“हाथ न मिलाने का ऑपरेशन सिंदूर”
पुरानी चाय की दुकान। लकड़ी की बेंच पर मैं और मजनू भोपाली बैठे थे। ऊपर का धूल भरा पंखा घिस-घिस कर हवा फेंक रहा था और सामने ताश खेलने वाले चार पियक्कड़ ऐसे बहस कर रहे थे जैसे खुद से ही मैच हार गए हों। रेडियो पर अजीब-सी खड़खड़ाहट के बीच एंकर की आवाज़ उभर रही थी—
“भारत ने पाकिस्तान को पराजित किया… भारतीय कप्तान ने पाकिस्तान की टीम से हाथ मिलाने से इंकार किया…”
मजनू भोपाली (कुल्हड़ उठाते हुए):- जनाब! ये मैच तो क्रिकेट से ज़्यादा “कूटनीति” का मैच था। बल्ला, बॉल और बयान—तीनों ने पाकिस्तान की वाट लगा दी।
मैं हंसते हुए बोला:- सच कह रहे हो भाई। रन तो वैसे ही बने, विकेट भी गिरे, पर सबसे बड़ा विकेट तो तब गिरा जब कप्तान ने हाथ मिलाने से मना कर दिया।
पूरा पाकिस्तान वहीँ क्लीन बोल्ड!
मजनू भोपाली:- अरे वाह! यही तो है असली “हाथ का खेल”।
हाथ न मिलाने का मतलब—“अब बस! बहुत हुआ।”
जनाब, ये कोई साधारण इंकार नहीं था। ये तो उसी “ऑपरेशन सिन्दूर” का मैदान वाला रूप था।
मैं थोड़ा गंभीरता से कहा:-देखो भाई, हाथ मिलाना सिर्फ़ औपचारिकता नहीं, भरोसे का प्रतीक होता है। और पाकिस्तान के साथ भरोसा? ये तो वैसा है जैसे जहरीले सांप को दूध पिलाना।
मजनू भोपाली (मुस्कुराते हुए):-बिलकुल! पाकिस्तान के साथ हाथ मिलाना मतलब—एक हाथ से सलाम और दूसरे हाथ में छुरा।
हमारे कप्तान ने उसी छुरे की धार देख ली।
उन्होंने कहा—“भाई, खेल तो खेलो, लेकिन अब हाथ हमें नहीं मिलाना।”
मैं:- अब देखना पाकिस्तान का मीडिया क्या-क्या बकता है, कहेंगे—“भारतीय कप्तान ने खेल भावना तोड़ी।”
मजनू भोपाली (हंसकर ताली मारते हुए):-
जनाब, जिनकी खेल भावना पत्थरबाज़ी और बॉर्डर पर गोलीबारी तक सीमित है, वे हमें खेल का पाठ पढ़ाएँगे? अरे ये वही लोग हैं जो हार कर कहते हैं—“मैदान ठीक नहीं था।”जीत कर कहते हैं—“अल्लाह की मेहरबानी।”और जब हारें और हाथ भी न मिले तो कहते हैं—“बदतमीज़ी।”
मैं:- बिलकुल! पाकिस्तान की बौखलाहट का मज़ा ही यही है, मैच से ज़्यादा मज़ा उनके बयानों में आता है।
मजनू भोपाली (चाय की चुस्की लेकर):-
जनाब, याद है ऑपरेशन सिन्दूर? जहाँ हमारे जवानों ने कहा था—“अब और बर्दाश्त नहीं।”बस वही संदेश कप्तान ने मैदान पर दोहराया—
मैंने गंभीरता से कहा:-वाह भाई! यही तो है असली नीति।सीमा पर भी ऑपरेशन, और मैदान पर भी ऑपरेशन।ये हाथ न मिलाना दरअसल क्रिकेट का “सर्जिकल स्ट्राइक” था।
मजनू भोपाली:-जनाब, पाकिस्तान सोच रहा होगा—“भारत हमसे रन छीन ले गया, विकेट छीन ले गया, और अब हाथ भी छीन लिया।”
मैं (हंसते हुए):-सही कहा भाई। ये हाथ न मिलाना वैसा ही है जैसे शादी में बाराती आएँ और दूल्हा उनसे मिलकर भी मुंह फेर ले, अपमान भी और तंज भी—दोनों साथ!
मजनू भोपाली:-और पाकिस्तान जैसे पड़ोसी के लिए यही ज़रूरी है, ये वो पड़ोसी है जो आपके घर से शक्कर माँगे, और वापसी में पत्थर फेंके।
चाय वाले के रेडियो पर पाकिस्तानी एंकर रो रहा था—“भारतीय कप्तान ने खेल भावना को शर्मसार किया।”
मैंने(ठहाका मारते हुए कहा):- अरे! शर्मसार तो तब हुआ था जब उन्होंने आतंकियों को मैदान पर खिलाया था, जब मैच के नाम पर मैदान में नारे लगते थे, जब हारकर गुस्से में स्टंप तक तोड़ देते थे, अब हाथ न मिलाने पर रो रहे हैं?
मजनू भोपाली (ठहाका लगाकर):- जनाब, पाकिस्तान की यही आदत है, हार जाएँ तो रोना, जीत जाएँ तो उछलना, और बराबरी हो तो भी रोना, इनके यहाँ हार-जीत से ज़्यादा “ड्रामा” चलता है।
मैं:- असल में, ये हाथ न मिलाना सिर्फ़ इंकार नहीं, मनोवैज्ञानिक झटका है, पाकिस्तानी खिलाड़ी सोचेंगे—“अरे, ये तो हमसे बात तक नहीं करना चाहते!”और भाई, जब बात बंद हो जाए तो खेल अपने आप हार में बदल जाता है।
मजनू भोपाली:- वाह! यही तो है "ऑपरेशन" का असर। सीमा पर बमों से और मैदान पर चुप्पी से—दोनों से पाकिस्तान हिलता है।
पास की मेज़ पर बैठे बुज़ुर्ग बोले—“बेटा, खेल को राजनीति से अलग रखना चाहिए।”
मैं (मुस्कुराकर):- चचा, राजनीति तो वहीं से शुरू होती है जहाँ भरोसा टूटता है।
और पाकिस्तान के साथ तो भरोसा जन्म से ही टूटा हुआ है।
मजनू भोपाली:- चचा, हाथ मिलाना खेल नहीं, दिल का रिश्ता है, और पाकिस्तान के साथ दिल तो क्या, धड़कन भी मिलाना गुनाह है।
मैं:- असल में भारत ने अब ये तय कर लिया है— खेल खेलेंगे, पर “औपचारिकता” नहीं निभाएँगे, जीतेंगे, पर “जुड़ाव” नहीं दिखाएँगे, और हाथ तभी मिलाएँगे जब सामने वाले के हाथ साफ़ हों।
मजनू भोपाली:- सही कहा! पाकिस्तान का हाथ तो हमेशा बारूद और स्याह साजिश से सना होता है, अब ऐसे हाथ से कौन हाथ मिलाए? हमारे कप्तान ने तो सिर्फ़ यही कहा—“पहले हाथ धोकर आओ।”
मैं (कुल्हड़ खाली करते हुए):- तो साफ़ है भाई, ये जीत सिर्फ़ स्कोरबोर्ड पर नहीं थी।
ये जीत आत्मसम्मान की थी, ये जीत नीति की थी, ये जीत “ऑपरेशन सिन्दूर” की गूँज थी।
मजनू भोपाली (उंगलियाँ गिनते हुए):- बिलकुल! पहला—भारत जीता मैदान में।
दूसरा—भारत जीता बयान में, तीसरा—भारत जीता आत्मसम्मान में और चौथा—भारत जीता उस “हाथ न मिलाने” के ऑपरेशन में, जनाब, पाकिस्तान चाहे जितना रोए, लेकिन सच्चाई यही है, अब भारत किसी भी मोर्चे पर समझौता नहीं करेगा, दोस्ती होगी, तो भारत की शर्तों पर होगी, और हाथ मिलेंगे, तो उन्हीं हाथों से जिनसे बारूद की गंध न आती हो, कप्तान का हाथ न मिलाना, दरअसल वही था जो ऑपरेशन सिन्दूर ने सीमा पर कहा था,
“हम झुकेंगे नहीं, हम रुकेंगे नहीं, और हम अब धोखा नहीं खाएँगे।”और जनाब, यही है उस दिन की असली जीत, रन-रेट से ज़्यादा कटाक्ष की दर बढ़ी, और पाकिस्तानी चेहरे पर हार की शिकन गहरी हो गई।
समाप्त