Chandrakanta - 3 in Hindi Women Focused by Keshwanand Shiholia books and stories PDF | चंद्रकांता: एक अधूरी विरासत की खोज - 3

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चंद्रकांता: एक अधूरी विरासत की खोज - 3

इलाहाबाद से लौटकर अनन्या का मन एक तूफान की तरह उथल-पुथल में था। सुभद्रा की रहस्यमय बातें उसके कानों में गूंज रही थीं: "शायद तुम्हारी दादी को ही वह डायरी सौंपी गई थी... पांडुलिपि किसी गुप्त स्थान पर छिपी है।"
अनन्या ने दादी की डायरी फिर से उठाई। अब यह महज कागजों का पुलिंदा नहीं, बल्कि एक रहस्यमय संदूक थी, जो इतिहास का राज खोलने को बेताब था। उसने हर पन्ने को उलटा, हर कोने को टटोला, हर दाग पर उंगलियाँ फेरीं। कहीं कोई गुप्त जेब? कोई चिपका पन्ना? घंटों की खोज में निराशा हावी होने लगी। तभी उसकी नजर चमड़े के आवरण पर पड़ी। जिल्द और चमड़े के जोड़ पर एक हल्का उभार था, मानो कोई रहस्य फुसफुसा रहा हो।
उसका दिल एक तूफान की तरह धड़क उठा। कैंची की नोक से उसने सावधानी से जोड़ खोला। सख्त चमड़ा चरमराया, और अंदर प्रकट हुई एक जर्जर, जंग लगी चाबी। साथ में, एक चिपकाया हुआ पन्ना था, जिस पर दादी की जल्दबाजी में लिखी, हल्की लिखावट थी:
"शिवानी ने आज यह चाबी दी। यह उनकी सबसे अनमोल रचना की चाबी है। 'साहित्य सदन' बंद हो रहा है। उन्होंने 'चंद्रकांता' की हस्तलिखित पांडुलिपि बैंक की तिजोरी में रखवाई। यह उसी की चाबी है। यदि कुछ हो... मैंने इसे छिपा दिया। शायद कोई इसकी कदर करे। —राजेश्वरी"
अनन्या की साँसें थम गईं। 'चंद्रकांता' की पांडुलिपि! लेकिन कौन-सा बैंक? इलाहाबाद में? क्या इतने वर्षों बाद वह तिजोरी बची होगी?
उसने तुरंत सुभद्रा को दूरभाष किया। "एक तिजोरी?" सुभद्रा की आवाज में आश्चर्य था। "हाँ, 'साहित्य सदन' का खाता इलाहाबाद बैंक में था, अब भारतीय स्टेट बैंक। पर इतने वर्षों बाद... तुम्हें वहाँ जाना होगा।"
तिजोरी खोलने के लिए चाबी ही काफी नहीं थी; कानूनी दस्तावेज चाहिए थे। अनन्या के पास केवल चाबी और डायरी थी। फिर भी, वह अगले दिन इलाहाबाद रवाना हुई, मन में एक जलता हुआ मकसद लिए।
वह भारतीय स्टेट बैंक की मुख्य शाखा पहुँची और प्रबंधक से मिली। उसने डायरी, चाबी, और पूरी कहानी उनके सामने रखी। प्रबंधक ने संदेह भरी नजरों से देखा। "यह पुराना मामला है। 'साहित्य सदन' का रिकॉर्ड शायद ही बचा हो। दस्तावेज चाहिए।"
अनन्या ने हिम्मत नहीं हारी। "यह हिंदी साहित्य की खोई विरासत है, सर। इतिहास आपको याद रखेगा।"
प्रबंधक चुप रहे, फिर बोले, "रुकिए... 'साहित्य सदन'... एक तिजोरी लंबे समय से बंद पड़ी है।"
वह अनन्या को धूल भरे तहखाने में ले गए। जर्जर तिजोरियों की कतार में धूल का गुबार था। एक कोने में जंग खाया ताला लटक रहा था। अनन्या की उंगलियाँ काँप रही थीं, मानो इतिहास का वजन थाम रही हों। उसने चाबी लगाई। एक पल को समय ठहर सा गया। तभी—कटाक्!
धूल भरे तहखाने का सन्नाटा टूटा। तिजोरी खुली। धूल के बीच एक भूरा लिफाफा था, जिस पर सुंदर हस्तलेख में लिखा था: चंद्रकांता—मेरी आत्मा की आवाज। लेखिका: शिवानी।
अनन्या की आँखें छलक पड़ीं। उसने एक साहित्यिक रत्न छुआ था, जो समय की धूल में दफन था। प्रबंधक मुस्कुराए। "इसे दुनिया तक ले जाओ, बेटी।"
लिफाफे को थामे अनन्या ने सोचा, उसके कंधों पर एक विरासत का बोझ था। क्या 'चंद्रकांता' वाकई विवादास्पद थी? क्या कोई इसे फिर से छिपाने की कोशिश करेगा?