Najar Ka Ahsas in Hindi Love Stories by SARASWAGI books and stories PDF | नज़र का अहसास

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नज़र का अहसास

सुबह का समय बहुत ही शांत और सुकून भरा था।
नीहा अपने छोटे से रसोईघर में बच्चों के लिए नाश्ता बना रही थी।
बच्चों की हँसी, चाय की खुशबू और बाहर से आती पंछियों की चहचहाहट ने उस पल को खास बना दिया था।

जैसे ही घड़ी की सुई नौ बजे पर पहुँची, नीहा ने धीरे-धीरे पानी भरने के लिए बाहर कदम बढ़ाया।
वो नर्म कदमों से नल की तरफ बढ़ी।

ठीक उसी समय, अंशु पूजा के लिए जल लेने के लिए उसी नल की तरफ आया।
नीहा ने चुपके से उसकी ओर देखा। ऐसे देखा, जैसे उनकी आँखें बिना बोले एक-दूसरे को समझ गई हों।
अंशु भी पानी भरते हुए नीहा की आँखें महसूस कर रहा था।

दोनों की नज़रें एक-दूसरे में टकराईं।
कोई शब्द नहीं बोले।
कोई मुस्कान नहीं आई।
फिर भी, दिल में एक अनकहा एहसास जग गया।

नीहा का दिल थोड़ी तेज धड़कने लगा।
अंशु की साँसें भी अटक गईं।

बिना कुछ कहे, दोनों धीरे-धीरे अपने-अपने रास्ते चल दिए।
जैसे यह पल सिर्फ उनके लिए ही था।

एक पल — बेहद प्यारा और नाजुक।
जहाँ दोनों ने एक-दूसरे को बस देखा, बिना कुछ कहे।
फिर भी उनकी आत्माएँ एक-दूसरे से जुड़ गईं।

यही एक पल उन्हें रोज़ सुकून देता था।

वे दोनों जानते थे कि उनके दिल में एक-दूसरे के लिए भावना है।
पर समाज की मजबूरी ने उन्हें खुलकर बात करने से रोक रखा था।

नीहा की पहली शादी टूट गई थी।
दूसरी शादी में उसकी एक बेटी हुई, लेकिन पति की जल्दी मौत ने उसकी ज़िंदगी और अकेली बना दी थी।
लोग उसे मनहूस समझने लगे।
नीहा ने भी इसे सच मान लिया था।
अब वह मायके में नौकरानी बनकर अपने बच्चों के साथ जी रही थी।

अंशु की ज़िंदगी भी आसान नहीं थी।
वो अपने बूढ़े माता-पिता की देखभाल करता था।
दो छोटे भाई-बहनों की शादी की जिम्मेदारी उसके कंधों पर थी।
अंशु दो नौकरी करता था।
एक अपने घर का खर्च चलाने के लिए,
और दूसरी पुलिस में, ताकि वह अपने परिवार को संभाल सके।

समाज ने उन्हें अलग कर दिया था।
अंशु जानता था कि चाहे वह जितना भी चाहे, नीहा से शादी करना तो दूर की बात, बात भी नहीं कर सकता।

फिर भी हर सुबह उनका एक पल होता…
बस एक नजर का आदान-प्रदान।
जैसे दोनों की आत्माएँ एक-दूसरे को छू रही हों।

नीहा सोचती थी —
“काश… मैं उसके पास होती।”

अंशु भी सोचता था —
“काश… यह खामोशी हमारी ताकत बन जाए।”

यह खामोशी उनके लिए एक अनमोल तोहफा बन गई थी।

नीहा और अंशु की पहली मुलाकात उस दिन हुई थी, जब नीहा को उसके ससुराल वालों ने निकाल दिया था।
वो दिन उसके लिए बेहद कठिन था।

नीहा मायके लौटी थी, दिल टूटकर, आँखें नम।
वो कमरे में बैठी थी, तभी बाहर से तेज आवाजें आने लगीं।

वो बाहर गई।
और देखा कि उसके नए पड़ोसी अंशु और उसके पिता कंपाउंड में दीवार को लेकर बहस कर रहे थे।

“इतनी कम दीवार? हमारी सुरक्षा कैसे होगी?” नीहा के पिता ने पूछा।
“जितनी ऊँचाई जरूरी है, उतनी दीवार बनाई जाएगी। ज़रूरत से ज्यादा ऊँची दीवार घर की सुंदरता खराब करती है,” अंशु ने जवाब दिया।

नीहा ने अपने पिता से पूछा, “पापा, क्या हुआ?”
अंशु की नजरें नीहा पर पड़ीं।
कुछ पल के लिए दोनों की आँखें मिल गईं।
फिर अंशु ने धीरे से अपनी आवाज़ कम कर दी और पिता की बात मान ली।

नीहा के दिल में हलचल सी हुई।
अंशु की आँखों में एक गर्माहट समा गई थी।

उस पहली नज़र में एक अनकहा रिश्ता बन गया था।
नीहा को यकीन हो गया था कि अंशु उसके लिए कोई आम इंसान नहीं था।
अंशु भी जानता था…
नीहा की मासूम मुस्कान में उसकी दुनिया बसी थी।

🌿 यही था उनका पहला, अनकहा रिश्ता…
एक नज़र का अहसास।