Dil Ka Sayyarah in Hindi Motivational Stories by M choudhary books and stories PDF | दिल का सैयारा

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दिल का सैयारा

लेखिका:  मलीहा चौधरी 
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🌸 कहानी का परिचय 🌸

यह कहानी सिर्फ़ एक لڑकी "ग़ज़ल" की नहीं है, बल्कि उन तमाम दिलों की दास्तान है जो मोहब्बत करते हैं, उम्मीद रखते हैं और फिर भी हालात और मजबूरियों के हाथों हार जाते हैं।

ग़ज़ल — एक निडर, बाग़ी और ज़िन्दगी को अपने तरीके से जीने वाली लड़की, जिसकी रूह में दर्द भी है और हिम्मत भी।
जीयान — एक सच्चा चाहने वाला, मगर अपनी माँ और समाज के बोझ तले दबा हुआ इंसान।

दोनों की मोहब्बत सच्ची थी, मगर हालात ने उन्हें जुदाई का तोहफ़ा दिया।
ग़ज़ल की आँखों में सपने थे, दिल में मोहब्बत थी और होंठों पर सच का इज़हार, लेकिन किस्मत ने उसे वो मंज़िल नहीं दी जिसका वो इंतज़ार कर रही थी।

यह सिर्फ़ इश्क़ और जुदाई की दास्तान नहीं है…
यह कहानी है मजबूरी और मोहब्बत की टकराहट की।
यह कहानी है वादों और बेवफ़ाई के बोझ की।
यह कहानी है उस दर्द की, जो दिल तोड़ने के बाद भी दिल से निकलता नहीं।

हर लफ़्ज़ आपको झकझोर देगा…
हर सीन आपकी आँखों को भिगो देगा…
और आख़िर तक यह एहसास दिलाएगा कि —
सच्चा इश्क़ कभी मरता नहीं, वो बस यादों और दर्द के रूप में ज़िन्दा रहते है।


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दिल का सैयारा (दिल का चाँद ग्रहण)

एक तरफ़ा फ़ैसला हमेशा इंसान को मौत देता है। आज भी बहुत सी मोहब्बतें हैं जिन्हें एहसानात के तराज़ू में तौला जाता है और उन एहसानात के बोझ तले दब कर मजबूरी का नाम दिया जाता है। और ज़िंदा आदमी को मौत के घाट उतार दिया जाता है। जान लें कि ज़िंदगी एहसानात का नाम नहीं बल्कि ज़िंदगी एक ख़ूबसूरत एहसास का नाम है।

गाड़ी सड़क पर बहुत तेज़ रफ़्तारी से दौड़ रही थी। गाड़ी का शीशा नीचे करते हुए अपने हाथों को बाहर निकाल कर हवाओं को महसूस कर रही थी। लंबे भूरे बाल जो खुले थे। काली आँखें जो अपने आप में एक दुनिया को लिए बहुत रोशन थीं, गुलाबी होंठ, सफ़ेद रंगत, हसीन चेहरा जो सूरज की तरह रोशन था, वह बहुत ख़ूबसूरत थी।

"मैडम जी; साइड लग जाएगी, आप अपने हाथ अंदर कर लें" ड्राइवर जो काफ़ी देर से उसकी यह हरकत देख रहा था और कुछ कहने की कोशिश में था लेकिन उस लड़की को इस तरह ख़ुश देख कर कुछ भी बोलने का दिल नहीं किया था।

"बाबा आपने कब से मुझे मैडम कहना शुरू कर दिया?" उसने आँखें बड़ी करते हुए पूछा।

ऐसे सवाल पर रहील बाबा जो उसके डैडी के बहुत पुराने और वफ़ादार ड्राइवर थे, ने बैक मिरर से उस लड़की की तरफ़ देखा जो उनकी आँखों के सामने परवान चढ़ी थी।

"क्या देख रहे हो बाबा? बताओ कब से मैं यानी कि ग़ज़ल जो आपकी गुड़िया है और हमेशा रहेगी इंशाअल्लाह उसको आप कैसे मै जी बोल सकते हैं?" इस बार ग़ज़ल ने अपना मुँह फुला लिया था।

"सब्र गुड़िया, मुझे मालूम है तुम मेरी गुड़िया हो, मैं बस देख रहा था। आपको कि इतने सालों बाद आप कहीं अपने रहील अंकल को भूल तो नहीं गई हैं।" रहील काका ने हँसते हुए कहा, जिस पर ग़ज़ल का मुँह और ज़्यादा फूल गया और फिर उसकी आँखों से देखते हुए बहुत ज़ोर से हँस दी।

"फ़िक्र न करो काका, आपकी गुड़िया कभी अपने रिश्ते, मोहब्बत और अपने ख़्वाबों को नहीं भूलती। वैसे बाबा आज भी गाँव और गाँव के लोगों का हुलिया नहीं बदला, दरअसल बाबा चाहे दुनिया कितनी ही तरक़्क़ी कर ले, आसमान को छू ले, या ज़मीन खोद कर माल हासिल कर ले, लेकिन हिन्दुस्तान का सुनहरी रंगीन गाँव की हवाएँ कभी नहीं बदलेंगी। मेरा मुल्क सुनहरी दुनिया से प्यारा ऊँचे ख़्वाबों की राहों तक पहुँचाने वाला जिससे यह ग़ज़ल बहुत मोहब्बत करती है, यहाँ की वर्दी, यहाँ की ठंडी ठंडी हवाएँ, यहाँ की ख़ूबसूरती मुझे बुलाती है और देखो, सिर्फ़ और सिर्फ़ मैं शहर से हॉस्टल से इसी गाँव के लिए आती हूँ।"

वह अपने आप में मगन मुस्कुरा रही थी और बहुत प्यार से अपने मुल्क के लिए मोहब्बत समोए बोल रही थी।

"हाँ वह तो है बेटा।" चाचा ने भी उसका साथ दिया।

फिर गाड़ी एक तरफ़ मुड़ कर हवेली की तरफ़ बढ़ने लगी। वह दूर से ऊँची हवेली की दीवारें देख सकती थी। उसका मुस्कुराता चेहरा एकदम मुरझा उठा। दिल डूब रहा था कि साँस लेने में तकलीफ़ हो रही थी, उसकी आँखों में आँसू थे। वह किन हालात में उस हवेली से गई थी, यह तो वही जानती थी।

कुछ देर बाद गाड़ी गैराज में आकर रुकी। वह उदास दिल के साथ हवेली की दीवारों को देखती नीचे उतर आई, गाड़ी का गेट बंद कर के इधर उधर देखने लगी। काला चमकता फ़र्श, ऊँची ऊँची दीवारें, हर तरफ़ बड़े बड़े दरख़्त और पौधे जो बहुत ख़ूबसूरत लग रहे थे। रहील बाबा उसका सामान लेकर अंदर चले गए थे और वह वहीं खड़ी अपने हर लम्हों को याद कर रही थी। उसकी आँखों से आँसू जारी थे जिसे उसने जल्दी से साफ़ किए, अपने आप को मज़बूत बनाने के लिए आगे बढ़ने ही वाली थी जब उसने एक अजीब-ओ-ग़रीब जीप देखी जो उसने यहाँ हवेली में पहले कभी नहीं देखी थी।

"यह जीप किस की है?" वह खुद से बड़बड़ाई थी कि उसे फ़ौरन ऐसा लगा जैसे उसने यह जीप अपनी यूनिवर्सिटी की पार्किंग में देखी हो। लेकिन फिर भी वह इस सोच पर क़ायल नहीं हो रही थी।

"मुझे क्या लेना है, चाहे किसी की भी हो! हहहहहहहहहहहहहहहहहहहह!" वह आगे बढ़ रही थी कि जीप के स्टार्ट होने की आवाज़ उसके कानों में पड़ी।

"इसमें मतलब कोई है? लेकिन कौन?" वह इससे पहले देखती कुछ झट से जीप तेज़ी से आगे बढ़ी और हवेली के दूसरे रास्ते से निकल गई। वह बस जीप को देखती रह गई। उसने ख़ुद में एक गहरा साँस लिया, ख़ुद को ठीक किया और अपने क़दम अंदर की ओर बढ़ा दिए।
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******************

वह जीप का हैंडल पकड़े कुछ सोच रहा था कि एक साया उसकी आँखों में लहराया, उसने पलट कर देखना चाहा जब तक वह साया वहाँ से जा चुका था।

"यह आज हवेली में कोई लड़की? वह भी हवेली के गैराज में? कुछ अजीब नहीं है?" वह सोचता हुआ बोल भी रहा था।

ए.सी.पी. जियान एक होनहार अफ़सर था, नरम दिल नरम मिज़ाज का मालिक था, उसका क़द छह फ़ुट ग्यारह इंच था, भूरी आँखें, भरी हुई सी और साफ़ रंगत। वह बहुत ख़ूबसूरत था।

वह सोच ही रहा था कि उसके मोबाइल की घंटी बजी तो उसने मोबाइल की तरफ़ देखा तो उसकी माँ की कॉल थी।

"अस्सलामुअलैकुम अम्मी!! ख़ैरियत है न?" उसने परेशानी से पूछा था। दूसरी तरफ़ से उसकी अम्मी ने पता नहीं क्या कहा था कि उसने जल्दी से जवाब दिया।

"अम्मी अभी आ रहा हूँ, आप फ़िक्र न करें, अल्लाह सब ठीक कर देगा।" यह कह कर उसने फ़ोन रख दिया और अपनी सोचों को एक तरफ़ रखते हुए उसने जीप की रफ़्तार बढ़ा दी।


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इब्राहीम ख़ान इस गाँव का सरदार था। उनके हुक्म की तामील पूरा गाँव करता था। वह सख़्त मिज़ाज और पुरानी सोच के आदमी थे। वह अपने घर की बेटियों और बाक़ी गाँव की बेटियों को तालीम न देना बहुत अहम काम समझते थे।

आज भी इस मुल्क में कई ऐसी जगहें हैं जहाँ बेटियों को उड़ान भरते वक़्त उनकी तालीमात पर हथकड़ियाँ लगाई जाती हैं। कहने को तो यह मुल्क आज़ाद है, लेकिन आज भी अगर हक़ीक़ी मायनों में देखा जाए तो बेटियों को आज़ादी नहीं दी जाती — चाहे वह किसी भी जात, समाज या किसी भी मज़हब की हों।

हमारी हुकूमत ने ख़्वातीन के लिए बहुत से क़ानून बनाए हैं जिनमें से एक "तालीम का हक़" है। लेकिन पुरानी सोच रखने वालों की तो वही बात हुई — "धाक के तीन पात"। उन्हें अपनी नई सोच देना दीवार के सामने सिर टकराने के मुतरादिफ़ है।

वह समझते थे कि अगर बेटियों को तालीम दी जाए तो बेटियाँ सर पर बिठा लेंगी, उनका हुक्म नहीं मानेंगी और मनमानी करेंगी। इसीलिए वह लड़कियों को तालीम देने के हक़ में नहीं थे।

लेकिन कहा जाता है कि वक़्त हर चीज़ का सरदार है, इस से बड़ा कोई नहीं। वक़्त और हालात के बदलने पर वह सब कुछ बता देता है। शायद अल्लाह ने भी उनके लिए कुछ ऐसा ही सोचा था।


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खाने की मेज़ पर सब बैठे एक आदमी का इंतज़ार कर रहे थे — वह कोई और नहीं हमारी ग़ज़ल थी।

"रानिया जाओ, अपनी बहन को बुला कर ले आओ।"

हुक्म देते हुए उसने घड़ी के सामने वक़्त देखा जो सात बज कर अट्ठावन मिनट दिखा रही थी। उसके चेहरे के तास्सुरात हर सेकंड बदल रहे थे।

टक-टक टिकती घड़ी की सुई भी आज इन सबका इंतज़ार नहीं कर रही थी, या फिर करना ही नहीं चाहती थी।

आठ बजे और वह एक दम अपनी कुर्सी से उठ खड़े हुए, ग़ुस्से से उनका बुरा हाल था।

"ग़ज़ल!!!!" एक दम बहुत ज़ोर से चिल्लाए थे।

सब उनके खड़े होते ही अपनी जगह पर गर्दनें झुका कर खड़े हो गए।

तभी ग़ज़ल डाइनिंग हॉल में दाख़िल हुई।

"जी बाबा साईं।" वह बिल्कुल पुरसुकून होकर उनकी आँखों में आँखें डाले देख रही थी।

इब्राहीम साहब को ऐसी बेबाकी से ही तो नफ़रत थी।

"अब आप अपनी तालीम के आगे हमारे हुक्म को नहीं मानेंगी? तुम वहाँ शहर में जा कर इस हवेली के रिवाज़ भूल गई हो? या फिर जान-बूझ कर कर रही हो आप? बिल्कुल अपनी....!!!"

इस से पहले कि वह और कुछ कहते, वह दरमियान में बोल पड़ी:

"Enough!!! पहली बात तो यह कि हम इस हवेली के तौर-तरीक़े तो न चाह कर भी नहीं भूल सकते। दूसरी बात वहाँ से आने के बाद हम सो गए थे — उसके लिए माफ़ कर देना। हमें यह कोई इतनी बड़ी बात नहीं लगती।"

वैसे भी उसने पलट कर उन सबकी तरफ़ देखा जिनकी इब्राहीम साहब के सामने आँख उठाने की हिम्मत नहीं थी।

"जो ऐसी नज़रें झुकाए खड़े हो गए हैं... चलो गाइज़, खाना खाते हैं, मुझे बहुत भूख लगी है।"

यह कह कर उसने कुर्सी पर बैठते हुए मुलाज़िम को हुक्म दिया। फिर वह सब को नज़रअंदाज़ करते हुए खाना खाने लगी।

वह ऐसी ही थी।
वह भी तो इब्राहीम ख़ान की बेटी थी।
उसके अंदर भी ख़ान ख़ानदान का ख़ून दौड़ता था।
फिर वह अपनी ज़िद कैसे छोड़ सकती थी।

*************

" आपी ये क्या हरकत की है आपने? "
निमरा जो ग़ज़ल की छोटी बहन थी, जब ग़ज़ल खाने की मेज़ से लॉन में सैर के लिए निकली तो वो भी उसके पीछे-पीछे चली आई और अब ग़ज़ल से अंदर की गई हरकत के बारे में पूछ रही थी जो इब्राहीम यानी उसके वालिद के ग़ुस्से होने की वजह बनी थी। और वो थी कि सुकून से टहलने में इतनी मशग़ूल थी जैसे उसके पास इस से बढ़कर कोई ज़रूरी काम ही न हो।

"आपी मेरी तरफ़ देखें।"
इस बार उसने ग़ज़ल का कंधा पकड़ कर अपनी तरफ़ मोड़ा और फिर कहा,
"मैं आप से पूछ रही हूँ इन दरख़्तों और पौधों से नहीं, इस ज़मीन से नहीं, इस अंधेरी रात से नहीं। यहाँ मेरे और आपके अलावा कोई नहीं, कोई भी नहीं।"

"क्या पूछना चाहती हो तुम? हाँ क्या बताऊँ मैं तुम्हें? ये कि इस हवेली में मेरा दम घुटता है या ये कि मुझे इस हवेली से नफ़रत है या ये कि यहाँ के बला वजह और बकवास क़ानून को मैं नहीं मानती। मेरी ज़िंदगी मुझे गुज़ारनी है, किसी और को नहीं। जब मैं मरने के बाद मुझे ही अपना हिसाब किताब उस रब को देना है। दो गज़ ज़मीन के टुकड़े में मुझे अकेली को सोना है। क्या खाती हूँ, क्या पहनती हूँ, कब सोती हूँ, कब जागती हूँ, इन सब चीज़ों का हिसाब मुझे ही देना है, फिर मैं अपनी ज़िंदगी किसी और के मुताबिक़ क्यों गुज़ारूँ? मुझे बताओ क्यों?

क्या तुम मेरी क़ब्र में सोओगी?
क्या तुम रोज़-ए-महशर उस रब के सामने खड़े होकर कहोगी कि अल्लाह अल्लाह जी, क्या मैं ग़ज़ल का हिसाब दे सकती हूँ?
मुझे बताओ, क्या तुम मेरा हिसाब दोगी?"

उसने नज़रें ऊपर नीचे करते हुए पूछा, जिसका निमरा के पास कोई जवाब नहीं था।

"नहीं दे सकती न तुम? फिर मुझे बताओ भी नहीं कि मुझे क्या करना चाहिए क्या नहीं। मैं अपना अच्छा बुरा सब मालूम है। अपनी नाक के लिए कम अज़ कम मैं दूसरों की ज़िंदगियाँ बर्बाद नहीं करती। और हाँ एक बात ज़ेहन में रखो, अफ़सोस अतीत को नहीं बदल सकता और फ़िक्र मुस्तक़बिल की तश्कील नहीं कर सकती। इसलिए हाल से लुत्फ़ अंदोज़ हो, क्योंकि जो वक़्त आपको मिला है वो सिर्फ़ आपका है, वरना गुज़रने के बाद पछतावा और तल्ख़ अतीत बाक़ी रह जाता है, जो आपको सिर्फ़ उदास कर सकता है और कुछ नहीं।"

वो कहकर रुकी नहीं थी, अपने कमरे में चली गई थी।
निमरा ख़ामोशी से खड़ी ख़ुद से बड़बड़ा रही थी और उसे देखकर बोली,
"आपी तुम बहुत ग़लत कर रही हो। तुम जानती हो कि हमारे डैडी और दूसरे लोगों के डैडी में बहुत फ़र्क़ है।"
एक आँसू निकलकर हरी घास पर गिरा, एक नज़र इधर-उधर देखा और फिर वो भी अंदर जा चुकी थी।


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"सर! ये कुछ फाइलें हैं जो गाँव वालों की शिकायतों से भरी हुई हैं। वो कहते हैं कि आपने पिछले पाँच सालों में उनसे जो वादे किए थे वो पूरे नहीं किए।"

आज एक बार फिर वो इस हवेली में आया था। जब से उसकी पोस्टिंग इसी गाँव में हुई थी, तब से वो हफ़्ते में दो-तीन बार इस हवेली का चक्कर लगाता था और आज भी वो किसी काम से आया था क्योंकि इलेक्शन सर पर खड़े थे। इस वक़्त गाँव वालों का तआवुन न होने के बराबर था, इसी लिए इब्राहीम ख़ान इन दिनों बहुत ग़ुस्से में नज़र आने लगे थे।

इब्राहीम साहब ने फाइल पकड़ कर शीशे की मेज़ पर रख दी और बोले,
"ए सी पी जियान, मुझे नहीं मालूम कि आप क्या करेंगे क्या नहीं लेकिन इस बार मुझे जितवाना आपका काम है।"

इब्राहीम साहब ने हुक्म दिया था।
"लेकिन सर…!!"

"ए सी पी जियान, परवर मुझे कुछ नहीं सुनना, जो हुक्म दिया है आप वो करें।"

जियान कुछ बोलता कि इब्राहीम ख़ान ने अपनी बात कह डाली थी।

"ए सी पी जियान, क्या आप में मैनर्स नहीं है? या आप दूसरों के इशारों पर चलने वाले एक ………!"

दोनों एकदम पीछे मुड़े, जहाँ से उन्हें आवाज़ आई। देखा कि सीढ़ियों पर खड़ी ये लड़की जो बाईस साल की थी, लंबे कोट पर नीली जीन्स पहने, मफ़लर की तरह ऊन की शॉल लपेटे हुए थी, गर्दन पर लंबे बाल कंधों से नीचे लटक रहे थे, काली मोटी आँखें पता नहीं क्या बोलना चाहती थीं, जिनकी चमक बहुत तेजी से बढ़ रही थी। चेहरे पर कोई तास्सुरात नहीं थे। वो खड़ी ऊँची आवाज़ में जियान से पूछ रही थी।

जबकि इब्राहीम साहब को यहाँ ग़ज़ल को देखकर बहुत ग़ुस्सा आ गया था।
"ग़ज़ल अपने कमरे में जाओ।"
इब्राहीम साहब ने हुक्म दिया, जिसे नज़रअंदाज़ करते हुए ग़ज़ल भी बाक़ी सीढ़ियों पर फलांगते हुए उन दोनों के सामने खड़ी हो चुकी थी। और अब इन दोनों के सामने खड़ी सवाल कर रही थी।

"Hello I am Gazal Khan. I'm studying law from Delhi University, Jamia Millia Islamia. And your name ACP Jiyan, I'm right?"

उसने बड़े परसुकून अंदाज़ में पूछा था।
"मैं ए सी पी जियान अब्दुर्रहमान हूँ।" उसने जवाब दिया था।

"Good!" ग़ज़ल ने स्टाइल से बालों को कानों के पीछे लेते हुए कहा था और फिर बोली,
"अच्छा यहाँ कुछ सियासत पर बात हो रही है न? डैडी!"

डैडी पर ज़ोर देते हुए इस बार ग़ज़ल ने इब्राहीम साहब से पूछा था।

जियान इस लड़की को यूँ सामने देखकर — वो भी इब्राहीम साहब की बेटी को किसी के सामने देखकर — बहुत शॉक्ड था। जहाँ तक उसे मालूम था कि इब्राहीम ख़ान की बेटी को किसी मर्द के सामने आने की इजाज़त नहीं थी, तो फिर ये लड़की? सोचने पर मजबूर था, वो एकटक सिर्फ़ उसकी तरफ़ देख रहा था।

"हाँ!! अब तुम अपने कमरे में जाओ।"
इब्राहीम साहब ने बात का जवाब देते हुए उसे घूरा।

"अगर आप बुरा न मानें तो क्या मैं आपकी मदद कर सकती हूँ?"
उसने अपनी मदद की पेशकश की।

"नहीं, मुझे तुम्हारी कोई मदद नहीं चाहिए।"
इब्राहीम साहब ने उसकी पेशकश ठुकरा दी थी।

"Ok as you wish. By the way मैं आपको बताने थी कि मैं दिल्ली वापस जा रही हूँ, मुझे यहाँ नहीं रुकना।"

वो बोलती हुई आगे बढ़ने लगी, जब उसे कुछ याद आया तो वो पलटकर बोली,
"वैसे डैडी, बेस्ट ऑफ़ लक… इस बार आपकी हार यक़ीनी है। देखो अगर मैंने आपको प्रपोज़ल दिया था कि चलो आधी नेकी कर दूँ, ख़ैर मैं भूल गई थी कि आप वो शख़्स हैं जो अपनी क़िस्मत ख़ुद ही कुल्हाड़ी से मारते हैं।"

वो बोलके वहाँ से चली गई थी।

जियान सुकून से दोनों बाप बेटी को देख और सुन रहा था।
इब्राहीम साहब ग़ुस्से से बुरी हालत में थे, जिससे बेटी को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता था।

वो इतना जान गया था कि ग़ज़ल अपने डैडी से नहीं डरती।
वो एक निडर और बहादुर लड़की है जो अकेले हर मुश्किल का सामना करना जानती है।

"सर, मैं चलता हूँ। आप एक बार ज़रूर सोचिएगा।"
वो भी वहाँ से चला गया था।


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"अंकल, मुझे अम्माँ के पास ले कर चले।"
वो ऑर्डर देते हुए गाड़ी में बैठ गई।

"पर बेटा, मैं अभी साब जी का एक बहुत ज़रूरी काम कर रहा हूँ।"
राही़ल बाबा ने उससे कहा।

"Ok बाबा, आप डैडी का काम कर लें, मैं चली जाती हूँ।"
उसने ड्राइविंग सीट पकड़ी और स्टीयरिंग पकड़कर कार को उड़ा ले गई।

राही़ल काका अभी मुड़े ही थे कि जियान को बाहर आते दिखाई दिया।
जियान ने सलाम किया, उसके बाद पूछा था,
"अंकल, ये इब्राहीम ख़ान की बेटी अकेली कहाँ जा रही है?"

जिस पर राही़ल काका ने मुस्कुरा कर कहा,
"बेटा, ये मक्की की रोटी और साग खाने अपनी आई गुल के पास गई है। और अब इन बेटियों का कभी रात गए वापस आना होगा।"

"अच्छा पर बाबा, इब्राहीम साहब तो अपनी बेटियों को हवेली से बाहर निकलने ही नहीं देते, फिर इनको क्यों?"
उसने पूछा तो बाबा ने बात बदल दी,
"बेटा, मैं साहब जी का काम कर लूँ, वरना साहब जी नाराज़ हो जाएँगे।"

बाबा वहाँ से चला गया था और वो भी अपनी जीप की तरफ़ बढ़ गया था।


---

**ए ज़िंदगी थोड़ी मेहरबान हो जा
थोड़ा वक़्त तो दे मुझे संभलने का
देख, मुझे तेरे दिए ग़म सह नहीं जाते
कुछ कहना चाहूँ तो मुझसे अब कहा नहीं जाते
जीने की उमर में मरने के हालात हो रहे हैं
क्या बताऊँ अब मैं तुझे
मुझसे अब इन हालातों में रहा नहीं जाता

ए ज़िंदगी थोड़ी मेहरबान हो जा
थोड़ा वक़्त दे मुझे संभलने का
देख, वाक़ई अब थक गई हूँ मैं ग़म छुपाते-छुपाते
थक गई हूँ मैं "मैं ठीक हूँ" ये बताते-बताते
थक गई हूँ झूठा मुस्कुराते-मुस्कुराते
और थक गई हूँ अतीत को भुलाते-भुलाते

ए ज़िंदगी थोड़ी मेहरबान हो जा
थोड़ा वक़्त दे मुझे संभलने का**
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रात के सियाह बादल आसमान पर मंडरा रहे थे। हवाएँ तेज़-तेज़ चल रही थी, दरख़्तों की झंझनाहट पूरे जहाँ में सुनाई दे रही थी.... बार-बार खिड़की खुलती-बंद होती जिसकी वजह से उसका वजूद काँप उठता था...

"न न न नहीं....!" उसने अपने पेट पर हाथ रखा तो उसका हाथ सुर्ख़ हो चुका था..... इसको देख वह काँप गई थी, लबों से एक ज़ोरदार चीख़ बुलंद हुई थी...

तभी उसको उल्टी आने लगी..... जिसमें सिवाए ख़ून के कुछ भी नहीं नज़र आ रहा था। उसका ख़ौफ़ से वजूद खुद में सिकुड़ने लगा, वह खुद में और सिमट गई थी.....

"ग़ज़ल इधर आओ मेरे पास" उसके कानों में अपनी मम्मा की आवाज़ गूँजी थी..... उसने आवाज़ के ता़क़ुब में देखा था जहाँ से एक सफ़ेद चमकदार रोशनी को चीरते हुए एक औरत जैसे सलीके से सर पर दुपट्टा लिया हुआ था, हाथों में मख़मली सफ़ेद पोश चादर थामी हुई थी और सफ़ेद ही लिबास ज़ेब-तन किया हुआ था....

"म मम्मा.....!" देखते हुए उसने अपनी मम्मा को पुकारा था...... हँसते हुए अब उसकी मम्मा उसकी तरफ़ बढ़ रही थी।।

"बेटा मेरे साथ चलो, ये सब धोखा है धोखा, जिस राह में तुम सफ़र कर रही हो न, वह सब आँखों का धोखा है। यहाँ कोई अपना नहीं है, सब धोखा है।" ज़ोर-ज़ोर से उसकी मम्मा उसको इस दुनिया के नवाक़िफ़ बातों से वाक़िफ़ियत करवा रही थी...........

"मम्मा कैसा धोखा, कैसा धोखा मम्मा? मुझे कौन धोखा दे रहा है_?" वह रोते हुए चिल्लाई.........

"Plzzzzz mama plzzz tell me now plzzz....."

उसके पूछने पर उसकी मम्मा ने नफ़ी में गर्दन हिलाई थी........

"बताइए न मम्मा, बताइए न, कौन मुझे धोखा दे रहा है_?" अपनी माँ को गर्दन नफ़ी में हिलाते देखा तो इस बार वह रोने लगी थी और फ़रियाद भी करने लगी थी......

"ज़िंदगी के खेल है, उलझनों से उलझे धागों में बँधी है डोर, चाहने के बावजूद इन्हें तुम दूर नहीं कर सकती। ये धोखे की दुनिया है, मारती है वहाँ जहाँ अमदन पनाह हो.......... बेटा आओ मेरे साथ चलो, मैं तुम्हें छुपा लूँगी सारी दुनिया से।"

"नहीं मम्मा, नहीं! मेरा जीयान इंतज़ार कर रहे हैं।"

उसने रोते हुए बताया तो उसकी मम्मा तल्ख़ सी मुस्कुराई और एकदम से कहते हुए वहीं ग़ायब हो गई थी.....
उनके आख़िरी अल्फ़ाज़ जो थे वह ये थे......

"बच जाए बेटा वरना मार डालेंगे आपको"........

"मम्मा मम्मा.....!" लंबी-लंबी साँस लेते हुए वह एकदम उठ बैठी थी....... चेहरे से पसीना नन्हीं-नन्हीं बूंदों की सूरत चमक रहा था.....

आँखों से लगातार आँसुओं की लड़ी टूट रही थी...... "ये कैसा ख़्वाब था__?" साँस को दुरुस्त करने की सई करते हुए उसने खुद से सवाल किया.......

"व वह ख़ून, व वह मम्मा, किससे बचने की बात कर रही थी__? और और मैं कहाँ जाऊँ उनके साथ....."

वह सोचना चाहती थी लेकिन नहीं सोच पा रही थी। दिमाग़ मुफ़लूज हो गया था, हाथ-पाँव काँप रहे थे.....

"What should I do? Why is this dream bothering me again and again? Why does it seem like everything is going to get out of hand?"

("मैं क्या करूँ? ये ख़्वाब मुझे बार-बार क्यों परेशान कर रहा है? ऐसा क्यों लगता है कि सब कुछ हाथ से निकलता जा रहा है।")

एकदम उसको उल्टी आई और वह भागती हुई वॉशरूम गई, वॉश बेसिन का नल खोला था, हाथ मुँह से हटाया ही था कि पूरी हथेली ख़ून से रंग चुकी थी........

इसको देख अब घबराहट होने लगी........ डॉक्टरों के कहे गए अल्फ़ाज़ उसकी समाअतों में गर्दिश करने लगे थे....

Sorry, but please bring someone from your family so we can talk

वह फूट-फूट कर रोने लगी थी.......

मजबूरी वह ज़िंदगी का तल्ख़ लम्हा है जो इंसान को कहीं का नहीं छोड़ता। करना बहुत कुछ चाहते हैं लेकिन ज़िंदगी कम होती है। हम जीना चाहते हैं पर वक़्त मोहलत नहीं देता जीने की। सब फिसलता हुआ महसूस होता है और एक वक़्त आता है जब गरहन लग जाता है, जब दिल का सैयारा बनकर मानो मिट्टी तले दबकर ख़ाक बन जाता है।
*********

"ग़ज़ल..!" जियान ने उसको पुकारा था जो इस मुल्क की सबसे खूबसूरत शै वादियों को देखने में मग्न थी। आज फिर वो हमेशा की तरह अपनी पसंदीदा जगह पर अपने पसंदीदा शख़्स के साथ मौजूद थी.....

सफ़ेद शलवार क़मीज़ में मलबूस सिम्पल-सा लुक लिए वो इन वादियों की शहज़ादी लग रही थी....

"हहह जी..!" जियान की तरफ़ फ़ौरन से देखा जो उसको ही देख रहा था.....

"ग़ज़ल मैं आज वापस जा रहा हूँ, अम्मी ने ज़रूरी बुलाया है। बहुत जल्द तुमसे यही मिलूँगा और अपने साथ ले जाऊँगा.." जियान बोल रहा था लेकिन ग़ज़ल का दिमाग बस एक जगह पर जम गया था....

वो एकटक उसको देखती जा रही थी और वो जियान कुछ बोल रहा था लेकिन जैसे हर शै बिल्कुल साइलेंट हो चुकी थी.....

"ग़ज़ल सुन रही हो न..?" खुद को उसको ऐसे देखते पाकर जियान ने उसको काँधों से पकड़ा और अपनी तरफ़ मुतवज्जह किया जो एकदम चौंकी थी....

"ह हाँ, हाँ सुन रही हूँ.." बे-इख़्तियार आँखें अश्क़ से लबालब भर गईं.....

"क्या आँखों में आँसू क्यों..?" जियान ने परेशान होते हुए उससे पूछा था...

"जियान..!" आहिस्ता से ग़ज़ल ने जियान को पुकारा, आँखें ख़ौफ़ज़दा थीं जैसे बहुत घबरा रही हो....

"ग़ज़ल मेरी तरफ़ देखो, मैं बहुत जल्द तुम्हारे पास आऊँगा.." जियान ने उसका हाथ पकड़ा था जिसको ग़ज़ल ने देखा और बस नज़रें झुका लीं....

"अच्छा तुम मुझे आज कुछ बताने वाली थीं न..? दिखाओ क्या दिखाने वाली थीं..?" उसने ग़ज़ल से पूछा जिस पर वो नज़रें चुरा गई....

"नहीं, बस ऐसे ही।" ग़ज़ल जल्दी से बोली, आवाज़ में लड़खड़ाहट बहुत थी....

"तुम मुझे बहुत कमज़ोर लग रही हो, पहले से ज़्यादा। रंग भी ज़र्द पड़ गया है.." जियान ने उसके सरे-पा वजूद पर निगाह डालते हुए पूछा था....

"हाँ, बस हल्का-सा बुख़ार चढ़ गया था मौसम बदलने की वजह से।" उसने एक बार फिर अपना चेहरा सामने कर लिया और जियान के सवाल का जवाब दिया....

"डॉक्टर को दिखाया..?" जियान के सवाल पर वो एकदम बौखला गई और कुछ कहती कि जियान ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला....

"क्या छुपा रही हो..? देख रहा हूँ तुम मुझसे कुछ छुपा रही हो.." जियान ने उसकी आँखों में गहराई से झाँकते हुए सवाल दाग़ा था....

और ग़ज़ल बस रोने लगी थी...
"जियान, ब-ज़ाहिर बहुत हिम्मतवाली हूँ मैं, अपने दुश्मन को बख़्शती भी नहीं मैं। लेकिन तुम मेरी इकलौती कमज़ोरी बन गए हो।
जानते हो जिस दिन मुझे पता चला कि मेरे साथ कुछ भी ऐसा होगा, या कर दिया, या मुझे धोखा दिया जा रहा है – ये ग़ज़ल फिर अपने सर भूल जाएगी और देखना उस दिन मेरी साँसें थम कर ग़ज़ल वहीं खत्म हो जाएगी।

ये साँसें मेरी ये मान लो क़िस्तों में ले रही हो।
तुम्हारी तरफ़ से बेवफ़ाई की एक भी सीढ़ी तय हुई तो अगले रोज़ तुम्हें मेरी तस्वीरें न्यूज़पेपर में मिलेंगी।"

ये कहकर वो वहाँ से चली गई थी। पलट कर उसने नहीं देखा और निकल गई।
जियान बस उसकी पीठ को देखता रह गया था.....


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आज उसका चेक-अप था। इसलिए जल्दी-जल्दी तैयार होते हुए रूम से निकल कर नीचे आई।
फ़ाइल हाथ में पकड़े हुए थी जब उसकी बहन उसको सामने से आती दिखी। उसने जल्दी से फ़ाइल को छुपा लिया और उसको इग्नोर करते हुए वहाँ से निकल गई।

पोर्च में आते हुए वो अपनी गाड़ी की तरफ़ बढ़ी थी कि उसके बाबा साईं उसको सामने ही मिल गए, जो उसकी तरफ़ ही आ रहे थे.....

"ग़ज़ल, कहाँ जा रही हो? और हम ये क्या सुन रहे हैं कि तुम जियान से शादी की ख़्वाहिशमंद हो?
इस घर की बेटी उस दो टके के इंसान से शादी करेगी?" वो ग़ुस्से से बोल रहे थे....

"बाबा साईं, मैं जिस से भी शादी करूँ, मेरी मर्ज़ी। मेरी लाइफ़।
इसलिए आप दख़ल न ही दें तो अच्छा है। और प्लीज़ अब मुझे जाने दें, मुझे बहुत ज़रूरी काम से जाना है।"
उसने उन्हीं के अंदाज़ में जवाब देते हुए गाड़ी की तरफ़ क़दम बढ़ाए।
उसके इस तरह करने पर उनको न जाने क्या महसूस हुआ। एकदम पता नहीं क्या हुआ, दिल को, आगे से वो कुछ नहीं बोले और एक तरफ़ हट गए।
ग़ज़ल गाड़ी में बैठकर चली गई थी....


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दिन अपनी रफ़्तार से गुज़रते जा रहे थे।
जियान से उस दिन के बाद कोई भी संपर्क नहीं हुआ था।
ग़ज़ल की दिन-ब-दिन हालत ग़ैर होती जा रही थी। अब वो पहले से ज़्यादा बीमार हो गई थी।
सफ़ेद रंगत उसकी ज़र्द पड़ चुकी थी। आँखों के गिर्द काले हल्के बन गए थे और बाल भी कमज़ोर हो गए थे.....

उसके बाबा उसकी हालत देखते और बहुत परेशान हो जाते।
उनको अपनी इस ज़िद्दी बेटी की हालत अजीब होती देख बहुत बेचैनी होने लगी थी।
पूरा दिन ग़ज़ल के बारे में सोचते गुज़ार देते और यूँ वो भी ग़ज़ल की वजह से अंदर ही अंदर खोखले होने लगे....

आज एक बार फिर ग़ज़ल हॉस्पिटल के लिए तैयार होकर बाहर निकली।
लेकिन इस बार उससे पहले ही उसके बाबा गाड़ी में बैठे हुए थे.....

"आप, आप मेरी गाड़ी में क्या कर रहे हैं, बाबा साईं..?"
ख़ौफ़ज़दा-सी होते हुए उसने पूछा....

"तुम्हारे साथ जाऊँगा।" उसके बाबा ने एक-लफ़्ज़ी जवाब दिया.... लेकिन ग़ज़ल को परेशान कर गया...

"मैं तो अपनी डिग्री की वजह से किसी काम से जा रही हूँ..."
ग़ज़ल ने नज़रें चुरा कर कहा....

"कोई बात नहीं।" उन्होंने पर-सुकून होते हुए जवाब दिया....

ग़ज़ल गाड़ी में बैठी और स्टार्ट कर दी.....
दो घंटे लगातार एक ही जगह का चक्कर लगाते हुए जब एक बार फिर उस जगह को गाड़ी मोड़ने लगी तो उसके बाबा बोले, जो उसको कब से देख और समझ रहे थे....

"सिटी हॉस्पिटल क्यों नहीं लेती? वही तो तुम्हें जाना था न..?"
अपने बाबा के मुँह से हॉस्पिटल का नाम सुनकर ग़ज़ल की आँखें भर आई थीं.....

"ग़ज़ल.." उन्होंने पुकारा तो जैसे ग़ज़ल ने गाड़ी हॉस्पिटल की तरफ़ मोड़ ली.....


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"अम्मी, आप कैसे ये फ़ैसला कर सकती हैं जबकि ये मेरी ज़िंदगी का बहुत अहम फ़ैसला है और इसको लेने का हक़ भी मेरा खुद का ही है.."
जियान ने अर्मिना बेगम से कहा तो उन्होंने अपने बेटे की तरफ़ देखा था.....

"जियान, मत भूलो जिस शख़्स की बेटी के रिश्ते से तुम इंकार कर रहे हो, उस शख़्स का हम पर बहुत एहसान है।
और तुम्हारे बाबा के इंतेक़ाल के बाद जब सबने हमारा साथ छोड़ दिया था, तो एक भाई ही थे जिन्होंने इस मुश्किल वक़्त में हमारा साथ दिया।
उनका हम पर बहुत एहसान है और अब उन एहसानों का उतारने का वक़्त आ गया है.."
अर्मिना बेगम ने अपने बेटे से कहा था....

"अम्मी, मैं किसी और से मोहब्बत करता हूँ.."
जियान ने नम आँखों से अपनी माँ को बताया था....

"एक बात सुन लो – अगर सबा नहीं तो तुम मेरी मरी हुई शक्ल देखोगे.."
अब अर्मिना बेगम ने कहा तो जियान को चारों तरफ़ से जकड़ लिया। और फिर न चाहते हुए भी जियान को हाँ करनी पड़ी.....

दिन गुज़रते गए।
वो दिन भी आ गया जब जियान की ज़िंदगी में एक और वजूद का हिस्सा बन गया था।
और यूँ जियान की ज़िंदगी से ग़ज़ल की मोहब्बत बस कहीं एक कोने में, सारी ज़िंदगी का रोग बन गई थी....


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"सॉरी सर, बहुत लेट हो गए।
अब इनके कुछ माह ही बाक़ी हैं।
अब हम कुछ नहीं कर सकते, क्योंकि कैंसर की आख़िरी स्टेज है इनको.."
डॉक्टर ने बताया था।

उसके बाबा की जान ही खींच ली थी।
जबकि ग़ज़ल, वो तो सब जानती थी।
और जानने के बावजूद भी किसी को नहीं बताया।
उसके बाबा ने ग़ज़ल की तरफ़ देखा, जिसने उनके देखते ही चेहरा दूसरी तरफ़ कर लिया था.....

हॉस्पिटल से ख़ामोशी से निकले और घर तक का सफ़र यूँ ही तय हुआ।
घर जाते ही एक से बढ़कर एक डॉक्टर से उसके बाबा ने संपर्क किया, लेकिन सबका इनकार ही था...

वो शिकस्ता हालत में बैठे हुए थे जब ग़ज़ल उनके सामने आई और उनके घुटनों में सर रखकर रोने लगी....

"बाबा साईं.."
ज़िंदगी में पहली बार उसने अपने बाबा को बाबा कहकर पुकारा तो बे-इख़्तियार उन्होंने अपनी बच्ची को खुद में भींच लिया.....

"तुम्हें कुछ नहीं होगा।
तुम्हें जियान चाहिए? मैं दूँगा।
बस बेटा, मुझसे दूर नहीं जाओ.."
रोते हुए उसको सीने से लगाकर बोले थे और वो बस रो रही थी....

"सच में आप मुझे जियान देंगे..?"
उसने ख़ुश होते हुए पूछा जिस पर उसके बाबा ने गर्दन हाँ में हिला दी....

जब इंसान को ये मालूम हो जाता है न कि ज़िंदगी की आख़िरी साँसें हैं, तो फिर वो दुनिया की हर ख़ुशी उसके क़दमों में लाने को सोचता है....
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है.....

"थैंक यू, थैंक यू!
मैं अभी जियान को बताकर आती हूँ.."
वो अपनी जगह से खड़ी होती हुई चहक कर बोली और फ़ोन पकड़कर लॉन में आ गई....

कॉल मिलाने लगी थी, जो बहुत सारी कॉल्स के बाद उठाई गई थी....

"हेलो जियान! बाबा मान गए हैं.." उसने चहक कर बताया था....

दूसरी तरफ़ जियान, जो हाथ में पकड़े अख़बार को पढ़ रहा था, ग़ज़ल की कॉल को पहले तो नज़रअंदाज़ करता रहा, क्योंकि उसमें हिम्मत नहीं थी सच्चाई बताने की।
लेकिन लगातार कॉल्स की वजह से जब भी कॉल आनी बंद नहीं हुई, तो उसने कॉल उठा ली।
ग़ज़ल की ख़ुशी की आवाज़ सुनकर उसका दिल किया इस लड़की को खुद में कहीं छुपा ले, लेकिन उसकी बात सुनकर एकदम ख़ामोशी उस पर तारी हो गई थी...

"क्या हुआ, तुम कुछ क्यों नहीं बोल रहे..?"
ग़ज़ल ने जब उसकी चुप देखी तो पूछने लगी.....

ग़ज़ल की कही हुई बात जियान के दिमाग़ में चलने लगी थी –
"तुम्हारी तरफ़ से बेवफ़ाई की एक भी सीढ़ी तय हुई तो अगले रोज़ तुम्हें मेरी तस्वीरें न्यूज़पेपर में मिलेंगी।"

"सुनिए, खाना लग गया है, खाना खा लें.."
किसी लड़की की आवाज़ ग़ज़ल के कानों से टकराई तो फ़ौरन बोली...

"जियान, ये लड़की कौन है..?"
जबकि दिल घबरा रहा था, बार-बार नफ़ी कर रही थी वो.......

"बच जाए बेटा, वरना मार डालेंगे आपको..."
ग़ज़ल के कानों में अपनी मम्मा के कहे गए अल्फ़ाज़ गूँजने लगे थे.....

"मेरी बीवी..."
अल्फ़ाज़ थे कि क्या ख़ंजर.....

एकदम हाथ काँप गया, वो लड़खड़ाई, फिर साँसें उखड़ने लगीं।
आँखों के सामने अँधेरा फैलने लगा था और बस इतना ही बोल पाई –
"मु मुबारक हो शादी.."
और साँसें छोड़ दी गईं...

अब हर तरफ़ से ख़ामोशियाँ मुक़द्दर बन गई थीं।
मोहब्बत करने वाली एक ज़ी-रूह अपनी अगली मंज़िल पर परवाज़ कर गई थी.....

कभी-कभी किसी के कहे गए अल्फ़ाज़ों को हल्के में नहीं लेना चाहिए।
अगर वो कह रहा है कि मर जाएगा, तो वो मर जाएगा।


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वो टीवी के सामने बैठा हुआ था जब न्यूज़ पर एक ख़बर स्टार्ट हुई थी.....

"नाज़रीन, आज की दर्दनाक ख़बर – इब्राहीम ख़ान की बड़ी बेटी ग़ज़ल इब्राहीम ख़ान अपने आख़िरी सफ़र पर गामज़न हो गई हैं..."

न जाने ये मीडिया वाले क्या-क्या बोल रहे थे, लेकिन जियान की साँसें तो बस एक नुक्ते पर रुक गई थीं...

"ग़ज़ल ख़ान आख़िरी सफ़र पर जा चुकी हैं.." और ये उसके लिए जान-लेवा था....

"जियान, तुम्हारी बेवफ़ाई से ये ग़ज़ल नुक्ता-नुक्ता बिखर जाएगी.."
ग़ज़ल के कहे गए अल्फ़ाज़ उसके दिल और दिमाग़ पर तारी होने लगे...

वो बर्फ़ बने बस टीवी स्क्रीन देखता गया।
एक-एक लम्हा मोहब्बत की पनाहों का उसकी आँखों के इर्द-गिर्द घूमता हुआ नज़र आने लगा....

और आख़िरी मुलाक़ात के ग़ज़ल की डायरी में लिखे दर्द से भरे अल्फ़ाज़ उसके ज़ेहन को झिंझोड़कर रख दिए थे –

"वजूद मेरा कफ़न से ढाँपा होगा
आँखों से अश्क़ तुम्हारे जारी होंगे
एलान मेरे जनाज़े में शिरकत का होगा
बताओ क्या तुम भी शरीक होंगे..?

कुछ शख़्सियतें ख़ास भी होंगी भरी महफ़िल में
लेकिन इस बात से अंजान भी होंगी
जिसके जनाज़े में शिरकत की गई है
क्या वो भी तुम्हारे ख़ास में होगी?

पहला क़दम मस्जिद में होगा तुम्हारा
समाअतों से मेरे नाम के अल्फ़ाज़ टकराएँगे तुम्हारे
क्या तुम क़दम अपने वापस ले लोगे..?

तुम फिर क्या करोगे..?

कहते हैं मौत एक बार आती है
कहते हैं कि कफ़न भी एक बार वजूद ढाँपता है
लेकिन इस दुनिया में सब उल्टा है
यहाँ मौत रोज़ आती है
और कफ़न मयस्सर होता नहीं किसी को

बताओ तुम मेरे कफ़न का इंतज़ाम करोगे..?
बताओ तुम मेरे मरने का इंतज़ार करोगे..?
बताओ तुम फिर क्या करोगे..?"


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कभी-कभी बड़ों के लिए गए फ़ैसले इंसान की साँसें छीन लेते हैं और बस मौत उनका मुक़द्दर बन जाती है...

देखा था कभी चाँद-सूरज को ग्रहण लगते,
नहीं जाना था कभी कि असल ग्रहण तो वफ़ा की मंज़िल पर मोहब्बत के मुसाफ़िर को लगता है।
जहाँ दिल और ज़िंदगी दोनों ही सैय्यारा बन जाते हैं।
दिल का सैय्यारा बन जाती हैं आँखें, ज़बान और मिट्टी से बना ये जिस्म सब ख़ाक में मिल जाता है।
फिर अगर याद रहता है तो सिर्फ़ इतना कि कोई था जो मोहब्बत करता था।
बे-तहाशा मोहब्बत, जिसमें जान भी गई और साया छोड़ गई।
यादों के समंदर में जिसकी गहराई को नापने के लिए सारी ज़िंदगी तो लाखों ज़िंदगियाँ भी कम पड़ जाएँ 🥺🥺

आज वो अपना कहा हर अल्फ़ाज़ हक़ीक़त कर गई थी।
वो छोड़ गई थी सब कुछ और तन्हाई के इस शुरू होने वाले सफ़र को,
दरमियान में मुकम्मल करने की कोशिश की ज़द में,
फिर से तन्हा सफ़र के लिए रवाना हो चुकी थी।

हाँ, ग़ज़ल ख़ान जियान को छोड़ आगे निकल गई थी।
कहते हैं मोहब्बत के इस सफ़र में अगर बेवफ़ाई एक तरफ़ा शख़्स से मिले, तो यही हाल मोहब्बत करने वाले शख़्स का होता है।
बस फ़र्क इतना – कोई हक़ीक़त में मर जाता है और कोई रोज़-ब-रोज़ उस सफ़र से गुज़रता है 💔❤️‍🔥


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खत्म कहानी 

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