अरुण जेल की अँधेरी कोठरी में बैठा था।
उसके हाथ में जंग लगे हथकड़ी के निशान थे, और आँखों में वो दर्द, जो सिर्फ़ बेगुनाही झेलने वाले इंसान की आँखों में दिखता है।
वो दीवार से सिर टिकाकर सोच रहा था—
“क्या सच में मोहब्बत पाप है? रिया को चाहने की इतनी बड़ी सज़ा मिलेगी मुझे?”
हर रात उसकी आँखों में रिया की मुस्कान कौंधती, और फिर उसी के साथ उसके पिता संजय मेहरा की लाश का खून-भीगा चेहरा भी।
अरुण ने कभी सोचा भी नहीं था कि एक दिन उसे क़ातिल बनाकर पेश किया जाएगा।
जेलर शर्मा की शक़ की निगाह
जेल का जेलर, शर्मा, कड़ा लेकिन इंसाफ़ पसंद इंसान था।
वो अक्सर अरुण को देखता, और उसके चेहरे पर बसा डर और बेबसी पढ़ लेता।
एक दिन उसने अरुण से कहा—
“बेटा, बहुत अपराधी देखे हैं मैंने… पर तेरी आँखों में गुनाह नहीं, बेगुनाही दिखती है। बता, सच क्या है?”
अरुण ने काँपती आवाज़ में सब कुछ बयान कर दिया—
विक्रम की धमकियाँ, उसका गुस्सा, रिया का बंद कमरा, और फिर अचानक संजय मेहरा की हत्या।
शर्मा चुपचाप सुनता रहा और उसके भीतर शक की एक चिंगारी जल उठी।
रिया की बग़ावत
उधर रिया अपने कमरे में बंद थी, लेकिन उसने हार मानने से इनकार कर दिया।
उसने मीडिया के सामने आकर कहा—
“अरुण निर्दोष है! असली क़ातिल कोई और है, और मैं इस साज़िश को बेनक़ाब करूँगी।”
उसके बयान ने शहर में हलचल मचा दी।
टीवी चैनल उसकी चीखें दिखा रहे थे, अख़बारों में हेडलाइन छपी—
“अरुण की मोहब्बत रिया बोली – मेरा प्रेमी बेगुनाह”
ये सब देखकर विक्रम का खून खौल उठा।
उसने अपने गुंडों को आदेश दिया—
“रिया अब हमारी इज़्ज़त को नंगा कर रही है। अगर वो ज़िंदा रही, तो सच बाहर आ जाएगा। इसे हमेशा के लिए चुप करा दो।”
जानलेवा हमला
रिया उस दिन सबूत तलाशने बाहर निकली।
वो पुराने ड्राइवर से मिलने जा रही थी, जिसे उसने कत्ल की रात बंगले से भागते देखा था।
रास्ते में उसकी कार को चार बाइक सवार गुंडों ने घेर लिया।
एक ने खिड़की पर लोहे की रॉड मारी और चिल्लाया—
“रिया मेहरा, तेरा खेल ख़त्म!”
रिया का दिल धड़क उठा।
लेकिन उसकी आँखों में डर नहीं, ग़ुस्सा था।
उसने तुरंत कार का दरवाज़ा खोला, सड़क पर गिरी ईंट उठाई और एक गुंडे के सिर पर दे मारी।
खून की छींटें उड़ गईं और वो चिल्लाकर गिर पड़ा।
मौक़े का फ़ायदा उठाकर रिया भागी और भीड़ में घुसकर किसी तरह अपनी जान बचाई।
उसने तुरंत पुलिस स्टेशन जाकर बयान दर्ज करवाया, लेकिन पुलिस विक्रम के डर से चुप रही।
तभी उसे याद आया—जेलर शर्मा।
सच की गवाही
रिया सीधे शर्मा के पास पहुँची।
“सर, मेरे पास सबूत है… विक्रम ने ही पापा का कत्ल करवाया है। अरुण बेगुनाह है।”
शर्मा ने उसे चुप कराते हुए कहा—
“ध्यान रखना बेटी, दीवारों के भी कान होते हैं। पर तेरा दर्द अब मेरा भी है। मैं मदद करूँगा।”
शर्मा ने अपनी जाँच तेज़ कर दी।
उसे पता चला कि कत्ल की रात, इलाके के कई सीसीटीवी कैमरे अचानक बंद थे।
लेकिन ग़लती से एक कैमरा चालू रह गया था।
उसमें एक झलक साफ़ दिखती थी—विक्रम का ड्राइवर, घबराया हुआ, घर से भाग रहा था।
शर्मा ने तुरंत उस ड्राइवर को तलाश करवाया।
कुछ दिनों बाद, शहर के एक सस्ते ढाबे पर वो ड्राइवर नशे की हालत में मिला।
ड्राइवर का इक़रार
शर्मा और रिया ने उसे पकड़वाकर अलग कमरे में बैठाया।
ड्राइवर डरते-डरते बोला—
“मैं सच नहीं बोल सकता… विक्रम मुझे मार देगा।”
रिया ने उसकी आँखों में आँसू भरते हुए कहा—
“अगर तू सच नहीं बोलेगा, तो एक बेगुनाह ज़िंदगीभर जेल में सड़ेगा। भगवान के डर से ही सही, सच बता।”
ड्राइवर के होंठ काँपे।
उसने शराब की बोतल मेज़ पर पटकी और हकलाते हुए कहा—
“हाँ… कत्ल हमने किया था। मालिक विक्रम के कहने पर। उसने पैसों का लालच दिया था… और धमकी भी… अगर ना करते तो हमारी जान जाती।”
रिया के पैरों तले ज़मीन खिसक गई।
वो वहीं रो पड़ी।
“तो मेरे पापा का खून… मेरे अपने भाई ने किया?”
शर्मा ने गहरी साँस ली।
“बेटी, ये लड़ाई अब और मुश्किल होगी। विक्रम अब इस ड्राइवर को जिंदा नहीं छोड़ेगा।”
खून का सौदा
उधर विक्रम को जैसे ही भनक लगी कि ड्राइवर पकड़ा गया है, उसने अपने गुंडों को बुलाया।
“उसे ख़त्म कर दो। ज़िंदा रहा तो हम सबकी बर्बादी तय है।”
गुंडे रात के अंधेरे में ड्राइवर के ठिकाने की ओर निकल पड़े।
रिया और शर्मा को खबर मिल गई थी।
वो दोनों पुलिस लेकर वहाँ पहुँचे।
गुंडों और पुलिस के बीच मुठभेड़ हुई।
गोलियाँ चलीं, चीखें गूँजीं।
ड्राइवर किसी तरह बच गया, लेकिन घायल हो गया।
खून से लथपथ उसने रिया का हाथ पकड़कर कहा—
“मुझे कुछ नहीं चाहिए… बस मेरी गवाही अदालत तक पहुँचा देना। सच सबके सामने आना चाहिए।”
रिया की आँखों में आँसू थे।
“तू जिंदा रह, ये मेरा वादा है।”
साज़िश गहरी होती गई
विक्रम अब बेकाबू हो चुका था।
उसने अपने राजनीतिक रिश्तों का इस्तेमाल किया।
पुलिस पर दबाव डलवाया कि ड्राइवर की गवाही अदालत में कमजोर कर दी जाए।
लेकिन रिया और शर्मा ने भी ठान लिया था।
अब ये लड़ाई सिर्फ अरुण को बचाने की नहीं थी, बल्कि सच और इंसाफ़ को सामने लाने की थी।
विक्रम को लगने लगा था कि उसकी दीवारों में दरारें पड़ रही हैं।
उसने आईने में खुद को देखा और बड़बड़ाया—
“रिया… तूने भाई से जंग छेड़ दी है। अब मैं तुझे और तेरे प्यार को मिटाकर ही दम लूँगा।”