बार बार असफल होकर एक शर्मशीर की तरह वही कम करना कितना अजीब लगता है। ऐसी ही एक कहानी मैं कहने जा रहा हूं । मैं एक माध्यम वर्ग के परिवार का एक लड़का हूं । मेरे घर में सरकारी नौकरी मिलने जैसे इजात मिलना है। हमें बचपन से हो यह सिखाया जाता है कि कैसे घर के अन्य लोग सरकारी नौकरी कर के अपने जीवन को अच्छी तरह से की रहे है । जब बचपन से ही आप ऐसी बातें सुनते हो तो आपके मन में भी बैठ जाता है कि आपको ऐसी ही किसी नौकरी की तैयारी करनी है और परिवार को संभालना है।
समय के साथ बड़ा होकर मै भी अपने परिवार के दुखों को समझते हुए ऐसी ही किसी एक नौकरी की तैयारी कर रहा हूं ।
मैं पढ़ाई में बहुत ज्यादा समझदार नहीं हूं , पर क्या करूं मजबूरी है।
एक माध्यम परिवार का बच्चा जब घर से निकलकर तैयारी करने जाता है तो वो बस अकेला ही दुख नहीं झेल रहा होता है। उसके साथ साथ पूरा परिवार उनकी नौकरी की तैयारी करने में लगा रहता है।
घर के हर सदस्य का अपना अपना दुख होता है ।
घर का पिता के ऊपर ये जिम्मेवारी होता है कि वो खुद को संभालते हुए खुद को भी समझता है,कि इस बार मेरी नौकरी लग जाएगी तो ...घर के हालात सुधार जाएंगे।
कई बार मैने ऐसा देखा है कि घर की ढेर सारी बातें मुझसे छुपाई जाती है। ऐसा मेरे घरवाले इसलिए करते है कि मुझे मेरी पढ़ाई में कोई परेशानी न हो।
उन्हें ऐसा लगता है कि यदि मुझे पता चल गया तो शायद उनका असर मेरी पढ़ाई पे पड़ेगा।
ये सिर्फ मेरी कहानी नहीं है,ये हमारे देश की हर दूसरे घर की कहानी है।
कल फिर से मैं भी बार बार असफल होने के बाद बदतमीज की तरह एक परीक्षा में शामिल होने जा रहा हूं ।
पिछले दो दिनों से मेरी तबियत बहुत खराब थी। मैं दवा खा खा कर चलने के लायक हुआ हूं।
मेरे गले में खराश है जिससे मेरी आवाज भारी हो गई है। मेरी माँ ने कई बार पूछा भी है मुझसे की तुम्हारी तबियत खराब लग रही है। पर मैं उनसे झूठ बोलता रहा हूं कि सब ठीक है ।
मेरा परीक्षा केंद्र मेरे घर से 200km की दूरी पर है।
जब मैं घर से निकल रहा था तो मेरे शरीर में तबियत खराब होने के कारण मुझे थकान महसूस हो रही थी ।
इन सब के बावजूद जाना तो पड़ेगा ही। बात स्वाभिमान की जो है ।
मैं घर से निकल हूं और जब स्टेशन पर पहुंचता हूं तो देखता हूं कि मेरी ही तरह हजारों बच्चे अपने अपने को पूरा करने के लिए कतर में खड़े हुए हैं।
मैं ये नहीं समझ पाता हूं कि ये उनके सपने से अधिक उनकी मजबूरी है जो उन्हें मात्र जीविका चलने लायक जो पैसे मिलेंगे उसके लिए सरकारी गुलाम बनाना है।
मैं अक्सर बैठकर ये सोचता हूं कि अगर पैसा कमाने का जरिया और भी होता तो क्या हम इस भेड़ चला में फसते।
हमारे सपने सपनों से अधिक मजबूरियां हैं, हमारे परिवार की मजबूरिया।
मैं इसे बुरा नहीं कहता क्योंकि हमारे पास कोई रास्ता ही नहीं है।
ना अच्छी फैक्ट्री है ना ढेर सारी सुविधाएं जिसे एक साधारण बच्चा पैसे कमाने में काम ला सके ।
हम मजबूर है एक ही दिशा में जाने को। हमें ऐसा लगता है कि ये सबसे किफायदी तरीका है। जिसमें सिर्फ वक्त ही तो लगता है, और हमें लगता है कि वक्त से अधिक पैसे की कीमत है। लगे भी क्यू न जिसे जिस चीज की जरूरत होती है उसे चिंता भी उसी की होती है और हमारे पास पैसे से अधिक वक्त जो है।
खैर मैं रेलवे स्टेशन पे हूं और मेरे जैसे हजारों लड़के भी इस परीक्षा में शामिल होने जा रहे है।
अभी थोड़ी देर में ट्रेन आने की घोषणा हुई है।जैसा कि हमें पता है इस परिस्थिति में ट्रेन में जगह नहीं मिलती तो हमें जल्दी से जल्दी घुसकर अंदर जगह ढूंढनी होगी। अगर ऐसा करने में असमर्थ रहा तो पूरे रस्ते खड़ा रहना पड़ेगा। कभी जगह नहीं मिलती है तो हम शौचालय की गेट पे खड़े होकर जाते है। घंटों बैठने की जगह नहीं होती है। हिम्मत जुटकर किसी की रिजर्व सीट पर बैठते है तो उसकी आंखों में देखते रहते है कि कब इसका मन बदल जाएगा और ये हमे वहां से उठा कर भगा देगा।
और भी कई कठिनाइयां होती है । हमें ढंग से खाना नहीं खा पाते है, पैसे बचाने के लिए।
कोशिश करते है परीक्षा से निकल कर जल्दी से जल्दी हमने घर पहुंच जाए ताकि घर जाकर सुकून से बैठने की जगह तो मिलेगी। इतनी कत्लीफों के बाद जब परीक्षा हॉल से बाहर निकलते है तो हमें जवाब भी देना पड़ता है अपने परिवार जानो को। उन्हें ये आशा रहती है कि इस बार शायद हमारा बच्चा निकल जाएगा और उनका भविष्य अच्छा हो जाएगा।
हमें पता होता है कि हमारा परीक्षा कैसा गया है फिर भी माता पिता को संतुष्ट करने के लिए बोलना पड़ता है कि इस बार मेरा हो जाना चाहिए।
ये जीवन नहीं युद्ध भूमि है,
जिसमें मुझे हर बार जितना पड़ेगा।