Jagmohan Sharma (Unforgettable) in Hindi Biography by नंदलाल मणि त्रिपाठी books and stories PDF | जगमोहन शर्मा (अविस्मरणीय)

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जगमोहन शर्मा (अविस्मरणीय)

जगमोहन शर्मा ( अविस्मरणीय)कोई व्यक्ति विशेष किसी व्यक्ति विशेष के लिए अच्छा भी हो सकता है और खराब भी लेकिन एक व्यक्ति बहुसंख्यक व्यक्तियों के लिए अच्छा हो या बुरा हो तब विषय विचारणीय हो जाता है! व्यक्ति विशेष के सदतगुण या दुर्गुण से कोई पूरा समाज नहीं खराब या अच्छा नहीं हो जाता क्योंकि प्रत्येक समाज अच्छे बुरे लोगो का समूह होता है!अंततः व्यक्ति पहचाना जाता है अपने आचरण से, व्यवहार से अपने वचन कर्तव्य निर्वहन से अपने अतीत पथ पग से जो वर्तमान मे उसकी पहचान के साथ साथ उसकी सम्पूर्ण जीवन शैली एवं पूंजी होती है! जीवन मे ऐसे ही व्यक्तियों व्यक्तित्वों से रूबरू होना पड़ा है   जो समाज कि बहुत ही सामान्य सी प्रक्रिया परंपरा से सम्बन्धित है  या रहे है! जी हाँ मैं स्वंय के जीवन मे पिता सम्बन्ध कि संवेदना भावना एवं सम्बन्ध बंधन कि वास्तविकता को अपने व्यावहारिक जीवन के अतीत से वर्तमान तक देखने एवं उसके सत्यार्थ को सार्वजनिक प्रस्तुत करता हूँ! मेरे स्वंय के पिता व्यक्तित्व के धनी व्यक्ति के साथ साथ निर्विकार निर्मल मन व्यक्तित्व थे परिस्थिति कहें या बैराग्य बहुत कम उम्र मे उन्होंने सांसारिक मोह माया का त्याग कर सन्यासी संत स्वरूप मे जीवंत जाग्रत बहुत दिनों तक थे उन्होंने तमाम रिश्ते नातो सम्बन्धो का जो अनुभव किया था वह बहुत कटु था वैसे तो बड़े स्वच्छद  किसी भी वर्तमान भविष्य से बेपरवाह खुश मिजाज प्रसन्न चित्त व्यक्ति थे ज़ब उन्होंने संसारिकता को त्यागा तो हँसी हँसी मे उनके मुख से निकला कि मेरा स्वरूप तुम्हे जीवन मे बहुत बार मिलेगा दिखेगा जो तुम्हे पुत्रवत स्नेह सम्मान आशीर्वाद देगा!उनके जाने क़े बाद मैं भारतीय जीवन बीमा निगम कि सेवा मे आ गया और पहली बार मुझे स्वर्गीय राधे मोहन पांडेय जी भारतीय जीवन बीमा के उच्च अधिकारी से इतर मेरे अवगुण सदगुण से पूरी तरह भिज्ञ स्वयं ही कहा तुम मेरे लिए मेरे तीसरे बेटे जैसे हो और ज़ब तक जीवित रहे अपने भाव कथन पर क़ायम रहते  हुए ज़ब तक जीवित रहे मुझे पुत्रवत स्नेह सम्मान देते रहे!स्वर्गीय राधेमोहन पांडे जी अक्सर  मुझसे कहा करते थे त्रिपाठी तुम अभेद्य के अंश मणि खानदान के वंश गोरक्ष के हंस हो पांडे जी उच्च अधिकारी थे मुझे कभी कभी यही लगता था कि कही वो मेरा परिहास तो नहीं कर रहे है लेकिन अततः स्पष्ट यही हुआ कि पांडेय साहब कि वाणी माँ सरस्वती प्रेरित सत्य थी!जिस महत्वपूर्ण व्यक्ति  वास्तविकता के अस्त अस्तित्व के संदर्भ मे यह उल्लिखित करना चाहता हूँ उनसे मेरी मुलाकात  बिसवी सदी के अंतिम वर्षो एवं इक्कीसवीं सदी के शुभारंम मे आगरा मे हुई थी!आगरा मे भारतीय जीवन बीमा निगम का क्षेत्रीय प्रशिक्षण केंद्र जीवन विद्या सिकंदरा मे अकबर के मकबरे के पास है जहाँ निगम के अधिकारियो अभिकर्ताओ को प्रशिक्षण नियमित अंतराल मे दिया जाता है!मैं अक्सर अपनी सेवा काल मे यह कहता रहता था कि मुझे कौन प्रशिक्षण दे सकता है जिसकी जानकारी किसी सन्दर्भ मे मुझसे अधिक होंगी वहीं मुझे प्रशिक्षण दे सकता है वास्तव मे मेरा अहंकार था या वास्तविक योग्यता  इसका परीक्षण कई बार हुआ खैर मैं विभागीय प्रशिक्षण हेतु आगरा गया प्रशिक्षण सत्र के दौरान लम्बे चौड़े बेहद प्रभावी व्यक्ति जिनका मेरे प्रशिक्षण सत्र मे क्लास चल रहा प्रशिक्षण टाईम टेबल मे उनका नाम लिखा था जगमोहन शर्मा ने पीछे मेरी तरफ इशारा करते हुए कहा यहां आओ मैं संसय मे कुछ घबड़ाया हुआ सहमा सहमा उनके पास तक गया प्रशिक्षण सत्र के क्लास मे बैठे सभी प्रशिणार्थी हक्के बक्के मुझे देखते रह गए मैं भी हैरान कि क़्या बात है?कोई गलती तो नहीं हुई जिसके लिए मुझे बुलाया हो ज़ब मैं जगमोहन शर्मा जी के पास गया तो उन्होंने बहुत तेज हँसते हुए कहा तुम मेरे बेटे हो जैसे भी नहीं कहा और बोले तुम पढ़ाओ और स्वंय क्लास मे कुर्सी पर बैठ गए मैं कुछ देर तक विषय पर बोलता रहा क्लास समाप्त हुआ शर्मा साहब चले गए लेकिन मेरे मन मे अनेको अनुत्तरीत प्रश्न छोड़ गए जिनका उत्तर खोजने क़े लिए मैं जहाँ जहाँ से जगमोहन शर्मा जी के विषय मे कोई भी जानकारी मील सकती थी जुटाना शुरू किया! मेरा प्रशिक्षण सत्र पूरे एक सप्ताह का था आश्चर्य इस बात का भी था कि उसके बाद शर्मा साहब ने मुझे ना तो बुलाया ना ही मैं उनसे मिलने गया लेकिन मुझे उनके विषय मे जो जानकारी वह चौकाने वाली थी जगमोहन शर्मा जी जम्बू कश्मीर के रहने वाले थे और विवाह नहीं किया था क्षेत्रीय प्रशिक्षण केंद्र आगरा के अधिकारी आवास मे रहते थे साथ साथ इतने व्यवहारिक स्पष्ट व्यक्ति थे कि उनका विवाद भारतीय जीवन बीमा से चल रहा था जो देश कि उच्च न्यायालयो मे विचाराधीन था विवाद एवं मुकदमे के चक्कर मे आर्थिक चुनौतिया भी जगमोहन शर्मा जी के साथ बहुत थी स्थिति यह थी कि वह अर्थाभाव के कारण स्वंय के विवाद के सन्दर्भ मे पोस्टकार्ड का प्रयोग बहुतायत करते थे!प्रशिक्षण सत्र समाप्त हुआ और मैं आने से पूर्व उनसे मिलने गया बहुत प्रसन्न हुए बोले बेटे निगम मे मैं स्वंय संघर्षरत हूँ फिर भी कोई आवश्यकता पड़े तो आवश्य बताना जो कुछ सम्भव होगा मैं तुम्हारी मदद आवश्य करूँगा जीवन मे मेरी उनकी आमने सामने अंतिम वार्ता थी उसके बाद मेरी उनसे कभी मुलाक़ात नहीं हुई कुछ दिनों बाद पता चला जगमोहन शर्मा जी को भारतीय जीवन बीमा निगम द्वारा मेरठ का वरिष्ठ मंडल प्रबंधक नियुक्त किया गया है!वरिष्ठ मंडल प्रबंधक मेरठ के रूप मे प्रबंधक निदेशक कि मीटिंग मे जगमोहन शर्मा जी वर्ष -2004 मे वाराणसी आए मेरा उनका सामना हुआ और वह मीटिंग मे चले गए चार वर्षो मेरठ के वरिष्ठ मंडल प्रबंधक रहने के बाद गुड़गांव क्षेत्रीय प्रशिक्षण केंद्र एवं केंद्रीय कार्यालय से गुणगावं सेवानिवृत के बाद निवास रहा शर्मा जी का मैंने जगमोहन शर्मा जी को बहुत बार अनेक माध्यमो से अपना अनुरोध इस बाबत  भिजवया कि उन्हें जीवन मे यदि कोई भी दिक्क़त हो तो उनका मेरे घर पर निःस्वार्थ पितृवत स्वागत है मैंने स्वंय भी बात किया सन्देश भेजे लेकिन उन्होंने मेरी किसी सेवा अनुरोध को कभी स्वीकार नहीं किया मैंने उनपर बहुत दबाव बनाने कि भी कोशिश किया क्योंकि सभी जानते थे कि जगमोहन शर्मा जी ने विवाह नहीं किया था परिवार था नहीं सेवा निवृत के बाद अकेलापन बहुत दुखदायी हो सकता है लेकिन स्वतंत्र विचारों का दृढ़ व्यक्तित्व जगमोहन शर्मा जी बहुत खुद्दार और स्व कि आत्म शक्ति से परिपूर्ण व्यक्ति ही नहीं संस्था समाज परिवार परम्परा अतीत वर्तमान अनुभव अनुभूति आस्था अस्तित्व के जीवंत जाग्रत साधारण मे विराट व्यक्तित्व थे आत्म शक्ति चेतना कि जागृत जागरण के जन्मेजय को जिया जगमोहन शर्मा जी ने और नैतिकता मर्यादा नैतिकता के स्वतंत्र निर्विवाद निर्विरोध निर्विकार प्रारबद्ध पराक्रम पुरुषार्थ के पग पथ प्रहर को जीवेत जाग्रत किया!जगमोहन शर्मा जी जैसा व्यक्ति जिसने भगवान श्री कृष्ण के गीता के निष्काम कर्म के धर्म जीवन मूल्य को जिया तो प्रभु राम कि मर्यादा नैतिकता को आचरण व्यवहारिक रूप से आचरण से प्रस्तुत किया जैसा नाम वैसा जीवन संस्थान प्रणाम उदय उदायमान निशा तमस संसय भय भ्रम का प्रतिकार धन्य धैर्य धीर मोहक प्रसन्न चित्त सर्वत्र सर्व स्वीकार!काया से तो नहीं विराजमान लेकिन मुझे बिसमृत नहीं होता भारतीय जीवन बीमा निगम का वह प्रशिक्षण कक्ष वह पल प्रहर ज़ब भीड़ के बीच उन्होंने कहा तुम मेरे बेटे हो क्या थी वह आवाज संवेदना का थी जो सत्यार्थ कानो मे गूंजती निरंतर वर्तमान परमात्मा प्रेरणा कि थी आत्म पुकार जग जीवेत जाग्रत मोहन पुरुषार्थ प्रेरणा धन्य धैर्य जीवन आकर्षक अभिनन्दन वंदन पितृ प्रमाण!!

नन्दलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर गोरखपुर उत्तर प्रदेश!!