यह कहानी शुरू होती है एक विशाल नगरी वसंत पुरी से
जहां का राजा बहुत ही शक्तिशाली था
वह एक लोकप्रिय राजा था प्रजा उसकी सारी बातें मानती थी और वह प्रजा की सारी बातें सुनता था
सारे नगर वासी अपने राजा से कोई भी बात कहने में जरा भी संकोच नहीं करते थे राजा के एक बेटा था
उसके 6 दोस्त थे
वह सातों दिन भर इधर-उधर घूमते मस्ती मजाक करते और कोई काम नहीं करते थे
एक दिन उन सभी के पिता परेशान होकर राजा के पास मदद मांगने को पहुंचे
उसमें से एक पंडित एक नाई एक बढ़ई, लोहार,सोनार, और एक वजीर का भी बेटा था
उन सभी ने मिलकर राजा से कहा की हे राजन अगर राजकुमार नहीं पढ़ेंगे या कोई काम नहीं करेंगे तो भी वह राज ही करेंगे पर अगर हमारे बेटे नहीं पढ़ेंगे कोई काम नहीं करेंगे तो आखिर उनका क्या होगा
राजा को यह बात सुनकर बहुत गुस्सा आया उसने फौरन राजकुमार को बुलाया और नगर छोड़ने का आदेश दे दिया
राजकुमार भी क्रोधित हुआ और अपने पिता की आज्ञा के अनुसार नगर छोड़कर चल दिया
और राजकुमार चलते-चलते बहुत दूर निकल आया थोड़ी देर बाद उसे और घोड़ो की आवाज सुनाई पड़ी तो उसने देखा कि उसके साथ उसके सारे दोस्त उसके पीछे-पीछे आ रहे हैं
वह उनसे बोला कि तुम लोग मेरे साथ क्यों आ रहे हो मुझे तो राजा ने आदेश दिया है इसलिए मैं आया हूं तुम लोग अपना घर परिवार छोड़कर नगर छोड़कर मेरे साथ क्यों आना चाहते हो तो वह बोले कि राजकुमार हमारी दोस्ती ऐसे नहीं है हम तुम्हें अकेले कैसे जाने दे सकते हैं तुम हमारे मित्र हो हम हमेशा एक साथ रहे एक साथ खेले, एक साथ बड़े हुए और अब हम एक साथ ही रहेंगे जहां तुम वहां हम
राजकुमार थोड़ा खुश भी हुआ और थोड़ा दुखी भी की उसके दोस्त उसकी इतनी परवाह करते हैं पर वह मेरे साथ-साथ बेचारे कहां भटकेंगे पर वे कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे तो आखिर वह सब साथ में चल दिए और वह चलते-चलते एक बहुत ही भयानक और घने जंगल में पहुंच गए
जहां दूर-दूर तक कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था घना कोहरा छा रहा था रात भी हो चुकी थी आखिर वे उसके आगे जाते तो कहां जाते तभी वह लोग देखते हैं कि जंगल के बीचो-बीच एक बहुत ही सुंदर महल बना हुआ है और उसके पास एक कुआं है सब सोचने लगते हैं कि इतनी भयानक जंगल में आखिर यह महल किसने ही बनवाया होगा भला कोई . कि ठीक है जाओ पंडित घर में जाकर के देखो कोई है या नहीं अगर कोई हो तो उसे पूरी बात कर लेना कि हमें आज रात रुकना है और फिर सुबह होते ही हम निकल जाएंगे पंडित घर में गया घर के अंदर जाते ही उसने देखा कि घर में कोई भी नहीं है सात पलंग पड़े हुए पड़े हुए हैं सात लोगों का खाना है घर में सारी सुख सुविधा सारी व्यवस्था है और घर के अंदर एक बकरी बंधी हुई है वह फौरन बाहर जाकर सबको यह बात बताता है सब आपस में सोच विचार करते हैं कि आखिर कितने भयानक जंगल के बीचो-बीच या घर उसके बाद वहां कोई नहीं और सात ही लोगों की व्यवस्था है और एक बकरी बंधी है कैसे वजीर का बेटा सोचता है कि यहां कुछ गड़बड़ तो नहीं पर फिर सब कहते हैं कि अरे होगा तो होगा छोड़ो हमें वैसे भी आज की रात ही तो बितानी है कल सुबह हम वैसे भी चले जाएंगे चलो आज रात यहीं रुक जाते हैं फिर कल सुबह देखा जाएगा और अगर उसका मालिक आ भी गया जो भी पैसा वो मांगेगा हम उसे दे देंगे और सब घर के अंदर चले जाते है।
और घर में जाते ही सब खा पी करके आपस मे हंसते हुए कहते है कि कुम्हार बडा डरपोक है कही भाग न जाए तो कुम्हार कहता है मुझे तो लगता है पहले सोनार भाग जाएगा सब आपस में हंसी मजाक करके आराम से अपने-अपने पलंग पर सो गए और वह बकरी इन लोगों की सारी बातें सुन रही थी जैसे ही रात के 12:00 बजे जो बकरी बाहर बंधी हुई थी उसकी रस्सी अपने आप खुल गई और वह धीरे-धीरे खड़ी हुई और देखते ही देखते वह बहुत भयंकर सी डायन बन गई उसके बड़े-बड़े नुकीले दांत बड़े-बड़े भयानक नाखून बड़े-बड़े बाल लाल लाल आंखें भीषण गर्जना करती हुई की कोई नहीं बचेगा मैं सबको खा जाऊंगी और भयंकर हा हा हंसते हुए अंदर घुस के कुम्हार के लड़के को खा गयी और फिर बकरी बनकर बाहर जाकर के बंध गई
जब सुबह हुई सब ने देखा कि वह 7 से 6 ही रह गए तो सबको लगा कि कुम्हार बहुत ही डरपोक था वह डर के मारे भाग गया सबने आपस में कहा कि कोई बात नहीं कुम्हार चला गया तो क्या हुआ हम सब तो साथ रहेंगे राजकुमार कहता है घर का मालिक तो आज भी नहीं आया तो क्यों ना जब तक वह नहीं आ जाता हम सब यहीं रहते हैं इसके आगे आखिर कहां ही जाएंगे सब उसी घर में आराम से रुक गए खाने की तो सारी व्यवस्था थी पीने के लिए कुएं में पानी था ही
रात हुई फिर रात के 12:00 बजे और इस बार डायन सोनार के लड़के को खो गई अगली सुबह फिर से यही बात हुई की सोनार भी चला गया सबको गुस्सा आया पर इस बार सबने आपस में वादा किया कि अब हम 5 बचे हैं और अब पांच ही रहेंगे अब इसमें से कोई नहीं जाना चाहिए फिर रात हुई और इस बार डायन पंडित के लड़के को खा गई धीरे-धीरे करके वह सबको खा गई बस राजा का बेटा और वजीर का बेटा बचा उन दोनों ने आपस में सोचा कि ऐसा नहीं हो सकता वह सारे एकदम से भाग नहीं सकते जरूर कोई और बात है क्यों ना आज रात हम दोनों एक दूसरे को रस्सी से बांध लेते हैं और किसी को जाने नहीं देंगे अगर कोई जाएगा तो एक दूसरे को पता चल जाएगा जैसे ही रात के 12:00 बजे वहां डायन फिर भयंकर रूप मे आ गई और रस्सी में से वजीर के लड़के को खींचकर खा गई राजकुमार यह सब देखता रहा और बहुत ही भयभीत हो गया उसे बकरी का या भयंकर रूप देखकर वहां अंदर तक बहुत ही घबरा चुका था जैसे ही सुबह हुई उसने उससे बदला लेने का सोचा उसने कहा कि उसने मेरे सारे दोस्तों को मार दिया है सबको खा गई है अब मैं इसे खा जाऊंगा वह जंगल से लकड़ी लेने के लिए गया लकड़ी लाकर उसने उसको पका कर खाने की तैयारी शुरू कर दी उसने बकरी को छोटे-छोटे टुकड़े काटकर एक बड़े से पतीले के नीचे आग लगाकर उसको रख दिया और उसको पकाने लगा जब बहुत देर हो गई तब उसने पतिला खोल कर देखा वह उसमे जिंदा थी यह देखकर वह बहुत डर गया उसने कहा यह ऐसे नहीं पकेगी और लकड़ी लानी पड़ेगी और सुबहo से लेकर शाम तक उसको पकाता रहा पर उसे पर कोई असर नहीं पड़ा वह वैसे की वैसी ही आखिर वह भयंaààकर डायन कहां ही मरने वाली थी राजकुमार बहुत डर गया राजकुमार ने सोचा कि अब यहां से भागना ही ठीक होगा इससे बचना बहुत मुश्किल है वह भागने लगा जैसे ही उसने भागना शुरू किया डायन भी उसके पीछे भागने लगी वह भगाते-भगाते बहुत ही दूर निकल आया तब उसने देखा कि वहां पर एक राजा की बारात आ रही है और बरात देखकर वहां एक पेड़ पर चढ़ गया उस डायन ने जब राजा की बारात को देखा तो वह पेड़ के नीचे एक बहुत खूबसूरत लड़की बन कर बैठ गई और रोना शुरू कर दिया
राजा ने जब रोने की आवाज सुनी उन्होंने अपने सिपाहियों को भेजा और कहा कि पता करो देखो यह कौन लड़की है और क्यों रो रही है तब सिपाही उसके पास गए और पूछा कि ए लड़की तुम क्यों रो रही हो तो वह डायन राजकुमार को नीचे लाने के लिए कह देती है इस पेड़ के ऊपर जो बैठा है वह मेरा पति है वह मुझे शादी करके लाया और मुझे अपने साथ ले जाने से मना कर रहा है तो मैं रोऊं नहीं तो क्या करूं सिपाहियों ने यह बात जाकर राजा को बतायी राजा खुद उस डायन के पास गए और उसे देखकर मोहित हो गए और सोचने लगे की इतनी सुंदर लड़की को छोड़कर आखिर वह मूर्ख लड़का क्यों नहीं ले जाना चाहता उसने उससे पूछा कि ए लड़के तुम उसको नहीं ले जाओगे।
राजकुमार कहता है कि चाहे मुझे मार दो पर मै इसे हाथ भी न लगाउंगा और न ही मुझे इससे कोई मतलब है और न ही मैं नीचे आऊंगा ।
राजा कहते है ठीक है तो अअअगर नहीं ले जाना चाहते तो एक कागज पर लिख कर दे दो कि यह मेरी पत्नी है और मैं इसे त्याग रहा हूं और मेरा इससे अब कोई वास्ता नहीं है यह कहीं भी जाए कहीं भी रहे राजा ने फौरन अपने सिपाहियों को आदेश दिया और उन्होंने पेड़ पर चढ़कर उसे यह बात लिखवा ली राजा तो शादी करने जा ही रहा था उसने सोचा कि क्यों ना इसे ही अपनी पत्नी बना लिया जाए और वह डायन को अपने साथ ले चलने के लिए डायन से पूछता है उस डायन को क्या था उसे तो कहीं जाना ही था उसने कहा ठीक है मैं आपके साथ चलने को तैयार हूं फिर राजा उसे अपने महल में ले आते हैं और उससे विवाह कर लेते हैं
थोड़े दिन बीतने के बाद उस डायन को मांस खाने की भूख लगती है फिर वह एक दिन जाकर घोड़े के अस्तबल में से दो घोड़े निकाल कर खा जाती है अगले दिन राजा के सिपाहियों ने राजा को बताया की दो घोड़े गायब है तो उन्हें लगा कि कोई जानवर उन्हें खा गया होगा फिर ऐसे ही हर दिन एक-एक घोड़ा गायब होने लगा धीरे-धीरे करके सो घोड़े राजा के अस्तबल से गायब हो गए राजा परेशान हो गया
उसने पहरा दुगना कर दिया
फिर डायन ने सोचा कि अस्तबल में जाना ठीक नहीं फिर वह हाथियों को खाना शुरू कर देती है जब हाथी कम होने लगे तब राजा ने वहां भी पहरा बढ़ा दिया
राजा को शक होने लगा कि जरूर ही महल में से ही किसी का काम है डायन ने सोचा कि कहीं मुझ पर शक ना हो जाए तो उसने एक तरकीब निकाली
राजा की पहले से 6 रानियां थी
और उनके कोई भी बच्चा नहीं था इसीलिए राजा सातवीं शादी करने निकला था।
डायन ने एक हाथी मारकर उसके छह टुकड़े करके सभी रानियां के पास रख दिया और उनके मुंह में खून लगा दिया और अगली सुबह उसने राजा से कहा कि राजा आप महल में ढूंढ रहे थे ना आईए देखीए आपकी रानियां ही डायन है राजा बहुत क्रोधित होते हैं उनको महल से निकलने का आदेश देते थे वह डायन से ही कहां निकालने देती है उसने कहा कि इनकी आंखें निकाल के इन्हें नगर के बाहर वाले सूखे कुएं में डलवा दीजिए और इनकी आंखे मुझे दे दीजिए राजा ने उसकी बात सुनकर वैसा ही किया रानियां को सूखे कुएं में डलवा दिया उनकी आंखें निकलवा कर। रानियां कहती रही वे निर्दोष है पर राजा को उस डायन ने अपने वश में कर लिया था राजा वही करते थे जो वह चाहती थी ।
इधर वह सभी रानियां गर्भ से थी उन सभी के बच्चे होने वाले थे सबसे पहले बड़ी रानी के बच्चा हुआ उन सबने सोचा की ना कुछ खाने को है न पीने को है और इस बच्चे को हम कैसे पालेंगे और गुस्सा भी था क्योंकि वहां राजा की संतान थी तो क्यों ना इसे मार कर और सभी के बीच में बाट कर खा लिया जाए और उन्होंने वैसा ही किया ऐसे सभी रानियों के संतान हुई और सभी आपस में बाट कर खा गई पर जो सबसे छोटी रानी थी उसने किसी के बच्चे को नहीं खाया उसने सब का हिस्सा बचा कर रखा और जब उसको बच्चा हुआ तब उसने साफ मना कर दिया उसने कहा मेरे बच्चे को कोई नहीं मारेगा मैं इसे पालूंगी और अगर किसी को आपत्ति हो तो अपना अपना हिस्सा ले जाए और खा ले मैंने किसी के बच्चे को नहीं खाया है तो किसी को हक नहीं है मेरे बच्चे को हाथ लगाने का
सब उसकी बात मान लेते हैं और बच्चे को पालने लगते हैं धीरे-धीरे सब उससे बहुत प्यार भी करने लगते हैं जब वह साल भर का हो गया तो वे उसे कुएं के ऊपर बैठाने लगी जब कोई चरवाहे बकरियां चराने आते या गाय भैंस को चराने आते तो उसको उठा ले जाते उसे खिलाने पिलाते और फिर वापस शाम को कुए के पास छोड़ जाते एक दिन एक चरवाहे ने सोचा कि यह बच्चा आखिर कुएं के ऊपर कहां से आ जाता है उसने बच्चे से पूछा कि बेटा तुम कहां रहते हो और रोज कहां से आ जाते हो तो उसने पूरी बात बतायी की मेरी छह मां है और कुएं में रहती है और मैं भी उनके साथ रहता हूं जब सुबह होती है तो मुझे कुएं पर बैठा देती है वे खुद नहीं चढ़ सकती इसलिए बेचारी भूखी रह जाती है जो रूखा सुखा मिलता है वही खा लेती है वह चरवाहा बच्चे की बात सुनकर दुखी हुआ और अगले दिन से बच्चों को भी ले जाता और साथ में उन लोगों के लिए भी खाने पीने का इंतजाम साथ में भेज दिया करता था ऐसे करते-करते बहुत समय बीत गया वह बच्चा बड़ा होने लगा 10 -11 साल का हो गया फिर वह छोटे-छोटे शिकार भी करने लगा थोड़ी खेती भी करने लगा एक दिन वह बैठकर सोचने लगा कि ऐसे मैं कब तक छोटे-छोटे शिकार करता रहूंगा और कब तक हम कुएं में ही रहेंगे क्या इससे बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं
फिर वह कुएं में जाकर अपनी माता से बात करता है कि मुझे शहर जाने दीजिए मैं वहां जाकर कुछ पैसे कमा लूंगा और अपने लिए बड़े-बड़े औजार खरीद कर लाऊंगा जिससे मैं बड़े शिकार कर सकूं और खेती कर सकूं जिससे मैं एक घर बनवा सकूं और फिर हम सब मिलकर वहां ही रहेंगे पर उसकी माताएं उसको मना करती है कि बेटा शहर जाना तुम्हारे लिए खतरे से खाली नहीं है वह बहुत जिद करता है कि कृपया मुझे जाने दे फिर भी उसकी बात मानकर उसकी शहर जाने की अनुमति दे देती है पर वह एक पत्र कमंगण मामा के नाम लिखती हैं और उससे कहती कि बेटा तुम शहर जाकर बस आवाज लगाना कि कमंगण मामा कमंगण मामा और मामा जब तक आकर तुमसे खुद ना कहें कि वह का कमंगण मामा है तब तक तुम किसी और के साथ कहीं भी मत जाना ना किसी का दिया कुछ खाना ना पीना।
क्योंकि वे रानियां डरती थी कि कहीं वह डायन उनके बच्चे को भी ना मार दे इसीलिए वे कमंगण मामा पर बहुत विश्वास करती थी क्योंकि वह छोटी रानी के इकलौते भाई थे।कमंगण मामा)
फिर वह लड़का शहर की ओर चल दिया शहर जाकर वह वैसा ही करने लगा जैसा उसकी माता ने उसे बोला था दो-तीन दिन वह बेचारा भूखे प्यासे कमंगण मामा कमंगण मामा आवाज देता रहा फिर एक दिन कमंगण मामा आखिर उसे मिल ही गए उन्होंने उसे बोला कि बेटा मैं हूं कमंगण मामा फिर वे उसे अपने साथ ले गए उसे खिलाया पिलाया उसको अपने पास रखा और उससे कहा कि बेटा तुम यहां क्यों आए हो तब उसने वह पत्र निकाल कर उन्हें दिया और कहा मेरी माता ने यह आपको देने के लिए कहा था उन्होंने वह पत्र पढ़ा और पढ़कर बहुत दुखी हुए क्योंकि रानी ने उसे पत्र में सारी बातें लिख दी थी कि कैसे वह डायन ने उन्हें महल से निकलवा कर कुएं में डलवा दिया और यह बच्चा उन्हीं का है कमंगण मामा ने उसे सारे औजार चलाने सिखाए शिकार करना सिखाया और खेती करना भी सिखाया सब कुछ सीखाने के बाद एक दिन वह बच्चा और कमंगण मामा दोनों साथ ही उसे कुएं के पास लौट आए।
फिर उन्होंने मिलकर कुएं के पास ही एक बढ़िया घर बनाया और रानियों को भी कुएं से बाहर निकाला और सभी उस घर में रहने लगे फिर एक दिन उसे बच्चे ने किसी बड़े जानवर का शिकार किया तब कमंगण मामा ने उसे खुश होकर उसका नाम बहादुर रख दिया एक दिन मामा बोले कि बेटा क्यों न जाकर राजमहल में भी थोड़ा गोश्त दे आओ राजा भी खुश हो जाएंगे वह बोला ठीक है मामा मैं आज ही जाता हूं।
फिर राजमहल जाकर गोश्त राजा को देने जाता है
राजा खुश होकर उसे इनाम देते हैं और कहते हैं कि जाओ रानी महल में भी जाकर देकर आओ।
फिर वह रानी महल जाता है वह जैसे वहां पहुंचता है डायन के सामने वह जान जाती है कि यह उन्हें रानियो का बेटा है
वह उससे पूछती है कि ए लड़के तुम्हारा नाम क्या है तो वह कहता है मेरा नाम बहादुर है कहां से आए हो वह निडर होकर कहता है कि इस नगर के बाहर वाले गांव में सूखे कुएं के पास मेरा घर है मैं वही अपनी माताओ और अपने मामा के साथ रहता हूं तो वह उपहास करके उससे कहती है की हा हा तुम उन्हीं अंधी माताओ के पुत्र हो क्या।
तो वह कहता है कि हां मेरी माताएं आंधी है।
फिर वह कहती है कि इस बड़े जानवर का शिकार क्या तुमने किया है तो कहता है कि हां मैंने ही किया है तो वह डायन अपने मन में विचार करती है कि कहीं यह लड़का बड़ा बहादुर है आखिर है तो राजा का ही बेटा कहीं बड़ा होकर ये मुझ पर ही ना वार करें तो क्यों ना इसे अभी ही खत्म कर दिया जाए तो वहां एक तरकीब निकलती है और उससे कहती है कि अगर तुम इतने ही बहादुर हो तो क्यों नहीं अपनी माताओ के लिए नित बवा धान ले आते पर तुम कहां तुम तो बस शिकार ही करते रह जाओगे और तुम्हारी माताएं आंधी और यह कहकर हंसने लगी तो वह लड़का बोला कि अगर ऐसी बात है तो मैं तो नित बवा धान लेकर जरूर आऊंगा और यह कहकर वह वहां से चल देता है। घर जाकर वह अपनी माता से कहता है की माता मुझे नित बवा धान लेने जाना है चाहे कुछ भी हो जाए मुझे नित बवा धन लाने हैं तो लाने हैं वह जब बहुत जिद करता है तो उसकी माताएं उसकी बात मानकर उसे जाने की अनुमति दे देती हैं। फिर वह वहां से रानी महल जाता है और उस डायन से पूछता है कि कि मुझे नित बवा धान कहां मिलेंगे तो वह डायन उसे बताती है कि यहां से सात समुंदर पार एक एक जंगल है वहीं पर तुम्हें नित बवा धन मिलेंगे फिर यह जानकर वह नित बवा धान न लेने वहां से चल देता है ।
( नित बवा धान)
बहादुर बहुत मुश्किलों से सात समुंदर पार करके उस जंगल में पहुंचता है बेचारा बहुत थक चुका होता है तो वह देखता है इस जंगल में एक पेड़ के नीचे एक बाबा बैठे हुए हैं उन्हें देखकर ऐसा लग रहा था कि वे सालों से समाधि लिए हुए हैं उनके ऊपर मिट्टी घास फूस इत्यादि जम गया था तो वह उन बाबा के ऊपर से धीरे-धीरे सारी मिट्टी घास फूस सब हटाता है उनके लिए एक कुटिया बनाता है।
बाबा की आंख पर से बस मिट्टी रह गई थी उसने जैसे ही हटाई बाबा की समाधि खुल गई बाबा ने देखा कि वह एकदम साफ हैं और उनकी कुटिया भी बनी हुई है लिपि पोती है सब सामान वहां पर इकट्ठा है तो बाबा बहुत खुश हो जाते हैं और बहादुर से कहते हैं कि वह बेटा तुमने बहुत अच्छा काम किया और तुम जो चाहो मैं वह तुम्हें दूंगा या मेरा वचन है ।
तो बहादुर कहता है कि बाबा मुझे नित बावा धान चाहिए
तो बाबा कहते हैं कि बेटा तुम और जो कुछ चाहे मुझसे मांग लो बस यह मत मांगो तो वह कहता है कि बाबा मुझे यही चाहिए और इसके अलावा कुछ नहीं चाहिए और अगर मुझे नहीं मिला तो मैं अपनी जान दे दूंगा तो बाबा कहते हैं कि अच्छा ठीक है तो सुनो मेरी बात जैसा मैं कहता हूं वैसा ही करो बाबा ने उसे बताया कि यहां से 1 मील दूर नित बवा धान का खेत है वहां पर 16000 राक्षस है वे नित बवा धान की रखवाली करते हैं वे सभी तोता बनाकर एक-एक बाली पर बैठकर उसकी रक्षा करते हैं मैं तुम्हें भी वहां पर तोता बनाकर भेजूंगा और तुम जैसे ही मौका पाना एक बाली मुंह में दाब कर वहां से उड़ जाना और पीछे मुड़कर नहीं देखना अगर तुमने पीछे मुड़कर देखा तो तुम वही भस्म हो जाओगे और बस बाली लेकर तुम चुपचाप मेरी कुटिया के अंदर आ जाना।
वह कहता है ठीक है बाबा अगली सुबह बाबा उसे तोता बनाकर उसे खेत में भेज देते हैं वह खेत में पहुंच कर देखता है की सुनहरे नित बवा धान खेत में लहरा रहे हैं और हर एक बाली पर एक तोता बैठा है वह भी जाकर एक बाली पर बैठ जाता है और जैसे ही वह मौका पता है एक बाली तोड़कर मुंह में दबाकर वहां से उड़ जाता है और जैसे ही वह वाली लेकर उड़ता है सारे तोता भयानक राक्षस बनकर बहुत ही भीषण गर्जना करते हुए उसके पीछे भागने लगते हैं वह भागने लगता है भागते भागते जैसे ही बाबा की कुटिया के पास पहुंचता है अपने मन में सोचता है अब तो मैं कुटिया के पास आ ही गया अब तो पीछे मुड़कर देखा ही सकता हूं जैसे ही वह पीछे मुड़ा वही भस्म हो गया और वे राक्षस वाली लेकर फिर वापस चले गए वह बाबा से डरते थे इसलिए कुटिया के अंदर नहीं आए जब काफी समय हो गया तब बाबा ने अपनी दूर दृष्टि से देखा तो देखा कि वह वहां पर भस्म पड़ा हुआ है बाबा तुरंत जाकर उसे वापस जिंदा करके अपनी कुटिया में ले आते हैं और कहते हैं देखो बच्चा यह तुम्हारे बस की बात नहीं है अब तुम यहां से वापस अपने घर लौट जाओ और नित बवा धान पाने की जिद मत करो वह बोला बाबा मुझे एक मौका और दे दीजिए इस बार में कोई गलती नहीं करूंगा।
वह बहुत जिद करता है तो बाबा आखिर में उसकी बात मान लेते हैं और कहते हैं ठीक है अब कल सवेरे फिर मैं तुम्हें तोता बन कर वहां भेजूंगा जैसे ही सुबह होती है बाबा उसे तोता बना देते हैं और फिर से खेत में भेज देते हैं वह वहां पहुंचकर बाली पर बैठ जाता है और जैसे ही मौका पता है एक बाली मुंह में दबाकर वहां से उड़ जाता है इस बार वह सच में गलती नहीं करता और उड़ कर सीधे बाबा की कुटिया के अंदर आ जाता है बाबा उसे अपनी जटाओं में जूं बनाकर बैठा लेते हैं और जैसे ही राक्षस वहां पर आते हैं हा हा कर मचाते हुए कहते हैं कि बाबा तुम्हारी कुटिया में एक चोर घुसा है वह इसी और भागता हुआ आया है कृपया मुझे कुटिया के अंदर आने की अनुमति दें और देखने दे कि वह चोर कहां गया तो बाबा कहते हैं कि तुम लोगों को यही भस्म कर दूंगा चुपचाप यहां से वापस लौट जाओ यहां कोई चोर नहीं आया तो वह लोग बाबा से डर कर वापस लौट जाते हैं और जब राक्षस चले जाते हैं तब बाबा उसे अपनी जटाओं से बाहर निकाल कर फिर से इंसान बना देते हैं और बाबा बहुत खुश हो जाते हैं फिर वह बाबा से पूछता है कि बाबा आखिर इस नित बवा धान में ऐसा क्या है जो इतने राक्षस इसकी रक्षा करते हैं तब बाबा ने बताया कि इस नित बवा धान की एक बाली से हजारों धान पैदा हो जाते और वह कभी भी खत्म नहीं होते यह एक तिलस्मी धान है और साधारण मनुष्य का इसको पाना बहुत दुर्लभ है।
कुछ दिन बाबा के पास रहकर वह अपने गांव वापस लौट आता है उसे सही सलामत देखकर उसकी माताएं बहुत खुश हो जाती हैं।
वह उसकी बाली लगा देता है और देखते ही देखते हजारों धान पैदा हो जाते हैं और वे सुनहरे धान जब खेत में लहराते हैं तो बहुत ही आकर्षक मालूम होते हैं एक दिन
कमंगण मामा उसे कहते हैं कि जाओ बेटा राजमहल में भी धान दे आओ।
फिर वह राजा के पास जब धान लेकर जाता है तो राजा बहुत खुश हो जाते हैं उसे इनाम देते हैं और कहते हैं कि रानी महल में भी जाकर दे आओ जैसे वह महल पहुंचता है वह डायन तो अपने मन में सोच रही होती है कि नित बवा धान लेने गया था अब तक तो राक्षसों ने उसे मार ही दिया होगा और हा हा करके हंस रही होती है पर जैसे ही वह बहादुर को देखती है एकदम बहूचक्की रह जाती है और अपने मन में सोचती है कि आखिर यह बच कैसे गया और उससे कहती है की ले आए नहीं बवा धान तुम तो बड़े बहादुर हो। और मुंह बनाकर कहती है कि नित बवा धान तो कोई भी ले आए पर अरना भैंस का दूध लेकर आओ तो जानूं पर तुम कहां तुम तो ऐसे ही रह जाओगे और तुम्हारी माताएं आंधी।
बहादुर को फिर गुस्सा आया वह फिर अपनी माता के पास गया और बोला की माता मुझे अरना भैंस का दूध लेने जाना है मुझे मत रोकना।
माताएं फिर रोकने की बहुत कोशिश करती हैं पर बहादुर नहीं मानता आखिर में उसे जाने की अनुमति दे ही देती हैं फिर वह रानी महल जाकर डायन से पूछता है कि आखिर मुझे अरना भैंस कहां मिलेगी तो वह बताती है कि यहां से चार समुंदर पार पर एक जंगल में अरना भैंस रहती हैं
और वो वहां से अरना भैंस का दूध लाने के लिए चल देता है।
( अरना भैंस )
बहादुर सोचता है कि क्यों ना इतनी दूर जा रहा हूं तो बाबा से मिल लिया जाए और वह मुझे रास्ता भी बता देंगे।
बहादुर जाकर बाबा से मिलता है और बाबा के साथ कुछ दिन रहता है उनकी सेवा करता है फिर बाबा उसे खुश होकर पूछते हैं कि बेटा तुम यहां इतनी दूर फिर से क्यों आए हो तो बहादुर कहता है कि बाबा मुझे अरना भैंस का दूध चाहिए फिर बाबा कहते हैं कि बेटा अरना भैंस का दूध छोड़कर कुछ और मांग लो तुम जो मांगो इस बार हम तुमको दे देंगे बेटा पर आना भैंस का दूध हमसे मत मांगो तो कहता है कि नहीं बाबा मुझे चाहिए नहीं तो मैं यहां से नहीं जाऊंगा वो बहुत जिद करता है तो बाबा कहते हैं कि चलो ठीक है हम तुम्हें मार्ग बताते हैं फिर बाबा कहते हैं कि अब यहां से तीन समुद्र दूर एक जंगल पड़ेगा वह अर्नवी जंगल है अर्नवी जंगल में अरना भैंस के कइ परिवार रहते है वहां कई अरना भैंसें हैं।
तुम किसी एक परिवार को चुन लेना और जिस पेड के नीचे वो रहते हो उसी पर जाकर बैठ जाना।
बाबा ने बताया कि अरना भैंसें कोई आम भैंसें नहीं है
वे आम भैंसों से विशालकाय, बड़े बड़े सींगों वाली होती है।
उन तक पहुंचना आम इंसानों के लिए दुर्लभ है अगर कोई पहुंच भी गया तो वे उसे खा जाती है।
बाबा बहादुर को बहुत समझाते है कि बेटा वहां जाना ठीक नहीं होगा तुम्हारी जान पर बन सकती है पर बहादुर ज़िद पर अडा था कि उसे तो बस अरना भैंस ही चाहिए थीवह वहां से चल दिया चलते-चलते तीन समुद्र पार जब वह अर्नवी जंगल में पहुंचा तो उसकी सुंदरता देखकर वह दंग रह गया
की इतना सुंदर जंगल इतना आकर्षक नजारा क्या भला यहां इतनी खतरनाक भैंसे भी रह सकती है
जंगल में विविध रंगीन पौधों और फूलों का सौंदर्य है, जो जंगल को एक जीवंत और आकर्षक स्थल बनाता है इस जंगल में हर कोने में अलग-अलग जानवर और पक्षी के ढंग और रंग दिखाई दे रहे हैं, जो इसे और भी मनमोहक बनाते हैं।
वह यह सब देखकर बहुत आश्चर्यचकित हुआ क्योंकि जैसा वह सोच कर आया था वैसा वहां कुछ नहीं था वह थका हुआ तो था ही तो हुआ थोड़ी देर वहां पर विश्राम करने लगा उसने नदी से शीतल पानी पिया और फिर वहां पेड़ के नीचे छांव में आराम से लेट गया
जैसे ही शाम हुई तो उसे जोर-जोर से आवाज आने लगी आवाज इतनी भीषण गर्जना की थी कि वह हड़बड़ी में उठकर बैठ गया वह उठा तो उसने देखा कि हजारों भैंसों का झुंड दौड़ता चला आ रहा है वह यह सब देखकर बहुत डर गया और जाकर एक पेड़ पर चढ़कर बैठ गया सब एक से एक खतरनाक लग रही थी बड़े सिंह वाली विशालकाय शरीर वाली नुकीले लोग के लिए नाखूनों वाली वह अर्नब ऐसे और सुनहरे बालों वाली देखने में तो बहुत सुंदर और खतरनाक दोनों ही लग रही थी अपने सुनहरे बालों के कारण वह आकर्षक और नुकीले नाखूनों और विशालकाय शरीर की वजह से वह काफी डरावनी भी लग रही थी उसमें कुछ बुद्धि कुछ जवान और कुछ बच्चे भी थे वह जिस पेड़ के नीचे लेटा था वहां पर एक परिवार रहता था उसके मुखिया एक बुद्धि अरनव भैंस थी और उसका परिवार में बच्चे बूढ़े उसके बेटे उसकी बहू उसके पोता पोती उसी में सब रहते थे जैसा कि बाबा ने उसे समझाया था कि तुम एक परिवार चुन लेना तो उसने सोचा कि मैं यही परिवार चुन लेता हूं और फिर वह उसी पेड़ पर बैठा रहता है और सब देख रहा होता है कि क्या चल रहा है शाम को वे सब वापस आए थे शिकार करके अब आराम से सोने जा रहे थे वह यह सब देख रहा था रात में सब सो गए तो वह भी सो गया फिर जैसे ही सुबह हुई वे सब उठकर फिर कहीं चल दिए सारे झुंड एक साथ चले गए जैसे ही सब चले गए बाद धीरे से पेड़ से नीचे उतरा और उसने देखा की बहुत गंदा सब कुछ पड़ा हुआ है आसपास पेट बिखरे हैं गोबर इधर-उधर पड़ा हुआ है और तो सब उसमें सब अच्छे से साफ सफाई कर दी सब पत्नी एक साथ इकट्ठे कर दिए सब गोबर से लीपकर उसने सब अच्छे से व्यवस्थित कर दिया। शाम को जब भैंस से लौट कर आई तब देखकर हैरान हो गई कि यह सब व्यवस्थित किसने कर दिया आसपास देखा पर कोई नहीं मिला तो सोचा कि हो सकता है किसी ने कर दिया हो चलो सो जाते हैं सुबह उठकर देखेंगे। अगले दिन फिर यही सब हुआ शाम को जब भैंसें लौट कर आई तब उनमें से जो बूढी भैंस थी उसको शक हुआ उसने सोचा कि कल मैं नहीं जाऊंगी फिर देखती हूं कौन करता है यह सब। और अगले दिन फिर सुबह वह सब चले गए और वह बूढी भैंस वहां पर रुक गई बहादुर बेचारा पेड़ पर बैठा यह सब देख रहा था उसने सोचा कि अगर यह भैंस नहीं गई तो मैं साफ सफाई कैसे करूंगा बहुत देर तक वह पेड़ पर बैठकर यही सब सोचता रहा फिर उसको लगा कि जब यह एक तरफ करवट ले लेगी तब मैं दूसरी तरफ सफाई कर दूंगा ऐसी ही करके मै सब साफ कर दूंगा। जब बूढी भैंस एक तरफ करवट लेकर सो गई तब वह दूसरी तरफ सब साफ कर देता है ऐसे ही करके सारी सफाई होने के बाद वहां पेड़ पर चढ़कर बैठ गया वह बूढी भैंस यह सब देख रही थी लेकिन उसने कुछ नहीं बोला क्योंकि अगर वह बोल देती तो बहादुर डर के पेड़ पर चढ़ जाता या भाग जाता। जब वह पेड़ पर चढ़ गया तब वह बोली कि बेटा तुम कौन हो जो हमारी मदद कर रहे हो और यूं पेड़ पर क्यों बैठे रहते हो नीचे आओ मैं तुम्हें कुछ नहीं कहूंगी मेरी बात का विश्वास करो पर बहादुर कहता है कि नहीं मुझे विश्वास नहीं है मैं नीचे आया तो तुम मुझे खा जाओगी पर वह बुढी भैंस कहती है कि मेरी बात मानो बेटा मैं तुम्हें कुछ नहीं कहूंगी नीचे उतर आओ। फिर कुछ सोच के डर-डर के बहादुर नीचे उतरता है फिर वह उससे पूछती है कि मुझे पूरी बात बताओ आखिर क्या बात है तुम कहां से आए हो तुम कौन हो फिर बहादुर पूरी कहानी उसे सुनता है फिर वह कहती है अच्छा तुम रुको जब शाम को सब आएंगे तब मैं सब से बात करती हूं जैसे ही शाम होती है बहादुर पेड़ पर चढ़ जाता है और वह सब शोर करती हुई हाहाकार मचाती हुई वापस आती है जैसे ही वह आती है वह बूढी भैंस उन लोगों से कहती है की सुनो मुझे तुम लोगों से कुछ बात करनी है और वह उन लोगों को यहां सब बताती है तब वह कहते हैं कौन है बुलाओ उसको अभी मार के हम लोग खा जाते हैं बहुत दिन से किसी मनुष्य का मांस नहीं खाया है चलो खाया जाए तो वह बूढी भैंस कहती है अरे निर्दयी तुम लोग को के अंदर तो बिल्कुल भी कोई शर्म नहीं है वह बच्चा हमारी रोज मदद करता है साफ सफाई करता है तुमने कभी सोचा की साफ सफाई कर दे मैं इतनी बूढी हूं उसने मेरी सेवा करी तुमने कभी सोचा कि तुम मेरी सेवा कर दो उसे बेचारे के साथ कोई कुछ नहीं करेगा मैं अभी उसे नीचे पेड़ से बुलाती हूं और सब उसकी बात सुनेंगे और जो वह कहता है वही करेंगे सब उसे बूढी भैंस की बात मान लेते हैं बहादुर या सब सुन रहा होता है तो उसे कुछ विश्वास हो जाता है फिर वह सब उसे कहते हैं कि बहादुर नीचे उतर आओ हम तुम्हें कुछ नहीं कहेंगे सब एक साथ कहते हैं तब बहादुर उतरता है नीचे और सारी बात उन लोगों को फिर से बताता है तो वह सब तैयार हो जाते हैं कि हम चलेंगे हम चलेंगे तब बहादुर कहता है कि नहीं मैं सबको नहीं ले जा सकता तुम में से कोई चार लोग चलो तो कोई चार भैंसें जाने के लिए तैयार हो जाती हैं वह लोग कहती हैं कि ठीक है एक-दो दिन तुम यहां आराम से रुको खाओ पियो जंगल घूमो फिर सब लोग साथ में चलते हैं ऐसे करके दो-चार दिन बीत जाते हैं फिर बहादुर भैंसों को लेकर के वहां से चल देता है। फिर वह बाबा की कुटिया में पहुंचता है और बाबा को धन्यवाद कहता है कि बाबा अपने मदद ना की होती तो मैं इन भैंसों को वहां से नहीं ला पता बाबा कहते हैं बच्चा यह तुम्हारी बहादुरी है मैंने तो सिर्फ तुम्हें मार्ग दिखाया था एक-दो दिन वह बाबा के पास रुकता है और दो भैंसों को बाबा के पास ही छोड़ देता है और दो भैंसों को लेकर के वहां से अपने घर आ जाता है उसको देख कर उसकी मांए बहुत खुश हो जाती हैं। और फिर वह आराम से नित बवा धान और अरण्य भैंस के दूध से खीर बनाकर अपनी मां को खिला है और सोचता है कि चलो राज भवन में भी तो दे कर आए और रानी को बता भी देंगे कि मैं ले आया हूं अरण्य भैंसों को। वह जाता है राजा के पास और राजा कहते हैं कि जाओ रानी के महल में देकर आओ जैसे वह रानी के पास पहुंचता है वह उसे देखकर हैरान हो जाती है कि आखिर वह जिंदा कैसे बच गया। और कहती है अरे तुम तो ले आए। फिर वह उससे कहती है कि यह तो तुम ले आए पर मैं तुमको नहीं मानती ऐसे ना होते तो अपनी मां के लिए आंखें न ले आते आंखें लाओ तो जानू तो बहादुर कहता है क्या आप जानती है मेरी मां की आंखें कहां है वह कहती है हां हां बिल्कुल जानती हूं तो कहता है कि बताओ मुझे मैं जाऊंगा लेने चाहे मुझे कहीं भी जाना पड़े यह सब उसे डायन की चाल थी उसने उन साधु रानियां की आंखों को अपने मायके भेज दिया था जहां सारे राक्षस रहते थे वह उससे कहती है कि जाओ यहां से सात समुंदर पार एक नगर है वहां मैं तुम्हें एक चिट्ठी लिख कर देती हूं वहां जो तुम्हें पहला आदमी दिखे तुम उससे यह चिट्ठी दिखाना और वह तुम्हें ले जाएगा जहां तुम्हारी मां की आंखें रखे हुई है बहादुर कहता है ठीक है और वह डायन उसे चिट्ठी में लिख देती है कि यह हमारे दुश्मन का बेटा है जैसे ही दिखे इसे तुरंत ही मार देना बहादुर चिट्ठी पढ़ता नहीं है बस अपनी जेब में रख लेता है। और अपने घर जाकर कहता है की मां मैं तुम्हारी आंखें लेने जा रहा हूं वह सातों रानियां तो जानती है कि वह आंखें कहां है तभी उसे रहती है कि बेटा हम तुम्हारे ही सहारे दुनिया देख लेंगे तो हमारी आंखें लेने मत जाओ वह बहुत रोती है पर बहादुर कहता है कि नहीं मां मुझे जाने दो मुझे मत रोको मैं तुम्हारी आंखें लेकर ही वापस आऊंगा और वहां से चल देता है और बाबा की कुटिया में जाकर पहुंचता है बाबा कहते हैं बच्चा तुम फिर आ गए आखिर अब क्या बात है तो कहता है कि बाबा मैं अपनी मां की आंखें लेने के लिए निकला हूं और बिना लिए वापस नहीं जाऊंगा वह बाबा को पूरी बात बताता है बाबा कहते हैं बच्चा यह बहुत ही संकट भरा काम है यहां तुम्हारा जाना ठीक नहीं है वह कहता है कि नहीं बाबा मैं जाऊंगा तो जाऊंगा बाबा जानते हैं कि वह बहुत जिद्दी है नहीं मानेगा बाबा ने कहा ठीक है आराम कर लो फिर निकल जाना लेकिन बाबा को इस बार शक हो गया कि आखिर इस बच्चे को ऐसी संकट भरी जगह पर कौन भेज रहा है यह कोई साधारण बात नहीं है मुझे समझाना पड़ेगा तो बाबा उसका सामान देखते हैं तो उसके जेब में से उन्हें चिट्ठी मिल जाती है बाबा वह चिट्ठी पढ़कर समझ जाते हैं कि यह किसी दुश्मन का ही काम है तो बाबा उसे चिट्ठी को बदल देते हैं और उसमें लिख देंते हैं कि यह मेरा ही बेटा है और जैसे ही मिले खूब प्यार करना और आराम से रखना इसे कोई परेशानी मत होने देना। उधर व डायन सोचती है कि यह जैसे ही पहुंचेगा मेरे घर वाले उसे मार ही देंगे और मेरा काम अपने आप ही हो जाएगा। इधर जैसे ही बहादुर सुबह उठना है और बाबा से कहता है कि बाबा मैं जा रहा हूं आप मेरी राह देखना बाबा कहते हैं जो बच्चा मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है लेकिन बच्चा वहां जाते ही जैसे ही तुम्हें कोई पहले दिखे तुम कहने लगना मामा नमस्ते मौसी नमस्ते कोई बूढ़ा दिखे तो कहना नाना नमस्ते नानी नमस्ते तो बहादुर कहता है बाबा इसकी क्या जरूरत है बाबा कहते हैं अरे बच्चा तुम सवाल मत करो बस जो मैं कह रहा हूं वह कर लेना बहादुर कहता है कि ठीक है बाबा मैं आपकी सारी बात मानता हूं यह भी मानूंगा और बहादुर वहां से चल देता है। बाबा उसकी मंगल कामना करते हुए ध्यान में बैठ जाते हैं बहादुर लंबी यात्रा करके और राक्षसों के गांव में पहुंच जाता है पहुंचते ही उधर से एक राक्षस आ रहा होता है बहादुर उसे देख कर मामा नमस्ते मामा नमस्ते चिल्लाने लगता है पर वो बहादुर को देखकर खुश हो जाता है कि आज बहुत दिन बाद मनुष्य का मांस खाने मिलेगा लेकिन जब वह सुनता है कि वह मामा नमस्ते चिल्ला रहा है तब वह उससे पूछता है कि तुम कौन हो और यहां क्या कर रहे हो और मामा नमस्ते क्यों कह रहे हो तब वह उसको चिट्ठी निकाल कर दे देता है वह चिट्ठी पढ़कर बहुत खुश हो जाता है कि यह तो हमारी बहन बकरी डायन का बेटा है और उसे गोद में उठाकर चूमने लगता है और अपने घर ले जाता है और वहां भी सब उसे देखकर खुश हो जाते हैं फिर सब उससे कहते हैं कि बेटा तुम यहां आराम से रुको खाओ पियो बढ़िया घूमो कोई तुम्हें किसी चीज के लिए मना नहीं करेगा वह बढ़िया आराम से वहां रहता है खेलता है सारी चीजों को देखता है कौन सी चीज कहां रखी है और अपनी मां की आंखें ढूंढने की कोशिश करता है एक दिन खेलते खेलते उससे एक पोटली मिल जाती है जिसमें एक डब्बे के अंदर साथ जोड़ आंखों के रखे होते हैं और साथ में दो मलहम रखे होते हैं एक कला और एक सफेद वह समझ जाता है कि यह उसकी मां की आंखें ही है और एक दिन वह पूछता है वहां की एक राक्षसी से कि नानी नानी यह बताओ यह क्या रखा हुआ है तो वह उससे कहती है कि बेटा यह हमारे दुश्मन की आंखें रखी हुई है जो तुम्हारी मां है ना उसकी दुश्मन है सात रानियां यह सब उन्हीं की आंखें रखी हुई है इनको मत छूना बेटा इनको ऐसे ही रख दो तो बहादुर को कुछ शक हो जाता है कि यह मेरी मां को दुश्मन और किस डायन को मेरी मां कह रही है तो वह उससे पूछता है की नानी मुझे पूरी कहानी सुनाओ ना तब वह राक्षसी उसको सारी कहानी सुनाती है तब वह समझ जाता है कि वह जो रानी है वह रानी नहीं बल्कि डायन है और वह मुझे यह सब जोखिम भरे काम करवा रही हैं फिर वह पूछता है की नानी अच्छा बताओ यह आंखें भला लगेगी कैसे वह बताती है कि बेटा यह जो सफेद मलहम है पहले इसको आंखों पर लगाना होगा फिर आंखें रखनी होगी और जैसे ही यह काला वाला मलहम उपर से लगाओगे आंखें अपने आप जुड़ जाएंगी बहादुर कहता है अच्छा ठीक है अब मैं खेलने जा रहा हूं वह भी सोचती है कि बच्चा है ऐसे ही पूछ रहा होगा चलो मैं इसे ऐसे ही रख देती हूं अब बहादुर वहां से जल्द से जल्द निकलने की तरकीबे ही ढूंढ रहा होता है एक दिन खेलते खेलते उसे एक उड़न खटोला जैसा दिखता है तब वह पूछता है की मौसी मौसी यह बताओ कि यह कौन सा खिलौना है तुम वह उसे बताती है कि बेटा यह उड़न खटोला है इसमें बैठकर तुम दूर तक उड़ सकते हो तो वहां उस पर बैठकर जाता है थोड़ी देर बाद वापस आ जाता है फिर एक दिन उसे तीन बरनी दिखती है तब वह पूछता है कि मामा मामा इन तीन बरनियों में क्या है तो वह बताता है की बेटा पहले वाली पानी की है अगर इसको खोल दोगे तो इतना पानी गिरेगा कि गांव के गांव डूब जाएंगे और दूसरी वाली में ओले पत्थर है अगर उसको खोल दोगे तो इतने पत्थर गिरेंगे कि गांव के गांव भर जाएंगे और तीसरी वाली में आग है अगर तीसरी वाली खोल दोगे तो इतनी आग निकलेगी की गांव के गांव जल जाएंगे बहादुर के दिमाग में तरकीबें चल ही रहे थे कि एक दिन खेलते खेलते उसे एक पिंजरा दिखा जिसमें एक मैना थी वह पूछता है कि मामी मामी यह मैंना इस पिंजरे में क्यों है और यह पिंजरा इतनी सख्त पहरे में क्यों है तब भी बताती है कि बेटा इसमें तुम्हारी मां की जान है वह समझ गया कि मैं उसे डायन की जान है तो मम्मी यह मैं इसमें से कैसे बाहर आएगी तो वह उसको बताती है कि बेटा यह जो दो छड़ी रखी है इनमें से लाल वाली छड़ी अगर छुआ दोगे तो पिंजरा अपने आप टूट जाएगा और मैना बाहर आ जाएगी और हरी वाली छड़ी रखते ही पिंजरा फिर बंद हो जाएगा । बस फिर क्या था बहादुर बस वहां से निकलने का मौका ही ढूंढ रहा था एक दिन जब सारे राक्षस राक्षसी सुबह चले गए और बहादुर अकेले खेल रहा था तब उसने सोचा कि यह अच्छा मौका है यहां से भाग निकलने का तब वह उड़न खटोला में बैठा उसे पिंजरे को रखा,तीनों बरनियों को रखा और अपनी मां की आंखें राखी और उड़न खटोला में बैठकर उड़ गया जब वह उड़ने लगा तब एक राक्षस ने उसे देख लिया उसने सोचा कि थोड़ी देर में वापस आ ही जाएगा लेकिन जब वह ज्यादा दूर जाने लगा तब उन लोगों ने कहा कि बेटा वापस आ जाओ पर उसने उडन खटोले की रफ्तार और तेज कर दी तब वे लोग समझ गए कि यह यहां से भागने की कोशिश कर रहा है तो वह राक्षस हवा में उड़कर उसे पकड़ने लगे वह बहुत डर गया लेकिन उसने सोचा कि यह बरनियां कब काम आएगी उसने पानी वाली बरनी को खोल दिया आधे रक्षस तो उसी में बह गए फिर भी वह नहीं माने वह और उसको पकड़ने की कोशिश करने लगे हैं फिर उसने ओले पत्थर वाली बरनी भी खोल दी आधे तो उसमें दब गए पर वह फिर भी नहीं माने है उसके पीछे आते रहे तब उसने फिर आग वाली बरनी भी खोल दी फिर सारे उसमें जल गए और बहादुर वहां से भाग के बाबा की कुटिया में आ पहुंचा बाबा उसे देखकर बहुत खुश हुए और उसे शाबाशी दी । और बाबा को सारी बात बताता है तब बाबा समझ जाते हैं कि आखिर बात क्या है बाबा कहते हैं बेटा अगर तुम ऐसे ही राजा को बताओगे तो राजा तुम्हारी बात कभी नहीं मानेंगे और तुम्हें देश निकाला या फांसी भी दे सकते हैं बहादुर सोचता है की मुझे क्या मतलब राजा जाने राजा का काम जाने राजा की डायन राजा को ही खायेगी मुझे क्या करना है मैं तो बस अपनी मांओं की आंखें लेकर जाऊंगा और उन्हें वापस लगा दूंगा और फिर हम सब आराम से रहेंगे बाबा कहते हैं हां ठीक है बच्चा तुम जाओ आराम से मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ हमेशा है और बहादुर वहां से उड़न खटोले में बैठकर अपने घर वापस आ जाता है और अपनी मौत से मिलता है उसकी मांए उसको देखकर बहुत खुश हो जाती हैं। वह सबसे पहले सब की आंखों में सफेद मलहम लगता है और फिर आंखों को रख देता है और ऊपर से काला मलहम लगा देता है जैसे ही कल मलहम लगता है सबके आंखों की रोशनी वापस आ जाती है और सब देखने लगती हैं।
मेरे साथ तो अपने बेटे को देखकर बहुत खुश हो जाती हैं और खुशी से रोने लगती है पर बहादुर कहता है की माताएं अब आपके रोने का समय चला गया है अब आपको मैं वह सब कुछ वापस दिलवाऊंगा जो आपसे छीन गया है वह कहती हैं कि अरे बेटा हमें कुछ नहीं चाहिए तुम बस हमारे पास रहो वह कहता है कि नहीं मां अब बस आप देखते जाओ कि मैं क्या करता हूं। बहादुर फिर राजमहल पहुंचता है और उसे डायन के पास जाता है और उससे कहता है कि मैं अपनी माताओं की आंखें लेकर वापस आ गया हूं और वह सब फिर से देखने लगी है डायन उसे देखकर बहुत हैरान हो जाती है और सोचती है कि आखिर वहां जाकर यह कैसे बच गया फिर वह अपनी जादुई शक्ति से यह देख लेती है कि वहां पर क्या-क्या हुआ वह समझ गई की ये बहादुर बहुत चालाक है वह कहती है की माता को आंखें लाकर तो दे दी कम से कम उनके लिए कोई सहारे वाली तो ले आते बेचारी सातों की सातों बुढियाएं अकेले काम करती हैं तो बहादुर कहता है इस बात का क्या मतलब है तो डायन कहती है कि ऐसे ही ना होते तो अनभोला रानी न ब्याह लाते। बहादुर ने सोचा और अनभोला रानी तो हम ब्याह लेंगे और तुमको भी राजमहल से निकलवा देंगे उसने वहां कुछ नहीं बोला और चुपचाप अपने घर वापस आ गया और अपनी माता से कहा कि मैं कुछ दिनों के लिए जा रहा हूं आप लोग हमारी चिंता मत करना इस बार उन्होंने भी ज्यादा मना नहीं किया और कहा हां बेटा तुम जाओ लेकिन जल्दी वापस आ जाना। और बहादुर वहां से चल दिया और बाबा के पास जा पहुंचा बाबा ने कहा बेटा अब क्या लेने आए हो तो उसने कहा बाबा मुझे अनभोला रानी से ब्याह करना है बाबा समझ गए कि यह वही डायन का काम है बाबा ने कहा कि बहादुर मैं तुम्हें कुछ बताना चाहता हूं तब बहादुर समझ गया कि बाबा क्या कहना चाहते हैं उसने कहा बाबा मैं जानता हूं कि वह डायन ही मुझसे यह सब करवा रही है । बाबा ने कहा जब जान गए हो तब क्यों आए हो अनभोला रानी से ब्याह करने के लिए तब बहादुर कहता है कि बाबा मैं उसे डायन को राजमहल से निकलवाने के लिए ही अनभोला रानी से ब्याह करना चाहता हूं बाबा कहते हैं ठीक है नहीं मानते हो तो जाओ बाबा ने कहा कि जो यहां से सात बियाबान जंगल पार करके नदी पड़ेगी नदी पार करते ही अनभोल राज्य आ जाएगा। बहादुर कहता है ठीक है मैं कल सुबह ही यहां से निकल जाऊंगा सुबह होते ही बाबा का आशीर्वाद लेकर बहादुर वहां से निकल जाता है और चलते चलते सातो बियाबान जंगल पार करके नदी के पास पहुंचता है तो वहां देखा है की नदी में तो बाढ़ आई हुई है और नदी में एक चींटी ,एक बंदर,एक चूहा और एक राक्षस बह रहे हैं बहादुर उन चारों की मदद करता है और उनको बचा लेता है वे चारों बहुत खुश हो जाते हैं और बहादुर से कहते हैं कि जब तुम्हें हमारी जरूरत हो तब हमें याद कर लेना हम आ जाएंगे सब चले जाते हैं पर वह राक्षस कहीं नहीं जाता वह कहता है कि अब मैं तुम्हारा गुलाम हूं तुम जहां-जहां जाओगे मैं वहां वहां तुम्हारे साथ चलूंगा तो बहादुर कहता है तुम मेरे साथ नहीं चल सकते मैं बहुत कठिन काम करने जा रहा हूं रक्षा कहता है ऐसा कौन सा काम है जो तुम कर लोगे और मैं नहीं कर पाऊंगा तो बहादुर कहता है कि मैं अनभोला रानी से ब्याह करने जा रहा हूं रक्षा कहता है मुझे वह सब नहीं पता अब तो मैं तुम्हारे साथ ही रहूंगा बहादुर कहता है ठीक है भाई रहो साथ में चलो राज महल चलते हैं वहां पहुंचकर उन्हें पता चलता है कि अंधभोला रानी से शादी करने के लिए राजा ने पांच शर्तें रखी हैं जो उन पांच शर्तों को पूरा कर लगा उसी से अनभोला रानी की शादी होगी अनमोल रानी एक बहुत ही सुंदर गुणवान युद्ध कौशल में निपुण रूपवान और बुद्धिमान स्त्री थी यह सब बहादुर पहले से जानता था लेकिन शर्तें किस प्रकार की है इस बारे में उसको कोई जानकारी नहीं थी । उससे पहले यहां कई राजकुमार आए कई लोग आए पर कोई भी इन शर्तों को पूरा नहीं कर पाया।आखिर उन शर्तों में ऐसा क्या था जो कोई भी पूरा नहीं कर पाता था पर बहादुर ने ठान लिया था कि वह अनभोला रानी से शादी करके ही रहेगा तब वह पूछता है कि बताओ पहली शर्त क्या है तू बताया जाता है की पहली रात राजमहल के बाहर तुम्हें लेटना होगा वहां ओलों की पत्थरों की बारिश होगी अगर तुम उस बारिश में बच गए तब तुम्हें दूसरी शर्त बताई जाएगी और अगर तुम नहीं बच पाए तो तुम्हारी मृत्यु हो जाएगी और इसके उत्तरदाई तुम खुद होंगे अगर तुम्हें शर्त पूरी कर पाओ तो करो नहीं कर पाओ तो तुम जा सकते हो कोई जबरदस्ती नहीं है बहादुर कहता है मैं करूंगा और रात होने का इंतजार करने लगता है तब वह राक्षस कहता है अरे तुम मूर्ख हो गए हो क्या अपने साथ-साथ काम से काम मेरा ख्याल तो किया होता उस ओलों पत्थरों की बारिश में भला किस तरह तुम बच पाओगे तो वह कहता है कि तुम्हें मैं क्यों लाया था तुम मेरे ऊपर लेट जाना मैं तुम्हारे नीचे लेटा रहूंगा तुम इतने बड़े रक्षस हो भला तुम्हें क्या असर होगा राक्षस भी सोचता है बात तो सही है बस फिर जैसे ही रात होती है वहां ओलों और पत्थरों की बरसात होने लगती है रक्षा लेटता है और उसके नीचे बहादुर लेट जाता है और दोनों सो जाते हैं रात भर ओलों और पत्थरों से रक्षस का कुछ नहीं बिगड़ता अगले दिन सुबह जब बहादुर जिंदा बचता है और राजा के सामने पहुंचता है तब राजा बहुत खुश हो जाते हैं और कहते हैं अरे वह तुमने पहली शर्त जीत ली पूरे शहर में ढोल नगाड़े बजने लगते हैं कि कोई तो है जो पहली शर्त जीत गया । अब राजा कहते हैं तुम्हें दूसरी शर्त पूरी करनी होगी और दूसरी शर्त यह होती है कि खेत में जो सरसों बोई गई है उसका एक-एक दाना बीन के रखना होगा अगर एक भी दान काम पड़ा तो शर्त पूरी नहीं मानी जाएगी और यह काम रात भर में ही करना होगा बहादुर कहता है ठीक है फिर वहां से आकर वह राक्षस से कहता है कि बताओ यह कैसे हो सकेगा तब रक्षा कहता है अरे तुम वह चींटी महारानी को भूल गए क्या उनको याद करो सब हो जाएगा बहादुर कहता है यह बात तो ठीक है फिर वह चींटी को याद करता है और चींटी वहां आ जाती है वह उसकी पूरी बात समझता है तो वह कहती है ठीक है हम सभी चींटियां मिलकर तुम्हारी मदद करेगी जैसे तुमने हमारी की थी तुम परेशान मत हो जैसे ही रात होती है खूब सारी चीटियां वहां आ जाती हैं और एक-एक सरसों का दाना बिन कर रख देती हैं बहादुर आराम से सो जाता है सुबह जब राजा अपने सिपाहियों को भेजते हैं और देखते हैं कि एक-एक सरसोंका का दाना बिन कर रखा हुआ है वह हैरान हो जाते हैं और खुश भी हो जाते हैं कि चलो दूसरी शर्त भी पूरी हुई फिर वह उसको तीसरी शर्त बताते हैं तीसरी शर्त यहां होती है कि 50 फीट ऊपर एक लालटेन बंधी हुई है उसे लालटेन को बिना हाथ लगाए उतरना है बहादुर सोचता है अब यह कैसे करूंगा तब राक्षस याद दिलाता है अरे बंदर महाराज को याद करो वह सोचता है कि हां यह बात सही है तब वह बंदर को याद करता है और बंदर वहां आ जाता है और वह बंदर को पूरी बात बताता है तो बंदर कहता है कि तुम चिंता मत करो जैसे तुमने मेरी मदद की थी अब मैं तुम्हारी करूंगा और वह फट से छलांग लगाता है और लालटेन उतार कर रख देता है सब यह देखकर हैरान हो जाते हैं लेकिन तीसरी शर्त भी पूरी हुई उसकी चौथी शर्त बताई जाती है चौथी शर्त यह होती है कि 10 साल से एक चिता लगातार जल रही है उस चिता को बुझाना है तब राक्षस कहता है तुम चिंता ना करो मैं उसे पर पेशाब कर दूंगा और वह बुझ जाएगी और वही होता है चिता बुझ जाती है और चौथी शर्त भी पूरी हो जाती है तब राजा कहते हैं अब आखरी शर्त बची है कल पूरी होते ही तुम्हारा विवाह अनभोला रानी से कर दिया जाएगा अपाचे और आखिरी शर्त यह होती है कि एक लकड़ी की कुल्हाड़ी से लोहे के दो टुकड़े करने हैं बहादुर या सुनकर हैरान हो जाता है और कहता है या तो असंभव काम है भला लकड़ी से लोहा कैसे कटेगा तब रक्षा कहता है कि मैंने पता कर लिया है अनभोला रानी के बाल सुनहरे हैं उनमें जादू है अगर उसका एक बाल लोहे पर रखकर लकड़ी का हथौड़ा चलाया वही लोहे के दो टुकड़े हो जाएंगे कोई बहादुर कहता है कि उसका बाल आएगा कौन तब राक्षस कहता है अरे तुम बहुत घबराते हो चूहा महाराज को यादकरोवह जैसे चूहा महाराज को याद करता है वह तुरंत आ जाते हैं और वह उनको सारी बात बताता है तब वह कहते हैं तुम परेशान मत हो मैं अभी तुम्हें अनभोला रानी का बाल लाकर देता हूं चूहा महाराज को क्या था वह फट से ही वहां पहुंच गए और देखते हैं कि हम अनभोला रानी अपने पलंग पर लेटी है और उनके बाल पलंग से नीचे लटक रहे हैं चूहा महाराज जाते हैं और उनका एक बाल तोड़कर ले आते है बस अगले दिन सारा शहर इकट्ठा होता है या चमत्कार देखने के लिए राज महल में ढोल बज रहे होते हैं सारा शहर सजा होता है और महल के बीचो-बीच लोहे का टुकड़ा रखा जाता ह। बहादुर बहादुर पहुंचता है और लोहे के टुकड़े पर अन भोला रानी का बाल रखकर हथोड़ा मार देता है हथोड़ा मारते ही लोहे के दो टुकड़े हो जाते हैं यह देखकर सब हैरान हो जाते हैं लेकिन खुश भी हो जाते हैं कि किसी ने राजा की पांचो शर्त पूरी कर दी अब अनभोला रानी और बहादुर का बहुत धूमधाम के साथ विवाह हो जाता है। राजा बहादुर के लिए उसके गांव के पास के जंगल में उसके लिए एक महल बनवा देते हैं और अपना आधा राज पाठ बहादुर को ही सौंप देते हैं और बहादुर और भला रानी को लेकर अपने महल में आ जाता है बहादुर उसके सात माताएं और अनभोला रानी उसे महल में खुशी-खुशी रहने लगते हैं फिर यह खबर डायन को पता चलती है और वह बहादुर को अपने महल में बुलाती है बहादुर को तो यह पता ही था कि वह उसे बुलाएगी वह तो बस इस पल का इंतजार ही कर रहा था बहादुर महल में पहुंचता है तब वह डायन करती है तुम तो सच में बहादुर ही हो अनभोला रानी को भी ब्याह लाए और इतना बड़ा महल भी बनवा लिया और आधा राज पाठ भी मिल गया तुमको बहादुर कहता है कि इसीलिए मैं आपको और राजा को अपने घर भोजन का निमंत्रण देने आया हूं कृपया करके आप दोनों इस निमंत्रण को स्वीकार करें तो कहती है अरे उसमें क्या हुआ हम जरूर आएंगे और बहादुर वहां से अपने घर वापस लौट आता है। और वापस आते ही अनभोला रानी को सारी कहानी बता देता है अनभोला रानी कहती है आने दो उस डायनको उसकी खैर नहीं फिर अगले दिन राजा और वह डायन निमंत्रण पर आते हैं अनभोला रानी राजा के स्वागत में 56 व्यंजन बनवाती हैं तरह-तरह के मीठे पकवान किसी भी तरह की कोई कमी नहीं होनी चाहिए आखिरकार हमारे राजा जी आ रहे हैं सब खाने के लिए बैठ जाते हैं पर बहादुर अपनी माताओ को वहां आने नहीं देता उधर अनभोला रानी उसे मैं को पिंजरे से निकाल कर अपने हाथ में रख लेती है जैसे ही वह सब खाना खाने के लिए बैठते हैं उधर डायन का एक हाथ मुड़ने लगता है राजा यह देखकर बहुत हैरान हो जाते हैं कि आखिर क्या होने लगा इतना कहते ही है कि दूसरा हाथ भी मुड़ने लगता है देखते-देखते पैर भी मुड़ने लगता है फिर दोनों ही पैर मुड़ जाते हैं और वह बहुत जोर-जोर से चीखने चिल्लाने लगती है और अपने विशालकाय भयंकर रूप में आ जाती है यहां देख कर राजा बहुत डर जाते हैं और जैसे ही वह अपने रूप में आती है वह जान जाती है कि किसी ने उसकी मैना को पिंजरे से बाहर निकाला है वह भीषण गर्जना करते हुए
अनभोला रानी को ढूंढने लगती हैं तब वह खुद सामने आ जाती है और राजा से कहती है देखा आपने इस डायन का असली चेहरा जिसके लिए आपने अपनी सात बीवियों को महल से बाहर निकाल दिया वह बेचारी तो बेकसूर थी असली डायन तो यही है। अनभोल रानी ने डायन के लिए एक बहुत गहरा गड्ढा खुदवाया था जहां तक हुआ डायन को ले गई और उसे गड्ढे में उसको गिरा दिया और मैना की गर्दन मरोड़ दी जैसे ही मैना की गर्दन मरोड़ी साथ में डायन भी खत्म हो गई उसे गड्ढे को पटवा दिया गया और डायन हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो गई। फिर राजा ने अपनी रानिया से माफी मांगी और वह सब खुशी-खुशी अपने महल में लौट गए।