Nafrat e Ishq - Part 23 in Hindi Love Stories by Umashankar Ji books and stories PDF | Nafrat e Ishq - Part 23

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Nafrat e Ishq - Part 23



सहदेव ने साँस ली और दर्द को नजरअंदाज करते हुए धीरे-धीरे चारों ओर निगाह दौड़ाई। सड़क सुनसान थी, बस कहीं-कहीं धूमिल लाइटें और दुकानें बंद पड़ी थीं। लेकिन उसके सामने खड़े तीनों गुंडों की आँखों में मौत की ठंडक साफ झलक रही थी।


“अब देखो, खेल खत्म होने में ज्यादा समय नहीं लगेगा,” एक ने दहाड़ते हुए कहा और बंदूक के ट्रिगर पर उंगली रख दी।


सहदेव ने थोड़ा पीछे हटते हुए मन ही मन योजनाबद्ध तरीके से सोचा। उसके हाथ में अब तक सिर्फ़ एक टूटी-फूटी रॉड थी और कंधे की चोट लगातार दर्द दे रही थी। लेकिन उसने महसूस किया कि ये तीनों आदमी उसे अपने खेल में फंसाना चाहते हैं।


"तो क्यों न इन्हें उनके ही जाल में फँसाया जाए?" सहदेव ने अपने दिमाग में योजना बनाई।


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तभी उसके फोन की जेब से एक हल्की सी कम्पन हुई। मनोज का मैसेज आया—“तुम तैयार हो? बटन दबा दो और बाकी काम मेरे भरोसे छोड़ो।”


सहदेव ने झटके से मोबाइल निकाला। मनोज हमेशा की तरह शांत और भरोसेमंद था।


“ठीक है…” सहदेव ने अपनी आँखें बंद कीं और चारों तरफ़ निगाह दौड़ाते हुए कहा, “चलो, देखते हैं किसका शिकार कौन है।”


उसने एक छोटे से लोहे के बक्से के पास रखा हुआ मैकेनिकल बटन दबाया।


तुरंत ही चारों गुंडों के पैरों के नीचे की फ़र्श में अचानक से तेज़ बिजली सी दौड़ गई। उनके पैर फिसलने लगे और संतुलन बिगड़ने पर वे गिर पड़े। सहदेव ने तुरंत मौके का फायदा उठाया।


“अब तुम देखो कि शिकार कौन है और शिकारी कौन,” सहदेव ने अपनी आवाज़ में ठंडक और खतरे की एक अनकही गूंज डालते हुए कहा।


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विक्रम सिंह का परिचय


तभी सहदेव के सामने खड़ा हुआ व्यक्ति—विक्रम सिंह।


“मुझे लगता है, तुम्हें मेरा परिचय देना जरूरी है,” विक्रम ने मुस्कान के साथ कहा, लेकिन आँखों में भयंकर आग थी।


सहदेव ने उसकी आँखों में देखा और मन ही मन सोचा—यह कोई आम आदमी नहीं है।


“विक्रम सिंह, उम्र 28 साल। कराटे में पांचवीं डिग्री ब्लैक बेल्ट, बॉक्सिंग में जिला स्तर पर तीन बार, राज्य स्तर पर दो बार और राष्ट्रीय स्तर पर भी कमाल कर चुका। और हाँ, इंजीनियर भी है,” सहदेव ने अपने दिमाग में आंकड़े दोहराए।


विक्रम ने पैरों पर संतुलन बनाते हुए कहा, “अब तुम्हें एहसास होगा कि जब खेल में प्रोफेशनल और प्रशिक्षित हाथ होते हैं, तो कोई भी आसान शिकार नहीं बन सकता।”


सहदेव ने हल्की मुस्कान के साथ जवाब दिया, “ठीक है, लेकिन ये खेल अभी शुरू ही हुआ है। तुम देखोगे कि धैर्य और चालाकी का मतलब क्या होता है।”


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चारों गुंडों ने तेजी से उठने की कोशिश की, लेकिन सहदेव ने पहले ही उनकी दिशा बदल दी। वह तेजी से उनके बीच दौड़ा और लोहे की रॉड को फिर से उठा लिया।


“अब तो तुम्हें पछताना पड़ेगा,” सहदेव ने अपने दांत भींचते हुए कहा।


तभी विक्रम ने एक हल्का कदम बढ़ाया और बॉक्सिंग के पोज़ में खड़ा हो गया। “मैं तुम्हें यह बताने नहीं आया कि खेल खतम है। मैं तुम्हें यह दिखाने आया हूँ कि असली ताक़त क्या होती है।”


सहदेव ने उसकी आँखों में झाँकते हुए हल्का हंस दिया। “मुझे लगता है, आज मुझे सिर्फ़ भागने की ज़रूरत नहीं है। चलो, थोड़ी मस्ती भी हो जाए।”


गोलियाँ अब चारों ओर से चल रही थीं। सहदेव ने अपने दिमाग की गति बढ़ाई और चारों गुंडों को एक-एक करके फंसाने का प्लान बनाया।


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सहदेव ने तीनों गुंडों को अपने चारों ओर दौड़ाते हुए ऐसे स्थित किया कि वे आपस में टकराने लगे। एक को उसने धीरे से धक्का दिया, दूसरा अपने साथी की ओर बढ़ा और तीसरा फिसलते हुए जमीन पर गिर पड़ा।


“वाह, क्या चाल है तुम्हारे पास!” एक गुंडा दहाड़ते हुए कहने लगा, लेकिन तभी सहदेव ने पीछे से पिस्तौल उठाई और अपनी ओर खींचा।


विक्रम ने पहले ही उसके लिए रास्ता साफ कर दिया था। उसकी बॉक्सिंग की चाल और कराटे की स्ट्राइक से हर गुंडा घबराया हुआ था।


सहदेव ने तेज़ी से एक कदम आगे बढ़ाया, और लोहे की रॉड से पास खड़े आदमी के हाथ से बंदूक झटक दी।


“अब तुम्हारे पास सिर्फ़ डर है,” सहदेव ने ठंडी आवाज़ में कहा।


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“तुमने हमें फँसाया, ये तुम्हारी आख़िरी गलती होगी,” गुंडों में से एक ने घबराते हुए कहा।


सहदेव ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, “गलती? नहीं! यह तुम्हारा आख़िरी मौका है, अगर तुम चाहो तो यह खेल खत्म हो सकता है। लेकिन याद रखना, जो मेरे रास्ते में आता है, उसे मैं कभी नहीं छोड़ता।”


विक्रम सिंह ने बीच में कदम रखते हुए कहा, “अब ज्यादा समय नहीं बचा। तुम्हें तय करना होगा—या तो हार मानो या खुद अपनी गलती का सामना करो।”


गुंडे अब पूरी तरह भ्रमित हो चुके थे। सहदेव और विक्रम की जोड़ी, उनकी चालाकी और ताक़त के सामने छोटे और भयभीत लग रहे थे।


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सहदेव ने खुद से कहा,


"मनीषा… मैं तुम्हें खोज रहा हूँ। कोई न कोई है जिसने तुम्हें जबरदस्ती अपने पास रखा है, और यही लोग मेरे पीछे पड़े थे। अब मैं पक्का यकीन कर गया हूँ कि मनीषा का नाम इस खेल में कहीं न कहीं जुड़ा है।"


उसने महसूस किया कि अब न सिर्फ़ अपनी जान बचानी है, बल्कि सच्चाई तक पहुँचने के लिए यह जंग ज़रूरी है।


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सहदेव ने धीरे-धीरे तीनों गुंडों को अपने जाल में और मजबूती से फँसा दिया। गोलियाँ बंद हो गईं, और अब उनके सामने सिर्फ़ उसकी ताक़त और बुद्धिमत्ता थी।


“अब यह तय कर लो,” सहदेव ने कहा, “क्या तुम इस शहर में मेरे लिए खतरा बनना चाहते हो, या आज से अपनी गलतियों का सामना करोगे?”


गुंडे कांपते हुए सहमे। सहदेव ने अपनी पूरी ऊर्जा और योजना से उनका नियंत्रण कर लिया।


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सहदेव ने अब पीछे मुड़कर देखा। उसकी नजरें हर कोने में थीं। वह जानता था कि मनीषा कहीं पास ही है, किसी न किसी स्थान पर।


"अब अगला कदम सिर्फ़ मुझे उठाना है… और यह कदम मेरी सोच, मेरी चाल और मेरी ताक़त से तय होगा।"


विक्रम ने एक हल्की मुस्कान दी, “चलो, खेल अब और रोमांचक होने वाला है।”


सहदेव ने गहरी साँस ली और अपने दिमाग में योजना बनाई कि मनीषा तक पहुँचने के लिए अब सिर्फ़ चालाकी और धैर्य की जरूरत है।


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To be continued…