shut up in Hindi Comedy stories by diya sharma books and stories PDF | नई शुरुआत

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नई शुरुआत

अप्रैल 2024 की सुबह थी।

एक नई शुरुआत… लेकिन दिल के भीतर अनगिनत सवाल।

मैंने आईने में खुद को देखा। साधारण सी लड़की, नीली किताबों से भरा बैग, और आँखों में डर की परछाईं। आज मेरे नए स्कूल का पहला दिन था। पहली बार किसी ऐसे माहौल में कदम रखने जा रही थी जहाँ न कोई जान-पहचान, न दोस्त, न रिश्तेदार। सिर्फ मैं… और सैकड़ों अजनबी चेहरे।

रास्ते भर दिल में यही खयाल घूमता रहा—

क्या सब मुझे स्वीकार करेंगे?

या फिर मैं फिर से अकेली पड़ जाऊँगी?

जैसे ही गेट के अंदर कदम रखा, लगा जैसे किसी और ही दुनिया में आ गई हूँ। चारों तरफ बच्चों की भीड़, हँसी-ठिठोली, बैग्स की खनक और घंटी की आवाज़ें।

लेकिन सबकी निगाहें जैसे मुझ पर ही अटक गईं।

शायद मेरी हाइट वजह थी।

एक लड़के ने धीमे से फुसफुसाया,

 


"लगता है 5वीं की बच्ची है!"

कानों तक वो शब्द तीर की तरह चुभ गए। मैंने नजरें झुका लीं और चुपचाप क्लास की तरफ बढ़ गई।

कमरे के अंदर हर बच्चा तेज़, आत्मविश्वास से भरा हुआ।

और मैं?

बस अपनी घबराहट छुपाने की कोशिश कर रही थी।

मेरी 10वीं बहुत खराब गई थी। घर में हर कोई डरा हुआ था, खासकर पापा। उन्हें डर था कि कहीं मैं फिर से फेल न हो जाऊँ। और सच कहूँ, तो वो डर मेरे अंदर भी था।

कुर्सी पर बैठते ही लगा जैसे पूरी दुनिया मुझे परख रही है।

शुक्र है उसी दिन मेरी पहली दोस्त बनी—रिंकी

दीदी ने मुझे उसके पास बैठाया। वो सरल थी, उसकी मुस्कान सच्ची थी। लंच टाइम में हमने साथ खाना खाया, और मुझे पहली बार थोड़ी राहत मिली।

रिंकी ने मुझे धीरे-धीरे बाकी बच्चों से भी मिलवाना शुरू किया। मगर हर मुलाक़ात मेरे लिए आसान नहीं थी।

बच्चों के चेहरे हँसते थे… पर उनकी बातें चुभती थीं।

"ड्रेस क्यों नहीं?"

"अंग्रेज़ी क्यों नहीं आती?"

"इतनी चुप क्यों हो?"

हर रोज़ यही सवाल… यही नजरें।

मुझे लगता जैसे मैं किसी ऐसी परीक्षा में बैठी हूँ जिसका कोई पेपर ही नहीं है। और हर कोई बस मेरी कमियाँ गिनने आया है।

क्लास में सब अंग्रेज़ी में बात करते थे।

मैं समझ तो लेती थी, पर बोलने में डर लगता।

दिल में हमेशा एक खटका रहता—अगर कुछ गलत बोल दिया तो सब हँसेंगे।

और इसी डर ने मुझे धीरे-धीरे चुप्पी की कैद में डाल दिया।

मेरे पास यूनिफॉर्म नहीं थी।

हर रोज़ टीचर्स की डाँट, बच्चों की बातें—मैं सहती रही।

फिर एक दिन, स्कूल खत्म होने के बाद डायरेक्टर ने मुझे रोक लिया।

उनकी आवाज़ सख्त थी, अंग्रेज़ी में—

“Why haven’t you got your uniform stitched?”

मैं डर से कुछ बोल ही नहीं पाई।

घर जाकर सब पापा को बताया। अगली सुबह वो मेरे साथ स्कूल गए।

ऑफिस में मुझे बैठने की इजाज़त तक नहीं मिली। पापा ने कॉल किया तो डायरेक्टर खुद आए और साफ कहा—

“₹10,000 जमा कीजिए, तभी आपकी बेटी को क्लास में बैठने दिया जाएगा।”

पापा सन्न रह गए। धीरे से बोले,

“अगर ये फेल हो गई तो?”

डायरेक्टर का जवाब और भी 

“₹10,000 जमा कीजिए, तभी आपकी बेटी को क्लास में बैठने दिया जाएगा।”

पापा सन्न रह गए। धीरे से बोले,

“अगर ये फेल हो गई तो?”

डायरेक्टर का जवाब और भी कठोर था—

“तो एडमिशन ही मत कराइए