ने अनाया को सिखाया कि कैसे अपने भीतर की शक्ति को जागृत करना है। उसने सीखा कि उसके हाथों से प्रकाश की किरणें निकल सकती हैं, जो किसी भी अंधकार को मिटा सकती हैं। दूसरी ओर, ज़ह्रान ने उसे अपनी छाया जादू दिखाया, जिससे वह तूफानों और आग पर नियंत्रण कर सकता था। धीरे-धीरे दोनों एक-दूसरे को समझने लगे और उनके बीच एक गहरी दोस्ती और विश्वास का रिश्ता बन गया।
लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था। देवताओं के राजमहल "देवलोक" में जब यह बात पहुंची कि एक मानव कन्या और एक जिन्न मिलकर शक्ति बना रहे हैं, तो कुछ देवता नाराज़ हो गए। विशेषकर इंद्रदेव को यह स्वीकार नहीं था। उन्होंने कहा –
"जिन्नों का रक्त अपवित्र है। अगर मनुष्य और जिन्न साथ आए तो इससे विनाश होगा।"
परंतु देवी सरस्वती और देवी लक्ष्मी ने इसका विरोध किया। उन्होंने कहा –
"जहाँ प्रकाश और छाया मिलते हैं, वहीं संतुलन पैदा होता है। हमें उन्हें अवसर देना चाहिए।"
उधर अलझान लोक में भी ज़ह्रान के पिता जम्हार को यह खबर मिली। वह क्रोधित होकर बोला –
"मेरा बेटा एक मानव और देवताओं की दासी परियों के साथ खड़ा है? यह हमारे साम्राज्य के साथ विश्वासघात है!"
उसने अपनी सेना तैयार कर दी और देवताओं पर हमला करने का निर्णय लिया।
युद्ध की आहट पूरे ब्रह्मांड में गूंजने लगी। देवता अपनी गदाओं और वज्र के साथ तैयार हुए, परियाँ अपने पंखों से प्रकाश की दीवारें बनाने लगीं और जिन्नों ने अंधेरे तूफान बुला लिए। लेकिन युद्ध शुरू होने से पहले अनाया और ज़ह्रान ने देवताओं और जिन्नों के सामने खड़े होकर कहा –
"अगर हम लड़ेंगे तो दुनिया खत्म हो जाएगी। एक मौका दीजिए, हम साबित करेंगे कि साथ मिलकर संतुलन बनाया जा सकता है।"
देवताओं ने शर्त रखी कि उन्हें "सत्य अग्नि" की परीक्षा देनी होगी। यह अग्नि केवल उसी को स्वीकार करती थी, जिसके हृदय में कपट न हो। अनाया और ज़ह्रान ने हाथ पकड़कर उस अग्नि में कदम रखा। चमत्कार यह हुआ कि न केवल वे दोनों सुरक्षित बाहर निकले, बल्कि अग्नि ने उन्हें आशीर्वाद स्वरूप संयुक्त शक्ति प्रदान की। अब अनाया की रोशनी और ज़ह्रान की छाया मिलकर "दीप्ति-छाया जादू" बन गई।
जम्हार यह देखकर क्रोधित हो उठा और उसने खुद युद्ध छेड़ दिया। धरती कांप उठी, आकाश फटने लगा, समुद्र मंथन की तरह उफनने लगे। देवता और जिन्न आमने-सामने आ गए। तभी अनाया और ज़ह्रान ने अपनी संयुक्त शक्ति का उपयोग किया। उन्होंने आकाश में एक विशाल चक्र बनाया जिसमें रोशनी और अंधेरा दोनों घूम रहे थे। उस शक्ति ने पूरे युद्ध को रोक दिया। हर देवता और जिन्न को अपने भीतर शांति का अनुभव हुआ।
जम्हार कमजोर होकर गिर पड़ा और बोला –
"शायद मैं गलत था। शक्ति का अर्थ केवल विनाश नहीं, संतुलन भी है।"
देवताओं ने भी यह मान लिया कि जिन्नों और देवताओं का संगम बुरा नहीं, बल्कि आवश्यक है।
उस दिन से देवताओं और जिन्नों के बीच एक संधि हुई। अनाया को "प्रकाश देवी" का दर्जा दिया गया और ज़ह्रान को "संतुलन जिन्न" का। परियाँ अब दोनों की संदेशवाहक बनीं।
गांव की वह साधारण कन्या अब ब्रह्मांड के संतुलन की रक्षक बन चुकी थी। और ज़ह्रान, जो कभी अपने ही लोक में पराया था, अब सभी का संरक्षक बन गया।
इस तरह पहली बार देवी, देवता, परी और जिन्न ने मिलकर एक नई दुनिया का निर्माण किया, जहाँ प्रकाश और छाया दोनों साथ-साथ रह सके।