छह महीने बाद…
सोनिया की बर्थडे पार्टी, ऑफिस के रोमांचक दिन और हल्की-फुल्की नोक-झोंक अब पीछे छूट चुके थे। वक्त की रफ़्तार ने सबको अपनी-अपनी राहों में उलझा दिया। लेकिन ज़िंदगी कभी भी सिर्फ़ काम और हंसी-ठिठोली तक सीमित नहीं रहती। उसमें ऐसे मोड़ आते हैं जो सब कुछ बदल देते हैं।
सहदेव के लिए यह मोड़ अब सामने था।
रात गहरी थी। सहदेव सुनसान सड़क पर दौड़ रहा था। उसके माथे से खून बह रहा था, और कंधे पर गहरी चोट से खून रिस-रिस कर शर्ट भिगो रहा था। पीछे से तीन-चार नकाबपोश उसका पीछा कर रहे थे। सबके हाथों में बंदूकें थीं, और आँखों में मौत का नशा।
“भाग कहाँ जाएगा?” एक ने दहाड़ते हुए कहा और ट्रिगर दबाया।
धड़ाम! धड़ाम!
गोलियों की गूंज सन्नाटे को चीरती हुई निकली। सहदेव झुककर बमुश्किल बचा, लेकिन उसके कानों के पास से गोली निकलते ही सरसराहट ने उसे मौत की नज़दीकी का एहसास करा दिया।
उसके मन में सिर्फ़ एक नाम गूंज रहा था—मनीषा।
"मनीषा, चाहे तुम जहाँ भी हो… मैं तुम्हें ढूँढ निकालूँगा। तुम्हें हर हाल में सच का सामना करना होगा।"
असल में, पिछले छह महीनों में हालात अजीब मोड़ ले चुके थे।
मनीषा और सहदेव के बीच पहले हल्की-फुल्की बातें, ऑफिस में छेड़छाड़ और कभी-कभी कॉफी ब्रेक में मज़ाक हुआ करता था। धीरे-धीरे, दोनों ने एक-दूसरे को और समझना शुरू किया।
एक बार तो दोनों डिनर के लिए रेस्टोरेंट भी गए थे।
“तो ये डेट है?” सहदेव ने हंसते हुए पूछा था।
“डेट? प्लीज़…” मनीषा ने चुटकी ली थी, “मैं बस भूख मिटाने आई हूँ, वरना तुम अकेले तो ठीक से खाना भी नहीं खा पाते।”
दोनों ने खूब बातें कीं, और सहदेव को लगा कि शायद यह किसी नई शुरुआत का इशारा है। लेकिन तभी, अचानक, सब बदल गया।
कुछ हफ़्तों बाद, मनीषा अचानक ऑफिस से गायब हो गई। किसी को पता नहीं चला कि वह कहाँ है। उसकी मोबाइल बंद थी, घर पर ताले लटके थे, और सोशल मीडिया पर भी कोई हलचल नहीं।
“ये अचानक कैसे ग़ायब हो गई?” सोनाक्षी ने सहदेव से पूछा था।
सहदेव ने गहरी सांस ली, “मुझे भी समझ नहीं आ रहा… लेकिन कुछ गड़बड़ ज़रूर है।”
तभी शहर में कई हमलों की खबरें आने लगीं। और धीरे-धीरे एक नाम सामने आने लगा—मनीषा।
पहले तो सहदेव को विश्वास नहीं हुआ। उसे लगा कि यह किसी और मनीषा की बात होगी। लेकिन जैसे-जैसे सुराग जुड़ते गए, शक और यकीन के बीच की दूरी कम होने लगी।
“उसे पकड़ना ही होगा… वरना बॉस हमें ज़िंदा नहीं छोड़ेगा।”
सहदेव भागते हुए यह बात साफ़-साफ़ सुन सकता था। उसका पीछा करने वाले गुंडों में से एक ने कहा और अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दीं।
सहदेव पास खड़ी एक गाड़ी के पीछे छुप गया। उसके दिल की धड़कनें तेज़ थीं। वह जानता था कि अगर अब वह हिम्मत नहीं जुटाता, तो उसका खेल खत्म।
“सुनो!” सहदेव ने ज़ोर से आवाज़ लगाई, “तुम्हारा बॉस कौन है? क्यों मेरा पीछा कर रहे हो?”
एक गुंडा हंसा, “तेरे लिए नाम जानना ज़रूरी नहीं। बस इतना समझ ले—तू अब ज़्यादा दिन ज़िंदा नहीं बचेगा।”
“लेकिन मैं इतना जानता हूँ,” सहदेव ने गुस्से में दहाड़ लगाई, “अगर इसके पीछे सच में मनीषा है… तो मैं उसे खुद ढूँढ कर रहूँगा। और अगर ये सब किसी और का खेल है, तो सच्चाई सामने आकर ही रहेगी।”
सहदेव को अब भी यकीन नहीं था। उसके दिल का एक हिस्सा कहता था कि मनीषा ऐसा कर ही नहीं सकती। वह जो हंसी-ठिठोली, दोस्ती और नज़दीकी दिखाती थी, वह सब नकली कैसे हो सकता है?
लेकिन दूसरी तरफ़, हालात चीख-चीख कर यही कह रहे थे कि उसका नाम सीधे इन हमलों से जुड़ा है।
उसका कंधा दर्द से सुन्न हो रहा था, खून अब तेज़ी से बहने लगा था। लेकिन उसकी आंखों में आग और दिमाग में सिर्फ़ एक ही बात थी—सच्चाई।
इधर, ऑफिस में सोनाक्षी बेचैन थी। सहदेव कई दिनों से गायब था।
“कहाँ चला गया ये? बिना बताए… कहीं…” उसके होंठ थरथरा गए।
वह जानती थी कि सहदेव किसी मुसीबत में है। उसके दिल का डर सही था। लेकिन क्या उसे सच्चाई कभी पता चल पाएगी?
सड़क पर अब माहौल और खतरनाक हो गया था। एक गुंडे ने कार का दरवाज़ा खोलकर उसे कवर बना लिया। दूसरे ने ट्रिगर दबाते हुए चिल्लाया, “खत्म कर दो इसे! आज यही रात इसकी आख़िरी रात है।”
धड़ाम! धड़ाम!
सहदेव ने पूरी ताक़त जुटाई। उसने पास पड़े पत्थर को उठाया और अचानक फेंककर गुंडे का निशाना बिगाड़ दिया। फिर अपनी जेब से छोटी सी पिस्तौल निकाली, जो वह इमरजेंसी के लिए हमेशा साथ रखता था।
“खेल खत्म अब तुम्हारा होगा।” उसकी आवाज़ ज़ख़्मी होने के बावजूद बेहद ठंडी और डरावनी थी।
तीन गुंडे एक-दूसरे की ओर देखने लगे। सहदेव की आंखों में मौत की आग देखकर उनके कदम धीमे पड़ गए।
आगे क्या होगा?
क्या सचमुच मनीषा ही इस खेल की असली मास्टरमाइंड है? या कोई और उसका नाम लेकर सबको धोखा दे रहा है?
सहदेव की लड़ाई अब सिर्फ़ अपनी जान बचाने की नहीं, बल्कि उस सच्चाई को सामने लाने की थी, जो सब रिश्तों और भरोसे को तोड़कर रख सकती थी।
To be continued…