छुपा हुआ सच और बेइंतहा प्यार in Hindi Fiction Stories by Souradeep Adhikari books and stories PDF | छुपा हुआ सच और बेइंतहा प्यार

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छुपा हुआ सच और बेइंतहा प्यार

लेखक: सौरदीप अधिकारी

ये कोई कहानी नहीं है। ये मेरी ज़िंदगी का वो पन्ना है जिसे मैंने कभी पलटने की हिम्मत नहीं की। आज जब मैं इसे शब्दों में ढाल रही हूँ, तो लगता है जैसे हर अक्षर मेरी आँखों से बहते आँसुओं में लिपटा हुआ है। ये पूरी तरह से एक सच्ची घटना है, उन तमाम भावनाओं का निचोड़ जो मैंने कभी महसूस की हैं, कभी जी हैं, और शायद कभी नहीं भूला पाऊँगी।आज भी मुझे ठीक से याद है, वो रात। एक ऐसी रात जिसने मेरी पूरी दुनिया बदल दी थी। मैं, ऐशा, एक आर्किटेक्ट, अपने काम में डूबी हुई, भावनाओं से कोसों दूर, या शायद दूर रहने का दिखावा करती हुई। मुझे लगता था कि मैंने अपनी दिल की सारी खिड़कियाँ बंद कर ली हैं, ताकि कोई तेज़ हवा या तूफ़ान उसे फिर से तोड़ न दे। मेरे पिछले रिश्ते की कड़वाहट अभी भी कहीं गहरे में बैठी थी। मैंने तय कर लिया था कि अब सिर्फ़ करियर, सिर्फ़ लक्ष्य, सिर्फ़ अपना वजूद।

फिर वो आया। कबीर।हम एक आर्ट एक्सिबिशन में मिले थे। मेरा दोस्त मुझे ज़बरदस्ती घसीटकर ले गया था, जहाँ कबीर की कुछ तस्वीरें प्रदर्शित थीं। मैं हमेशा से ही अमूर्त कला (abstract art) की प्रशंसक रही हूँ, लेकिन उस रात, उसकी तस्वीरों में एक अजीब सी गहराई थी। एक तस्वीर थी, जिसमें एक पुरानी, टूटी हुई खिड़की से सूरज की रोशनी झाँक रही थी। उस रोशनी में उम्मीद थी, पर खिड़की के टूटेपन में उदासी। मैं उस तस्वीर को टकटकी लगाए देख रही थी, जब एक आवाज़ मेरे कानों में पड़ी, "तुम्हारी आँखों में भी वही उम्मीद और वही उदासी दिख रही है, जो इस तस्वीर में है।"मैंने पलटकर देखा। एक लंबा, गठीला सा आदमी, बिखरे बाल, गहरी आँखें और चेहरे पर एक अजीब सी मासूमियत, जो उसकी मर्दानगी को और आकर्षक बना रही थी। वही कबीर था। “माफ़ करना, मैंने तुम्हें घूरते हुए पकड़ लिया,” वो थोड़ा मुस्कुराया। उसकी मुस्कुराहट में एक चुम्बक था, जिसने मुझे अपनी ओर खींच लिया।"और तुम्हारी में एक अनसुलझा रहस्य, कबीर," मैंने भी उसी के लहजे में जवाब दिया। हम दोनों हँस पड़े। बस, वो पल था। हमारी पहली मुलाकात का पहला पल। उस रात हमने घंटों बातें कीं। कला पर, ज़िंदगी पर, सपनों पर, टूटे रिश्तों पर। उसकी बातों में एक अजीब सा ठहराव था, जो मेरे अंदर की तेज़ी को शांत कर रहा था। मुझे लगा, जैसे मैं किसी पुरानी किताब के पन्ने पढ़ रही हूँ, जिन्हें मैंने हमेशा से पढ़ाना चाहा था।वो रात ढली। मैंने उसे अपना नंबर दिया, बिना किसी उम्मीद के। पर उम्मीद थी, मेरे दिल के किसी कोने में, जिसे मैं लगातार दबाती रहती थी। और उसने कॉल किया।

अगले ही दिन।कबीर एक फ्रीलांस फोटोग्राफर था। उसकी तस्वीरें बोलती थीं। उसकी आँखों में दुनिया को देखने का एक अनूठा नज़रिया था। हमारी मुलाक़ातें बढ़ने लगीं। कॉफ़ी से लेकर देर रात की ड्राइव तक, शहर की सुनसान सड़कों पर घूमते हुए। हमने एक-दूसरे को ढूंढा, हर छुपी हुई परत को खोलने की कोशिश की। मैं उसके साथ खुद को हल्का महसूस करती थी, जैसे मेरे कंधों पर रखा हुआ बोझ अब नहीं था।"तुम्हारी आँखों में एक तूफ़ान है, ऐशा," एक रात उसने कहा, जब हम उसकी बालकनी में बैठे, तारों को देख रहे थे। "और मैं उस तूफ़ान में खो जाना चाहता हूँ।" "और तुम," मैंने उसकी आँखों में देखा, "तुम एक शांत समंदर हो, जिसकी गहराई में मैं डूब जाना चाहती हूँ।" उसने मेरा हाथ पकड़ा। उसकी उँगलियों का स्पर्श मेरे दिल की धड़कनों को तेज़ कर गया। ये सिर्फ़ स्पर्श नहीं था, ये एक वादा था, एक अनकहा इकरार। हमारे होंठ मिले, पहली बार। वो एक धीमी, गहरी, भावनाओं से भरी हुई चुम्बन थी, जिसने मेरे अंदर के सारे जमे हुए बर्फ़ को पिघला दिया। मेरे अंदर एक ऐसी आग भड़क उठी, जिसकी मुझे कभी उम्मीद नहीं थी। मैं जलना चाहती थी उस आग में, उसके साथ।हमारा रिश्ता तेज़ी से बढ़ा। हर दिन, हर पल, हम एक-दूसरे के करीब आते गए। रातें बातों में बीततीं। कभी वो मुझे अपनी कविताओं के टुकड़े सुनाता, कभी मैं उसे अपने आर्किटेक्चर के डिज़ाइन्स में खो जाती। हमने एक-दूसरे के हर पहलू को जानना चाहा। मैं उसे अपने पिछले दर्द के बारे में बताती, एक टूटी हुई सगाई के बारे में, एक ऐसे धोखे के बारे में जिसने मुझे अंदर से तोड़ दिया था। वो मुझे ध्यान से सुनता, मेरे बालों में उंगलियाँ फेरता, और कहता, "अब मैं हूँ ना। अब कोई तुम्हें चोट नहीं पहुँचा सकता।" उसकी आवाज़ में वो जादू था, जो मुझे विश्वास दिलाता।लेकिन, उसके अतीत के बारे में बातें हमेशा अधूरी रह जातीं। जब भी मैं उसके परिवार या बचपन के बारे में पूछती, वो बात टाल देता। "मेरे पास ज़्यादा कुछ कहने को नहीं है, ऐशा। बस एक सामान्य बचपन था। अब तुम हो, और तुम्हारी दुनिया ही मेरी दुनिया है।" उसकी ये बात मुझे थोड़ी खटकती थी, पर मैं उसे कलाकार की संवेदनशीलता मानकर नज़रअंदाज़ कर देती। मुझे लगा कि शायद वो भी अपने अतीत से भाग रहा है, मेरी तरह।एक दिन, उसने अपनी तस्वीर दिखाते हुए कहा, "इसमें एक राज़ है। मेरी हर तस्वीर में एक राज़ होता है।" "कैसा राज़?" मैंने पूछा। "कभी-कभी वो इतना गहरा होता है कि उसे शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता।"

उसकी आँखों में एक अजीब सी चमक थी, जो डर और उदासी के बीच झूल रही थी।हमारी रातों में अब और गहराई आ चुकी थी। शरीर से शरीर का स्पर्श सिर्फ़ जिस्मों का मिलन नहीं था, वो दो आत्माओं का अनंत में विलीन होना था। उसकी बाहों में मुझे वो सुकून मिलता, वो सुरक्षा जो मैंने कभी महसूस नहीं की थी। उसकी साँसों की गर्मी मेरे अंदर एक अजीब सी हलचल पैदा करती। जब वो प्यार से मेरे माथे को चूमता, तो मुझे लगता कि ये पल यहीं थम जाए। हम दोनों एक-दूसरे में खो जाते। उसकी उँगलियाँ जब मेरे बालों से लेकर कमर तक फिसलतीं, तो मेरे शरीर में एक सिहरन दौड़ जाती। उसकी साँसों की आवाज़, मेरे कान में उसके प्यार भरे फुसफुसाहट, "मैं तुमसे प्यार करता हूँ, ऐशा," और मेरा जवाब, "मैं भी तुमसे बेइंतहा प्यार करती हूँ, कबीर।" ये वो रातें थीं, जब हम पूरी तरह से एक-दूसरे में सिमट जाते थे, बिना किसी झिझक के, बिना किसी दीवार के। हमने एक-दूसरे को इतना दिया था, जितना शायद किसी ने कभी नहीं दिया होगा। वो सिर्फ़ शारीरिक नहीं था, वो आत्मिक था, भावनात्मक था। हर स्पर्श, हर चुंबन, हर आह, एक अटूट बंधन का प्रतीक था।एक दिन, हमने एक दूर पहाड़ों में जाने का फ़ैसला किया, जहाँ सिर्फ़ हम दोनों थे, प्रकृति और हमारा प्यार। वो जगह इतनी शांत और खूबसूरत थी कि मुझे लगा, यही स्वर्ग है। उस रात, तारों की चादर तले, हम एक-दूसरे में पूरी तरह से खो गए। मैंने उसे अपनी सारी भावनाएँ बताईं, अपने अंदर के सारे डर, सारी उम्मीदें। उसने मुझे कसकर गले लगा लिया था, जैसे वो मुझे कभी छोड़ना ही नहीं चाहता। "हमेशा साथ रहेंगे, कबीर?" मैंने पूछा, उसकी छाती पर सर रखकर। "हमेशा," उसने फुसफुसाया, "चाहे कुछ भी हो जाए।" उसकी आवाज़ में हल्का सा कंपन था, जिसे मैंने प्यार की अति मानकर छोड़ दिया। मुझे लगा कि अब मेरा जीवन पूरा हो गया है। मुझे वो मिल गया था जिसकी मुझे तलाश थी।लेकिन, धीरे-धीरे, एक अजीब सी बेचैनी मेरे अंदर पनपने लगी। कबीर कभी-कभी बहुत गुमसुम रहने लगा था। उसकी आँखों में वो चमक गायब हो गई थी। वो जल्दी थक जाता था, कभी-कभी सीढ़ियाँ चढ़ते हुए हाँफने लगता। मैंने उससे कई बार पूछा, "क्या हुआ है, कबीर? तुम ठीक हो?" वो हमेशा टाल देता, "बस काम का स्ट्रेस है, ऐशा। कुछ नहीं।"एक दिन, वो सुबह ही सुबह उल्टियाँ करने लगा। मैंने उसे डॉक्टर के पास चलने को कहा, पर उसने मना कर दिया। "बस थोड़ा वायरल है। घर पर ही ठीक हो जाऊँगा।" उसकी आवाज़ में एक अजीब सी ज़िद थी, और डर भी। मेरी चिंता बढ़ने लगी। मुझे लगा कि वो कुछ छुपा रहा है, मुझसे। हमारे बीच वो पारदर्शिता नहीं थी, जिसका मैंने सपना देखा था। "तुम कुछ छुपा रहे हो, कबीर!" एक शाम मैं उस पर ज़ोर से चिल्लाई। "तुम बेवजह शक कर रही हो, ऐशा!" उसने भी उतनी ही तेज़ी से जवाब दिया, पर उसकी आँखें झुकी हुई थीं। वो मुझसे नज़रें नहीं मिला पा रहा था। हमारे बीच तनाव बढ़ने लगा। मेरे अंदर एक अजीब सा डर पनप रहा था। एक ठंडी, काली खाई मुझे अपनी ओर खींच रही थी।फिर वो दिन आया। वो मनहूस शाम। हम एक कैफे में बैठे थे। कबीर अचानक से अपनी कुर्सी से सरककर नीचे गिर पड़ा। उसका शरीर ऐंठन रहा था, आँखें ऊपर चढ़ी हुई थीं। मैं चीख पड़ी। आसपास के लोग दौड़कर आए। एम्बुलेंस बुलाई गई। वो पल, जब मैंने उसे ज़मीन पर पड़े देखा, मेरी साँसें रुक गई थीं। मुझे लगा, जैसे मेरी ज़िंदगी का अंत हो गया है।हम उसे लेकर अस्पताल भागे। मैं उसकी हाथ पकड़े बैठी थी, उसके ठंडे पड़ते हाथों में अपनी जान महसूस कर रही थी। डॉक्टर्स ने उसे इमरजेंसी में ले लिया। घंटों मैं बाहर इंतज़ार करती रही, हर गुज़रता पल एक सदियों जैसा लग रहा था। मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था, जैसे वो अपनी जगह से बाहर निकलना चाहता हो। मेरे आँसू रुक नहीं रहे थे।देर रात, डॉक्टर बाहर आए। उनके चेहरे पर गंभीरता थी। "आप कबीर की कौन हैं?" उन्होंने पूछा। "मैं... मैं उसकी पार्टनर हूँ," मैंने काँपती आवाज़ में कहा। "हमें अफ़सोस है कि हमें आपको ये बताना पड़ रहा है, पर कबीर को एक गंभीर हृदय रोग है। एक ऐसा रोग, जो सालों से बढ़ रहा था। हमें समझ नहीं आ रहा कि उन्होंने इतनी लापरवाही क्यों की। उनका दिल बुरी तरह कमज़ोर हो चुका है। अब उन्हें एक बड़े ऑपरेशन की ज़रूरत है, जिसकी सफ़लता की भी कोई गारंटी नहीं है।"मेरी दुनिया मेरे पैरों तले से खिसक गई। मेरा शरीर पूरा सुन्न पड़ गया। दिल में एक साथ हज़ारों सुइयाँ चुभ गईं। हृदय रोग? कब से? उसने मुझसे ये बात क्यों छुपाई? क्या वो मुझसे प्यार नहीं करता था? ये कैसा रिश्ता था जहाँ इतना बड़ा सच छुपाया गया? मेरे दिमाग़ में हज़ारों सवाल कौंध रहे थे, पर जवाब कोई नहीं था। सिर्फ़ दर्द था, गहरा दर्द। "वो... वो कब से...?" मैंने हकलाते हुए पूछा। "उनके पुराने मेडिकल रिकार्ड्स से पता चलता है कि ये कुछ सालों से है। उन्होंने इसे हमेशा दबाकर रखा।"मैं लड़खड़ाती हुई उसके कमरे की ओर भागी। वो लेटा हुआ था, कमज़ोर, पीला। उसकी आँखें खुली थीं, पर बेजान थीं। उसने मुझे देखा, और उसकी आँखों में नमी आ गई। "तुमने मुझसे ये क्यों छिपाया, कबीर? क्यों?" मैं उसके बेड के पास घुटनों के बल बैठकर रोने लगी। मेरी आवाज़ में गुस्सा था, दर्द था, और एक टूटे हुए दिल की चीख़ थी। "क्या तुम्हें मुझ पर भरोसा नहीं था? क्या हमारा प्यार इतना कमज़ोर था कि तुम मुझसे इतना बड़ा सच नहीं बता सकते थे?"उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। "मैं तुम्हें खोना नहीं चाहता था, ऐशा... मैं तुम्हें दर्द नहीं देना चाहता था।" उसकी आवाज़ इतनी कमज़ोर थी कि मुझे झुककर सुनना पड़ा। "मुझे डर था कि तुम... तुम मुझे छोड़ दोगी। मुझे लगा मैं तुमसे बेइंतहा प्यार करता हूँ, और अगर तुम मुझे छोड़ दोगी, तो मैं... मैं जी नहीं पाऊँगा। मैं जानता था कि मेरा समय कम है, और मैं बस तुम्हारे साथ हर पल जीना चाहता था, बिना किसी परेशानी के।"एक पल के लिए मेरे मन में आया कि मैं उसे छोड़ दूँ। इस धोखे के साथ कैसे ज़िदगी जी जा सकती है? यह कैसा प्यार था जिसमें इतना बड़ा सच छुपाया गया? लेकिन फिर, उसकी आँखों में मैंने वो बेबसी देखी, वो प्यार देखा। वो डर देखा जो उसे मुझे खोने से रोक रहा था। उसकी हर बाहों में, हर चुंबन में, जो जुनून था, शायद वो इसी डर से उपजा था कि उसका समय कम है। वो हर पल को पूरी शिद्दत से जीना चाहता था, मेरे साथ।मैं उसके हाथ पकड़े बैठी रही, उसके माथे पर अपने होंठ रख दिए। मेरी आँखों से लगातार आँसू बह रहे थे, पर अब उनमें गुस्सा नहीं था। सिर्फ़ अथाह प्रेम था, और असीम पीड़ा। मैं कैसे उसे छोड़ सकती थी, जब वो इतना कमज़ोर था? जब उसे मेरी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी? वो सच छुपाकर शायद मुझे दर्द से बचाना चाहता था, पर उसने मुझे और गहरा दर्द दे दिया था। पर, क्या मेरा प्यार इतना स्वार्थी था कि मैं उसे इस हालत में अकेला छोड़ दूँ?मेरी आँखों के सामने हमारी सारी यादें घूमने लगीं। कैफे की हँसी, बालकनी की लंबी रातें, पहाड़ों की वो सुनहरी शाम, हर स्पर्श, हर चुंबन, हर वो पल जब मैंने खुद को उसके हवाले कर दिया था। वो सब झूठ नहीं था। वो प्यार झूठ नहीं था। वो सिर्फ़ एक बेबस इंसान का डर था।मैंने उसका हाथ कसकर पकड़ा। उसकी उँगलियाँ मेरी उँगलियों में उलझ गईं। "हमेशा साथ रहेंगे, कबीर," मैंने फुसफुसाया, मेरी आवाज़ आँसुओं में घुली हुई थी। "चाहे कुछ भी हो जाए।" उसकी आँखों में एक अजीब सी शांति आ गई।आज भी मुझे नहीं पता कि हमारा भविष्य क्या है। डॉक्टर्स ने कहा है कि सर्जरी बहुत जटिल है। शायद वो सफल न हो। अगर सफल हो भी जाती है, तो ज़िंदगी पहले जैसी नहीं रहेगी। पर मुझे इतना पता है, कि मैं उसे इस मोड़ पर अकेला नहीं छोड़ सकती। हमारा प्यार उन वादों से कहीं बड़ा है जो टूट गए।

उन सच्चाइयों से कहीं गहरा है जो छिपी हुई थीं।ये प्यार है, उसकी उलझनों, उसकी सच्चाइयों, उसके धोखों, और उसकी बेबसी के साथ। ये आधुनिक प्रेम है, जहाँ रिश्ते सिर्फ़ गुलाबी नहीं होते, जहाँ हर पल एक परीक्षा होती है, जहाँ इंसान अपने डर से लड़ता हुआ, प्यार को बचाने की कोशिश करता है। और मैं, आज भी, उस अधूरे वादे और उस गहरे प्यार के बीच खड़ी हूँ, हर पल एक नए संघर्ष के लिए तैयार। क्योंकि उसका हर साँस लेना मेरे लिए एक चुनौती है, और मेरा हर साँस लेना उसके लिए एक अटूट बंधन। और ये ही हमारी कहानी का वो सच है, जो ज़िंदगी भर मेरे साथ रहेगा, मेरे आँसुओं की तरह बहता हुआ।