ha aur E ki dalil in Hindi Comedy stories by Deepak Bundela Arymoulik books and stories PDF | ह बनाम E : अदालत में दलील

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ह बनाम E : अदालत में दलील

"ह" बनाम "E" : अदालत में दलील व्यंग 

दिन भर की थकान शाम को मोहल्ले की नुक्कड़ पर चाय की टपरी पर ही मिटती हैं ये आम आदमी की फितरत में शुमार हैं....न्यूज़ चेंनल से आते ही यहां जरूर आता हूं घंटा दो घण्टा बिताने के उसके बाद घर की तरफ कूच करता हूं... मैं और मजनू भोपाली बेंच पर बैठे थे सामने उबलती केतली, पीछे लटकता हुआ नोटिस जिस पर लिखा था 

"हमारे यहाँ समोसे गर्म गर्म मिलते हैं ”

मैंने मजनू की तरफ देखा तो मजनू मियां भी मुस्कुरा दिये क्योंकि कल यही नोटिस इंग्लिश में लिखा था मैंने मजनू के कंधे पर हाथ रखते हूं कहा- मजनू भाई, एक बात बताइए… ये कैसी विडंबना है कि भारत में पैदा हुए लोग ही हिंदी को "गँवारों की भाषा" बताकर अंग्रेज़ी के पीछे ऐसे भागते हैं जैसे बाबूजी की डांट से बचता बच्चा।

मजनू भोपाली –(कड़क चाय की चुस्की लेते हुए)- भाईजान, ये सब "राष्ट्रभाषा" का मामला कम और "राशनकार्ड" का मामला ज़्यादा है। अंग्रेज़ी बोलने से इंटरव्यू में नौकरी मिल जाती है, हिंदी बोलने पर सिर्फ़ "नौकरी की तलाश" मिलती है। आजकल तो हाल ये है कि हिंदी में “आई लव यू” बोल दीजिए, तो सामने वाला रोमांटिक हो जाता है, लेकिन अंग्रेज़ी में “I love you” कहिए तो पूरा "प्रपोज़ल पैकेज" समझा जाता है।

बिल्कुल! हिंदी को तो "दिल की भाषा" मानकर ठुकरा दिया, और अंग्रेज़ी को "बैंक बैलेंस की भाषा" मानकर गले लगा लिया।

मजनू भोपाली–(हंसते हुए) सही कहा! भाई, अब देखो—बच्चा अगर "मम्मी" बोले तो समझो इंटरनेशनल, और अगर "अम्मा" बोले तो समझो इंटर-स्टेशन। मतलब सीधे गाँव की ट्रेन पकड़कर भेज दिया जाएगा!

पर सच कहूँ मजनू भाई, हिंदी सिर्फ़ भाषा नहीं है—ये हमारी आत्मा है। "मातृ भाषा" आखिरकार माँ के आंचल जैसी है। अब बताओ, कोई बेटा अपने माँ को छोड़कर मौसी की चूड़ियों के पीछे भागे तो उसे क्या कहेंगे?

मजनू भोपाली–(कंधे उचकाते हुए)
कहेंगे "मॉर्डन बॉय"! भाईजान, हिंदी बोलना आजकल ऐसा हो गया है जैसे भीड़ में खड़े होकर कहना—“मैं अब भी डिटर्जेंट से कपड़े धोता हूँ, वॉशिंग मशीन नहीं खरीदी।”लोग ऐसे घूरते हैं जैसे आप पिछले ज़माने की बसंती साड़ी हों।

और मज़े की बात ये है कि जिनके घर में सुबह से रात तक हिंदी ही बजती रहती है, वही लोग अपने बच्चों को "कान्वेंट" स्कूल में डालकर गर्व महसूस करते हैं।

मजनू भोपाली–अरे छोड़ो भाई! ये "कान्वेंट कल्चर" तो देश की सबसे बड़ी नीलामी है। माँ घर में कहेगी – "बेटा, खा लो पराठा।" बेटा बोलेगा – "मम्मी, आई वांट पैनकेक!" अब सोचो, जिसने चूल्हे पर तपे हुए पराठे को ठुकराकर प्लास्टिक से बने पैनकेक खाए, उसका भविष्य तो "इंस्टाग्राम रील" ही होगा न!

मैंने हंसते हुए कहां-वाह! सही कहा।
लेकिन ये अंग्रेज़ी वाले लोग तवज्जो सिर्फ़ दिखावे की खातिर देते हैं। कोई अंग्रेज़ भारत आता है तो उसके आगे-पीछे घूमते रहते हैं जैसे भारत माता की गोद में "इंग्लैंड की माला" पड़ गई हो।

मजनू भोपाली–सही पकड़े हैं भाईजान!
वो अंग्रेज़ टूरिस्ट अगर बोले–"नमस्ते" तो लोग ऐसे ताली बजाते हैं जैसे उसने गीता का पाठ पूरा कर दिया हो। लेकिन अगर आप कह दें–"How are you?" तो लोग हँसते हुए कहेंगे – "लगता है गली का लोंडा अभी अभी विदेश से लौटा है!"

यही तो दर्द है मजनू भाई। अंग्रेज़ी बोलो तो शान, हिंदी बोलो तो अपमान।

मजनू भोपाली–(सिर हिलाते हुए) भाई, हमारे देश में भाषा का "जाति सिस्टम" बहुत चल रहा है जैसे अंग्रेज़ी = ब्राह्मण, हिंदी = शूद्र। बाक़ी भाषाएँ तो "मिडल क्लास कास्ट" में आती हैं। अब ऐसे में हिंदी चाहे "राष्ट्र भाषा" हो, पर अंग्रेज़ी ही "राज्य भाषा" बनी हुई है।

मैंने गंभीर होते हुए कहा-- लेकिन सोचने वाली बात है मजनू भाई… हिंदी में "माँ" है, "धरती" है, "प्रेम" है। अंग्रेज़ी में सिर्फ़ "Mom, Earth, Love" है। सुनते ही आत्मा सूख जाती है।

मजनू भोपाली–(मुस्कराते हुए) हाँ, अंग्रेज़ी में "आई लव यू" है, पर हिंदी में "तुम मेरी साँसों की जरूरत हो"।

बिल्कुल। यही तो फर्क है। अंग्रेज़ी की किताबें हाथ में पकड़कर लोग सेल्फ़ी लेते हैं, और हिंदी की किताब पकड़कर लोग बैग में छुपा लेते हैं।

मजनू भोपाली–भाईजान, एक दिन आएगा जब लोग अपने बच्चों का नाम भी हिंदी में रखने से कतराएँगे। रामलाल का नाम होगा "रॉनी",श्यामसुंदर का नाम होगा "सैम",
और गंगादेवी बन जाएँगी "जेसिका"!
और फिर जब आप पूछेंगे – "बेटा तुम्हारी मातृ भाषा कौन सी है?" तो बच्चा कहेगा– "Mommy language!" 

(ठहाका लगाकर)- हा हा! बिलकुल सही।
लेकिन भाई, हम चाहे जितना तंज़ कस लें, हक़ीक़त यही है कि हिंदी "दिल" में ज़िंदा है। चाहे अंग्रेज़ी बोलने वाले कितनी भी तवज्जो न दें, आखिरकार मातृ भाषा ही सिरमौर रहेगी।

मजनू भोपाली–(जोश में) सही कहा आपने भाई!......देखिए, हमारी "हिंदी" वो बरगद है जिसकी जड़ें इतनी गहरी हैं कि कोई "ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी" भी उसे उखाड़ नहीं सकती। बस ज़रूरत है कि हम शर्मिंदा न हों हिंदी बोलते हुए। वरना आने वाली पीढ़ी "अरे यार" को भी "ओ माय गॉड" से रिप्लेस कर देगी।

तो फिर मजनू भाई, फिर क्या करें?

मजनू भोपाली–सिंपल है भाईजान—अगर हमारे देश के अंग्रेजी के गुलाम लोग इसका भूत उतारले और घर में भी हिंदी बोलो, बच्चों को हिंदी की किताबें पढ़ाए, और सबसे ज़रूरी बात तो ये हैं कि, अंग्रेज़ी वालों के सामने हिंदी बोलने में हिचकिचाओ मत।
"अगर हिंदी हमारी मातृ भाषा है, तो अंग्रेज़ी तो बस मुंह बोली बुआ है—अच्छी लग सकती है, लेकिन दिल में जगह कभी नहीं ले सकती।" मजनू भाई बोलते हुए खड़े हो चुके थे और चाय भी ख़त्म हो चुकी थी, मैं और मजनू भोपाली उठकर चलने को हुए ही थे तो मजनू केश काउंटर की तरफ लपके मैं कुछ समझ नहीं पाया

मैंने पूछा-- क्या हुआ मजनू..?

कुछ नहीं भाई आप यही रुको बस अभी आया

मैं उसे काउंटर के पास जाते देखता रहा उसने एक बड़ा सा कागज मांग कर बोल्ड मारकर से उस पर कुछ लिखा, लिख कर उसने काउंटर के फ्रंट कांच पर टेप से चिपका दिया... उस पर मजनू ने लिखा था

"हिंदी में बोलोगे तो, दिल में उतर जाओगे। अंग्रेज़ी में बोलोगे तो, जेब में उतर जाओगे।"

और हम दोनों हँसते हुए अपने अपने घर को चल दिये

रात हो चुकी थी पर आंखो से नींद गायब थी मुझे कल हिंदी दिवस के लिए कुछ अलग ही लिखना था.. तभी दिमागी कसरत करते करते कब नींद की आगोश में चला गया पता ही नहीं चला जब रात को ख्वाब से जगा तो फौरन पेज पर उतरा वो इस तरह से सपना इस तरह था.

कोर्ट रूम का दृश्य

"ह" और "E" की अदालत में दलीले और टकराव

बड़े से हॉल में सामने दीवार से सटी एक ऊँची कुर्सी रखी है—अदालत के जज की सीट। उसके अगल-बगल में सामने लकड़ी के कटघरे, दायीं ओर टेबल-कुर्सी, बायीं ओर दर्शकों के लिए बेंच।

घोषक माइक पर आवाज़ देता है—

“सज्जनों और देवियों! आज की ऐतिहासिक सुनवाई शुरू होने जा रही है।
कटघरे में खड़े होंगे —भारत माँ की लाड़ली, हमारी आत्मा की पहचान — हिंदी का 'ह'
और सामने होंगे —दुनिया की ताक़त, नौकरी-धंधे की गारंटी — English का 'E'
मामला यह है कि देश में किसकी अहमियत ज़्यादा है।”

सारा हाल ठहाकों से गूँज उठता है।

कृपया शांति बनाए रखें जज सहाब पधार रहें हैं.. और एक हिलता काँपता सा 70-75 साल का अकड़ू जज आकर बैठते हैं (कॉपी-पेन)

जज (गंभीरता से):- आर्डर आर्डर!“कोर्ट में पेश किया जाए अभियुक्त ‘ह’ और प्रतिवादी ‘E’।"

(दोनों अदा से चलते हैं। 'ह' धोती-कुर्ता पहने, सिर पर तिरंगा गमछा, आँखों में अपनापन। वही 'E' सूट-बूट में, हाथ में लैपटॉप) आकर खडे हो जाते हैं.

जज- दलील शुरू की जाए "ह" की तरफ इशारा करते हुए

"ह"- धन्यवाद माई बाप(सीना चौड़ा करके):-“मान्यवर! मैं हूँ ‘ह’।
मेरे बिना ‘हम’ नहीं, सिर्फ़ ‘अम’।
मेरे बिना ‘हृदय’ नहीं, सिर्फ़‘ऋदय’।
मेरे बिना ‘हिम्मत’नहीं, सिर्फ़ 'इम्मत’।
मैं उस मिट्टी की गंध हूँ जो बारिश में उठती है, मैं उस चौपाल की गूँज हूँ जहाँ लोग बिना मोबाइल के घंटों बैठते थे, मैं उस माँ की लोरी हूँ जो बच्चे को झुलाती थी। मैंने कबीर दिए, तुलसी दिए, रहीम दिए। मैंने गालिब को पाला, मुंशी प्रेमचंद को शब्द दिये, निराला को स्वर दिया.....और ये E साहब कहते हैं कि नौकरी उन्हीं से मिलती है!
अरे भैया, नौकरी पेट भर सकती है,
पर मैं आत्मा भरता हूँ।”

(हॉल तालियों से गूँज उठता है। मजनू मजे लेकर बेंच पर बैठे ताली ठोकते हैं।) तभी ह को E टोकते हुए बोल पड़ता हैं

E (स्मार्ट लहजे में, ऐनक ठीक करते हुए):
“Oh my dear!- I am ‘E’.
Education starts with me.
Economy starts with me.
Engineer starts with me.
Even Entertainment starts with me. तुम्हारे बच्चे पहले ABC सीखते हैं,
क, ख, ग नहीं। तुम्हारे रिज़्यूमे मेरी भाषा में बनते हैं, इंटरव्यू मेरी ज़ुबान में होते हैं।
तुम्हारे 'हाथ’ जोड़ने से दुआ मिलती होगी,
पर Appointment तो मेरे ‘Email’ से ही आता है, तुम्हारा ‘हवन’ आत्मा शुद्ध करेगा, पर मेरा ‘Hospital’ जान बचाएगा।तुम्हारा ‘हकीम’ जड़ी-बूटी देगा,और मैं big AIIMS दूँगा। तो माई डियर ब्रादर, Modern India मेरी वजह से चमक रहा है।”

(तभी दर्शक सीट से “वाह-वाह” और “हाय-हाय” की मिली-जुली आवाज़ें आती हैं।)

तभी "ह" का पलटवार होता हैं

"ह" (हँसते हुए, दाँत निपोरकर):-“वाह E साहब, क्या खूब गिनाए आपने!
पर सच ये है— आपके पास 'Honeymoon' है, पर मेरे पास 'हवन-कुंड' lआपके पास ‘History’ है,
पर मेरे पास ‘हकीकत’।
आपके पास ‘Hotel’ है,
पर मेरे पास ‘हाट-बाज़ार’।
आपके पास ‘Hollywood’ है,
पर मेरे पास ‘हरियाली गीत’।
और सुनो इतना ही नहीं- तुम्हारे Laptop का Charger खो जाए, तो तुम रोते रह जाओ। मेरे किसान का बैल खो जाए, तो भी वो हँसते-गाते हल चला लेगा। फर्क यही है-
तुम्हारी ज़िंदगी Wi-Fi पर टिकी है,
मेरी ज़िंदगी हवा-पानी और मुझे अपनाने वालों पर।”

(सारा हॉल ठहाकों से गूँज जाता है। इसी बीच मजनू भोपाली ठुमका उठ कर लगा देते हैं।)

मजनू (हँसते हुए):-"अरे भाई, अबे ह की औक़ात को मत कम समझो,इस ह ने ही हमें ‘हँसना’ सिखाया।और हँसी न हो तो जिंदगी कड़ाही में जल जाएगा। E साहब का ‘Email’ बहुत ज़रूरी है, लेकिन जरा सोचो, Email में अगर Emojis न हों
तो मैडम से दिल की बात कैसे कहोगे?
और वो Emojis भी ह की कॉपी हैं—
हँसता चेहरा, रोता चेहरा, गुस्सा वाला चेहरा! मतलब ह बिना तो E भी अधूरा।”

(भीड़ तालियाँ बजाती है,“वाह मजनू वाह!" के नारे लगते हैं।)

तभी में(बीच से खड़े होकर बोलता हूं):-
"माय लॉर्ड! मुझे तो लग रहा है ‘ह’ दिल से बोल रहा है, और 'E' बिल से। ये हमारी धरती से जुड़ा दूसरा डॉलर से। हमें दोनों चाहिए, लेकिन याद रखिए-जो हमारी जड़ है वही हमारी जान है।हिंदी का "ह" हल से मिट्टी में महकता है, और इंग्लिश का E मॉल में चमकता है।”

(दर्शक “सही बात, सही बात” चिल्लाते हैं।)

"E" की बौखलाहट E (गुस्से में):-
'ये सब इमोशन है! Modern world में बिना English कोई काम नहीं चलता।
तुम्हारी हिंदी में Apps नहीं चलते, Coding नहीं होती, International Deals नहीं होती, तुम्हारा "ह" बस गाँव की चौपाल में ही गूंजता है, और मैं United Nations के हॉल में, तुम्हारा "ह" सिर्फ़ 'हाय' कर सकता है, मैं पूरा 'Hello, how are you?' कहता हूँ।”

तभी "ह" का ठहाका गूँजता हैं "ह" (ठहाका लगाकर):-'अरे जनाब, ये 'Hello' भी तो मेरे बिना अधूरा है। जरा सोचो—अगर मैं "ह" हट जाऊँ, तो तुम 'ello' भर रह जाओगे। और सुनो, तुम्हारे Hello में Distance है, मेरे 'नमस्ते' में अपनापन है।
तुम्हारा Thank You Formality है,
मेरा 'धन्यवाद' आत्मा से आता है। तुम्हारा Sorry जुबान पर है, मेरा 'माफ़ करना’ दिल से।”

तभी मौजूद जनता की अलग-अलग आवाज़ें आती हैं.

"हमने तो अपने बच्चे को English Medium में डाल दिया है, वो हिंदी भूल रहे है।”

“अरे भाई, हिंदी न सीखो तो भी चलेगा, पर बिना English नौकरी नहीं मिलती।”

“पर बिना हिंदी के आदमी अपने घर में अजनबी हो जाता है।”

(हॉल में शोर, ठहाके और बहस का माहौल तेज होने लगता हैं)

तभी जज के हथोड़े की आवाज हॉल में गूंजती हैं

“Order! Order! बहुत सुन ली दलीलें चुप हो जाइये। ये अदालत मानती है कि—
'E' जरिया है तरक्की का, पर 'ह' ज़रिया है जीने का 'E' कागज़ पर चमकता है, वही
'ह' मिट्टी में महकता है। इसलिए- 'E' का हम सम्मान करते है, वही हमारे 'ह' का ताज हमेशा सर पर रहेगा क्योंकि 'ह' से ही 'हम'बनते हैं और जब तक हम रहेंगे, तो E साहब भी बिकेंगे।”

(हॉल तालियों से गूँज उठता है। मजनू भोपाली खड़े होकर नारा लगाते हैं—
“हिंदी का ह दिल का सहारा है,
इंग्लिश का E बस दुनिया का किनारा है!”)

और शोर धूम धड़ाके के साथ कोर्ट की कर्यवाही समाप्त हो जाती हैं जज सहाब उठ कर चले जाते हैं 'ह' मुस्कराते हुए गाँव की चौपाल की ओर चला जाता है।
और झुंझलाते हुए 'E'एयरपोर्ट के लिए टैक्सी पकड़ लेता है।

और पीछे गूँजता है

“हिंदी के बिना हिंदुस्तान अधूरा है,
और इंग्लिश के बिना दफ्तर सूना है।

फर्क बस इतना है—

हिंदी दिल की जुबान है,
और इंग्लिश जेब की कद्रदान हैं।”

जय हो हिंदी दिवस की

समाप्त